HI/Prabhupada 0740 - हमको शास्त्रों के अध्ययन से समझना होगा: Difference between revisions
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अद्वैत, अच्युत, अनादि, अनंत-रूपम | अद्वैत, अच्युत, अनादि, अनंत-रूपम | ये क्षीरोकदाशायी विष्णु एक व्यक्ति हैं वे सबकें, और सभी जीवों के हृदय में स्थित है | ईश्वर सर्व भूतानाम हृद-देशे अर्जुन तिष्ठति ([[HI/BG 18.61|भ.गी. १८.६१]]) | वो ईश्वर, अंतर्यामी, जो सभी जीवों के हृदय में निवास करते हैं, वो क्षीरोकदाशायी विष्णु हैं | वो न केवल जीवों के हृदय में निवास करते हैं, अपितु वो सभी परमाणु में भी निवास करतें हैं | अंडांतर-स्थ परमाणु चया... परमाणु | परमाणु का अर्थ हैं अणु | इस प्रकार विष्णु के विस्तार इस धरातल पर हैं | यह सारें विस्तार हमारी समझ से बाहर हैं, लेकिन कृष्ण की कृपा से, हम लोग शास्त्रों के अध्ययन से इनके बारें में थोड़ा बहुत समझ सकतें हैं | अन्यथा, हम लोग सोच भी नहीं सकतें हैं की यह सब कैसें संभव हैं, लेकिन यह सब संभव हैं | हमें स्वीकार करना होगा. शास्त्र चक्षुशा: | हमें शास्त्रों के अध्ययन से समझना होगा | अन्यथा यह संभव नहीं हैं | | ||
इसलिए | इसलिए, अगर हमें विष्णु तत्व कों समझना हैं, और हमे कृष्ण कों समझना हैं, और उनके असाधारण स्थान कों समझना हैं, तों उसके लिए शास्त्रों के कथन हैं | और अगर हम शास्त्रों के अर्थ कों सही तरह से समझें, बिना अपनी बुद्धिमत्ता का प्रयोग किये... यह संभव नहीं है | हमें स्वीकार करना होगा | इसलिए, आदेश यह हैं की हमें शास्त्रों के कथन कों स्वीकार करना होगा | यह भगवद गीता में कहा हैं, यः शास्त्र विधिम उत्सृज्य वर्तते काम कारत: ([[HI/BG 16.23|भ.गी. १६.२३]]): "अगर हम शास्त्रों के कथन का अनुसरण नहीं करतें हैं, और हम अपने मन से कुछ भी अर्थ बना लें," फिर न सिद्धिम स अवाप्नोति, "तों, हम कभी उत्कृष्टता प्राप्त नहीं कर सकतें हैं |" हमें शास्त्रों के कथन का अनुसरण करना होगा, अन्यथा, कोई और तरीका नहीं हैं, कृष्ण के उत्कृष्ट पद कों समझने के लिए, कैसें, कृष्ण ने अपने रूप कों नारायण और विष्णु के रूप में प्रकट किया | | ||
हरिबोल | कभी- कभी कुछ लोग तर्क करतें हैं कि कृष्ण, विष्णु के अवतार है | यह भी सच हैं | हमें, सच का पता चैतन्य... में इस तरह से प्राप्त होगा, कि,जब अवतार इस पृथ्वी पर प्रकट होते हैं, तों वें, क्षीरोकदाशायी विष्णु में से प्रकट होते हैं | लेकिन क्षीरोकदाशायी विष्णु, कृष्ण के आंशिक स्वरूप हैं | यह बहुत गहन विषय हैं, लेकिन, अगर हम शास्त्रों का अनुसरण करे और उनकें क़थन कों स्वीकार करे, तब हमे पूरी तरह से समझ में आएँगा | इसलिए नित्यानंद राम...इसलिए यस्यांश स नित्यानंदाख्य राम: नित्यानंद बलराम हैं | अतः उन्होने कहाँ, नित्यानंदाख्य राम: | जैसे, श्री चैतन्य महाप्रभु... कृष्णाय कृष्ण चैतन्य नाम्ने: "मैं श्रद्धा से कृष्ण कों दण्डवत प्रणाम करता हूँ, जो यहाँ पर कृष्ण चैतन्य के रूप में प्रकट हुएँ हैं |" वे कृष्ण हैं | उसी प्रकार से, नित्यानंद बलराम हैं | इसलिए बलराम होईलो निताई | अतः यहाँ यह कहा गया हैं, नित्यानंदाख्य राम: "वे राम हैं, बलराम हैं, परन्तु इस समय यहाँ पर वे नित्यानंद के रूप में प्रकट हुएँ है |" | ||
बहुत बहुत धन्यवाद | | |||
भक्त: हरिबोल! (समाप्त) | |||
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Latest revision as of 17:43, 1 October 2020
Lecture on CC Adi-lila 1.7 -- Mayapur, March 31, 1975
अद्वैत, अच्युत, अनादि, अनंत-रूपम | ये क्षीरोकदाशायी विष्णु एक व्यक्ति हैं वे सबकें, और सभी जीवों के हृदय में स्थित है | ईश्वर सर्व भूतानाम हृद-देशे अर्जुन तिष्ठति (भ.गी. १८.६१) | वो ईश्वर, अंतर्यामी, जो सभी जीवों के हृदय में निवास करते हैं, वो क्षीरोकदाशायी विष्णु हैं | वो न केवल जीवों के हृदय में निवास करते हैं, अपितु वो सभी परमाणु में भी निवास करतें हैं | अंडांतर-स्थ परमाणु चया... परमाणु | परमाणु का अर्थ हैं अणु | इस प्रकार विष्णु के विस्तार इस धरातल पर हैं | यह सारें विस्तार हमारी समझ से बाहर हैं, लेकिन कृष्ण की कृपा से, हम लोग शास्त्रों के अध्ययन से इनके बारें में थोड़ा बहुत समझ सकतें हैं | अन्यथा, हम लोग सोच भी नहीं सकतें हैं की यह सब कैसें संभव हैं, लेकिन यह सब संभव हैं | हमें स्वीकार करना होगा. शास्त्र चक्षुशा: | हमें शास्त्रों के अध्ययन से समझना होगा | अन्यथा यह संभव नहीं हैं |
इसलिए, अगर हमें विष्णु तत्व कों समझना हैं, और हमे कृष्ण कों समझना हैं, और उनके असाधारण स्थान कों समझना हैं, तों उसके लिए शास्त्रों के कथन हैं | और अगर हम शास्त्रों के अर्थ कों सही तरह से समझें, बिना अपनी बुद्धिमत्ता का प्रयोग किये... यह संभव नहीं है | हमें स्वीकार करना होगा | इसलिए, आदेश यह हैं की हमें शास्त्रों के कथन कों स्वीकार करना होगा | यह भगवद गीता में कहा हैं, यः शास्त्र विधिम उत्सृज्य वर्तते काम कारत: (भ.गी. १६.२३): "अगर हम शास्त्रों के कथन का अनुसरण नहीं करतें हैं, और हम अपने मन से कुछ भी अर्थ बना लें," फिर न सिद्धिम स अवाप्नोति, "तों, हम कभी उत्कृष्टता प्राप्त नहीं कर सकतें हैं |" हमें शास्त्रों के कथन का अनुसरण करना होगा, अन्यथा, कोई और तरीका नहीं हैं, कृष्ण के उत्कृष्ट पद कों समझने के लिए, कैसें, कृष्ण ने अपने रूप कों नारायण और विष्णु के रूप में प्रकट किया |
कभी- कभी कुछ लोग तर्क करतें हैं कि कृष्ण, विष्णु के अवतार है | यह भी सच हैं | हमें, सच का पता चैतन्य... में इस तरह से प्राप्त होगा, कि,जब अवतार इस पृथ्वी पर प्रकट होते हैं, तों वें, क्षीरोकदाशायी विष्णु में से प्रकट होते हैं | लेकिन क्षीरोकदाशायी विष्णु, कृष्ण के आंशिक स्वरूप हैं | यह बहुत गहन विषय हैं, लेकिन, अगर हम शास्त्रों का अनुसरण करे और उनकें क़थन कों स्वीकार करे, तब हमे पूरी तरह से समझ में आएँगा | इसलिए नित्यानंद राम...इसलिए यस्यांश स नित्यानंदाख्य राम: नित्यानंद बलराम हैं | अतः उन्होने कहाँ, नित्यानंदाख्य राम: | जैसे, श्री चैतन्य महाप्रभु... कृष्णाय कृष्ण चैतन्य नाम्ने: "मैं श्रद्धा से कृष्ण कों दण्डवत प्रणाम करता हूँ, जो यहाँ पर कृष्ण चैतन्य के रूप में प्रकट हुएँ हैं |" वे कृष्ण हैं | उसी प्रकार से, नित्यानंद बलराम हैं | इसलिए बलराम होईलो निताई | अतः यहाँ यह कहा गया हैं, नित्यानंदाख्य राम: "वे राम हैं, बलराम हैं, परन्तु इस समय यहाँ पर वे नित्यानंद के रूप में प्रकट हुएँ है |"
बहुत बहुत धन्यवाद |
भक्त: हरिबोल! (समाप्त)