HI/Prabhupada 0811 - रूप गोस्वामी का निर्देश है किसी न किसी तरह से, तुम कृष्ण के साथ जुड़ो

Revision as of 02:38, 20 August 2015 by Rishab (talk | contribs) (Created page with "<!-- BEGIN CATEGORY LIST --> Category:1080 Hindi Pages with Videos Category:Prabhupada 0811 - in all Languages Category:HI-Quotes - 1976 Category:HI-Quotes - Lec...")
(diff) ← Older revision | Latest revision (diff) | Newer revision → (diff)


Invalid source, must be from amazon or causelessmery.com

761008 - Lecture SB 01.07.51-52 - Vrndavana

तो यह मत सोचो कि श्री कृष्ण, क्योंकि वे अाए हैं, वृन्दावन में एक चरवाहे लड़के की तरह, एसा कभी मत सोचो.. बेशक, वृन्दावन वासी, वे नहीं जानते हैं कि श्री कृष्ण क्या हैैं । वे ग्राम वासी हैं। वे नहीं जानते। लेकिन वे श्री कृष्ण से अधिक किसी को प्रेम नहीं करते हैं । यही उनकी योग्यता है। वे विष्णु को भी नहीं जानते हैं । जब गोपियों नें विष्णु-मूर्ति को देखा - श्री कृष्ण नें विष्णु मूर्ति रूप को ग्रहण किया वे गुजर रहे थे - उन्होंने कहा, "ओह, यहाँ विष्णु हैं । ठीक है । नमस्कार ।" उन्हे विष्णु में कोई दिलचस्पी नहीं थी । वे श्री कृष्ण में रुचि रखते थे । हालांकि वे नहीं जानते हैं कि श्री कृष्ण भगवान हैं । इसी तरह, अगर, श्री कृष्ण क्या हैं यह जाने बिना, अगर तुम केवल श्री कृष्ण के साथ जुड़ो, तो तुम्हारा जीवन सफल होता है। केवल, किसी न किसी तरह से, तुम श्री कृष्ण के साथ जुड़ते हो। मय्यि अासक्त मना: पार्थ योगम् युन्जन मद.... ...ज्ञास्यसि तच श्रुणु (भ गी ७।१) । केवल तुम ... यह कृष्ण भावनामृत आंदोलन है। किसी न किसी तरह से, तुम श्री कृष्ण में अासक्ति बढाअो । किसी न किसी तरह से । येन तेन प्रकारेण मन" कृष्णे निवेशयेत ( भक्ति रासामृत सिंधु १।२।४) । यह रूप गोस्वामी का निर्देश है । किसी न किसी तरह से, तुम श्री कृष्ण के साथ जुड़ो । तो तुम्हारा जीवन सफल होता है।

तो यह कृष्ण भावनामृत आंदोलन लोगों को प्रेरित करने की कोशिश कर रहा है कैसे श्री कृष्ण के साथ जुड़ें । यही भक्ति-योग है । येन तेन प्रकारेण मन" कृष्णे निवेशयेत । तो फिर? विधि-निषेधा: । इतने सारे नियम हैं भक्ति-योग में । हाँ, हैं। और रूप गस्वामी कहते हैं , सर्वे विधि निषेधा: स्युर एतयोर किंकरा: ( पद्म पुराण, बृहत सहस्र नाम स्तोत्र ) कोई न किसी तरह से, अगर तुम श्री कृष्ण में अासक्त होते हो, तो सभी विधियॉ और नियामक सिद्धांत, वे तुम्हारे सेवक के रूप में कार्य करेंगे । वे अपने आप (अस्पष्ट) क्योंकि जैसे ही तुम श्री कृष्ण से जुड़ते हो, श्री कृष्ण ने कहा है, क्षिप्रम् भवति धर्मात्मा

क्षिप्रम् भवति धर्मात्मा
श्श्वच छांतिम् निगच्छति
कौन्तेय प्रतिजानीहि
न मे भक्त: प्रणश्यति
(भ गी ९।३१)

क्षिप्रम, बहुत जल्द। अपि चेत सु दुराचारो भजते माम अनन्य भाक साधुर एव स मंतव्य: (भ गी ९।३०)

यह मत सोचो कि ये युरोपि या अमेरिकि, वे म्लेछा और यावण हैं । यह अपराध है । क्योंकि वे साधु हैं। वे नहीं जानते ... उन्होंने श्री कृष्ण को स्वीकार किया है किसी भी बेकार की समझ के कि "यह यह भी अच्छा है, यह भी अच्छा है, यह भी अच्छा है।" वे सख्ती से अपने आध्यात्मिक गुरु के निर्देश का पालन कर रहे। कृष्णस तु भगवान स्वयम (श्री भ १।३।२८) एक छोटा बच्चा भी हमारे संग में श्यामसुंदर की बेटी, वह किसी के पास जाती है- वह केवल पांच साल की थी - वह पछती है "तुम श्री कृष्ण को जानते हो?" तो किसी नें कहा "नहीं, मैं नहीं जानता।" "ओह, भगवान।" वह उस तरह से प्रचार करती थी ।। तो वे आश्वस्त हैं, कृष्णस तू भगवान स्वयम । यह दृढ विश्वास अग्रणी गुणवत्ता है। फिर अन्य बातें अाऍगी । सर्वे विधि निषेधा: स्युर एतयोर एव किंकरा: यदि कोई केवल इस बात को मानता है कि कृष्णस तू भगवान स्वयम और उसे नहीं पसंद, सिद्धांत को नहीं मानता है कृषणैक शरणम, वर्णाश्रम धर्म । कृषणैक शरणं । यही अावश्यक है। माम एकम शरणम व्रज । तो यह करो । इस सिद्धांत का पालन करो, कि कृष्ण भगवान हैं । श्री कृष्ण पर-तत्त्व हैं, निरपेक्ष सत्य और श्री कृष्ण सर्वव्यापी हैं । मया ततम इदम सर्वम (भ गी ९।४) । श्री कृष्ण हर जगह हैँ । जगद अव्यक्त मूर्तिना । इस अव्यक्त । श्री कृष्ण की शक्ति हर जगह है।