HI/Prabhupada 0811 - रूप गोस्वामी का निर्देश है किसी न किसी तरह से, तुम कृष्ण के साथ जुड़ो: Difference between revisions

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तो यह मत सोचो कि श्री कृष्ण, क्योंकि वे अाए हैं, वृन्दावन में एक चरवाहे लड़के की तरह, एसा कभी मत सोचो.. बेशक, वृन्दावन वासी, वे नहीं जानते हैं कि श्री कृष्ण क्या हैैं । वे ग्राम वासी हैं। वे नहीं जानते। लेकिन वे श्री कृष्ण से अधिक किसी को प्रेम नहीं करते हैं । यही उनकी योग्यता है। वे विष्णु को भी नहीं जानते हैं । जब गोपियों नें विष्णु-मूर्ति को देखा - श्री कृष्ण नें विष्णु मूर्ति रूप को ग्रहण किया वे गुजर रहे थे - उन्होंने कहा, "ओह, यहाँ विष्णु हैं । ठीक है । नमस्कार ।" उन्हे विष्णु में कोई दिलचस्पी नहीं थी । वे श्री कृष्ण में रुचि रखते थे । हालांकि वे नहीं जानते हैं कि श्री कृष्ण भगवान हैं । इसी तरह, अगर, श्री कृष्ण क्या हैं यह जाने बिना, अगर तुम केवल श्री कृष्ण के साथ जुड़ो, तो तुम्हारा जीवन सफल होता है। केवल, किसी न किसी तरह से, तुम श्री कृष्ण के साथ जुड़ते हो। मय्यि अासक्त मना: पार्थ योगम् युन्जन मद.... ...ज्ञास्यसि तच श्रुणु ([[Vanisource:BG 7.1|भ गी ७।१]]) । केवल तुम ... यह कृष्ण भावनामृत आंदोलन है। किसी न किसी तरह से, तुम श्री कृष्ण में अासक्ति बढाअो । किसी न किसी तरह से । येन तेन प्रकारेण मन" कृष्णे निवेशयेत ( भक्ति रासामृत सिंधु १।२।४) । यह रूप गोस्वामी का निर्देश है । किसी न किसी तरह से, तुम श्री कृष्ण के साथ जुड़ो । तो तुम्हारा जीवन सफल होता है।
तो यह मत सोचो कि कृष्ण, क्योंकि वे अाए हैं, वृन्दावन में एक चरवाहे लड़के की तरह, ऐसा कभी मत सोचो... बेशक, वृन्दावनवासी, वे नहीं जानते हैं कि कृष्ण क्या हैैं । वे ग्राम वासी हैं । वे नहीं जानते । लेकिन वे कृष्ण से अधिक किसी को प्रेम नहीं करते हैं । यही उनकी योग्यता है । वे विष्णु को भी नहीं जानते हैं । जब गोपियों नें विष्णु-मूर्ति को देखा - कृष्ण ने विष्णु मूर्ति रूप को ग्रहण किया, वे गुज़र रहे थे - उन्होंने कहा, "ओह, यहाँ विष्णु हैं । ठीक है । नमस्कार ।" उन्हे विष्णु में कोई दिलचस्पी नहीं थी । वे कृष्ण में रुचि रखते थे । हालांकि वे नहीं जानते हैं की कृष्ण पूर्ण पुरुषोत्तम भगवान हैं ।  


तो यह कृष्ण भावनामृत आंदोलन लोगों को प्रेरित करने की कोशिश कर रहा है कैसे श्री कृष्ण के साथ जुड़ें यही भक्ति-योग है । येन तेन प्रकारेण मन" कृष्णे निवेशयेत । तो फिर? विधि-निषेधा: । इतने सारे नियम हैं भक्ति-योग में हाँ, हैं। और रूप गस्वामी कहते हैं , सर्वे विधि निषेधा: स्युर एतयोर किंकरा: ( पद्म पुराण, बृहत सहस्र नाम स्तोत्र ) कोई न किसी तरह से, अगर तुम श्री कृष्ण में अासक्त होते हो, तो सभी विधियॉ और नियामक सिद्धांत, वे तुम्हारे सेवक के रूप में कार्य करेंगे वे अपने आप (अस्पष्ट) क्योंकि जैसे ही तुम श्री कृष्ण से जुड़ते हो, श्री कृष्ण ने कहा है, क्षिप्रम् भवति धर्मात्मा
इसी तरह, अगर, कृष्ण क्या हैं यह जाने बिना, अगर तुम केवल कृष्ण के साथ जुड़ो, तो तुम्हारा जीवन सफल होता है । केवल, किसी न किसी तरह से, तुम कृष्ण के साथ जुड़ते हो । मय्यासक्त मना: पार्थ योगम युन्जन मद्... (तोड़) ...ज्ञास्यसि तच श्रुणु ([[HI/BG 7.1|भ.गी. ७.१]]) । केवल तुम... यह कृष्ण भावनामृत आंदोलन है । किसी न किसी तरह से, तुम कृष्ण में अासक्ति बढ़ाअो किसी न किसी तरह से । येन तेन प्रकारेण मन: कृष्णे निवेशयेत (भक्ति रसामृत सिंधु १.२.४) यह रूप गोस्वामी का निर्देश है । किसी न किसी तरह से, तुम कृष्ण के साथ जुड़ो तो तुम्हारा जीवन सफल होता है


:क्षिप्रम् भवति धर्मात्मा  
तो यह कृष्ण भावनामृत आंदोलन लोगों को प्रेरित करने की कोशिश कर रहा है कैसे कृष्ण के साथ जुड़ें । यही भक्ति-योग है । येन तेन प्रकारेण मनः कृष्णे निवेशयेत । फिर ? विधि-निषेधा: । इतने सारे नियम हैं भक्ति-योग में । हाँ, वे हैं । और रूप गस्वामी कहते हैं, सर्वे विधि निषेधा: स्युर एतयोर किंकरा: (पद्म पुराण, बृहत सहस्र नाम स्तोत्र) । किसी न किसी तरह से, अगर तुम कृष्ण में अासक्त होते हो, तो सभी विधियाँ और नियामक सिद्धांत, वे तुम्हारे सेवक के रूप में कार्य करेंगे । वे अपने आप (अस्पष्ट) | क्योंकि जैसे ही तुम कृष्ण से जुड़ते हो, कृष्ण ने कहा है, क्षिप्रम भवति धर्मात्मा ।
:श्श्वच छांतिम् निगच्छति  
 
:क्षिप्रम भवति धर्मात्मा  
:शश्वच शान्तिम निगच्छति  
:कौन्तेय प्रतिजानीहि  
:कौन्तेय प्रतिजानीहि  
:न मे भक्त: प्रणश्यति  
:न मे भक्त: प्रणश्यति
:([[Vanisource:BG 9.31|भ गी ९।३१]])
:([[HI/BG 9.31|भ.गी. ९.३१]])
 
क्षिप्रम, बहुत जल्द। अपि चेत सु दुराचारो भजते माम अनन्य भाक साधुर एव स मंतव्य: ([[HI/BG 9.30|भ.गी. ९.३०]]) |


क्षिप्रम, बहुत जल्द। अपि चेत सु दुराचारो भजते माम अनन्य भाक साधुर एव स मंतव्य: ([[Vanisource:BG 9.30|भ गी ९।३०]])
यह मत सोचो कि ये यूरोपी या अमेरिकी, वे म्लेछ और यवन हैं । यह अपराध है । क्योंकि वे साधू हैं । वे नहीं जानते... उन्होंने कृष्ण को स्वीकार किया है किसी भी बेकार की समझ के, की, "यह भी अच्छा है, यह भी अच्छा है, यह भी अच्छा है ।" वे सख्ती से अपने आध्यात्मिक गुरु के निर्देश का पालन कर रहे हैं । कृष्णस्तु भगवान स्वयम ([[Vanisource:SB 1.3.28|श्रीमद भागवतम १.३.२८]]) । एक छोटा बच्चा भी हमारे संग में, श्यामसुंदर की बेटी, वह किसी के पास जाती है - वह केवल पाँच साल की थी - वह पूछती है, "तुम कृष्ण को जानते हो ?" तो किसी ने कहा, "नहीं, मैं नहीं जानता।"  "ओह, पूर्ण पुरुषोत्तम भगवान ।" वह उस तरह से प्रचार करती थी ।


यह मत सोचो कि ये युरोपि या अमेरिकि, वे म्लेछा और यावण हैं । यह अपराध है । क्योंकि वे साधु हैं। वे नहीं जानते ... उन्होंने श्री कृष्ण को स्वीकार किया है किसी भी बेकार की समझ के कि "यह यह भी अच्छा है, यह भी अच्छा है, यह भी अच्छा है।" वे सख्ती से अपने आध्यात्मिक गुरु के निर्देश का पालन कर रहे। कृष्णस तु भगवान स्वयम ([[Vanisource:SB 1.3.28|श्री भ १।३।२८]]) एक छोटा बच्चा भी हमारे संग में श्यामसुंदर की बेटी, वह किसी के पास जाती है- वह केवल पांच साल की थी - वह पछती है "तुम श्री कृष्ण को जानते हो?" तो किसी नें कहा "नहीं, मैं नहीं जानता।" "ओह, भगवान।" वह उस तरह से प्रचार करती थी ।। तो वे आश्वस्त हैं, कृष्णस तू भगवान स्वयम । यह दृढ विश्वास अग्रणी गुणवत्ता है। फिर अन्य बातें अाऍगी । सर्वे विधि निषेधा: स्युर एतयोर एव किंकरा: यदि कोई केवल इस बात को मानता है कि कृष्णस तू भगवान स्वयम और उसे नहीं पसंद, सिद्धांत को नहीं मानता है कृषणैक शरणम, वर्णाश्रम धर्म । कृषणैक शरणं । यही अावश्यक है। माम एकम शरणम व्रज । तो यह करो । इस सिद्धांत का पालन करो, कि कृष्ण भगवान हैं । श्री कृष्ण पर-तत्त्व हैं, निरपेक्ष सत्य और श्री कृष्ण सर्वव्यापी हैं । मया ततम इदम सर्वम ([[Vanisource:BG 9.4|भ गी ९।४]]) । श्री कृष्ण हर जगह हैँ । जगद अव्यक्त मूर्तिना । इस अव्यक्त । श्री कृष्ण की शक्ति हर जगह है।
तो वे आश्वस्त हैं, कृष्णस्तु भगवान स्वयम । यह दृढ विश्वास अग्रणी गुणवत्ता है । फिर अन्य बातें अाएँगी । सर्वे विधि निषेधा: स्युर एतयोर एव किंकरा: | यदि कोई केवल इस बात को मानता है कि कृष्णस्तु भगवान स्वयम, और उसे नहीं पसंद, सिद्धांत को नहीं मानता है, कृष्णैक शरणम, (अस्पष्ट) वर्णाश्रम धर्म । कृष्णैक शरणम । यही अावश्यक है । माम एकम शरणम व्रज । तो यह करो । इस सिद्धांत का पालन करो की कृष्ण पूर्ण पुरुषोत्तम भगवान हैं । कृष्ण पर-तत्त्व हैं, निरपेक्ष सत्य, और कृष्ण सर्वव्यापी हैं । मया ततम इदम सर्वम ([[HI/BG 9.4|भ.गी. ९.४]]) । कृष्ण हर जगह हैं । जगद अव्यक्त मूर्तिना । इस अव्यक्त । कृष्ण की शक्ति हर जगह है ।
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Latest revision as of 17:43, 1 October 2020



761008 - Lecture SB 01.07.51-52 - Vrndavana

तो यह मत सोचो कि कृष्ण, क्योंकि वे अाए हैं, वृन्दावन में एक चरवाहे लड़के की तरह, ऐसा कभी मत सोचो... बेशक, वृन्दावनवासी, वे नहीं जानते हैं कि कृष्ण क्या हैैं । वे ग्राम वासी हैं । वे नहीं जानते । लेकिन वे कृष्ण से अधिक किसी को प्रेम नहीं करते हैं । यही उनकी योग्यता है । वे विष्णु को भी नहीं जानते हैं । जब गोपियों नें विष्णु-मूर्ति को देखा - कृष्ण ने विष्णु मूर्ति रूप को ग्रहण किया, वे गुज़र रहे थे - उन्होंने कहा, "ओह, यहाँ विष्णु हैं । ठीक है । नमस्कार ।" उन्हे विष्णु में कोई दिलचस्पी नहीं थी । वे कृष्ण में रुचि रखते थे । हालांकि वे नहीं जानते हैं की कृष्ण पूर्ण पुरुषोत्तम भगवान हैं ।

इसी तरह, अगर, कृष्ण क्या हैं यह जाने बिना, अगर तुम केवल कृष्ण के साथ जुड़ो, तो तुम्हारा जीवन सफल होता है । केवल, किसी न किसी तरह से, तुम कृष्ण के साथ जुड़ते हो । मय्यासक्त मना: पार्थ योगम युन्जन मद्... (तोड़) ...ज्ञास्यसि तच श्रुणु (भ.गी. ७.१) । केवल तुम... यह कृष्ण भावनामृत आंदोलन है । किसी न किसी तरह से, तुम कृष्ण में अासक्ति बढ़ाअो । किसी न किसी तरह से । येन तेन प्रकारेण मन: कृष्णे निवेशयेत (भक्ति रसामृत सिंधु १.२.४) । यह रूप गोस्वामी का निर्देश है । किसी न किसी तरह से, तुम कृष्ण के साथ जुड़ो । तो तुम्हारा जीवन सफल होता है ।

तो यह कृष्ण भावनामृत आंदोलन लोगों को प्रेरित करने की कोशिश कर रहा है कैसे कृष्ण के साथ जुड़ें । यही भक्ति-योग है । येन तेन प्रकारेण मनः कृष्णे निवेशयेत । फिर ? विधि-निषेधा: । इतने सारे नियम हैं भक्ति-योग में । हाँ, वे हैं । और रूप गस्वामी कहते हैं, सर्वे विधि निषेधा: स्युर एतयोर किंकरा: (पद्म पुराण, बृहत सहस्र नाम स्तोत्र) । किसी न किसी तरह से, अगर तुम कृष्ण में अासक्त होते हो, तो सभी विधियाँ और नियामक सिद्धांत, वे तुम्हारे सेवक के रूप में कार्य करेंगे । वे अपने आप (अस्पष्ट) | क्योंकि जैसे ही तुम कृष्ण से जुड़ते हो, कृष्ण ने कहा है, क्षिप्रम भवति धर्मात्मा ।

क्षिप्रम भवति धर्मात्मा
शश्वच शान्तिम निगच्छति
कौन्तेय प्रतिजानीहि
न मे भक्त: प्रणश्यति
(भ.गी. ९.३१)

क्षिप्रम, बहुत जल्द। अपि चेत सु दुराचारो भजते माम अनन्य भाक साधुर एव स मंतव्य: (भ.गी. ९.३०) |

यह मत सोचो कि ये यूरोपी या अमेरिकी, वे म्लेछ और यवन हैं । यह अपराध है । क्योंकि वे साधू हैं । वे नहीं जानते... उन्होंने कृष्ण को स्वीकार किया है किसी भी बेकार की समझ के, की, "यह भी अच्छा है, यह भी अच्छा है, यह भी अच्छा है ।" वे सख्ती से अपने आध्यात्मिक गुरु के निर्देश का पालन कर रहे हैं । कृष्णस्तु भगवान स्वयम (श्रीमद भागवतम १.३.२८) । एक छोटा बच्चा भी हमारे संग में, श्यामसुंदर की बेटी, वह किसी के पास जाती है - वह केवल पाँच साल की थी - वह पूछती है, "तुम कृष्ण को जानते हो ?" तो किसी ने कहा, "नहीं, मैं नहीं जानता।" "ओह, पूर्ण पुरुषोत्तम भगवान ।" वह उस तरह से प्रचार करती थी ।

तो वे आश्वस्त हैं, कृष्णस्तु भगवान स्वयम । यह दृढ विश्वास अग्रणी गुणवत्ता है । फिर अन्य बातें अाएँगी । सर्वे विधि निषेधा: स्युर एतयोर एव किंकरा: | यदि कोई केवल इस बात को मानता है कि कृष्णस्तु भगवान स्वयम, और उसे नहीं पसंद, सिद्धांत को नहीं मानता है, कृष्णैक शरणम, (अस्पष्ट) वर्णाश्रम धर्म । कृष्णैक शरणम । यही अावश्यक है । माम एकम शरणम व्रज । तो यह करो । इस सिद्धांत का पालन करो की कृष्ण पूर्ण पुरुषोत्तम भगवान हैं । कृष्ण पर-तत्त्व हैं, निरपेक्ष सत्य, और कृष्ण सर्वव्यापी हैं । मया ततम इदम सर्वम (भ.गी. ९.४) । कृष्ण हर जगह हैं । जगद अव्यक्त मूर्तिना । इस अव्यक्त । कृष्ण की शक्ति हर जगह है ।