HI/Prabhupada 0749 - कृष्ण दर्द महसूस कर रहे हैं । तो तुम कृष्ण भावनाभावित हो जाओ: Difference between revisions

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प्रभुपाद: लोग अधर्मी बनने की वजस से पीड़ित हैं। तो भगवान क्या है यह समझ नहीं सकते हैं, श्री कृष्ण क्या हैं, जब तक उसने अधर्मी गतिविधि को समाप्त नहीं किया हो ।  
प्रभुपाद: लोग अधर्मी बनने की वजह से पीड़ित हैं । तो व्यक्ति भगवान क्या है, कृष्ण क्या है, यह समझ नहीं सकता, जब तक उसने अपने पाप कार्यो को समाप्त नहीं किया हो ।  


:येषाम् त्व अंत गतम् पापम्
:येषाम त्व अंत गतम पापम
:जनानाम् पुण्य कर्मणाम
:जनानाम पुण्य कर्मणाम  
:ते द्वद्व मोह निरमुक्त
:ते द्वंद्व मोह निरमुक्ता
:भजन्ते माम दृढ व्रता:  
:भजन्ते माम दृढ व्रता:
:([[Vanisource:BG 7.28|भ गी ७।२८]])
:([[HI/BG 7.28|भ.गी. ७.२८]])  


यह( सिद्धांत है, कि तुम किसी को अधर्मी गतिविधियों में रख नहीं सकते हैं अौर उसी समय में धार्मिक, या भगवान भावनाभावित नहीं हो सकते । यह संभव नहीं है । यह संभव नहीं है । इसलिए चैतन्य महाप्रभु नें निर्धारित किया है एक बहुत ही आसान तरीका पवित्र बनने के लिए । यह है हरे कृष्ण महा-मंत्र का जप करना । चेतो दर्पण मार्जनम ([[Vanisource:CC Antya 20.12|चै च अंत्य २०।१२]]) । असली बीमारी हमारे ह्रदय के भीतर है । ह्रद रोग कामा । ह्रद रोग काम ([[Vanisource:CC Antya 5.45–46|चै च अंत्य ५।४५-४६]]) हमारा एक रोग है, हृदय रोग । वो क्या है ? काम, कामुक इच्छाऍ । इसे ह्रद रोग कामा कहा जाता है । तो हमें इस हृदय रोग का इलाज करना है, ह्रद रोग काम । और यह केवल सुनने अौर जप करने से हरे कृष्ण मंत्र का । चेतो दर्पण मार्जनम । ह्रदय ठीक है लेकिन यह भौतिक गंदगी से ढका है, अर्थात् तीन गुण: सत्व, रज, तमो-गुण । लेकिन श्रीमद-भागवतम सुनने से, हरे कृष्ण मंत्र के सुनने अौर जाप करने से, तुम शुद्ध हो जाअोगे । नित्यम् भागवत सेवया । नष्ट प्रायेषु अभद्रेषु, नित्यम भागवत सेवया ([[Vanisource:SB 1.2.18|श्री भ १।२।१८]]) नित्यम भाग ... अगर हम इस अवसर को लेरे हैं... हम दुनिया भर में केन्द्र खोल रहे हैं केवल लोगों को यह अवसर देने के लिए, नित्यम भागवत सेवया । अनर्थ उपशमम् साक्षाद भक्ति योगम ([[Vanisource:SB 1.7.6|श्री भ १।७।६]]) फिर, जैसे ही ह्रदय सुनने के द्वारा शुद्ध होता है श्री कृष्ण के बारे में ....... चैतन्य महाप्रभु सलाह देते हैं कि : यारे देख तारे कह कृष्ण उपदेश ([[Vanisource:CC Madhya 7.128|चै च मध्य ७।१२८]]) यह श्रीमद-भागवतम भी श्री कृष्ण-उपदेश है क्योंकि श्रीमद-भागवतम सुनने से, तुम्हे श्री कृष्ण में रुचि होगी । श्री कृष्ण के बारे में उपदेश, वह भी श्री कृष्ण-उपदेश है, और उपदेश, निर्देश, श्री कृष्ण द्वारा दिए गए, वह भी श्री कृष्ण-उपदेश है। तो श्री चैतन्य महाप्रभु का मिशन है, कि तुम जाओ और उपदेश करो और श्री कृष्ण-उपदेश के बारे में प्रचार करो । यही कृष्ण भावनामृत आंदोलन है । हम अपने भक्तों को सिखा रहे हैं कि कैसे कृष्ण उपदेश को फैलाना है, कैसे कृष्ण भावनामृत का प्रसार करना है । फिर अनर्थ उपशमम साक्षात फिर सभी अवांछित चीजें खत्म हो जाऍगी जिससे वह दूषित है। फिर शुद्ध चेतना....शुद्ध चेतना ही कृष्ण भावनामृत है । शुद्ध चेतना का मतलब है यह समझना कि "मैं जुडा हूँ श्री कृष्ण के साथ, उनका अंशस्वरूप ।" जैसे मेरी उंगली जुडी है मेरे शरीर के साथ । जुडना .....अगर थोड़ा दर्द होता है उंगली में ...,मैं इतना परेशान हो जाता हूँ । क्योंकि। मैं इस उंगली के साथ जुडा हूँ । इसी तरह, हमारा श्री कृष्ण के साथ अंतरंग जुडाव है और हम गिर गए हैं। इसलिए श्री कृष्ण भी थोड़ा दर्द महसूस होता है, और इसलिए वे अवतरति होता हैं ।  
यह सिद्धांत है, कि तुम किसी को अधर्मी गतिविधियों में रख नहीं सकते हो अौर उसी समय वो धार्मिक, या भगवद भावनाभावित हो । यह संभव नहीं है । यह संभव नहीं है । इसलिए चैतन्य महाप्रभु नें निर्धारित किया है एक बहुत ही आसान तरीका पवित्र बनने के लिए । यह है हरे कृष्ण महा-मंत्र का जप करना । चेतो दर्पण मार्जनम ([[Vanisource:CC Antya 20.12|चैतन्य चरितामृत अंत्य २०.१२]]) । असली बीमारी हमारे हृदय के भीतर है । हृद रोग कामा । हृद रोग काम ([[Vanisource:CC Antya 5.45–46|चैतन्य चरितामृत अंत्य ५.४५-४६]]) | हमारा एक रोग है, हृदय रोग । वो क्या है ? काम, कामुक इच्छाऍ । इसे हृद-रोग-काम कहा जाता है ।  
 
तो हमें इस हृदय रोग, हृद-रोग-काम, का इलाज करना है । और यह होगा केवल हरे कृष्ण मंत्र का जप करने से और सुनने से । चेतो दर्पण मार्जनम । हृदय ठीक है, लेकिन यह भौतिक गंदगी से ढका है, अर्थात तीन गुण: सत्व, रज, तमो-गुण । लेकिन श्रीमद-भागवतम सुनने से, हरे कृष्ण मंत्र को सुनने अौर जप करने से, तुम शुद्ध हो जाअोगे । नित्यम भागवत सेवया । नष्ट प्रायेषु अभद्रेषु नित्यम भागवत सेवया ([[Vanisource:SB 1.2.18|श्रीमद भागवतम १.२.१८]]) | नित्यम भाग... अगर हम इस अवसर को ले रहे हैं... हम दुनिया भर में केन्द्र खोल रहे हैं केवल लोगों को यह अवसर देने के लिए, नित्यम भागवत सेवया ।  
 
अनर्थ उपशमम साक्षाद भक्ति योगम ([[Vanisource:SB 1.7.6|श्रीमद भागवतम १.७.६]]) | फिर, जैसे ही हृदय कृष्ण के विषय में सुनने के द्वारा शुद्ध होता है... चैतन्य महाप्रभु सलाह देते हैं कि: यारे देख तारे कह कृष्ण उपदेश ([[Vanisource:CC Madhya 7.128|चैतन्य चरितामृत मध्य ७.१२८]]) | यह श्रीमद-भागवतम भी श्री कृष्ण-उपदेश है, क्योंकि श्रीमद-भागवतम सुनने से, तुम्हे कृष्ण में रुचि होगी । कृष्ण के बारे में उपदेश, वह भी कृष्ण-उपदेश है, और उपदेश, निर्देश, कृष्ण द्वारा दिए गए, वह भी कृष्ण-उपदेश है । तो श्री चैतन्य महाप्रभु का मिशन है, कि तुम जाओ और प्रचार करो, और कृष्ण-उपदेश के बारे में प्रचार करो । यही कृष्ण भावनामृत आंदोलन है ।  
 
हम अपने भक्तों को सिखा रहे हैं कि कैसे कृष्ण उपदेश को फैलाना है, कैसे कृष्ण भावनामृत का प्रसार करना है । फिर अनर्थ उपशमम साक्षात | फिर सभी अवांछित चीजें खत्म हो जाऍगी जिससे वह दूषित है। फिर शुद्ध चेतना... शुद्ध चेतना ही कृष्ण भावनामृत है । शुद्ध चेतना का मतलब है यह समझना कि "मैं जुडा हूँ कृष्ण के साथ, उनका अंशस्वरूप ।" जैसे मेरी उंगली जुडी है मेरे शरीर के साथ । जुडना... अगर थोड़ा दर्द होता है उंगली में, मैं इतना परेशान हो जाता हूँ । क्योंकि। मैं इस उंगली के साथ जुडा हूँ । इसी तरह, हमारा कृष्ण के साथ अंतरंग जुडाव है और हम गिर गए हैं । इसलिए कृष्ण भी थोड़ा दर्द महसूस करते है, और इसलिए वे अवतरति होते हैं ।  


:परित्राणाय साधूनाम  
:परित्राणाय साधूनाम  
:विनाशाय दुष्कृताम  
:विनाशाय दुष्कृताम  
:धर्म सम्स्थापनार्थाया
:धर्म संस्थापनार्थाय
:सम्भवामि युगे युगे  
:सम्भवामि युगे युगे  
:([[Vanisource:BG 4.8|भ गी ४।८]])
:([[HI/BG 4.8|भ.गी. ४.८ ]])


श्री कृष्ण दर्द महसूस कर रहे हैं । तो अगर तुम कृष्ण भावनाभावित होते हो, तो श्री कृष्ण खुशी महसूस करेंगे । यही कृष्ण भावनामृत आंदोलन है ।  
कृष्ण दर्द महसूस कर रहे हैं । तो अगर तुम कृष्ण भावनाभावित होते हो, तो कृष्ण खुशी महसूस करेंगे । यही कृष्ण भावनामृत आंदोलन है ।  


बहुत बहुत धन्यवाद ।  
बहुत बहुत धन्यवाद ।  


भक्त: जय प्रभुपाद ।
भक्त: जय प्रभुपाद ।  
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Latest revision as of 17:43, 1 October 2020



Lecture on SB 1.7.7 -- Vrndavana, April 24, 1975

प्रभुपाद: लोग अधर्मी बनने की वजह से पीड़ित हैं । तो व्यक्ति भगवान क्या है, कृष्ण क्या है, यह समझ नहीं सकता, जब तक उसने अपने पाप कार्यो को समाप्त नहीं किया हो ।

येषाम त्व अंत गतम पापम
जनानाम पुण्य कर्मणाम
ते द्वंद्व मोह निरमुक्ता
भजन्ते माम दृढ व्रता:
(भ.गी. ७.२८)

यह सिद्धांत है, कि तुम किसी को अधर्मी गतिविधियों में रख नहीं सकते हो अौर उसी समय वो धार्मिक, या भगवद भावनाभावित हो । यह संभव नहीं है । यह संभव नहीं है । इसलिए चैतन्य महाप्रभु नें निर्धारित किया है एक बहुत ही आसान तरीका पवित्र बनने के लिए । यह है हरे कृष्ण महा-मंत्र का जप करना । चेतो दर्पण मार्जनम (चैतन्य चरितामृत अंत्य २०.१२) । असली बीमारी हमारे हृदय के भीतर है । हृद रोग कामा । हृद रोग काम (चैतन्य चरितामृत अंत्य ५.४५-४६) | हमारा एक रोग है, हृदय रोग । वो क्या है ? काम, कामुक इच्छाऍ । इसे हृद-रोग-काम कहा जाता है ।

तो हमें इस हृदय रोग, हृद-रोग-काम, का इलाज करना है । और यह होगा केवल हरे कृष्ण मंत्र का जप करने से और सुनने से । चेतो दर्पण मार्जनम । हृदय ठीक है, लेकिन यह भौतिक गंदगी से ढका है, अर्थात तीन गुण: सत्व, रज, तमो-गुण । लेकिन श्रीमद-भागवतम सुनने से, हरे कृष्ण मंत्र को सुनने अौर जप करने से, तुम शुद्ध हो जाअोगे । नित्यम भागवत सेवया । नष्ट प्रायेषु अभद्रेषु नित्यम भागवत सेवया (श्रीमद भागवतम १.२.१८) | नित्यम भाग... अगर हम इस अवसर को ले रहे हैं... हम दुनिया भर में केन्द्र खोल रहे हैं केवल लोगों को यह अवसर देने के लिए, नित्यम भागवत सेवया ।

अनर्थ उपशमम साक्षाद भक्ति योगम (श्रीमद भागवतम १.७.६) | फिर, जैसे ही हृदय कृष्ण के विषय में सुनने के द्वारा शुद्ध होता है... चैतन्य महाप्रभु सलाह देते हैं कि: यारे देख तारे कह कृष्ण उपदेश (चैतन्य चरितामृत मध्य ७.१२८) | यह श्रीमद-भागवतम भी श्री कृष्ण-उपदेश है, क्योंकि श्रीमद-भागवतम सुनने से, तुम्हे कृष्ण में रुचि होगी । कृष्ण के बारे में उपदेश, वह भी कृष्ण-उपदेश है, और उपदेश, निर्देश, कृष्ण द्वारा दिए गए, वह भी कृष्ण-उपदेश है । तो श्री चैतन्य महाप्रभु का मिशन है, कि तुम जाओ और प्रचार करो, और कृष्ण-उपदेश के बारे में प्रचार करो । यही कृष्ण भावनामृत आंदोलन है ।

हम अपने भक्तों को सिखा रहे हैं कि कैसे कृष्ण उपदेश को फैलाना है, कैसे कृष्ण भावनामृत का प्रसार करना है । फिर अनर्थ उपशमम साक्षात | फिर सभी अवांछित चीजें खत्म हो जाऍगी जिससे वह दूषित है। फिर शुद्ध चेतना... शुद्ध चेतना ही कृष्ण भावनामृत है । शुद्ध चेतना का मतलब है यह समझना कि "मैं जुडा हूँ कृष्ण के साथ, उनका अंशस्वरूप ।" जैसे मेरी उंगली जुडी है मेरे शरीर के साथ । जुडना... अगर थोड़ा दर्द होता है उंगली में, मैं इतना परेशान हो जाता हूँ । क्योंकि। मैं इस उंगली के साथ जुडा हूँ । इसी तरह, हमारा कृष्ण के साथ अंतरंग जुडाव है और हम गिर गए हैं । इसलिए कृष्ण भी थोड़ा दर्द महसूस करते है, और इसलिए वे अवतरति होते हैं ।

परित्राणाय साधूनाम
विनाशाय च दुष्कृताम
धर्म संस्थापनार्थाय
सम्भवामि युगे युगे
(भ.गी. ४.८ )

कृष्ण दर्द महसूस कर रहे हैं । तो अगर तुम कृष्ण भावनाभावित होते हो, तो कृष्ण खुशी महसूस करेंगे । यही कृष्ण भावनामृत आंदोलन है ।

बहुत बहुत धन्यवाद ।

भक्त: जय प्रभुपाद ।