HI/Prabhupada 0809 - दानव-तंत्र' का शॉर्टकट 'लोकतंत्र' है
740928 - Lecture SB 01.08.18 - Mayapur
तो कुंती चाची है पिशीमा, श्री कृष्ण की चाची । वसुदेव की बहन, कुंती । तो जब श्री कृष्ण कुरुक्षेत्र की लड़ाई खत्म करने के बाद, द्वारका को वापस जा रहे थे, और सिंहासन पर महाराजा युधिष्ठिर के स्थापित करने के बाद ...... उनका मिशन उनका मिशन था कि दुर्योधन को बाहर फेंक दिया जाना चाहिए और युधिष्ठिर को सिंहासन पर बैठना चाहिए । धर्म, धर्मराज । यही श्री कृष्ण की इच्छा है , या भगवान की, राज्य का अध्यक्ष महाराजा युधिष्ठिर की तरह धार्मिक होना चाहिए । यही योजना है । दुर्भाग्य से, लोग एसा नहीं चाहते हैं । उन्होंनेअ अब यह लोकतंत्र की खोज की है। लोकतंत्र - 'दानव-तंत्र'। 'दानव-तंत्र' का शॉर्टकट 'लोकतंत्र' है। सभी राक्षस और बदमाश, वे एक साथ एकत्रित होते हैं, किसी न किसी तरह से वोट, और पद पर कब्जा करना है, और व्यापार है लूटना । व्यापार है लूटना । अगर हम इस पर बहुत ज्यादा बात करें, तो यह बहुत अनुकूल नहीं होगा, लेकिन शास्त्र के अनुसार ... हम, हम शास्त्र के अनुसार बात करते हैं, कि लोकतंत्र का मतलब है बदमाशों और लुटेरों की सभा । यह श्रीमद-भागवतम में बयान है। दस्यु धर्माभि: । सरकारी कर्मचारि सभी दस्यु होंगे । दस्यु मतलब लुटेरा । जेबकतरा नहीं । जेबकतरा, किसी न किसी तरह से, अगर तुम सावधान नहीं रहते हो, कुछ लेता है तुम्हारी जेब से और लुटेरा, या दस्यु, वह तुम्हे पकड़ता और ज़बरदस्ती "अगर तुम अपने पैसे नहीं दोगे तो मैं तुम्हें मार डालूँगा ।" वे दस्यु कहे जाते हैं । तो, वर्तमान कली युग में, सरकारी कर्मचारि दस्यु होंगे । यह श्रीमद-भागवतम में कहा गया है। दस्यु धर्मिभि: । तुम देख सकते हो, हम देख सकते हैं व्यावहारिक रूप से । तुम अपना पैसा नहीं रख सकते हो । तुम कठिन परिश्रम के साथ कमाते हो, लेकिन तुम सोना नहीं रख सकते हो । तुम पैसे नहीं रख सकते, गहने नहीं रख सकते । कानून द्वारा इसे ले लेंगे । इसलिए वे कानून बनाते हैं ... युधिष्ठिर महाराज बिल्कुल विपरीत था । वह देखना चाहता था कि हर नागरिक बहुत खुश है कि वे परेशान न हो अत्यधिक गर्मी और अत्यधिक ठंड से । अति-व्याधि । वे किसी भी बीमारी से पीड़ित नहीं हैं वे अत्यधिक जलवायु प्रभाव से पीड़ित नहीं हैं बहुत अच्छी तरह से खा रहे हैं, और व्यक्ति और संपत्ति की सुरक्षा महसूस कर रहे हैं । यही थे युधिष्ठिर महाराज । युधिष्ठिर महाराज ही नहीं । लगभग सभी राजा, वे एसे थे। तो श्री कृष्ण मूल राजा हैं । क्योंकि उनके लिए यहाँ कहा गया है, पुरुषम अाद्यम ईष्वरम । ईष्वरम का मतलब है नियंत्रक । वे मूल नियंत्रक हैं । यह भगवद गीता में कहा गया है। मयाध्यक्षेण । मयाध्यक्षेण प्रकृति: सूयते स चराचरम (भ गी ९।१०) यहां इस भौतिक प्रकृति में भी, अद्भुत चीजें हो रही हैं, यह श्री कृष्ण के द्वारा नियंत्रित हो रही हैं । यह समझा जाना चाहिए । तो हम भगवद गीता पढ़ रहे हैं अौर श्रीमद-भागवतम और अन्य वैदिक साहित्य । उद्देश्य क्या है? उद्देश्य है वेदैश च सर्वैर अहम एव वेद्यम (भ गी १५।१५) । उद्देश्य है श्री कृष्ण को समझना । अगर तुम श्री कृष्ण को नहीं समझते तो फिर तुम्हारा तथाकथित वेद और वेदांत और उपनिषद का पढ़ना, वे समय की बर्बादी है । तो यहाँ कुंती सीधा कह रही हैं कि, "मेरे प्रिय श्री कृष्ण आप अाद्यम पुरुषम हैं, मूल व्यक्ति । और ईष्वरम । आप साधारण व्यक्ति नहीं हैं । आप सर्वोच्च नियंत्रक हैं। " यही श्री कृष्ण की समझ है । ईष्वर: परम: कृष्ण: ( ब्र स ५।१) हर कोई नियंत्रक है, लेकिन सर्वोच्च नियंत्रक श्री कृष्ण हैं ।