HI/Prabhupada 0857 - कृत्रिम अावरण को हटाना होगा । फिर हम कृष्ण भावनामृत में अाते हैं: Difference between revisions
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प्रभुपाद: तो, जैसे, | प्रभुपाद: तो, जैसे, मेरी... मेरी अपनी चेतना है, और मैं दर्द और खुशी महसूस करता हूँ, तुम दर्द और खुशी महसूस करते हो । (तोड़) लेकिन दुर्भाग्य से मैं सोचता हूँ कि यह अमेरिकी दर्द और खुशी है, यह भारतीय दर्द और... दर्द और खुशी वही है । यह न तो अमेरिकी है और न ही अफ्रीकी । दर्द और खुशी वही है । तो जैसे ही यह चेतना की, मैं अमेरिकी दर्द, अमेरिकी खुशी महसूस कर रहा हूँ, जैसे ही यह खत्म हो जाती है, फिर हम मूल चेतना में आते हैं । क्योंकि चेतना अमेरिकी या अफ्रीकी नहीं हो सकती है । अगर मैं तुम्हें चुटकी काटता हूँ, जो तुम्हे दर्द होता है वही है जब मैं अफ्रीकी को चुटकी काटता हूँ । तो इसलिए चेतना वही है । कृत्रिम रूप से हम सोचते हैं कि अमेरिकी चेतना, अफ्रीकी चेतना । दरअसल यह स्थिति नहीं है । केवल इस गलतफहमी को दूर करना है । यही कहा जाता है चेतो दर्पण मार्जनम ([[Vanisource:CC Antya 20.12|चैतन्य चरितामृत अंत्य २०.१२]]) | यह एक तथ्य नहीं है ? | ||
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प्रभुपाद: केवल यह कृत्रिम है । और सब कुछ चेतना पर निर्भर करता | जब हम इन कृत्रिम पदवीयों से मुक्त हो जाते हैं... अमेरिकी चेतना, भारतीय चेतना, अफ्रीकी चेतना, ऐसी कोई बात नहीं है, यह कृत्रिम है । यहां तक की पक्षी और जानवर, वे भी चेतना महसूस करते हैं, दर्द और खुशी । जैसे जब बहुत गर्मी होती है, तुम कुछ दर्द महसूस करते हो । क्या यह अमेरिकी भारतीय या अफ्रीकी है ? भीषण गर्मी महसूस करता है कोई... (हंसते हुए) अगर तुम कहते हो कि मैं चिलचिलाती गर्मी अमेरिका की तरह महसूस कर रहा हूँ... | ||
प्रभुपाद (हिंदी में): आप क्या कहते हैं ? यह संभव है ? | |||
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प्रभुपाद: केवल यह कृत्रिम है । और सब कुछ चेतना पर निर्भर करता है । सब कुछ चेतना पर निर्भर करता है । इसलिए, कृष्ण भावनामृत मूल मानक चेतना है । | |||
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Latest revision as of 17:43, 1 October 2020
740327 - Conversation - Bombay
प्रभुपाद: तो, जैसे, मेरी... मेरी अपनी चेतना है, और मैं दर्द और खुशी महसूस करता हूँ, तुम दर्द और खुशी महसूस करते हो । (तोड़) लेकिन दुर्भाग्य से मैं सोचता हूँ कि यह अमेरिकी दर्द और खुशी है, यह भारतीय दर्द और... दर्द और खुशी वही है । यह न तो अमेरिकी है और न ही अफ्रीकी । दर्द और खुशी वही है । तो जैसे ही यह चेतना की, मैं अमेरिकी दर्द, अमेरिकी खुशी महसूस कर रहा हूँ, जैसे ही यह खत्म हो जाती है, फिर हम मूल चेतना में आते हैं । क्योंकि चेतना अमेरिकी या अफ्रीकी नहीं हो सकती है । अगर मैं तुम्हें चुटकी काटता हूँ, जो तुम्हे दर्द होता है वही है जब मैं अफ्रीकी को चुटकी काटता हूँ । तो इसलिए चेतना वही है । कृत्रिम रूप से हम सोचते हैं कि अमेरिकी चेतना, अफ्रीकी चेतना । दरअसल यह स्थिति नहीं है । केवल इस गलतफहमी को दूर करना है । यही कहा जाता है चेतो दर्पण मार्जनम (चैतन्य चरितामृत अंत्य २०.१२) | यह एक तथ्य नहीं है ?
भव भूति: ओह हाँ, श्रील प्रभुपाद, यह एक तथ्य है ।
प्रभुपाद: दर्द और खुशी की भावना, क्या यह अमेरिकी या भारतीय हो सकती है ?
भव-भूति: नहीं ।
प्रभुपाद: यह एक ही है । कृत्रिम रूप से हम इसे अमेरिकी दर्द या भारतीय दर्द सोच रहे हैं । यही कृत्रिम है । इस कृत्रिम अावरण को हटाना होगा । फिर हम कृष्ण भावनामृत में आते हैं । भावनाऍ, चेतना, अफ्रीकी, अमेरिकी या भारतीय नहीं है । चेतना वही है । जब तुम्हे भूख लगती है, क्या अमेरिकियों को एक अलग तरीके से भूख लगती है और अफ्रीकी को एक अलग तरह से ? तो भूख, भूख वही है । अब, अगर तुम कहते हैं यह अमेरिकी भूख है और यह भारतीय भूख है, यह कृत्रिम है । जो जब तुम उस कृत्रिम मंच पर नहीं जाते हो, वही कृष्ण भावनामृत है । यह नारद पंचरात्र में समझाया गया है,
- सर्वोपाधि विनिर्मुक्तम
- तत परत्वेन निर्मलम
- ऋषीकेण ऋषीकेश
- सेवनम भक्तिर उच्यते
- (चैतन्य चरितामृत मध्य १९.१७०) |
जब हम इन कृत्रिम पदवीयों से मुक्त हो जाते हैं... अमेरिकी चेतना, भारतीय चेतना, अफ्रीकी चेतना, ऐसी कोई बात नहीं है, यह कृत्रिम है । यहां तक की पक्षी और जानवर, वे भी चेतना महसूस करते हैं, दर्द और खुशी । जैसे जब बहुत गर्मी होती है, तुम कुछ दर्द महसूस करते हो । क्या यह अमेरिकी भारतीय या अफ्रीकी है ? भीषण गर्मी महसूस करता है कोई... (हंसते हुए) अगर तुम कहते हो कि मैं चिलचिलाती गर्मी अमेरिका की तरह महसूस कर रहा हूँ...
प्रभुपाद (हिंदी में): आप क्या कहते हैं ? यह संभव है ?
भारतीय महिला : नहीं, यह संभव नहीं है ।
प्रभुपाद: केवल यह कृत्रिम है । और सब कुछ चेतना पर निर्भर करता है । सब कुछ चेतना पर निर्भर करता है । इसलिए, कृष्ण भावनामृत मूल मानक चेतना है ।