HI/Prabhupada 0807 - ब्रह्मास्त्र मंत्र से बना है। यह सूक्ष्म तरीका है: Difference between revisions

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हम ब्रह्मास्त्र के बारे में चर्चा की है। यह आधुनिक परमाणु हथियार या बम के लगभग समान है, लेकिन ... यह रसायन से बना है, लेकिन यह ब्रह्मास्त्र मंत्र से बना है। यह सूक्ष्म तरीका है। आधुनिक विज्ञान सूक्ष्म अस्तित्व तक नहीं पहुँचा है। इसलिए वे समझ नहीं पाते हैं कि आत्मा का स्थानांतरगमन होता है । आधुनिक विज्ञान के ज्ञान नहीं है। अपूर्ण ज्ञान। वे स्थूल शरीर देखते हैं, लेकिन उन्हे सूक्ष्म शरीर के बारे में ज्ञान नहीं है। लेकिन सूक्ष्म शरीर है। वैसे ही जैसे हम अपने मन को नहीं देखते हैं, लेकिन मुझे पता है कि तुम्हारा मन है। तुम मेरे मन को नहीं देखते हो, लेकिन तुम्हे पता है मेरा मन है । मन, बुद्धि और अहंकार। मेरी धारणा, पहचान, "मैं हूँ " यह धारणा है। यही अहंकार है। और मेरी बुद्धि और मेरा मन, तुम देख नहीं सकते, न तो मैं देख सकता हूँ। इसलिए कैसे मन, बुद्धि और व्यक्तिगत पहचान, या अहंकार, ले जाता है अात्मा को दूसरे शरीर में, वे यह नहीं देखते हैं । वे यह नहीं देख सकते हैं । वे स्थूल शरीर के बंद होने को देखते हैं, सब कुछ बंद हो जाता है। स्थूल शरीर राख हो जाता है; इसलिए वे सोचते हैं कि सब कुछ समाप्त हो गया है । भस्मी भूतस्य देहस्य कुत: पुनर अगमनो भवेद ( चारवाक मुणि) नास्तिक वर्ग, वे उस तरह सोचते हैं । ज्ञान की कमी के कारण, वे सोचते हैं कि "मैं देखता हूँ कि शरीर अब जल कर राख हो गया है। तो फिर आत्मा कहां है?" तो "कोई आत्मा नहीं है, कोई भगवान नहीं है, यह सब कल्पना है।" लेकिन यह तथ्य नहीं है; यह तथ्य नहीं है। तथ्य यह है, कि स्थूल शरीर समाप्त हो गया है, लेकिन सूक्ष्म शरीर वहाँ है । मनो बुद्धिर अहंकार: भूमिर अापो अनलो वायु: खम् मनो बुद्धिर एव च ([[Vanisource:BG 7.4|भ गी ७।४]]) अपरेयम इतस तु विद्धि मे प्रकृतिम पराम । तो सूक्ष्मता की क्रिया अौर प्रतिक्रिया, सूक्ष्म बात ... मन भी पदार्थ है, लेकिन सूक्ष्म पदार्थ, बहुत महीन । जैसे आकाश, आकाश । अाकाश भी पदार्थ है,, लेकिन सूक्ष्म, महीन । और आकाश से महीन है मन और मन से महीन है बुद्धी । और बुद्धी से बेहतर महीन है मेरा अहंकार: "मैं हूँ," यह धारणा ।  
हमने ब्रह्मास्त्र के बारे में चर्चा की है । यह आधुनिक परमाणु हथियार या बम के लगभग समान है, लेकिन... वो रसायन से बना है, लेकिन यह ब्रह्मास्त्र मंत्र से बना है । यह सूक्ष्म तरीका है । आधुनिक विज्ञान सूक्ष्म अस्तित्व तक नहीं पहुँचा है । इसलिए वे समझ नहीं पाते हैं कि आत्मा का स्थानांतरगमन होता है । आधुनिक विज्ञान का ज्ञान नहीं है । अपूर्ण ज्ञान । वे स्थूल शरीर देखते हैं, लेकिन उन्हे सूक्ष्म शरीर के बारे में ज्ञान नहीं है । लेकिन सूक्ष्म शरीर है । वैसे ही जैसे हम अपने मन को नहीं देखते हैं, लेकिन मुझे पता है कि तुम्हारा मन है । तुम मेरे मन को नहीं देखते हो, लेकिन तुम्हे पता है मेरा मन है । मन, बुद्धि और अहंकार ।  


तो उन्हें ज्ञान नहीं है। इसलिए ... वे सकल चीजों के साथ हथियार या बम का निर्माण कर सकते हैं। भूमिर अापो अनलो - रसायन, यह स्थूल है। लेकिन यह ब्रह्मास्त्र स्थूल नहीं है। यह भी भौतिक है, लेकिन यह सूक्ष्म चीजों से बना है: मन, बुद्धि और अहंकार। इसलिए अर्जुन श्री कृष्ण से पूछ रहा है , " मैं नहीं जानता कि यह कहॉ से अा रहा है, कहाँ से इस तरह का उच्च तापमान आ रहा है। " यहां कहा गया है, तज: परम दारुणम तापमान इतना अधिक है, असहनीय । इसलिए हमें प्राधिकरण से पूछना चाहिए । श्री कृष्ण सबसे अच्छे अधिकारी हैं। तो अर्जुन उनसे पूछ रहा है, किम इडम् स्वित कुतो वेति: "मेरे प्रिय श्री कृष्ण, यह तापमान कहाँ से आ रहा है?" किम इदम । देव-देव । क्यों वह श्री कृष्ण से पूछ रहा है? श्री कृष्ण देव-देव हैं।
मेरी धारणा, पहचान, "मैं हूँ " यह धारणा है । यही अहंकार है । और मेरी बुद्धि और मेरा मन, तुम देख नहीं सकते, न तो मैं देख सकता हूँ । इसलिए कैसे मन, बुद्धि और व्यक्तिगत पहचान, या अहंकार, ले जाता है अात्मा को दूसरे शरीर में, वे यह नहीं देखते हैं । वे यह नहीं देख सकते हैं । वे स्थूल शरीर के समाप्त होने को देखते हैं, सब कुछ समाप्त हो जाता है । स्थूल शरीर राख हो जाता है; इसलिए वे सोचते हैं कि सब कुछ समाप्त हो गया है । भस्मी भूतस्य देहस्य कुत: पुनर आगमनो भवेद (चार्वाक मुनि) |
 
नास्तिक वर्ग, वे उस तरह सोचते हैं । ज्ञान की कमी के कारण, वे सोचते हैं की "मैं देखता हूँ कि शरीर अब जल कर राख हो गया है । तो फिर आत्मा कहां है ?" तो "कोई आत्मा नहीं है, कोई भगवान नहीं है, यह सब कल्पना है ।" लेकिन यह तथ्य नहीं है; यह तथ्य नहीं है । तथ्य यह है, कि स्थूल शरीर समाप्त हो गया है, लेकिन सूक्ष्म शरीर वहाँ है । मनो बुद्धिर अहंकार: | भूमिर अापो अनलो वायु: खम मनो बुद्धिर एव च ([[HI/BG 7.4|भ.गी. ७.४]]) | अपरेयम इतस तु विद्धि मे प्रकृतिम पराम । तो सूक्ष्मता की क्रिया अौर प्रतिक्रिया, सूक्ष्म बात... मन भी पदार्थ है, लेकिन सूक्ष्म पदार्थ, बहुत सूक्ष्म । जैसे आकाश, आकाश । अाकाश भी पदार्थ है, लेकिन सूक्ष्म । और आकाश से सूक्ष्म है मन और मन से सूक्ष्म है बुद्धि । और बुद्धि से सूक्ष्म है मेरा अहंकार: "मैं हूँ," यह धारणा ।
 
तो उन्हें ज्ञान नहीं है । इसलिए... वे स्थूल चीजों के साथ हथियार या बम का निर्माण कर सकते हैं । भूमिर अपो अनलो - रसायन, यह स्थूल है । लेकिन यह ब्रह्मास्त्र स्थूल नहीं है । यह भी भौतिक है, लेकिन यह सूक्ष्म चीजों से बना है: मन, बुद्धि और अहंकार से । इसलिए अर्जुन कृष्ण से पूछ रहा है, "मैं नहीं जानता कि यह कहॉ से अा रहा है, कहाँ से इस तरह का उच्च तापमान आ रहा है ।" यहां कहा गया है, तेज: परम दारुणम | तापमान इतना अधिक है, असहनीय । इसलिए हमें प्राधिकरण से पूछना चाहिए । कृष्ण सबसे अच्छे अधिकारी हैं । तो अर्जुन उनसे पूछ रहा है, किम इडम स्वित कुतो वेति: "मेरे प्रिय कृष्ण, यह तापमान कहाँ से आ रहा है ?" किम इदम । देव-देव । क्यों वह कृष्ण से पूछ रहा है ? क्योंकि कृष्ण देव-देव हैं ।
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Latest revision as of 19:18, 17 September 2020



Lecture on SB 1.7.26 -- Vrndavana, September 23, 1976

हमने ब्रह्मास्त्र के बारे में चर्चा की है । यह आधुनिक परमाणु हथियार या बम के लगभग समान है, लेकिन... वो रसायन से बना है, लेकिन यह ब्रह्मास्त्र मंत्र से बना है । यह सूक्ष्म तरीका है । आधुनिक विज्ञान सूक्ष्म अस्तित्व तक नहीं पहुँचा है । इसलिए वे समझ नहीं पाते हैं कि आत्मा का स्थानांतरगमन होता है । आधुनिक विज्ञान का ज्ञान नहीं है । अपूर्ण ज्ञान । वे स्थूल शरीर देखते हैं, लेकिन उन्हे सूक्ष्म शरीर के बारे में ज्ञान नहीं है । लेकिन सूक्ष्म शरीर है । वैसे ही जैसे हम अपने मन को नहीं देखते हैं, लेकिन मुझे पता है कि तुम्हारा मन है । तुम मेरे मन को नहीं देखते हो, लेकिन तुम्हे पता है मेरा मन है । मन, बुद्धि और अहंकार ।

मेरी धारणा, पहचान, "मैं हूँ " यह धारणा है । यही अहंकार है । और मेरी बुद्धि और मेरा मन, तुम देख नहीं सकते, न तो मैं देख सकता हूँ । इसलिए कैसे मन, बुद्धि और व्यक्तिगत पहचान, या अहंकार, ले जाता है अात्मा को दूसरे शरीर में, वे यह नहीं देखते हैं । वे यह नहीं देख सकते हैं । वे स्थूल शरीर के समाप्त होने को देखते हैं, सब कुछ समाप्त हो जाता है । स्थूल शरीर राख हो जाता है; इसलिए वे सोचते हैं कि सब कुछ समाप्त हो गया है । भस्मी भूतस्य देहस्य कुत: पुनर आगमनो भवेद (चार्वाक मुनि) |

नास्तिक वर्ग, वे उस तरह सोचते हैं । ज्ञान की कमी के कारण, वे सोचते हैं की "मैं देखता हूँ कि शरीर अब जल कर राख हो गया है । तो फिर आत्मा कहां है ?" तो "कोई आत्मा नहीं है, कोई भगवान नहीं है, यह सब कल्पना है ।" लेकिन यह तथ्य नहीं है; यह तथ्य नहीं है । तथ्य यह है, कि स्थूल शरीर समाप्त हो गया है, लेकिन सूक्ष्म शरीर वहाँ है । मनो बुद्धिर अहंकार: | भूमिर अापो अनलो वायु: खम मनो बुद्धिर एव च (भ.गी. ७.४) | अपरेयम इतस तु विद्धि मे प्रकृतिम पराम । तो सूक्ष्मता की क्रिया अौर प्रतिक्रिया, सूक्ष्म बात... मन भी पदार्थ है, लेकिन सूक्ष्म पदार्थ, बहुत सूक्ष्म । जैसे आकाश, आकाश । अाकाश भी पदार्थ है, लेकिन सूक्ष्म । और आकाश से सूक्ष्म है मन और मन से सूक्ष्म है बुद्धि । और बुद्धि से सूक्ष्म है मेरा अहंकार: "मैं हूँ," यह धारणा ।

तो उन्हें ज्ञान नहीं है । इसलिए... वे स्थूल चीजों के साथ हथियार या बम का निर्माण कर सकते हैं । भूमिर अपो अनलो - रसायन, यह स्थूल है । लेकिन यह ब्रह्मास्त्र स्थूल नहीं है । यह भी भौतिक है, लेकिन यह सूक्ष्म चीजों से बना है: मन, बुद्धि और अहंकार से । इसलिए अर्जुन कृष्ण से पूछ रहा है, "मैं नहीं जानता कि यह कहॉ से अा रहा है, कहाँ से इस तरह का उच्च तापमान आ रहा है ।" यहां कहा गया है, तेज: परम दारुणम | तापमान इतना अधिक है, असहनीय । इसलिए हमें प्राधिकरण से पूछना चाहिए । कृष्ण सबसे अच्छे अधिकारी हैं । तो अर्जुन उनसे पूछ रहा है, किम इडम स्वित कुतो वेति: "मेरे प्रिय कृष्ण, यह तापमान कहाँ से आ रहा है ?" किम इदम । देव-देव । क्यों वह कृष्ण से पूछ रहा है ? क्योंकि कृष्ण देव-देव हैं ।