HI/Prabhupada 0764 - मजदूरों को लगा कि, 'यीशु मसीहा मजदूरों में से कोई एक होगा': Difference between revisions

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तो गाँव गाँव में, शहर शहर में जाओ । इस कृष्ण भावनामृत क प्रचार करो। उन्हें जागृत करो, तो यह हताशा बंद हो जाएगी । जो समाज के नेता हैं, राजनीतिज्ञ हैं, उन्हें ध्यान रखना चाहिए कि वे किस् दिशा में जा रहे हैं। कहा गया है कि, "कथा हरिकथोदर्का: सताम् स्यू: सदसि ध्रुवम " ([[Vanisource:SB 2.3.14|भागवत २•३•१४]])। तो हम अगर इस हरि-कथा की चर्चा करते हैं... हम श्रीमद-भागवतम् पर चर्चा कर रहे हैं, हरि-कथा। तो, कथा, हरि-कथा, उदर्का: सताम् स्यू: सदसि ध्रुवम। जब भक्तों के संग में विचार-विमर्श किया जाए, तभी हम समझ सकते हैं। यह पुस्तक, श्रीमद-भागवतम्, भक्तों के लिये बहुमूल्य है। और दूसरों के लिए, वे खरीद सकते हैं। वे देखते हैं, "यह क्या है?" "संस्कृत कविता, कुछ लिखा है। कागज का टुकड़ा है।" आप समझ सकते हैं। बस इस अखबार की तरह, हमारे लिए कागज का बेकार टुकड़ा है। हमें इसके लिए परवाह नहीं है। लेकिन वे इसे अपनी छाती से बड़े प्यार से लगाकर रखते हैं, "ओह, यह कितना मनोरम है"(हंसी)
तो गाँव गाँव, शहर शहर जाओ । इस कृष्ण भावनामृत क प्रचार करो । उन्हें जागृत करो, तो यह हताशा बंद हो जाएगी । जो समाज के नेता हैं, राजनीतिज्ञ हैं, उन्हें ध्यान रखना चाहिए कि वे किस दिशा में जा रहे हैं । कहा गया है कि, "कथा हरि कथोदर्का: सताम स्यू: सदसि ध्रुवम ([[Vanisource:SB 2.3.14|श्रीमद भागवतम २.३.१४]]) । तो हम अगर इस हरि-कथा की चर्चा करते हैं... हम श्रीमद-भागवतम, हरि कथा, पर चर्चा कर रहे हैं ।  


पश्चिमी देशों में अखबार इतना लोकप्रिय है। एक सज्जन ने, मुझे एक कहानी सुनाई, कि एक ईसाई पादरी शेफील्ड इलाके में ईसाई धर्म प्रचार करने के लिए चला गया। शेफील्ड, यह कहाँ है? इंग्लैंड में? तो वह वहाँ, कार्यकर्ताओं, मजदूरों, को प्रचार कर रहा था के "प्रभु यीशु मसीहा आपको बचा लेंगे।" यदि आप प्रभु यीशु मसीहा के शरण नहीं लेते हैं, तो आपको नरक में जाना होगा। " तो सबसे पहले वह कहता है, "कौन है यीशु मसीहा ? उसका नंबर क्या है?" इसका मतलब उन्होंने सोचा, "यीशु मसीहा मजदूरों में से कोई एक होगा।" और हर मजदूर का एक नंबर था, (हंसी) तो उसका नंबर क्या है? " तो "नहीं, यीशु मसीहा, वह भगवान का बेटा है। तो उसका कोई नंबर नहीं है । वे कोई मजदूर नहीं हैं।" फिर "नर्क क्या है?" तो पादरी ने वर्णन किया, "नर्क में बहुत अंधेरा है, बहुत नम है," और कहता ही गया । तो वे सब चुप थे। क्योंकि वे खानों में काम करते थे। वहाँ हमेशा अंधेरा और नम होता है। (हँसी) (प्रभुपाद हँसते हुए) तो, नर्क और खन के बीच अंतर ही क्या है? तो वे सब चुप थे। मगर जैसे ही पादरी ने कहा " वहाँ अखबार नहीं है ", "ओह, ओह, यह तो भयानक है ! " (हंसी) कोई अखबार नहीं है। (प्रभुपाद हंसते हुए) इसलिए, अापके देश में, बड़े, बड़े इतने सारे, मेरे कहने का मतलब है, अखबारों का गुच्छा, वे वितरित कर रहे हैं।
तो, कथा, हरि-कथा, उदर्का: सताम स्यू: सदसि ध्रुवम । जब भक्तों के संग में विचार-विमर्श किया जाए, तभी हम समझ सकते हैं । यह पुस्तक, श्रीमद-भागवतम, भक्तों के लिये बहुमूल्य है । और दूसरों के लिए, वे खरीद सकते हैं । वे देखते हैं, "यह क्या है? संस्कृत श्लोक, कुछ लिखा है।  कागज का टुकड़ा है ।" आप समझ सकते हैं । जैसे ये अखबार, हमारे लिए कागज का बेकार टुकड़ा है । हमें इसकी परवाह नहीं है । लेकिन वे इसे अपनी छाती से बड़े प्यार से लगाकर रखते हैं, "ओह, यह कितना अच्छा है।" (हंसी)
 
पश्चिमी देशों में अखबार इतना लोकप्रिय है । एक सज्जन ने, मुझे एक कहानी सुनाई, की एक ईसाई पादरी शेफील्ड इलाके में ईसाई धर्म प्रचार करने के लिए चला गया । शेफील्ड, वो कहाँ है ? इंग्लैंड में ? तो वह वहाँ, कार्यकर्ताओं, मजदूरों, में प्रचार कर रहा था के "प्रभु यीशु मसीह आपको बचा लेंगे ।" यदि आप प्रभु यीशु मसीह की शरण नहीं लेते हैं, तो आपको नरक में जाना होगा ।" तो सबसे पहले वह कहता है, "कौन है यीशु मसीह ? उसका नंबर क्या है ?" इसका मतलब उन्होंने सोचा, "यीशु मसीह मजदूरों में से कोई एक होगा ।" और हर मजदूर का एक नंबर था, (हंसी) तो उनका नंबर क्या है ?" तो "नहीं, यीशु मसीह, वह भगवान के पुत्र है । तो उनका कोई नंबर नहीं है । वे कोई मजदूर नहीं हैं ।"  
 
फिर "नर्क क्या है?" तो पादरी ने वर्णन किया, "नर्क में बहुत अंधेरा है, बहुत नम है," और वगैरह वगैरह । तो वे सब चुप थे । क्योंकि वे खानों में काम करते थे । वहाँ हमेशा अंधेरा और नमी होती है । (हँसी) (प्रभुपाद हँसते हुए) तो, नर्क और खान के बीच अंतर ही क्या है ? तो वे सब चुप थे । मगर जैसे ही पादरी ने कहा "वहाँ अखबार नहीं है", "ओह, ओह, यह तो भयानक है !" (हंसी) कोई अखबार नहीं है । (प्रभुपाद हंसते हुए) इसलिए, अापके देश में, बड़े, बड़े इतने सारे, मेरे कहने का मतलब है, अखबारों का गुच्छा, वे वितरित कर रहे हैं ।
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Latest revision as of 07:22, 21 October 2018



Lecture on SB 2.3.14-15 -- Los Angeles, May 31, 1972

तो गाँव गाँव, शहर शहर जाओ । इस कृष्ण भावनामृत क प्रचार करो । उन्हें जागृत करो, तो यह हताशा बंद हो जाएगी । जो समाज के नेता हैं, राजनीतिज्ञ हैं, उन्हें ध्यान रखना चाहिए कि वे किस दिशा में जा रहे हैं । कहा गया है कि, "कथा हरि कथोदर्का: सताम स्यू: सदसि ध्रुवम (श्रीमद भागवतम २.३.१४) । तो हम अगर इस हरि-कथा की चर्चा करते हैं... हम श्रीमद-भागवतम, हरि कथा, पर चर्चा कर रहे हैं ।

तो, कथा, हरि-कथा, उदर्का: सताम स्यू: सदसि ध्रुवम । जब भक्तों के संग में विचार-विमर्श किया जाए, तभी हम समझ सकते हैं । यह पुस्तक, श्रीमद-भागवतम, भक्तों के लिये बहुमूल्य है । और दूसरों के लिए, वे खरीद सकते हैं । वे देखते हैं, "यह क्या है? संस्कृत श्लोक, कुछ लिखा है। कागज का टुकड़ा है ।" आप समझ सकते हैं । जैसे ये अखबार, हमारे लिए कागज का बेकार टुकड़ा है । हमें इसकी परवाह नहीं है । लेकिन वे इसे अपनी छाती से बड़े प्यार से लगाकर रखते हैं, "ओह, यह कितना अच्छा है।" (हंसी)

पश्चिमी देशों में अखबार इतना लोकप्रिय है । एक सज्जन ने, मुझे एक कहानी सुनाई, की एक ईसाई पादरी शेफील्ड इलाके में ईसाई धर्म प्रचार करने के लिए चला गया । शेफील्ड, वो कहाँ है ? इंग्लैंड में ? तो वह वहाँ, कार्यकर्ताओं, मजदूरों, में प्रचार कर रहा था के "प्रभु यीशु मसीह आपको बचा लेंगे ।" यदि आप प्रभु यीशु मसीह की शरण नहीं लेते हैं, तो आपको नरक में जाना होगा ।" तो सबसे पहले वह कहता है, "कौन है यीशु मसीह ? उसका नंबर क्या है ?" इसका मतलब उन्होंने सोचा, "यीशु मसीह मजदूरों में से कोई एक होगा ।" और हर मजदूर का एक नंबर था, (हंसी) तो उनका नंबर क्या है ?" तो "नहीं, यीशु मसीह, वह भगवान के पुत्र है । तो उनका कोई नंबर नहीं है । वे कोई मजदूर नहीं हैं ।"

फिर "नर्क क्या है?" तो पादरी ने वर्णन किया, "नर्क में बहुत अंधेरा है, बहुत नम है," और वगैरह वगैरह । तो वे सब चुप थे । क्योंकि वे खानों में काम करते थे । वहाँ हमेशा अंधेरा और नमी होती है । (हँसी) (प्रभुपाद हँसते हुए) तो, नर्क और खान के बीच अंतर ही क्या है ? तो वे सब चुप थे । मगर जैसे ही पादरी ने कहा "वहाँ अखबार नहीं है", "ओह, ओह, यह तो भयानक है !" (हंसी) कोई अखबार नहीं है । (प्रभुपाद हंसते हुए) इसलिए, अापके देश में, बड़े, बड़े इतने सारे, मेरे कहने का मतलब है, अखबारों का गुच्छा, वे वितरित कर रहे हैं ।