HI/Prabhupada 0808 - हम कृष्ण को धोखा नहीं दे सकते हैं: Difference between revisions

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तो, जैसे ही हमारी चेतना कृष्ण भावनाभावित हो जाती है, श्री कृष्ण समझ जाते हैं । श्री कृष्ण हमारे दिल के भीतर हैं । ईष्वर: सर्व भूतानाम हृद-देशे अर्जुन तिष्ठति ([[Vanisource:BG 18.61|भ गी १८।६१]])
तो, जैसे ही हमारी चेतना कृष्ण भावनाभावित हो जाती है, कृष्ण समझ जाते हैं । कृष्ण हमारे हृदय के भीतर हैं । ईश्वर: सर्व भूतानाम हृद-देशे अर्जुन तिष्ठति ([[HI/BG 18.61|भ.गी. १८.६१]]) |


तो श्री कृष्ण तुम्हारे उद्देश्य को समझ सकते हैं । हम श्री कृष्ण को धोखा नहीं दे सकते हैं । श्री कृष्ण तुरंत समझ सकते हैं कि तुम कितने गंभीर और ईमानदार हो, श्री कृष्ण को समझने के लिए या उनके पास जाने के लिए या वापस घर जाने के लिए, भगवान के धाम श्री कृष्ण समझ सकते हैं। जैसे ही वे समझते हैं कि "यहाँ एक आत्मा है, वह बहुत ही गंभीर है" वह तुम्हारा ख्याल रखता है, विशेष रूप से, । समो अहम सर्व-भूतेषु । श्री कृष्ण, भगवान होने के कारण, वे हर किसी के प्रति समान हैं । समो अहम सर्व भूतेषु । न मे द्वेष्यो अस्ति न प्रिय: कोई भी प्रीय, या द्वेष, या ईर्ष्या की वस्तु नहीं है श्री कृष्ण ईर्ष्या रहित हैं, न ही हर किसी के लिए विशेष रूप से झुकाव है । दरअसल, भगवान की स्थिति तटस्थता है। हर कोई ... वे हर किसी को पसंद करते हैं । सुहृदम् सर्व भूतानाम् ज्ञात्वा माम शांतिम ऋच्छति ([[Vanisource:BG 5.29|भ गी ५।२९]]) यह भी भगवद गीता में कहा गया है। वे हर किसी का सखा हैं ।  
तो कृष्ण तुम्हारे उद्देश्य को समझ सकते हैं । हम कृष्ण को धोखा नहीं दे सकते हैं । कृष्ण तुरंत समझ सकते हैं की तुम कितने गंभीर और ईमानदार हो, कृष्ण को समझने के लिए या उनके पास जाने के लिए या वापस भगवद धाम जाने के लिए । कृष्ण समझ सकते हैं । जैसे ही वे समझते हैं कि "यहाँ एक आत्मा है, वह बहुत ही गंभीर है," वह तुम्हारा ख्याल रखता है, विशेष रूप से । समो अहम सर्व-भूतेषु । कृष्ण, भगवान होने के कारण, वे हर किसी के प्रति समान हैं । समो अहम सर्व भूतेषु । न मे द्वेष्यो अस्ति न प्रिय:([[HI/BG 9.29|भ.गी. ९.२९]]) | कोई भी प्रिय, या द्वेष, या ईर्ष्या की वस्तु नहीं है | कृष्ण ईर्ष्या रहित हैं, न ही हर किसी के लिए विशेष रूप से झुकाव है । वास्तव में, भगवान की स्थिति तटस्थ है । हर कोई... वे हर किसी को पसंद करते हैं । सुहृदम सर्व भूतानाम ज्ञात्वा माम शांतिम ऋच्छति ([[HI/BG 5.29|भ.गी. ५.२९]]) | यह भी भगवद गीता में कहा गया है । वे हर किसी के सखा हैं ।  


हम दोस्ती चाहते हैं इतने सारे लोगों के साथ अपने मकसद को पूरा करने के लिए । लेकिन अगर हम श्री कृष्ण को बनाऍ, अगर हम जानते हैं कि श्री कृष्ण पहले से ही तैयार हैं .. उपनिषद में यह कहा गया है कि दो पक्षि एक ही पेड़ पर बैठे हैं दोस्ताना तरीके से, शरीर । तो अगर हम समझते हैं, "श्री कृष्ण मेरे सबसे अच्छी दोस्त है ..."। श्री कृष्ण कहते हैं, सुहृदम सर्व भूतानाम वे न केवल मेरे दोस्त हैं, तुम्हारे दोस्त हैं, लेकिन वे हर किसी के दोस्त हैं । तो यह दोस्ती समान रूप से वितरित की गई है । लेकिन अगर कोई विशेष भक्त बन जाते है, , ये तु भजन्ति माम प्रीत्या प्रेम और स्नेह के साथ, भगवान की सेवा में जो लगा हुअा है, उनका उसके प्रति झुकाव है । यह भक्त के प्रति श्री कृष्ण की कृपा है। श्री कृष्ण हर किसी के प्रति समान हैं, लेकिन भक्तों के प्रति उनका विशेष रूप से झुकाव है जो प्रेम और विश्वास के साथ उनकी सेवा में लगे हैं ।  
हम दोस्ती चाहते हैं इतने सारे लोगों के साथ अपने मकसद को पूरा करने के लिए । लेकिन अगर हम कृष्ण को बनाऍ, अगर हम जानते हैं कि कृष्ण पहले से ही तैयार हैं... उपनिषद में यह कहा गया है कि दो पक्षी एक ही पेड़ पर, शरीर में, बैठे हैं दोस्ताना तरीके से । तो अगर हम समझते हैं, "कृष्ण मेरे सबसे अच्छे दोस्त है..." कृष्ण कहते हैं, सुहृदम सर्व भूतानाम | वे न केवल मेरे दोस्त हैं, तुम्हारे दोस्त हैं, लेकिन वे हर किसी के दोस्त हैं । तो यह दोस्ती समान रूप से वितरित की गई है । लेकिन अगर कोई विशेष भक्त बन जाते है, ये तु भजन्ति माम प्रीत्या, प्रेम और स्नेह के साथ, भगवान की सेवा में जो लगा हुअा है, उनका उसके प्रति झुकाव है । यह भक्त के प्रति कृष्ण की कृपा है । कृष्ण हर किसी के प्रति समान हैं, लेकिन भक्तों के प्रति उनका विशेष रूप से झुकाव है जो प्रेम और विश्वास के साथ उनकी सेवा में लगे हैं ।  


:तेषाम सतत युक्तानाम्
:तेषाम सतत युक्तानाम
:भजताम् प्रीति पूर्वकम  
:भजताम् प्रीति पूर्वकम  
:ददामि बुद्धि योगम तम्
:ददामि बुद्धि योगम तम
:येन माम उपयान्ति ते  
:येन माम उपयान्ति ते  
:([[Vanisource:BG 10.10|भ गी १०।१०]])
:([[HI/BG 10.10|भ.गी. १०.१०]]) |


श्री कृष्ण उसे देते हैं ... क्योंकि वे विशेष रूप से भक्त का ख्याल रखते हैं, ..  
कृष्ण उसे देते है... क्योंकि वे भक्त का विशेष रूप से ख्याल रखते है... तो हर किसी के दिल में, वे बैठे हैं ।


तो हर किसी के दिल में, वे बैठे हैं । क्षेत्र ज्ञम् चापि माम विद्धि सर्व क्षेत्रेषु भारत । लेकिन वे भक्त का विशेष ख्याल रखते हैं, मार्ग दर्शन करते हैं, उसे बुद्धि देते हैं । किस तरह की बुद्धि ? येन माम उपयान्तिi ते। उसे मार्ग दिखाने के लिए कि कैसे हम वापस घर जा सकते हैं, भगवान के धाम । श्री कृष्ण यह बुद्धि नहीं देते हैं कि कैसे हम भौतिक समृद्धि हासिल करें । यह माया का काम है -दैवी माया या दुर्गादेवी । इसलिए लोग श्री कृष्ण की पूजा में बहुत ज्यादा दिलचस्पी नहीं लेते हैं । वे आम तौर पर रुचि रखते हैं देवी दुर्गा, भगवान शिव की पूजा में । क्योंकि भगवान शिव, देवी दुर्गा की पूजा करके, वे भौतिक संपन्नता पाते हैं । तो देवताअों की पूजा करना मतलब शत-प्रतिशत भौतिकवाद । आध्यात्मिक जीवन का कोई सवाल ही नहीं है। इसलिए श्री कृष्ण कहते हैं ... वह क्या श्लोक है? नष्ट बुद्धय: । कामैस तैस तैर हृत ज्ञाना: यजन्ति अन्य देवता: ([[Vanisource:BG 7.20|भ गी ७।२०]]) जो अन्य देवताअों की पूजा में रुचि रखते हैं, उनकी बुद्धि हर ली जाती है, हृत ज्ञान कामैस तैस तैर, माययापहृत-ज्ञान । ये शब्द हैं । माया दो तरह से काम कर रही है : प्रक्षेपात्मिका शक्ति, अावरणात्मिका शक्ति । अावरणात्मिका शक्ति का मतलब है वह ढक रही है । अावरणात्मिका शक्ति, वह ढक रही है । वास्तविक तथ्य माया द्वारा ढका है ।
क्षेत्र ज्ञम चापि माम विद्धि सर्व क्षेत्रेषु भारत । लेकिन वे भक्त का विशेष ख्याल रखते हैं, मार्ग दर्शन करते हैं, उसे बुद्धि देते हैं । किस तरह की बुद्धि ? येन माम उपयान्ति ते । उसे मार्ग दिखाने के लिए कि कैसे हम वापस घर जा सकते हैं, भगवान के धाम । कृष्ण यह बुद्धि नहीं देते हैं कि कैसे हम भौतिक समृद्धि हासिल करें । यह माया का काम है - दैवी माया या दुर्गादेवी । इसलिए लोग कृष्ण की पूजा में बहुत ज्यादा दिलचस्पी नहीं लेते हैं । वे आम तौर पर रुचि रखते हैं देवी दुर्गा, शिवजी की पूजा में । क्योंकि शिवजी, देवी दुर्गा की पूजा करके, वे भौतिक संपन्नता पाते हैं ।  
 
तो देवताअों की पूजा करना मतलब शत-प्रतिशत भौतिकवाद । आध्यात्मिक जीवन का कोई सवाल ही नहीं है । इसलिए कृष्ण कहते हैं... वह क्या श्लोक है ? नष्ट बुद्धय: । कामैस तैस तैर हृत ज्ञाना: यजन्ति अन्य देवता: ([[HI/BG 7.20|भ.गी. ७.२०]]) | जो अन्य देवताअों की पूजा में रुचि रखते हैं, उनकी बुद्धि हर ली जाती है, हृत ज्ञान | कामैस तैस तैर, माययापहृत-ज्ञान । ये शब्द हैं । माया दो तरह से काम कर रही है: प्रक्षेपात्मिका शक्ति, अावरणात्मिका शक्ति । अावरणात्मिका शक्ति का मतलब है वह ढक रही है । अावरणात्मिका शक्ति, वह ढक रही है । वास्तविक तथ्य माया द्वारा ढका है ।  
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Latest revision as of 19:18, 17 September 2020



730926 - Lecture BG 13.03 - Bombay

तो, जैसे ही हमारी चेतना कृष्ण भावनाभावित हो जाती है, कृष्ण समझ जाते हैं । कृष्ण हमारे हृदय के भीतर हैं । ईश्वर: सर्व भूतानाम हृद-देशे अर्जुन तिष्ठति (भ.गी. १८.६१) |

तो कृष्ण तुम्हारे उद्देश्य को समझ सकते हैं । हम कृष्ण को धोखा नहीं दे सकते हैं । कृष्ण तुरंत समझ सकते हैं की तुम कितने गंभीर और ईमानदार हो, कृष्ण को समझने के लिए या उनके पास जाने के लिए या वापस भगवद धाम जाने के लिए । कृष्ण समझ सकते हैं । जैसे ही वे समझते हैं कि "यहाँ एक आत्मा है, वह बहुत ही गंभीर है," वह तुम्हारा ख्याल रखता है, विशेष रूप से । समो अहम सर्व-भूतेषु । कृष्ण, भगवान होने के कारण, वे हर किसी के प्रति समान हैं । समो अहम सर्व भूतेषु । न मे द्वेष्यो अस्ति न प्रिय:(भ.गी. ९.२९) | कोई भी प्रिय, या द्वेष, या ईर्ष्या की वस्तु नहीं है | कृष्ण ईर्ष्या रहित हैं, न ही हर किसी के लिए विशेष रूप से झुकाव है । वास्तव में, भगवान की स्थिति तटस्थ है । हर कोई... वे हर किसी को पसंद करते हैं । सुहृदम सर्व भूतानाम ज्ञात्वा माम शांतिम ऋच्छति (भ.गी. ५.२९) | यह भी भगवद गीता में कहा गया है । वे हर किसी के सखा हैं ।

हम दोस्ती चाहते हैं इतने सारे लोगों के साथ अपने मकसद को पूरा करने के लिए । लेकिन अगर हम कृष्ण को बनाऍ, अगर हम जानते हैं कि कृष्ण पहले से ही तैयार हैं... उपनिषद में यह कहा गया है कि दो पक्षी एक ही पेड़ पर, शरीर में, बैठे हैं दोस्ताना तरीके से । तो अगर हम समझते हैं, "कृष्ण मेरे सबसे अच्छे दोस्त है..." कृष्ण कहते हैं, सुहृदम सर्व भूतानाम | वे न केवल मेरे दोस्त हैं, तुम्हारे दोस्त हैं, लेकिन वे हर किसी के दोस्त हैं । तो यह दोस्ती समान रूप से वितरित की गई है । लेकिन अगर कोई विशेष भक्त बन जाते है, ये तु भजन्ति माम प्रीत्या, प्रेम और स्नेह के साथ, भगवान की सेवा में जो लगा हुअा है, उनका उसके प्रति झुकाव है । यह भक्त के प्रति कृष्ण की कृपा है । कृष्ण हर किसी के प्रति समान हैं, लेकिन भक्तों के प्रति उनका विशेष रूप से झुकाव है जो प्रेम और विश्वास के साथ उनकी सेवा में लगे हैं ।

तेषाम सतत युक्तानाम
भजताम् प्रीति पूर्वकम
ददामि बुद्धि योगम तम
येन माम उपयान्ति ते
(भ.गी. १०.१०) |

कृष्ण उसे देते है... क्योंकि वे भक्त का विशेष रूप से ख्याल रखते है... तो हर किसी के दिल में, वे बैठे हैं ।

क्षेत्र ज्ञम चापि माम विद्धि सर्व क्षेत्रेषु भारत । लेकिन वे भक्त का विशेष ख्याल रखते हैं, मार्ग दर्शन करते हैं, उसे बुद्धि देते हैं । किस तरह की बुद्धि ? येन माम उपयान्ति ते । उसे मार्ग दिखाने के लिए कि कैसे हम वापस घर जा सकते हैं, भगवान के धाम । कृष्ण यह बुद्धि नहीं देते हैं कि कैसे हम भौतिक समृद्धि हासिल करें । यह माया का काम है - दैवी माया या दुर्गादेवी । इसलिए लोग कृष्ण की पूजा में बहुत ज्यादा दिलचस्पी नहीं लेते हैं । वे आम तौर पर रुचि रखते हैं देवी दुर्गा, शिवजी की पूजा में । क्योंकि शिवजी, देवी दुर्गा की पूजा करके, वे भौतिक संपन्नता पाते हैं ।

तो देवताअों की पूजा करना मतलब शत-प्रतिशत भौतिकवाद । आध्यात्मिक जीवन का कोई सवाल ही नहीं है । इसलिए कृष्ण कहते हैं... वह क्या श्लोक है ? नष्ट बुद्धय: । कामैस तैस तैर हृत ज्ञाना: यजन्ति अन्य देवता: (भ.गी. ७.२०) | जो अन्य देवताअों की पूजा में रुचि रखते हैं, उनकी बुद्धि हर ली जाती है, हृत ज्ञान | कामैस तैस तैर, माययापहृत-ज्ञान । ये शब्द हैं । माया दो तरह से काम कर रही है: प्रक्षेपात्मिका शक्ति, अावरणात्मिका शक्ति । अावरणात्मिका शक्ति का मतलब है वह ढक रही है । अावरणात्मिका शक्ति, वह ढक रही है । वास्तविक तथ्य माया द्वारा ढका है ।