HI/Prabhupada 0757 - वह भगवान को भूल गया है उसकी चेतना को पुनर्जीवित कराओ, यही असली अच्छी चीज़् है: Difference between revisions
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प्रभुपाद: एक कहानी है: एक | प्रभुपाद: एक कहानी है: एक आदमी ने लिखी है कि गायो को कैसे चरहाना चहिए । "गायो को चरहाना, गायो को चरहाना, गायो को चरहाना ।" तोह एक बुज़ुर्ग़ आदमी ने बुलाया, "कौन सी किताब बेच रहे हो?" "कैसे गायों को चरहाते हैं।" "तो आप बेहतर अपनी मां के लिए ये पुस्तक ले । तो वह सिख जायेगी तुम्हारा पालन |" गायोंको चरहाना हर कोई जानता है, और उसने एक किताब लिखी है । "तो बेहतर... तुम एक बदमाश गाय हो I अपनी माँ को दे दो, और वो तुम्हारा पालन करेगी ।" यह ऐसा ही है । अगर सब कुछ ठीक है, तो कोइ ले रहा है, "यह खुशी है," कोइ... फिर किताब लिखने का क्या मतलब है ? सब कुछ ठीक है । वो लोग जो चाहे चुन सक्ते है । "ओह, तुम क्यों एक बडे उपदेशक बन रहे हो ?" उन्हे जो ठीक लगे चुनने दो । | ||
परमहंस: लेकिन कुछ लोगो को | परमहंस: लेकिन कुछ लोगो को तक़लिफ़ होती है, यह चुनने मे की उन्हे क्या पसन्द है । इसलिए हम उन्हें मदद करते हैं । हमे लगता है कि मनुष्य होने के नाते यह हमारा कर्तव्य है उनकी मदद करना । | ||
प्रभुपाद: तो यह कर्तव्य | प्रभुपाद: तो यह कर्तव्य की आप बेहतर अपनी माँ के पास जाओ । सभी बकवास सिद्धांत । इसका कोई अर्थ नहीं है । | ||
श्रुतकीर्ति: अगर सब कुछ ठीक है, तो मेरा उपदेश , यह भी सब ठीक | श्रुतकीर्ति: अगर सब कुछ ठीक है, तो मेरा उपदेश, यह भी सब ठीक है । सब कुछ ठीक है तो फिर, मेरे उपदेश मे गलत क्या है ? | ||
प्रभुपाद: आपका प्रचार ठीक है, जब तक, आप अच्छा प्रचार कर रहे | प्रभुपाद: आपका प्रचार ठीक है, जब तक, आप अच्छा प्रचार कर रहे हो । लेकिन जब सब कुछ अच्छा है, तो तुम्हारे प्रचार की जरूरत क्या है ? तुम कुछ प्रचार करो । जिस तरह से हम प्रचार कर रहे है । हम प्रचार कर रहे हैं । यह उनके लिये अच्छा है की उन्हे पता हो की वो कौन है, और जीवन का अंतिम लक्ष्य क्या है । यह आवश्यक है । भौतिक उपदेश का कोई मूल्य नहीं है । यही चैतन्य चरितामृत में कहा गया है, एइ भाल एइ मन्द, सब मनोधर्म ([[Vanisource:CC Antya 4.176|चैतन्य चरितामृत अन्त्य ४.१७६]]) । "यह अच्छा है, यह बुरा है," यह वास्तव में, सभी मानसिक मनगढ़ंत कहानी है । लेकिन असली अच्छाई है: "वह भगवान को भूल गया है | उसकी चेतना को पुनर्जीवित कराओ ।" यही असली भलाई है । फिर वह तथाकथित अच्छे और बुरे से बच जायेगा । इसकी ज़रुरत है । | ||
भौतिक स्तर पे, जो कुछ एक आदमी का भोजन है, वह दुसरे आदमी के लिये जहर है । इसलिए कोई भेद नहि है - "यह अच्छा है; यह बुरा है |" मल आप के लिए बहुत बुरा है, दुर्गन्ध है, लेकिन यह सुअर के लिए भोजन है । यह प्रमाण है - 'एक आदमी का भोजन, और दुसरे का जहर है ।" तो यह केवल मानसिक अटकले है, "यह अच्छा है; यह बुरा है |" सब कुछ अच्छा है; सब कुछ बुरा - भौतिकता से । उसके लिए असली अच्छी चीज है: की वह अपनी आध्यात्मिक पहचान भूल गया है; उस चेतना के लिए उसे पुनर्जीवित करना है । यही असली अच्छी चीज है । (ठहराव) कोइ अगर अभी बाल्टी भर पानी लेके आता है और केहता है की, "मै तुम्हे भिगो दूंगा," "नहीं, नहीं, नहीं, ऐसा मत करो ।" लेकिन आप पाते हैं - हम जा रहे हैं - बतख, जैसे ही वे... तुरंत पानी पर कूदते है । तो पानी अच्छा है या बुरा है ? यह सब सापेक्ष है । तो यह अच्छे और बुरे के बारे में चिंता नहीं करे । यह केवल मानसिक अटकले है । | |||
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Latest revision as of 17:43, 1 October 2020
प्रभुपाद: एक कहानी है: एक आदमी ने लिखी है कि गायो को कैसे चरहाना चहिए । "गायो को चरहाना, गायो को चरहाना, गायो को चरहाना ।" तोह एक बुज़ुर्ग़ आदमी ने बुलाया, "कौन सी किताब बेच रहे हो?" "कैसे गायों को चरहाते हैं।" "तो आप बेहतर अपनी मां के लिए ये पुस्तक ले । तो वह सिख जायेगी तुम्हारा पालन |" गायोंको चरहाना हर कोई जानता है, और उसने एक किताब लिखी है । "तो बेहतर... तुम एक बदमाश गाय हो I अपनी माँ को दे दो, और वो तुम्हारा पालन करेगी ।" यह ऐसा ही है । अगर सब कुछ ठीक है, तो कोइ ले रहा है, "यह खुशी है," कोइ... फिर किताब लिखने का क्या मतलब है ? सब कुछ ठीक है । वो लोग जो चाहे चुन सक्ते है । "ओह, तुम क्यों एक बडे उपदेशक बन रहे हो ?" उन्हे जो ठीक लगे चुनने दो ।
परमहंस: लेकिन कुछ लोगो को तक़लिफ़ होती है, यह चुनने मे की उन्हे क्या पसन्द है । इसलिए हम उन्हें मदद करते हैं । हमे लगता है कि मनुष्य होने के नाते यह हमारा कर्तव्य है उनकी मदद करना ।
प्रभुपाद: तो यह कर्तव्य की आप बेहतर अपनी माँ के पास जाओ । सभी बकवास सिद्धांत । इसका कोई अर्थ नहीं है ।
श्रुतकीर्ति: अगर सब कुछ ठीक है, तो मेरा उपदेश, यह भी सब ठीक है । सब कुछ ठीक है तो फिर, मेरे उपदेश मे गलत क्या है ?
प्रभुपाद: आपका प्रचार ठीक है, जब तक, आप अच्छा प्रचार कर रहे हो । लेकिन जब सब कुछ अच्छा है, तो तुम्हारे प्रचार की जरूरत क्या है ? तुम कुछ प्रचार करो । जिस तरह से हम प्रचार कर रहे है । हम प्रचार कर रहे हैं । यह उनके लिये अच्छा है की उन्हे पता हो की वो कौन है, और जीवन का अंतिम लक्ष्य क्या है । यह आवश्यक है । भौतिक उपदेश का कोई मूल्य नहीं है । यही चैतन्य चरितामृत में कहा गया है, एइ भाल एइ मन्द, सब मनोधर्म (चैतन्य चरितामृत अन्त्य ४.१७६) । "यह अच्छा है, यह बुरा है," यह वास्तव में, सभी मानसिक मनगढ़ंत कहानी है । लेकिन असली अच्छाई है: "वह भगवान को भूल गया है | उसकी चेतना को पुनर्जीवित कराओ ।" यही असली भलाई है । फिर वह तथाकथित अच्छे और बुरे से बच जायेगा । इसकी ज़रुरत है ।
भौतिक स्तर पे, जो कुछ एक आदमी का भोजन है, वह दुसरे आदमी के लिये जहर है । इसलिए कोई भेद नहि है - "यह अच्छा है; यह बुरा है |" मल आप के लिए बहुत बुरा है, दुर्गन्ध है, लेकिन यह सुअर के लिए भोजन है । यह प्रमाण है - 'एक आदमी का भोजन, और दुसरे का जहर है ।" तो यह केवल मानसिक अटकले है, "यह अच्छा है; यह बुरा है |" सब कुछ अच्छा है; सब कुछ बुरा - भौतिकता से । उसके लिए असली अच्छी चीज है: की वह अपनी आध्यात्मिक पहचान भूल गया है; उस चेतना के लिए उसे पुनर्जीवित करना है । यही असली अच्छी चीज है । (ठहराव) कोइ अगर अभी बाल्टी भर पानी लेके आता है और केहता है की, "मै तुम्हे भिगो दूंगा," "नहीं, नहीं, नहीं, ऐसा मत करो ।" लेकिन आप पाते हैं - हम जा रहे हैं - बतख, जैसे ही वे... तुरंत पानी पर कूदते है । तो पानी अच्छा है या बुरा है ? यह सब सापेक्ष है । तो यह अच्छे और बुरे के बारे में चिंता नहीं करे । यह केवल मानसिक अटकले है ।