HI/Prabhupada 0799 - पूरी स्वतंत्रता शाश्वत, आनंदित और ज्ञान से पूर्ण

Revision as of 15:17, 22 October 2018 by Harshita (talk | contribs)
(diff) ← Older revision | Latest revision (diff) | Newer revision → (diff)


Arrival Speech -- Stockholm, September 5, 1973

मैं आपको बहुत बहुत धन्यवाद देता हूँ मेरा स्वागत करने के लिए । यह पहली बार है कि मैं इस देश में अाया हूँ, स्वीडन । तो यह कृष्ण भावनामृत आंदोलन धीरे-धीरे सारी दुनिया में फैल रहा है । यह थोड़ा मुश्किल है इस आंदोलन के मक्सद को समझना क्योंकि यह पूरी तरह से आध्यात्मिक मंच पर है। आम तौर पर, लोग आध्यात्मिक मंच क्या है, यह समझ नहीं पाते हैं ।

तो हम समझ सकते हैं कि हम दो चीज़ों का संयोजन हैं... हम में से हर एक, जीव, अभी हम अात्मा अौर पदार्थ का संयोजन हैं । पदार्थ हम समझ सकते हैं, लेकिन पदार्थ के साथ हमारे लंबे संग के कारण, हम आत्मा क्या है यह समझ नहीं पाते हैं । लेकिन हम कल्पना कर सकते हैं कि कुछ है जो एक मृत शरीर और जीवित शरीर के बीच का अंतर है । यह हम समझ सकते हैं ।

जब एक आदमी मर जाता है... मान लो मेरे पिता मर जाते हैं, या कोई अौर, एक रिश्तेदार, मर चुका है, हम विलाप करते हैं, "मेरे पिता अब नहीं रहे । वे चले गए हैं ।" लेकिन वे कहां चले गए ? पिता बिस्तर पर पड़े हैं । क्यों तुम कहते हो "मेरे पिता चले गए ?" अगर कोई कहता है कि "तुम्हारे पिता बिस्तर पर सो रहे हैं | क्यों तुम रो रहे हो कि तुम्हारे पिता चले गए ? वे नहीं गए हैं । वे वहां सो रहे हैं । लकिन वह सोना यह सोना नहीं है, दैनिक सोना जो हम रोज़ करते हैं । वह नींद शाश्वत नींद है । तो वास्तव में, हमारे पास अॉखें नहीं है यह देखने के लिए कि मेरे पिता कौन हैं । मेरे पिता के जीवनकाल के दौरान मुझे पता नहीं था कि कौन मेरे पिता हैं; इसलिए जब मेरे वास्तविक पिता चले जाते हैं, हम रोते हैं, "मेरे पिता चले गए ।" तो वह आत्मा है । जो चला गया है शरीर से, वह अात्मा है; अन्यथा वह क्यों यह कहता है कि, "मेरे पिता चले गए?" शरीर तो है ।

तो सब से पहले हमें आत्मा और इस भौतिक शरीर के बीच के अंतर को समझना होगा । अगर हम समझ जाते हैं कि आत्मा क्या है, फिर हम समझ सकते हैं कि यह आध्यात्मिक आंदोलन क्या है । अन्यथा, बस भौतिक समझ, बहुत मुश्किल है यह आध्यात्मिक जीवन या आध्यात्मिक मंच क्या है यह समझने के लिए | लेकिन वो है । हम केवल वर्तमान क्षण में उस तरह महसूस कर सकते हैं, लेकिन एक आध्यात्मिक दुनिया, आध्यात्मिक जीवन है । और क्या है आध्यात्मिक जीवन ? पूरी स्वतंत्रता । पूरी स्वतंत्रता ।

शाश्वत, आनंदित और ज्ञान से भरा । यही आध्यात्मिक जीवन है । जीवन की इस शारीरिक अवधारणा से पूरी तरह से अलग । आध्यात्मिक जीवन का मतलब है ज्ञान का शाश्वत, आनंदमय जीवन । और यह भौतिक जीवन का मतलब है अस्थायी, अज्ञानता और दुखों से भरा । यह शरीर का मतलब यह नहीं रेहगा, और यह हमेशा दुखी हालत से भरा है । और कोई परमानंद नहीं है ।