HI/Prabhupada 0810 - इस भौतिक दुनिया की खतरनाक स्थिति से उत्तेजित मत होना

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741003 - Lecture SB 01.08.23 - Mayapur

तो यहाँ एक बात विशेष रूप से उल्लेख की गई है, कि मुहुर विपद-गणात । मुहु: मतलब चौबीस घंटे, या हमेशा, लगभग चौबीस घंटे । मुहु: । मुहु: मतलब "बारम्बार ।" तो विपत । विपत मतलब "खतरा ।" और गण, गण मतलब 'बहु', एक प्रकार का खतरा नहीं लेकिन विभिन्न प्रकार का खतरा । तो मुहुर विपद-गणात, कौन पीड़ित है? अब, कुंती । और कौन पीड़ित है ? अब, देवकी । देवकी श्री कृष्ण की माँ हैं, और कुंती श्री कृष्ण की चाची हैं । वे दोनों साधारण महिलाऍ नहीं हैं । श्री कृष्ण की मां बनना या कृष्ण का चाची बनना, यह साधारण बात नहीं है। इसके लिए बहुत, बहुत जन्मों की तपस्या की आवश्यकता है । फिर कोई श्री कृष्ण की मां बन सकता है। तो वे भी पीड़ित थीं मुहुर विपद गणात, हमेशा विपत । हालांकि श्री कृष्ण उनके लिए बहुत, बहुत आसानी से प्राप्य व्यक्तित्व थे, माँ, लेकिन ... देवकी नें श्री कृष्ण को जन्म दिया है, लेकिन खतरा इतना भयानक कि वह अपने बेटे को अपने पास नहीं रख सकी । उन्हे तुरंत स्थानांतरित किया जाना पड़ा । देखो कितना विपत, कितना विपत । श्री कृष्ण की मां गोद में अपने बेटे को नहीं रख सकी । हर मां चाहती है, लेकिन क्योंखि वहॉ था कंस खलेन, वह नहीं रख सकी । और पांडवों के लिए, श्री कृष्ण निरंतर साथी थे । जहाँ भी पांडव हैं, श्री कृष्ण वहाँ हैं। श्री कृष्ण ... द्रौपदी खतरे में है। उसे नग्न करने का प्रयास किया गया कौरवों, दुर्योधन, दु:शासन द्वारा । श्री कृष्ण नें कपड़े की आपूर्ति की। तो एक स्त्री के लिए कई पुरुषों की सभा में अगर वह नग्न की जाने वाली है, यह सबसे बड़ा खतरा है । यह सबसे बड़ा खतरा है, और श्री कृष्ण नें बचाया । इसी तरह, कुंती को बचाया ... खतर बाद में श्लोक में वर्णित किया जाएँगे । वे कहती हैं, विमोचिताहम् च सहात्मजा विभो : "मुझे इतने सारे खतरनाक स्थितियों से बाहर निकाला गया न केवल मुझे, लेकिन मेरे बेटों के साथ । " तो तथ्य यह है कि कुंती या देवकी को भी, जो कृष्ण के साथ इतनी जुड़ी हुई हैं लेकिन उन्हें इतने खतरों का सामना करना पड़ा, तो दूसरों की क्या बात थी? दूसरों की क्या बात है, अपनी ? तो जब हम खतरे में हैं, हम खतरे में हैं, हमें हतोत्साहित नहीं होना चाहिए । हमें साहस रखना चाहिए कि यहां तक ​​कि कुंती और वसुदेव और देवकी, वे भी खतरे में थे, हालांकि वे बहुत, बहुत निकटता से जुड़ी थीं श्री कृष्ण के साथ ।, तो हमें इस भौतिक दुनिया के खतरों से परेशान नहीं होना चाहिए। अगर हम वास्तव में कृष्ण भावनाभावित हैं, हमें खतरे का सामना करना चाहिए और श्री कृष्ण पर निर्भर होना चाहिए। अवश्य रक्षिबे कृष्ण विश्वास पालान । यह आत्मसमर्पण कहा जाता है, कि "मैं खतरे में हो सकता हूँ, लेकिन श्री कृष्ण ... मैं श्री कृष्ण के समक्ष आत्मसमर्पण कर दिया है। उन्हे मुझे बचाना होगा ।" यह विश्वास रखो । जब तुम खतरे में हो तब परेशान मत होना, क्योंकि यह दुनिया एसी है..... पदम पदम विपदाम । हर कदम में खतरा है । जैसे हम सड़क पर चल रहे हैं। तुरंत कुछ चुभता है, कांटा । और कांटे की चुभन से, यह एक फोड़ा हो सकता है; यह खतरनाक हो सकता है। तो सड़क पर चलकर भी, बात करके, सड़क पर चलने से, हमारे भोजन खाने से ... और अंग्रेजी में यह कहा जाता है "कप और होंठ के बीच कई खतरे हैं ।" तो तुम्हे हमेशा याद रखना चाहिए कि यह भौतिक दुनिया खतरों के बस भरी हुई है । अगर तुम सोचते हो कि "हम बहुत सुरक्षित हैं, हम बहुत निपुण हैं; हमने इस दुनिया को बहुत सुखी बनाया है, " तो तुम अव्वल दर्जे के मूर्ख हो । पदम पदम यद विपदाम (श्री भ १०।१४।५८) । लेकिन अगर तुम श्री कृष्ण की शरण लेते हो, ये खतरे कुछ भी नहीं । यही कुंती कहेंगी, कि विमोचित । विमोचित मतलब खतरे से बाहर । अहम । सहात्मजा " अपने .... तो यह कृष्ण का अध्ययन है, कि तुम कृष्ण भावनाभावि हो जाअो, कृष्ण का एक ईमानदार सेवक, उत्तेजित मत होना इस भौतिक दुनिया की खतरनाक स्थिति से । केवल तुम श्री कृष्ण पर निर्भर करो, और वे तुम्हें बचा लेंगे ।

बहुत बहुत धन्यवाद ।