HI/Prabhupada 0781 - योग की वास्तविक पूर्णता है कृष्ण के चरणकमलों में मन को स्थिर करना: Difference between revisions

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वग योग्य ब्राह्मण क्या है? तुमने कई बार सुना है: शमो दम: स्यम शौचम अार्जवम तितिक्षा ज्ञानम विज्ञानम अासतिक्यम ब्रह्म कर्म स्वभाव-जम ([[Vanisource:BG 18.42|भ गी १८।४२]]) इन गुणों को विकसित किया जाना चाहिए । सब से पहले, शम । शम का मतलब है मानसिक स्थिति में संतुलन । मन कभी परेशान नहीं होता । मन के परेशान होने के कई कारण होते हैं । जब मन परेशान नहीं होता है, बगु सम: कहा जाता है। गुरूणापि दुक्खेन विचालयते। यही योग की पूर्णता है।
वह योग्य ब्राह्मण क्या है ? तुमने कई बार सुना है: शमो दम: सत्यम शौचम अार्जवम तितिक्षा, ज्ञानम विज्ञानम आस्तिक्यम ब्रह्म कर्म स्वभाव-जम ([[HI/BG 18.42|भ.गी. १८.४२]]) | इन गुणों को विकसित किया जाना चाहिए । सब से पहले, शम । शम का मतलब है मानसिक स्थिति में संतुलन । मन कभी परेशान नहीं होता । मन के परेशान होने के कई कारण होते हैं । जब मन परेशान नहीं होता है, उसे सम: कहा जाता है । गुरूणापि दुःखेन विचाल्यते । यही योग की पूर्णता है ।


:यम् लभ्द्वा चापरम लाभम्
:यम लभ्द्वा चापरम लाभम
:मन्यते नाधिकम तत:  
:मन्यते नाधिकम तत:  
:यस्मिन स्थिते गुरणापि
:यस्मिन स्थिते गुरुणापि
:दुक्खेन विचालयते
:दुःखेन विचाल्यते
:([[Vanisource:BG 6.22|भ गी ६।२२]])
:([[HI/BG 6.20-23|भ.गी. ६.२२]])  


यह प्रशिक्षण है। मन बहुत चंचल है। यहां तक ​​कि पांच हजार साल पहले, अर्जुन को श्री कृष्ण नें सलाह दी थी कि "तुम अपने बेचैन मन को स्थिर करो " उसने स्पष्ट रूप से कहा, "श्री कृष्ण, यह संभव नहीं है।" चंचलम हि मन: कृष्ण प्रमाथि बलवद दृढम ([[Vanisource:BG 6.34|भ गी ६।३४]]) "मैं देखते हूँ कि मेरा मन हमेशा बहुत ज्यादा उत्तेजित रहता है और मन को वश में करना बिल्कुल हवा को रोकने के जैसा एक प्रयास है । इसलिए यह संभव नहीं है ।" लेकिन वास्तव में उसका मन श्री कृष्ण में स्थित था । तो जो, जिनका मन श्री कृष्ण के चरण कमलों में स्थिर है, उन्होंने विजय प्राप्त की है । उनका मन स्थिर है। यही अावश्यक है। स वै मन" कृष्ण पदारविन्दयोर वाचाम्सि वैकुणठ गुणानुवर्णने ([[Vanisource:SB 9.4.18|श्री ९।४।१८]]) ये महाराज अंबरीष की योग्यता हैं। वे बहुत जिम्मेदार सम्राट थे, लेकिन उनका मन कृष्ण के चरण कमलों पर स्थिर था । यही अावश्यक है। तो यह ब्राह्मणवादी योग्यता, अभ्यास करना कि कैसे श्री कृष्ण के चरण कमलों पर मन को स्थिर कर सकें और यही योग की पूर्णता है। योग का मतलब है.....कुछ जादुई कारनामों को दिखाना नहीं । नहीं । योग की वास्तविक पूर्णता है कृष्ण के चरण कमलों में मन को स्थिर करना । इसलिए भगवद गीता में तुम पाअोगे अंतिम निष्कर्ष इस योग अध्याय का, छठा अध्याय ।  
यह प्रशिक्षण है । मन बहुत चंचल है । यहां तक ​​कि पांच हजार साल पहले, अर्जुन को कृष्ण नें सलाह दी थी, की "तुम अपने चंचल मन को स्थिर करो," उसने स्पष्ट रूप से कहा, "कृष्ण, यह संभव नहीं है ।" चंचलम हि मन: कृष्ण प्रमाथि बलवद दृढम ([[HI/BG 6.34|भ.गी. ६.३४]]): "मैं देखता हूँ कि मेरा मन हमेशा बहुत ज्यादा उत्तेजित रहता है, और मन को वश में करना बिल्कुल हवा को रोकने के जैसा एक प्रयास है । इसलिए यह संभव नहीं है ।" लेकिन वास्तव में उसका मन कृष्ण में स्थित था ।  


योगिनाम अपि सर्वषाम
तो जो, जिनका मन कृष्ण के चरण कमलों में स्थिर है, उन्होंने विजय प्राप्त की है । उनका मन स्थिर है । यही अावश्यक है । वै मन: कृष्ण पदारविन्दयोर वाचांसी वैकुंठ गुणानुवर्णने ([[Vanisource:SB 9.4.18-20|श्रीमद भागवतम ९.४.१८]]) | ये महाराज अंबरीष की योग्यता हैं । वे बहुत जिम्मेदार सम्राट थे, लेकिन उनका मन कृष्ण के चरण कमलों पर स्थिर था । यही अावश्यक है । तो यह ब्राह्मणवादी योग्यता, अभ्यास करना कि कैसे कृष्ण के चरण कमलों पर मन को स्थिर कर सकें, और यही योग की पूर्णता है । योग का मतलब है... कुछ जादुई कारनामों को दिखाना नहीं । नहीं । योग की वास्तविक पूर्णता है कृष्ण के चरण कमलों में मन को स्थिर करना । इसलिए भगवद गीता में तुम पाअोगे अंतिम निष्कर्ष इस योग अध्याय का, छठा अध्याय,
मद गतेनान्तर अात्मना
श्रद्धावान भजते यो माम
मे युक्तातमो मत:
:([[Vanisource:BG 6.47|भ गी ६।४७]])


यह अर्जुन के लिए प्रोत्साहन था क्योंकि अर्जुन सोचा रहा था, "तो फिर मैं बेकार हूँ। मैं स्थिर नहीं रह सकता ।" लेकिन उसका मन पहले से ही स्थिर था। इसलिए श्री कृष्ण नें उसे प्रोत्साहित किया, "निराश मत हो । जिसका मन पहले से ही हमेशा मुझ में स्थिर है, वह प्रथम श्रेणी, सर्वोच्च योगी है। " इसलिए हमें हमेशा श्री कृष्ण का ध्यान करना चाहिए। यही हरे कृष्ण मंत्र है। अगर तुम हरे कृष्ण, हरे कृष्ण, मंत्र जपते हो, इसका मतलब है तुम्हारा मन श्री कृष्ण में स्थिर है । यही योग की पूर्णता है। तो एक ब्राह्मण बनने के लिए, यह पहली योग्यता है: मन को स्थिर रखना, उत्तेजित न होते हुए, शम । अौर जब तुम्हारा मन स्थिर है, फिर तुम्हारी इन्द्रियॉ भी नियंत्रित रहेंगी । अगर तुम अपने मन को स्थिर करते हो कि "मैं बस हरे कृष्ण का जाप करूँगा और प्रसादम ही खाऊँगा, कोई और काम नहीं ।" फिर इन्द्रियॉ स्वचालित रूप से नियंत्रित हो जाऍगी । तार मध्ये जिह्वा अति लोभमोय सुदुर्मति ।
:योगिनाम अपि सर्वषाम
:मद गतेनान्तर अात्मना
:श्रद्धावान भजते यो माम
:स मे युक्ततमो मत:
:([[HI/BG 6.47|भ.गी. ६.४७]])
 
यह अर्जुन के लिए प्रोत्साहन था क्योंकि अर्जुन सोचा रहा था, "तो फिर मैं बेकार हूँ । मैं स्थिर नहीं रह सकता ।" लेकिन उसका मन पहले से ही स्थिर था । इसलिए कृष्ण नें उसे प्रोत्साहित किया, "निराश मत हो । जिसका मन पहले से ही हमेशा मुझ में स्थिर है, वह प्रथम श्रेणी का, सर्वोच्च योगी है ।" इसलिए हमें हमेशा कृष्ण का ध्यान करना चाहिए । यही हरे कृष्ण मंत्र है । अगर तुम हरे कृष्ण, हरे कृष्ण, मंत्र जपते हो, इसका मतलब है तुम्हारा मन कृष्ण में स्थिर है । यही योग की पूर्णता है । तो एक ब्राह्मण बनने के लिए, यह पहली योग्यता है: मन को स्थिर रखना, उत्तेजित न होते हुए, शम । अौर जब तुम्हारा मन स्थिर है, फिर तुम्हारी इन्द्रियॉ भी नियंत्रित रहेंगी । अगर तुम अपने मन को स्थिर करते हो कि "मैं बस हरे कृष्ण का जाप करूँगा और प्रसादम ही खाऊँगा, कोई और काम नहीं ।" फिर इन्द्रियॉ स्वचालित रूप से नियंत्रित हो जाऍगी । तार मध्ये जिह्वा अति लोभमोय सुदुर्मति ।  
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Latest revision as of 17:43, 1 October 2020



Lecture on SB 6.1.21 -- Chicago, July 5, 1975

वह योग्य ब्राह्मण क्या है ? तुमने कई बार सुना है: शमो दम: सत्यम शौचम अार्जवम तितिक्षा, ज्ञानम विज्ञानम आस्तिक्यम ब्रह्म कर्म स्वभाव-जम (भ.गी. १८.४२) | इन गुणों को विकसित किया जाना चाहिए । सब से पहले, शम । शम का मतलब है मानसिक स्थिति में संतुलन । मन कभी परेशान नहीं होता । मन के परेशान होने के कई कारण होते हैं । जब मन परेशान नहीं होता है, उसे सम: कहा जाता है । गुरूणापि दुःखेन न विचाल्यते । यही योग की पूर्णता है ।

यम लभ्द्वा चापरम लाभम
मन्यते नाधिकम तत:
यस्मिन स्थिते गुरुणापि
दुःखेन न विचाल्यते
(भ.गी. ६.२२)

यह प्रशिक्षण है । मन बहुत चंचल है । यहां तक ​​कि पांच हजार साल पहले, अर्जुन को कृष्ण नें सलाह दी थी, की "तुम अपने चंचल मन को स्थिर करो," उसने स्पष्ट रूप से कहा, "कृष्ण, यह संभव नहीं है ।" चंचलम हि मन: कृष्ण प्रमाथि बलवद दृढम (भ.गी. ६.३४): "मैं देखता हूँ कि मेरा मन हमेशा बहुत ज्यादा उत्तेजित रहता है, और मन को वश में करना बिल्कुल हवा को रोकने के जैसा एक प्रयास है । इसलिए यह संभव नहीं है ।" लेकिन वास्तव में उसका मन कृष्ण में स्थित था ।

तो जो, जिनका मन कृष्ण के चरण कमलों में स्थिर है, उन्होंने विजय प्राप्त की है । उनका मन स्थिर है । यही अावश्यक है । स वै मन: कृष्ण पदारविन्दयोर वाचांसी वैकुंठ गुणानुवर्णने (श्रीमद भागवतम ९.४.१८) | ये महाराज अंबरीष की योग्यता हैं । वे बहुत जिम्मेदार सम्राट थे, लेकिन उनका मन कृष्ण के चरण कमलों पर स्थिर था । यही अावश्यक है । तो यह ब्राह्मणवादी योग्यता, अभ्यास करना कि कैसे कृष्ण के चरण कमलों पर मन को स्थिर कर सकें, और यही योग की पूर्णता है । योग का मतलब है... कुछ जादुई कारनामों को दिखाना नहीं । नहीं । योग की वास्तविक पूर्णता है कृष्ण के चरण कमलों में मन को स्थिर करना । इसलिए भगवद गीता में तुम पाअोगे अंतिम निष्कर्ष इस योग अध्याय का, छठा अध्याय,

योगिनाम अपि सर्वषाम
मद गतेनान्तर अात्मना
श्रद्धावान भजते यो माम
स मे युक्ततमो मत:
(भ.गी. ६.४७)

यह अर्जुन के लिए प्रोत्साहन था क्योंकि अर्जुन सोचा रहा था, "तो फिर मैं बेकार हूँ । मैं स्थिर नहीं रह सकता ।" लेकिन उसका मन पहले से ही स्थिर था । इसलिए कृष्ण नें उसे प्रोत्साहित किया, "निराश मत हो । जिसका मन पहले से ही हमेशा मुझ में स्थिर है, वह प्रथम श्रेणी का, सर्वोच्च योगी है ।" इसलिए हमें हमेशा कृष्ण का ध्यान करना चाहिए । यही हरे कृष्ण मंत्र है । अगर तुम हरे कृष्ण, हरे कृष्ण, मंत्र जपते हो, इसका मतलब है तुम्हारा मन कृष्ण में स्थिर है । यही योग की पूर्णता है । तो एक ब्राह्मण बनने के लिए, यह पहली योग्यता है: मन को स्थिर रखना, उत्तेजित न होते हुए, शम । अौर जब तुम्हारा मन स्थिर है, फिर तुम्हारी इन्द्रियॉ भी नियंत्रित रहेंगी । अगर तुम अपने मन को स्थिर करते हो कि "मैं बस हरे कृष्ण का जाप करूँगा और प्रसादम ही खाऊँगा, कोई और काम नहीं ।" फिर इन्द्रियॉ स्वचालित रूप से नियंत्रित हो जाऍगी । तार मध्ये जिह्वा अति लोभमोय सुदुर्मति ।