HI/Prabhupada 0815 - तो भगवान साक्षी हैं । वे परिणाम दे रहे हैं: Difference between revisions

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भगवान, ह्दय में रहते हैं और जीव वह भी ह्दय में रहता है। वे दो पक्षियों की तरह रह रहे हैं एक पेड़ की शाखा पर बैठे हुए । ये वैदिक कथन हैं। एक ही पेड़ की शाखा पर दो पक्षि बैठे हैं। एक पक्षी पेड़ के फल खा रहा है, और दूसरा पक्षी केवल साक्षी। यह वैदिक कथन है। तो खाने वाला पक्षी हम है, जीव । हम कर्म करते हुए फल खा रहे हैं, और हमारे काम का परिणाम हम आनंद ले रहे हैं। लेकिन भगवान, परमात्मा, उन्हे पेड़ के फल खाने में कोई दिलचस्पी नहीं है। वह स्वयं संतुष्ट हैं । वे केवल देख रहे हैं कि कैसे तुम काम कर रहे हो । क्योंकि हम इस शरीर के साथ काम कर रहे हैं, और भगवान उसी ह्दय मे हैं । तो भगवान हैं, और हम जीव भी।
भगवान, हृदय में रहते हैं, और जीव वह भी हृदय में रहता है । वे दो पक्षियों की तरह रह रहे हैं एक पेड़ की शाखा पर बैठे हुए । ये वैदिक कथन हैं । एक ही पेड़ की शाखा पर दो पक्षी बैठे हैं । एक पक्षी पेड़ के फल खा रहा है, और दूसरा पक्षी केवल साक्षी है । यह वैदिक कथन है । तो खाने वाला पक्षी हम है, जीव । हम कर्म करते हुए फल खा रहे हैं, और हमारे काम का परिणाम का हम आनंद ले रहे हैं । लेकिन भगवान, परमात्मा, उन्हे पेड़ के फल खाने में कोई दिलचस्पी नहीं है । वह स्वयं संतुष्ट हैं । वे केवल देख रहे हैं कि कैसे तुम काम कर रहे हो । क्योंकि हम इस शरीर के साथ काम कर रहे हैं, और भगवान उसी हृदय मे हैं । तो भगवान हैं, और हम जीव भी ।


तो फिर वे वहाँ क्यों हैं ? क्योंकि वे मित्र हैं । सुहृदम् सर्व भूतानाम ([[Vanisource:BG 5.29|भ गी ५।२९]]) । यह वेदों में कहा गया है कि दो अनुकूल पक्षि भगवान हमारे वास्तविक मित्र हैं , शुभचिंतक मित्र, सुहृदम । वे केवल कोशिश कर रहे हैं कि हम अपना चेहरा उनकी तरफ मोड़े । जब तक वह एसा नहीं करता है, वह शरीर बदल रहा है, और भगवान भी उसके साथ जा रहे हैं - वे इतने अनुकूल हैं - केवल उसे उचित समय पर सलाह देने के लिए कि "तुम क्यों एस शरीर से दूसरा शरीर बदल रहे हो, एस शरीर से दूसरा ? तुम मेरे पास क्यों नहीं आते हो और शांति से आनंदित जीवन बिताते हो ? " भगवान का यही मिशन है। यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर भवति, तदात्मानम् सृजामि अहम ([[Vanisource:BG 4.7|भ गी ४।७]])
तो फिर वे वहाँ क्यों हैं ? क्योंकि वे मित्र हैं । सुहृदम सर्व भूतानाम ([[HI/BG 5.29|भ.गी. ५.२९]]) । यह वेदों में कहा गया है की दो अनुकूल पक्षी | भगवान हमारे वास्तविक मित्र हैं, शुभचिंतक मित्र, सुहृदम । वे केवल कोशिश कर रहे हैं की हम अपना चेहरा उनकी तरफ मोड़े । जब तक वह एसा नहीं करता है, वह शरीर बदल रहा है, और भगवान भी उसके साथ जा रहे हैं - वे इतने अनुकूल हैं - केवल उसे उचित समय पर सलाह देने के लिए की "तुम क्यों एक शरीर से दूसरा शरीर बदल रहे हो, एक शरीर से दूसरा ? तुम मेरे पास क्यों नहीं आते हो और शांति से आनंदित जीवन बिताते हो ?" भगवान का यही मिशन है ।


तो भगवान हमारे इतने महान मित्र हैं । वे हमेशा साक्षी, साक्षी हैं । मैं जैसी इच्छा कर रहा हूँ, भगवान हमें सुविधा दे रहे हैं: "ठीक है, तुम इस तरह का आनंद चाहते हो ? तुम यह शरीर लो और मजा करो ।" वास्तव में तुम मजा नहीं कर रहे हो । जब हमें भोजन का कोई विवेक नहीं रहता है, हम कुछ भी खा सकते हैं, जैसे सुअर । तो भगवान कहते हैं, "ठीक है, तुम एक सुअर का शरीर लो और तुम मल तक खा सकते हो । मैं तुम्हे सुविधा देता हूँ । " जैसी हमारी इच्छा, वैसे भगवान दे रहे हैं शरीर हमारे अानंद के लिए ।  
यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर भवति, तदात्मानम सृजामि अहम ([[HI/BG 4.7|भ.गी. ४.७]]) | तो भगवान हमारे इतने महान मित्र हैं । वे हमेशा साक्षी, साक्षी हैं । मैं जैसी इच्छा कर रहा हूँ, भगवान हमें सुविधा दे रहे हैं: "ठीक है, तुम इस तरह का आनंद चाहते हो ? तुम यह शरीर लो और मजा करो ।" वास्तव में तुम मजा नहीं कर रहे हो । जब हमें भोजन का कोई विवेक नहीं रहता है, हम कुछ भी खा सकते हैं, जैसे सुअर । तो भगवान कहते हैं, "ठीक है, तुम एक सुअर का शरीर लो, और तुम मल तक खा सकते हो । मैं तुम्हे सुविधा देता हूँ ।" जैसी हमारी इच्छा, वैसे भगवान दे रहे हैं शरीर हमारे अानंद के लिए ।  


:ईष्वर: सर्व भूतानाम  
:ईश्वर: सर्व भूतानाम  
:ह्देशे अर्जुन तिष्टथि
:हृदेशे अर्जुन तिष्ठति
:भ्रामयन सर्व भुतानि  
:भ्रामयन सर्व भुतानि  
:यंत्ररूढानि मायया  
:यंत्ररूढानि मायया  
:([[Vanisource:BG 18.61|भ गी १८।६१]])
:([[HI/BG 18.61|भ.गी. १८.६१]]) |


वे भौतिक प्रकृति को आदेश दे रहे हैं कि "यह व्यष्टि आत्मा इश्र तहह के शरीर आनंद लेना चाहती है, तो उसे दे दो । " तो भौतिक प्रकृति तुरंत शरीर तैयार करती है । यम् यम् वापि स्मरन लोके त्यजति अंते... ([[Vanisource:BG 8.6|भ गी ८।६]]) । तो मृत्यु के समय हमारी इच्छाओं के अनुसार ... मेरे मन में जुनून सवार है किसी प्रकार की इच्छा का, तुरंत एक ऐसी ही शरीर तैयार है। दैव नेत्रेण, उच्च कानून द्वारा, जीव एक विशेष माँ के गर्भ में प्रवेश करता है और वह विशेष रूप का शरीर विकसित करता है । फिर वह बाहर आता है और आनंद लेता है या भुगतता है। यह चल रहा है। भूत्वा भूत्वा प्रलीयते ([[Vanisource:BG 8.19|भ गी ८।१९]])  
वे भौतिक प्रकृति को आदेश दे रहे हैं की "यह व्यष्टि आत्मा इस तरह के शरीर आनंद लेना चाहती है, तो उसे दे दो ।" तो भौतिक प्रकृति तुरंत शरीर तैयार करती है । यम यम वापि स्मरन लोके त्यजति अंते... ([[HI/BG 8.6|भ गी ८।६]]) । तो मृत्यु के समय हमारी इच्छाओं के अनुसार... मेरे मन में जुनून सवार है किसी प्रकार की इच्छा का, तुरंत एक ऐसा ही शरीर तैयार है । दैव नेत्रेण, उच्च कानून द्वारा, जीव एक विशेष माँ के गर्भ में प्रवेश करता है, और वह विशेष रूप का शरीर विकसित करता है । फिर वह बाहर आता है और आनंद लेता है या भुगतता है । यह चल रहा है । भूत्वा भूत्वा प्रलीयते ([[HI/BG 8.19|भ.गी. ८.१९]]) |


तो भगवान साक्षी हैं । वे हमेशा हमारे साथ हैं । जो भी हम इच्छा कर रहे हैं, जो हम काम कर रहे हैं, वे साक्षी हैं और वे परिणाम दे रहे हैं । इसलिए श्री कृष्ण कहते हैं, क्षेत्र ज्ञम् चापि माम विद्धि ([[Vanisource:BG 13.3|भ गी १३।३]]) "मैं भी इस शरीर के निवासी में से एक हूँ। लेकिन तुम्हारे और मेरे बीच क्या फर्क है? तुम केवल अपने शरीर के बारे में जानते हो; मुझे हर किसी के शरीर के बारे में सब कुछ पता है। यही फर्क है। " क्षेत् ज्ञम् चापि माम विद्धि सर्व क्षेत्रषु भगवान एक छोटी सी चींटी की इच्छाऍ और गतिविधियॉ क्या है यह जानते हैं और वे जानते हैं कि ब्रह्मा की इच्छाऍ और गतिविधियॉ क्या हैं, सबसे बड़ा जीव इस ब्रह्मांड में, अौर सबसे छोटा-हर जगह भगवान। यह कहा जाता है, ईष्वर: सर्व भूतानाम ह्देशे अर्जुन तिष्टथी" ([[Vanisource:BG 18.61|भ गी १८।६१]]) । वे हर किसी के ह्दय में स्थित हैं ।" इसका मतलब यह नहीं है कि वे ब्राह्मण के दिल में रहते हैं अौर चींटी के दिल में नहीं । हर किसी के ह्दय में ।
तो भगवान साक्षी हैं । वे हमेशा हमारे साथ हैं । जो भी हम इच्छा कर रहे हैं, जो हम काम कर रहे हैं, वे साक्षी हैं और वे परिणाम दे रहे हैं । इसलिए कृष्ण कहते हैं, क्षेत्र ज्ञम चापि माम विद्धि ([[HI/BG 13.3|भ.गी. १३.३]]) | "मैं भी इस शरीर के निवासी में से एक हूँ । लेकिन तुम्हारे और मेरे बीच क्या फर्क है ? तुम केवल अपने शरीर के बारे में जानते हो; मुझे हर किसी के शरीर के बारे में सब कुछ पता है । यही फर्क है ।" क्षेत्र ज्ञम चापि माम विद्धि सर्व क्षेत्रषु | भगवान एक छोटी सी चींटी की इच्छाऍ और गतिविधियॉ क्या है यह जानते हैं, और वे जानते हैं कि ब्रह्मा की इच्छाऍ और गतिविधियॉ क्या हैं, सबसे बड़ा जीव इस ब्रह्मांड में, अौर सबसे छोटा - हर जगह भगवान । यह कहा जाता है, ईश्वर: सर्व भूतानाम हृदेशे अर्जुन तिष्ठति ([[HI/BG 18.61|भ.गी. १८.६१]]) । वे हर किसी के हृदय में स्थित हैं ।" इसका मतलब यह नहीं है कि वे ब्राह्मण के दिल में रहते हैं अौर चींटी के दिल में नहीं । हर किसी के हृदय में ।  
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751013 - Lecture BG 13.01-3 - Durban

भगवान, हृदय में रहते हैं, और जीव वह भी हृदय में रहता है । वे दो पक्षियों की तरह रह रहे हैं एक पेड़ की शाखा पर बैठे हुए । ये वैदिक कथन हैं । एक ही पेड़ की शाखा पर दो पक्षी बैठे हैं । एक पक्षी पेड़ के फल खा रहा है, और दूसरा पक्षी केवल साक्षी है । यह वैदिक कथन है । तो खाने वाला पक्षी हम है, जीव । हम कर्म करते हुए फल खा रहे हैं, और हमारे काम का परिणाम का हम आनंद ले रहे हैं । लेकिन भगवान, परमात्मा, उन्हे पेड़ के फल खाने में कोई दिलचस्पी नहीं है । वह स्वयं संतुष्ट हैं । वे केवल देख रहे हैं कि कैसे तुम काम कर रहे हो । क्योंकि हम इस शरीर के साथ काम कर रहे हैं, और भगवान उसी हृदय मे हैं । तो भगवान हैं, और हम जीव भी ।

तो फिर वे वहाँ क्यों हैं ? क्योंकि वे मित्र हैं । सुहृदम सर्व भूतानाम (भ.गी. ५.२९) । यह वेदों में कहा गया है की दो अनुकूल पक्षी | भगवान हमारे वास्तविक मित्र हैं, शुभचिंतक मित्र, सुहृदम । वे केवल कोशिश कर रहे हैं की हम अपना चेहरा उनकी तरफ मोड़े । जब तक वह एसा नहीं करता है, वह शरीर बदल रहा है, और भगवान भी उसके साथ जा रहे हैं - वे इतने अनुकूल हैं - केवल उसे उचित समय पर सलाह देने के लिए की "तुम क्यों एक शरीर से दूसरा शरीर बदल रहे हो, एक शरीर से दूसरा ? तुम मेरे पास क्यों नहीं आते हो और शांति से आनंदित जीवन बिताते हो ?" भगवान का यही मिशन है ।

यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर भवति, तदात्मानम सृजामि अहम (भ.गी. ४.७) | तो भगवान हमारे इतने महान मित्र हैं । वे हमेशा साक्षी, साक्षी हैं । मैं जैसी इच्छा कर रहा हूँ, भगवान हमें सुविधा दे रहे हैं: "ठीक है, तुम इस तरह का आनंद चाहते हो ? तुम यह शरीर लो और मजा करो ।" वास्तव में तुम मजा नहीं कर रहे हो । जब हमें भोजन का कोई विवेक नहीं रहता है, हम कुछ भी खा सकते हैं, जैसे सुअर । तो भगवान कहते हैं, "ठीक है, तुम एक सुअर का शरीर लो, और तुम मल तक खा सकते हो । मैं तुम्हे सुविधा देता हूँ ।" जैसी हमारी इच्छा, वैसे भगवान दे रहे हैं शरीर हमारे अानंद के लिए ।

ईश्वर: सर्व भूतानाम
हृदेशे अर्जुन तिष्ठति
भ्रामयन सर्व भुतानि
यंत्ररूढानि मायया
(भ.गी. १८.६१) |

वे भौतिक प्रकृति को आदेश दे रहे हैं की "यह व्यष्टि आत्मा इस तरह के शरीर आनंद लेना चाहती है, तो उसे दे दो ।" तो भौतिक प्रकृति तुरंत शरीर तैयार करती है । यम यम वापि स्मरन लोके त्यजति अंते... (भ गी ८।६) । तो मृत्यु के समय हमारी इच्छाओं के अनुसार... मेरे मन में जुनून सवार है किसी प्रकार की इच्छा का, तुरंत एक ऐसा ही शरीर तैयार है । दैव नेत्रेण, उच्च कानून द्वारा, जीव एक विशेष माँ के गर्भ में प्रवेश करता है, और वह विशेष रूप का शरीर विकसित करता है । फिर वह बाहर आता है और आनंद लेता है या भुगतता है । यह चल रहा है । भूत्वा भूत्वा प्रलीयते (भ.गी. ८.१९) |

तो भगवान साक्षी हैं । वे हमेशा हमारे साथ हैं । जो भी हम इच्छा कर रहे हैं, जो हम काम कर रहे हैं, वे साक्षी हैं और वे परिणाम दे रहे हैं । इसलिए कृष्ण कहते हैं, क्षेत्र ज्ञम चापि माम विद्धि (भ.गी. १३.३) | "मैं भी इस शरीर के निवासी में से एक हूँ । लेकिन तुम्हारे और मेरे बीच क्या फर्क है ? तुम केवल अपने शरीर के बारे में जानते हो; मुझे हर किसी के शरीर के बारे में सब कुछ पता है । यही फर्क है ।" क्षेत्र ज्ञम चापि माम विद्धि सर्व क्षेत्रषु | भगवान एक छोटी सी चींटी की इच्छाऍ और गतिविधियॉ क्या है यह जानते हैं, और वे जानते हैं कि ब्रह्मा की इच्छाऍ और गतिविधियॉ क्या हैं, सबसे बड़ा जीव इस ब्रह्मांड में, अौर सबसे छोटा - हर जगह भगवान । यह कहा जाता है, ईश्वर: सर्व भूतानाम हृदेशे अर्जुन तिष्ठति (भ.गी. १८.६१) । वे हर किसी के हृदय में स्थित हैं ।" इसका मतलब यह नहीं है कि वे ब्राह्मण के दिल में रहते हैं अौर चींटी के दिल में नहीं । हर किसी के हृदय में ।