HI/Prabhupada 0872 - यह जरूरी है कि मानव समाज चार वर्णो में बांटा जाना चाहिए: Difference between revisions
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तो वर्तमान समय में, व्यावहारिक रूप से कोई ब्राह्मण नहीं है, कोई क्षत्रिय नहीं है, कोई वैश्य नहीं है, केवल शूद्र, चौथे वर्ग के पुरुष । तो तुम कोई खुशी की उम्मीद नहीं कर सकते हो चौथे वर्ग के पुरुषों द्वारा निर्देशित । यह संभव नहीं | तो वर्तमान समय में, व्यावहारिक रूप से कोई ब्राह्मण नहीं है, कोई क्षत्रिय नहीं है, कोई वैश्य नहीं है, केवल शूद्र, चौथे वर्ग के पुरुष । तो तुम कोई खुशी की उम्मीद नहीं कर सकते हो चौथे वर्ग के पुरुषों द्वारा निर्देशित । यह संभव नहीं है । इसलिए पूरी दुनिया में अराजकता है । कोई खुश नहीं है । तो यह आवश्यक है की मानव समाज को चार वर्णो में बांटा जाना चाहिए । | ||
ब्राह्मण वर्ग मतलब है प्रथम श्रेणी के आदर्श पुरुष, तो उनके चरित्र, उनके व्यवहार को देखकर, दूसरे अनुसरण करने की कोशिश करेंगे । यद यद अाचरति श्रेष्ठ: ([[HI/BG 3.21|भ.गी. ३.२१]]) | तो यह कृष्ण भावनामृत आंदोलन मतलब हम कुछ प्रथम श्रेणी के पुरुष बनाने की कोशिश कर रहे हैं । यह कृष्ण भावनामृत है, यह आंदोलन । तो इसलिए हमारे ये नियम और विनियमन हैं: कोई अवैध यौन संबंध नहीं, कोई मांसाहार नहीं, कोई नशा नहीं, कोई जुअा नहीं । यह एक प्रथम श्रेणी के आदमी की प्रारंभिक योग्यता है । इसलिए हम कुछ पुरुषों को आदर्श प्रथम श्रेणी के पुरुष बनाने का प्रयास कर रहे हैं । लेकिन पूर्व में यह था । चातुर... | |||
अभी भी है । तुम मत सोचो कि सभी लोग एक ही बुद्धि के हैं या एक ही श्रेणी के । नहीं । अभी भी पुरुषों का बुद्धिमान वर्ग है । जैसे जो वैज्ञानिक या दार्शनिक हैं, धर्मनिष्ठ, वे प्रथम श्रेणी के पुरुष होने चाहिए । लेकिन दुर्भाग्य से, अब कोई भी पहचान नहीं सकता है कि कौन प्रथम श्रेणी और अाखरी श्रेणी का है । तो पूरे समाज के उचित प्रबंधन के लिए प्रथम श्रेणी, द्वितीय श्रेणी, तृतीय श्रेणी के पुरुष होने चाहिए । जैसे शरीर में विभिन्न भाग हैं: सिर, हाथ, पेट और पैर । यह स्वाभाविक है । तो सिर के बिना, अगर हमें केवल हाथ और पेट और पैर, यह एक मृत शरीर है । तो जब तक हम निर्देशित नहीं हैं, मानव समाज, प्रथम श्रेणी के पुरुषों द्वारा, पूरा समाज मृत समाज है । विभाजन होना चाहिए चातुर वर्ण्यम मया सृष्टम गुण कर्म ([[HI/BG 4.13|भ.गी. ४.१३]]) के अनुसार... जन्म से नहीं, लेकिन गुणवत्ता से । तो कोई भी प्रशिक्षित किया जा सकता है प्रथम श्रेणी, द्वितीय श्रेणी, जैसा वह चाहे । यही सभ्यता कही जाती है । | |||
कुछ लोगों को प्रथम श्रेणी के पुरुषों के रूप में प्रशिक्षित किया जाना चाहिए, कुछ लोगों को द्वितीय श्रेणी के पुरुषों के रूप में प्रशिक्षित किया जाना चाहिए, और कुछ लोगों को तीसरे वर्ग के पुरुषों के रूप में प्रशिक्षित किया जाना चाहिए, और बाकियों को, जिन्हे प्रशिक्षित नहीं किया जा सकता, वे अन्य तीन उच्च वर्ग की सहायता कर सकते हैं । यही शूद्र कहा जाता है । तो... | |||
(तोड़) ...यह संभव नहीं है । एक इंसान, अगर वह ठीक तरह से प्रशिक्षित किया जाता है, अगर वह शिक्षा लेने को तैयार है, वह प्रथम श्रेणी का बनाया जा सकता है । कोई बात नहीं । जन्म से कोई एक निम्न वर्ग में पैदा हुअा हो, कोई बात नहीं है । लेकिन प्रशिक्षण के द्वारा, वह प्रथम श्रेणी का बन सकता है । यही भगवद गीता की आज्ञा है । | |||
:माम हि पर्थ व्यपाश्रित्य | |||
:ये अपि स्यु: पाप योनय: | |||
:स्त्रिय: शूद्रा: तथा वैश्य ते | |||
:अपि यान्ति पराम गतिम | |||
:([[HI/BG 9.32|भ.गी. ९.३२]]) | | |||
पराम गतिम । पराम गतिम का मतलब है वापस घर जाना, भगवान के धाम - वही हमारा असली घर है, आध्यात्मिक दुनिया - और पूरे ज्ञाने के साथ आनंदपूर्वक, सदा वहाँ रहना । यही हमारी असली स्थिति है । तो यहाँ हम भौतिक आनंद के लिए इस भौतिक दुनिया में आए हैं । और जितना अधिक हम भौतिक आनंद के लिए योजना बनाते हैं, उतना अधिक हम उलझते जा रहे हैं । यह हम नहीं जानते । वे सोच रहै हैं कि भौतिक इन्द्रिय आनंद जीवन का उद्देश्य है । नहीं, यह जीवन का उद्देश्य नहीं है । वो अधिक से अधिक उलझने का रास्ता है । | |||
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Latest revision as of 17:53, 1 October 2020
750519 - Lecture SB - Melbourne
तो वर्तमान समय में, व्यावहारिक रूप से कोई ब्राह्मण नहीं है, कोई क्षत्रिय नहीं है, कोई वैश्य नहीं है, केवल शूद्र, चौथे वर्ग के पुरुष । तो तुम कोई खुशी की उम्मीद नहीं कर सकते हो चौथे वर्ग के पुरुषों द्वारा निर्देशित । यह संभव नहीं है । इसलिए पूरी दुनिया में अराजकता है । कोई खुश नहीं है । तो यह आवश्यक है की मानव समाज को चार वर्णो में बांटा जाना चाहिए ।
ब्राह्मण वर्ग मतलब है प्रथम श्रेणी के आदर्श पुरुष, तो उनके चरित्र, उनके व्यवहार को देखकर, दूसरे अनुसरण करने की कोशिश करेंगे । यद यद अाचरति श्रेष्ठ: (भ.गी. ३.२१) | तो यह कृष्ण भावनामृत आंदोलन मतलब हम कुछ प्रथम श्रेणी के पुरुष बनाने की कोशिश कर रहे हैं । यह कृष्ण भावनामृत है, यह आंदोलन । तो इसलिए हमारे ये नियम और विनियमन हैं: कोई अवैध यौन संबंध नहीं, कोई मांसाहार नहीं, कोई नशा नहीं, कोई जुअा नहीं । यह एक प्रथम श्रेणी के आदमी की प्रारंभिक योग्यता है । इसलिए हम कुछ पुरुषों को आदर्श प्रथम श्रेणी के पुरुष बनाने का प्रयास कर रहे हैं । लेकिन पूर्व में यह था । चातुर...
अभी भी है । तुम मत सोचो कि सभी लोग एक ही बुद्धि के हैं या एक ही श्रेणी के । नहीं । अभी भी पुरुषों का बुद्धिमान वर्ग है । जैसे जो वैज्ञानिक या दार्शनिक हैं, धर्मनिष्ठ, वे प्रथम श्रेणी के पुरुष होने चाहिए । लेकिन दुर्भाग्य से, अब कोई भी पहचान नहीं सकता है कि कौन प्रथम श्रेणी और अाखरी श्रेणी का है । तो पूरे समाज के उचित प्रबंधन के लिए प्रथम श्रेणी, द्वितीय श्रेणी, तृतीय श्रेणी के पुरुष होने चाहिए । जैसे शरीर में विभिन्न भाग हैं: सिर, हाथ, पेट और पैर । यह स्वाभाविक है । तो सिर के बिना, अगर हमें केवल हाथ और पेट और पैर, यह एक मृत शरीर है । तो जब तक हम निर्देशित नहीं हैं, मानव समाज, प्रथम श्रेणी के पुरुषों द्वारा, पूरा समाज मृत समाज है । विभाजन होना चाहिए चातुर वर्ण्यम मया सृष्टम गुण कर्म (भ.गी. ४.१३) के अनुसार... जन्म से नहीं, लेकिन गुणवत्ता से । तो कोई भी प्रशिक्षित किया जा सकता है प्रथम श्रेणी, द्वितीय श्रेणी, जैसा वह चाहे । यही सभ्यता कही जाती है ।
कुछ लोगों को प्रथम श्रेणी के पुरुषों के रूप में प्रशिक्षित किया जाना चाहिए, कुछ लोगों को द्वितीय श्रेणी के पुरुषों के रूप में प्रशिक्षित किया जाना चाहिए, और कुछ लोगों को तीसरे वर्ग के पुरुषों के रूप में प्रशिक्षित किया जाना चाहिए, और बाकियों को, जिन्हे प्रशिक्षित नहीं किया जा सकता, वे अन्य तीन उच्च वर्ग की सहायता कर सकते हैं । यही शूद्र कहा जाता है । तो...
(तोड़) ...यह संभव नहीं है । एक इंसान, अगर वह ठीक तरह से प्रशिक्षित किया जाता है, अगर वह शिक्षा लेने को तैयार है, वह प्रथम श्रेणी का बनाया जा सकता है । कोई बात नहीं । जन्म से कोई एक निम्न वर्ग में पैदा हुअा हो, कोई बात नहीं है । लेकिन प्रशिक्षण के द्वारा, वह प्रथम श्रेणी का बन सकता है । यही भगवद गीता की आज्ञा है ।
- माम हि पर्थ व्यपाश्रित्य
- ये अपि स्यु: पाप योनय:
- स्त्रिय: शूद्रा: तथा वैश्य ते
- अपि यान्ति पराम गतिम
- (भ.गी. ९.३२) |
पराम गतिम । पराम गतिम का मतलब है वापस घर जाना, भगवान के धाम - वही हमारा असली घर है, आध्यात्मिक दुनिया - और पूरे ज्ञाने के साथ आनंदपूर्वक, सदा वहाँ रहना । यही हमारी असली स्थिति है । तो यहाँ हम भौतिक आनंद के लिए इस भौतिक दुनिया में आए हैं । और जितना अधिक हम भौतिक आनंद के लिए योजना बनाते हैं, उतना अधिक हम उलझते जा रहे हैं । यह हम नहीं जानते । वे सोच रहै हैं कि भौतिक इन्द्रिय आनंद जीवन का उद्देश्य है । नहीं, यह जीवन का उद्देश्य नहीं है । वो अधिक से अधिक उलझने का रास्ता है ।