HI/Prabhupada 0777 - जितना अधिक तुम अपनी चेतना को विकसित करते हो, उतना अधिक तुम स्वतंत्रता के प्रेमी बन जाते हो

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Lecture on SB 2.4.2 -- Los Angeles, June 26, 1972

विरुढाम ममताम (श्री भ २।४।२) । विरूढाम । जैसे तुमने इतने सारे बड़े पेड़ों को देखा है, कई वर्षों से खड़े हैं । जड़ मजबूत है। तुमने देखा है, अनुभवी किया है । उनका काम है १०००० साल के लिए खड़े रहना, लेकिन जड़ मजबूती से धरती को पकड लेती है । यह विरूढम कहा जाता है, आकर्षण । जब तुम्हे थोडी समझ है, विकसित चेतना, मनुष्य अगर कोई तुम्हे एक घंटे के लिए यहाँ खड़े होने के लिए कहता है, यह इतनी परेशानी की बात है । अौर अगर तुम्हे एक घंटे के लिए खड़े होने के लिए मजबूर किया जाता है, तुम इतना असहज महसूस करते हो । लेकिन यह पेड़, क्योंकि इसकी चेतना विकसित नहीं है, यह खुले वातावरण में १०००० साल के लिए खड़ा है, सभी प्रकार की अत्यधिक गर्मी, बारिश, बर्फबारी का सहन करते हुए । लेकिन फिर भी, यह जड़ से पकडता है । यह विकसित चेतना और अविकसित चेतना के बीच अंतर है । एक पेड़ की भी चेतना है । आधुनिक विज्ञान, उन्होंने साबित कर दिया है कि चेतना है । बहुत ज्यादा ढकी हुई, लगभग मरी हुई । लेकिन मरी नहीं है । चेतना तो है। तो जितना अधिक तुम अपनी चेतना को विकसित करते हो, उतना अधिक तुम स्वतंत्रता के प्रेमी बन जाते हो । जैसे मानव समाज, आजादी के लिए लड़ाई होती है। लेकिन पशु समाज में, वे जानते नहीं है कि आजादी क्या है । हमारा भी, तथाकथित स्वतंत्रता । लेकिन फिर भी, हमारी कुछ चेतना है कि हम स्वतंत्रता के लिए लड़ते हैं । और वे खाने के लिए लड़ते हैं । बस इतना ही । तो यहाँ, परिक्षित महाराज... यह मुक्ति ... श्री कृष्ण भावनामृत का मतलब है इस भौतिक लगाव से मुक्ति । तो वे इतने उन्नत बन गए ... क्योंकि अपने बचपन से, अपने जन्म से, उनकी माँ के गर्भ से, वह कृष्ण भावनाभावति थे । तो जैसे ही वे समझ गए की " श्री कृष्ण मेरे लक्ष्य हैं " तुरंत, विरूढाम ममताम जहौ, तुरंत त्याग दिया । जहौ का मतलब "त्याग दिया।" किस तरह की चीजों त्याग दीं ? साम्राज्य । पूर्व में हस्तिनापुर के सम्राट, वे पृथ्वी पर राज कर रहे थे, पूरी दुनिया, परिक्षित महाराज, कम से कम, ५००० साल पहले तक जब परिक्षित महाराज राजा थे । वे पूरी दुनिया के सम्राट थे । तो वे उसे त्याग रहे हैं । कोई नन्हा गांव या कुछ नहीं । नहीं । और एसा साम्राज्य जो किसी भी गड़बड़ी के बिना था । वे इतने शक्तिशाली थे कि कोई भी उनके खिलाफ नहीं जा सकता था । राज्ये च अविकले (श्री भ २।४।२) अविकले । विकल का मतलब टूा हुअा " या "विचलित" । लेकिन उनका राज्य कभी भी टूट या विचलित नहीं था । अब पूरी दुनिया टूटा हुई है और विचलित है, वर्तमान समय में । इतने सारे देश हैं, स्वतंत्र देश । मतलब पूरी निया टुकड़ों में टूट हुई है । पूर्व में ऐसी नहीं था । एक। एक विश्व, एक राजा। एक भगवान, श्री कृष्ण। एक शास्त्र, वेद । एक सभ्यता, वर्णाश्रम-धर्म। बहुत पहले की बात नहीं है । वे इतिहास बता रहे हैं ... वे पृथ्वी के परत का अध्ययन कर रहे हैं, लेकिन जब वे पृथ्वी के परत का अध्ययन कर रहे थे लाखों साल पहले, और लाखों साल संपन्न सभ्यता थी । संपन्न सभ्यता, भगवान भावनाभावित । सुखी सभ्यता । अब वे टूटे हैं, परेशान हैं । एसा पूर्व में नहीं था। तो यह विरूढाम ममताम । । ममता का मतलब है "यह मेरा है।" यही ममता कहा जाता है। ममता। माम का मतलब है "मेरा" । "मेरा" और "मैं" की चेतना, यह कहा जाता है ममता । "मैं यह शरीर हूँ, और इस शरीर के साथ संबंध में, सब कुछ मेरा है । मेरी पत्नी, मेरे बच्चे, मेरा घर, मेरा बैंक बैलेंस, मेरa समाज, मेरa समुदाय, मेरा देश, मेरा देश - "मेरा " यही ममता कहा जाता है । तो कैसे ये ममता, या यह चेतना "मेरी," की बढ़ती है ? एक मशीन हैं, माया द्वारा चलाई जाने वाली, माया । शुरुआत। वो क्या है? आकर्षण। एक आदमी औरत से आकर्षित होता है, और औरत आदमी से आकर्षित होती है। यही बुनियादी सिद्धांत है । इधर, इस भौतिक दुनिया में, भगवान के लिए कोई आकर्षण नहीं है, लेकिन आकर्षण है। आकर्षण है, सारा, सेक्स आकर्षण । बस इतना ही । पूरी दुनिया, न केवल मानव समाज, पशु समाज, पक्षी समाज, जानवर समाज, कोई भी समाज, कोई भी प्राणी, आकर्षण सेक्स है । पुम्स: स्त्रिया मिथुनी भावम एतम (श्री भ ५।५।८) । यहाँ आकर्षण, आकर्षण का केंद्र, सेक्स है। तो, लड़के और लड़कियँ या कोई भी, छोटी उम्र में सेक्स आवेग की वृद्धि होती है, और संभोग करने की चाहत । एक महिला को एक पुरुष चाहिए, एक पुरुष को महिला चाहिए । यह आकर्षण है । यही सशर्त अात्मा का बुनियादी सिद्धांत यही है पुनरावृत्त जन्म और मृत्यु की इस दयनीय जीवन में । यह आकर्षण ।