HI/Prabhupada 0806 - कृष्ण और उनके प्रतिनिधियों का अनुसरण करना है, तो तुम महाजन बन जाते हो: Difference between revisions
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:यस्य | हमें चैतन्य महाप्रभु के निर्देश का पालन करने में बहुत बहुत सावधान रहना चाहिए । चैतन्य महाप्रभु नें कभी नहीं कहा कि "मैं कृष्ण का निजी दास हूँ ।" नहीं । गोपी-भर्तु: पद कमलयोर दास-दास-दास-दासानुदास: "सेवक के सेवक का सेवक..." जितना अधिक तुम दास के दास बन जाते हो, तुम परिपूर्ण हो ([[Vanisource:CC Madhya 13.80|चैतन्य चरितामृत मध्य १३.८०]]) । और जैसे ही तुम स्वतंत्रता की घोषणा करते हो, तुम धूर्त हो । यह प्रक्रिया है । हमें हमेशा अपने गुरु का सबसे आज्ञाकारी दास रहना चाहिए । | ||
:यथा देवे तथा गुरौ | |||
:यस्य देवे परा भक्तिर | |||
:यथा देवे तथा गुरौ । | |||
:तस्यैते कथिता हि अर्था: | :तस्यैते कथिता हि अर्था: | ||
:प्रकाशन्ते महात्मन: | :प्रकाशन्ते महात्मन: | ||
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तो फिर यह प्रकट होगा । पूरी बात प्रकट होने की है । यह अनुभव से नहीं है, विद्वता सै नहीं । नहीं: प्राकट्य । ये यथा माम प्रपद्यन्ते । जितना अात्मसमर्पण उतने भगवान प्रकट होते है । ये यथा माम प्रपद्यन्ते तांस तथैव भजामि अहम ([[HI/BG 4.11|भ.गी. ४.११]]) | तो भगवान क्या हैं यह समझने में कोई कठिनाई नहीं है । यहाँ कृष्ण हैं, भगवान - प्रत्यक्ष । मुझे समझ नहीं अाता है की लोग भगवान को क्यों ढूंढ रहे हैं, भगवान क्या हैं यह क्यों नहीं समझ पाते हैं । जरा देखो । यही मूढ का मतलब है । हालांकि भगवान हैं, फिर भी, वह स्वीकार नहीं करेगा । यही मूढ है, नराधम । और क्यों वह मूढ है ? क्योंकि नराधम । वह इस प्रक्रिया को अपनाता नहीं है । वह कुछ निर्माण करना चाहता है । ऐसा मत करो । | |||
यहाँ अर्जुन महाजन है, वह कृष्ण के सखा हैं, वे कृष्ण के साथ हमेशा है, और कृष्ण उसे सखा मानते हैं । एसा नहीं है कि क्योंकि वे हमेशा कृष्ण के साथ है, इसलिए वह कृष्ण को जानता है । नहीं, यह संभव नहीं है । जैसे मैंने कई बार यह उदाहरण दिया है, की मैं यहाँ बैठा हूँ, और कीट भी यहाँ बैठा है । इसका यह मतलब नहीं है कि हम दोस्त हैं । नहीं । कीट का अलग कार्य है, और मेरा कार्य अलग है । और कीट का काम है काटना । उस तरह का संग मदद नहीं करेगा । संग मतलब उस व्यक्ति के लिए प्यार का विकास करना । यही संग है । | |||
:ददाति | :ददाति प्रतिघृणाती | ||
:गुह्यम | :गुह्यम आख्याति पृच्छति | ||
:भुंक्ते भोजयते चैव | :भुंक्ते भोजयते चैव | ||
:सद विधम प्रीति | :सद विधम प्रीति लक्षणम | ||
:( उपदेशामृत ४) | :(उपदेशामृत ४) | ||
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Latest revision as of 19:18, 17 September 2020
Lecture on SB 1.7.23 -- Vrndavana, September 20, 1976
तुम कैसे कृष्ण के प्रतिनिधि बन सकते हो ? यही चैतन्य महाप्रभु द्वारा समझाया गया है:
- अामार अाज्ञाय गुरु हया तार एइ देश
- यारे देख तारे कह 'कृष्ण'...
- (चैतन्य चरितामृत मध्य ७.१२८)
अगर केवल तुम वही कहते हो जो कृष्ण कहते हैं, तो तुम उनके प्रतिनिधि बन जाते हो । निर्माण मत करो । अति विवेकी मत बनो, विनिर्माण करना । केवल कृष्ण और उनके प्रतिनिधियों का अनुसरण करना है, तो तुम महाजन बन जाते हो । नहीं तो आप एक धूर्त हो । मूढ । न माम दुष्कृतिनो मूढा: प्रपद्यन्ते नराधमा: (भ.गी. ७.१५) । यही परीक्षण है ।
हमें चैतन्य महाप्रभु के निर्देश का पालन करने में बहुत बहुत सावधान रहना चाहिए । चैतन्य महाप्रभु नें कभी नहीं कहा कि "मैं कृष्ण का निजी दास हूँ ।" नहीं । गोपी-भर्तु: पद कमलयोर दास-दास-दास-दासानुदास: "सेवक के सेवक का सेवक..." जितना अधिक तुम दास के दास बन जाते हो, तुम परिपूर्ण हो (चैतन्य चरितामृत मध्य १३.८०) । और जैसे ही तुम स्वतंत्रता की घोषणा करते हो, तुम धूर्त हो । यह प्रक्रिया है । हमें हमेशा अपने गुरु का सबसे आज्ञाकारी दास रहना चाहिए ।
- यस्य देवे परा भक्तिर
- यथा देवे तथा गुरौ ।
- तस्यैते कथिता हि अर्था:
- प्रकाशन्ते महात्मन:
- (श्वेताश्वेतर उपनिषद ६.२३)
तो फिर यह प्रकट होगा । पूरी बात प्रकट होने की है । यह अनुभव से नहीं है, विद्वता सै नहीं । नहीं: प्राकट्य । ये यथा माम प्रपद्यन्ते । जितना अात्मसमर्पण उतने भगवान प्रकट होते है । ये यथा माम प्रपद्यन्ते तांस तथैव भजामि अहम (भ.गी. ४.११) | तो भगवान क्या हैं यह समझने में कोई कठिनाई नहीं है । यहाँ कृष्ण हैं, भगवान - प्रत्यक्ष । मुझे समझ नहीं अाता है की लोग भगवान को क्यों ढूंढ रहे हैं, भगवान क्या हैं यह क्यों नहीं समझ पाते हैं । जरा देखो । यही मूढ का मतलब है । हालांकि भगवान हैं, फिर भी, वह स्वीकार नहीं करेगा । यही मूढ है, नराधम । और क्यों वह मूढ है ? क्योंकि नराधम । वह इस प्रक्रिया को अपनाता नहीं है । वह कुछ निर्माण करना चाहता है । ऐसा मत करो ।
यहाँ अर्जुन महाजन है, वह कृष्ण के सखा हैं, वे कृष्ण के साथ हमेशा है, और कृष्ण उसे सखा मानते हैं । एसा नहीं है कि क्योंकि वे हमेशा कृष्ण के साथ है, इसलिए वह कृष्ण को जानता है । नहीं, यह संभव नहीं है । जैसे मैंने कई बार यह उदाहरण दिया है, की मैं यहाँ बैठा हूँ, और कीट भी यहाँ बैठा है । इसका यह मतलब नहीं है कि हम दोस्त हैं । नहीं । कीट का अलग कार्य है, और मेरा कार्य अलग है । और कीट का काम है काटना । उस तरह का संग मदद नहीं करेगा । संग मतलब उस व्यक्ति के लिए प्यार का विकास करना । यही संग है ।
- ददाति प्रतिघृणाती
- गुह्यम आख्याति पृच्छति
- भुंक्ते भोजयते चैव
- सद विधम प्रीति लक्षणम
- (उपदेशामृत ४)