HI/Prabhupada 0795 - आधुनिक दुनिया वे बहुत सक्रिय हैं, लेकिन वे मूर्खता वश सक्रिय हैं, रजस तमस में

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Lecture on SB 1.2.24 -- Los Angeles, August 27, 1972

उदाहरण है: अगर तुम अपना काम करना चाहते हो, तो आग की आवश्यकता है । लकड़ी भी आग का एक और चरण है; धुआं भी आग का एक और चरण है। लेकिन जैसे आग आवश्यक है, उसी तरह, सत्व गुण के मंच पर अाने की, यह आवश्यक है, विशेष रूप से मानव जीवन में। अन्य जीवन में, वे अज्ञान में ज्यादातर हैं। जैसे पृथ्वी की तरह । पृथ्वी को उत्पादन की शक्ति मिली है, लकड़ी, पेड़ और पौधे । लेकिन कुछ एसी पृथवी है वह कुछ भी उत्पादन नहीं कर रहा है, रेगिस्तान । उसमे शक्ति है। अगर तुम पानी डालो उसमें लकड़ी का उत्पादन करने की शक्ति है, लेकिन, उसमें, ... इसी तरह, तमो गुण, वे जीव, जो तमो गुण में हैं, उन्हे निरपेक्ष सत्य का कोई ज्ञान नहीं हो सकता है । यह संभव नहीं है । इसलिए धीरे धीरे होगा, तमो गुण से रजो गुण में । और रजो गुण में , थोड़ी सक्रियता है । जैसे जानवर की तरह, उनमे सक्रियता है । जैसे कुत्ते की तरह, हमने देखा है, समुद्र तट और अन्य स्थानों में , बहुत तेजी से यहाँ और वहाँ चल रहे हैं, लेकिन कोई अर्थ नहीं है। एक बंदर बहुत सक्रिय है । तुमने अपने देश में बंदर नहीं देखा है। हमारे देश में बंदर हैं। बेवजह अशांति पैदा करते हैं । लेकिन वे बहुत सक्रिय हैं । लेकिन मनुष्य, वे इतने सक्रिय नहीं हैं, लेकिन बुद्धि है, वे काम कर रहे हैं बुद्धि के साथ । तो मूर्ख सक्रीयता का कोई अर्थ नहीं है। बुद्धि के बिना, केवल सक्रिय हैं, यह खतरनाक है। शांत से सक्रीयता की आवश्यकता है । जैसे एक उच्च न्यायालय के न्यायाधीश की तरह। उन्हें बहुत बड़ी राशि दी जाती है, पैसा । लेकिन वह अपनी कुर्सी पर बैठा कर और केवल सोच रहे हैं । दूसरे सोच सकते हैं को, "हम इतनी मेहनत से काम कर रहे हैं, हमें इतना बड़ा वेतन नहीं मिल रहा है, और इस आदमी को इतना बड़ा वेतन मिल रहा है । वह केवल बैठा है । " क्योंकि मूर्ख सक्रीयता का कोई मूल्य नहीं है । यह खतरनाक है। तो इस आधुनिक दुनिया में, वे बहुत सक्रिय हैं, लेकिन वे मूर्खता सक्रिय हैं, रजस तमस में। इसलिए भ्रमित सक्रीयता है। मूर्ख सक्रीयता, दुर्घटना होती है। शांत सक्रीयता की आवश्यकता है । क्योंकि, जैसे तुम आग के मंच पर अाते हो, तुम भौतिक चीज़ों का उपयोग नहीं कर सकते हो । आग की आवश्यकता है। इसी तरह, अपने जीवन को सफल बनाने के लिए, क्रमिक विकास होत है जलीय प्राणी से पौधे तक, पौधे से कीट जीवन, कीट जीवन से सरीसृप तक, सरीसृप से पक्षी के जीवन, फिर जानवर जीवन, फिर मानव जीवन, फिर फिर सभ्य जीवन । इस तरह, धीरे-धीरे, विकास, हम मानव जीवन के मंच पर आते हैं। और वैदिक ज्ञान मनुष्य के लिए है, इन अन्य जानवरों के लिए नहीं ।