HI/Prabhupada 0874 - जो आध्यात्मिक मंच पर उन्नत हैं, वह प्रसन्नात्मा है । वह खुश है: Difference between revisions
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तो विद्या-विनय, एक सज्जन, बहुत विद्वान विद्या-विनय-संपन्ने ब्रह्मणे गवि और एक गाय, और हस्ती, एक हाथी, विद्या-विनय-संपन्ने ब्रह्मणे गवि हस्तिनि और शुनि - शुनि का मतलब है कुत्ता - और श्वपाक ... श्वपाक का मतलब है एक | तो विद्या-विनय, एक सज्जन, बहुत विद्वान, विद्या-विनय-संपन्ने ब्रह्मणे गवि और एक गाय, और हस्ती, एक हाथी, विद्या-विनय-संपन्ने ब्रह्मणे गवि हस्तिनि और शुनि - शुनि का मतलब है कुत्ता - और श्वपाक... श्वपाक का मतलब है एक कुकुर-भक्षक । बहुत सारे लोग हैं, वे मांस के विभिन्न प्रकार खाना पसंद करते हैं । लेकिन जो कुत्ते का मांस खाता है, वह बहुत ही निम्न वर्ग का माना जाता है। तो शुनि चैव श्व पाके च पंड़िता: सम दर्शिन: ([[HI/BG 5.18|भ.गी. ५.१८]]) । जो पंडित है, विद्वान, वह सबको देखता है, उन्हें, एक ही स्तर पर । वह एक ही स्तर क्या है ? आत्मा । वह बाहरी शरीर को नहीं देखता है । यही कहा जाता है ब्रह्म-दर्शिन: । पंड़िता: सम दर्शिन: । अौर अगर कोई उस स्तर पर पहुँच जाता है, | ||
:ब्रह्म भुत: प्रसन्नात्मा | |||
:न शोचति न कांश्चति । | |||
:सम: सर्वेषु भूतेषु | |||
:मद भक्तिम लभते पराम | |||
:([[HI/BG 18.54|भ.गी. १८.५४]]) । | |||
जब किसी को आत्म बोध होता है कि वह यह शरीर नहीं है, वह आत्मा है, ब्रह्म-भूत: तो लक्षण क्या हैं ? अब, प्रसन्नात्मा: वह तुरंत बहुत हंसमुख हो जाता है । | |||
जब तक हम भौतिक जीवन की शारीरिक अवधारणा में तल्लीन हैं, हमेशा चिंता होगी । यह परीक्षण है । जो चिंता में है, मतलब है कि वह भौतिकता में स्थित है । और आध्यात्मिक मंच में जो उन्नत है, वह प्रसन्नात्मा है । वह हंसमुख है । प्रसन्नात्मा का अर्थ क्या है ? न शोचति न कांश्चति: वह कुछ भी नहीं चाहता है, और यदि उसे कुछ मिलता है, अगर कुछ खो जाता है, तो वह उसके लिए नहीं रोता है । बस इतना ही । यहाँ भौतिक जगत में हम उत्कंठित हैं उसके लिए जो हमारे पास नहीं है । अौर अगर हमारे पास कुछ है, अगर वह खो जाता है, तो हम रोते हैं । दो काम हैं: शोचन अौर आकांक्षा । हर कोई बहुत बड़ा आदमी बनने की कोशिश कर रहा है । यही आकांक्षा है । अौर अगर वह अपनी चीज़ खो देता है, फिर वह रोता है । तो ये दो बातें खत्म हो जाएँगी अगर तुम स्थित हो जाते हो आध्यात्मिक मंच पर । | |||
:ब्रह्म-भूत: प्रसन्नात्मा | |||
:न शोचति न कांश्चति | |||
:सम: सर्वेषु भुतेषु... | |||
:([[HI/BG 18.54|भ.गी. १८.५४]]) | |||
जब तक आत्मिक बोध नहीं होता, वह समान रूप से हर किसी को नहीं देख सकता । फिर, सम: सर्वेषु भूतेषु मद भक्तिम लभते पराम । फिर वह प्रभु का असली भक्त बन जाता है, ब्रह्म भूत: मंच को पार करने के बाद । | |||
तो यह भक्ति मार्ग इतना आसान नहीं है । लेकिन, चैतन्य महाप्रभु की दया से हमने आपके देश में अर्चाविग्रह स्थापित किए हैं । तुम बहुत भाग्यशाली हो कि चैतन्य महाप्रभु तुम्हारे देश में अाए है तुम्हे सिखाने के लिए कि कैसे तुम सभी चिंताओं से मुक्त हो सकते हो । यह चैतन्य महाप्रभु का मिशन है । हर कोई चिंता से भरा है, लेकिन हर कोई सभी चिंताओं से मुक्त हो सकता है, अगर वह श्री चैतन्य महाप्रभु द्वारा बनाए पथ का अनुसरण करता है । और श्री चैतन्य महाप्रभु का अनुदेश क्या है ? बहुत आसान है । | |||
:हरेर नाम हरेर नाम हरेर नाम एव केवलम | |||
:कलौ नास्ति एव नास्ति एव नास्ति एव गतिर अन्यथा | |||
:([[Vanisource:CC Adi 17.21|चैतन्य चरितामृत अादि १७.२१]]) | | |||
यह चैतन्य महाप्रभु का व्यक्तिगत संस्करण नहीं है । यह शास्त्र में है, वैदिक शास्त्र, बृहन-नारदीय- पुराण में है । यह निर्देश है । लोग इस युग में गिरे हुए हैं, तो विधि भी बहुत सरल बताई गई है । वे बहुत गंभीर तपस्या का पालन नहीं कर सकते हैं । यह संभव नहीं है । उन्हें कहा गया है भगवान के पवित्र नाम का जप करना । बस इतना ही । कोई भी कर सकता है । यह बिल्कुल भी मुश्किल नहीं है । फिर अगर तुम कहते हो कि, "तुम भारत से हो । तुम्हारा चैतन्य भारतीय है, और उन्होंने हरे कृष्ण की सिफ़ारिश की है । क्यों मैं मंत्र जपूँ ? मेरा अपना भगवान है ।" ठीक है, अगर तुम्हारा खुद का भगवान है, फिर तुम उनका नाम जपो । | |||
चैतन्य महाप्रभु नहीं कहते हैं कि तुम बस कृष्ण का नाम जपो । अगर तुम्हारा भगवान के साथ कोई रिश्ता है, अौर अगर तुम उनका नाम और पता जानते हो, (हँसी) तो तुम उनका नाम जप कर सकते हो । दुर्भाग्य से, तुम नहीं जानते कि भगवान कौन है; न तुम उनका पता जानते हो, न ही उनकी गतिविधियों को । तो यह कृष्ण को ले लो । यहाँ एक ठोस नाम है । और हम तुम्हें उनका पता देते हैं, उनके पिता का नाम, उनकी माँ का नाम, सब कुछ । तो अगर तुम्हारे पास खुद के भगवान का नाम है, चैतन्य महाप्रभु ने कहा है कि तुम जाप कर सकते हो । कोई नाम है किसी के पास, भगवान का ? कोई नहीं जानता । | |||
भक्त: जेहोवा । | |||
प्रभुपाद: जेहोवा । ठीक है, तुम जेहोवा मंत्र का जाप करो । तो यह चैतन्य महाप्रभु की सिफ़ारिश है, अगर तुम्हें लगता है कि यह भगवान का नाम है, तो तुम जपो । नामनाम अकारि बहुधा निज सर्व शक्ति: तत्रार्पिता नियमित: स्मरणे न काल: ([[Vanisource:CC Antya 20.16|चैतन्य चरितामृत अंत्य २०.१६, शिक्षाष्टकम २]]) । यह चैतन्य महाप्रभु का अनुदेश है, कि नाम, भगवान का पवित्र नाम भगवान के समान है । | |||
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Latest revision as of 17:53, 1 October 2020
750519 - Lecture SB - Melbourne
तो विद्या-विनय, एक सज्जन, बहुत विद्वान, विद्या-विनय-संपन्ने ब्रह्मणे गवि और एक गाय, और हस्ती, एक हाथी, विद्या-विनय-संपन्ने ब्रह्मणे गवि हस्तिनि और शुनि - शुनि का मतलब है कुत्ता - और श्वपाक... श्वपाक का मतलब है एक कुकुर-भक्षक । बहुत सारे लोग हैं, वे मांस के विभिन्न प्रकार खाना पसंद करते हैं । लेकिन जो कुत्ते का मांस खाता है, वह बहुत ही निम्न वर्ग का माना जाता है। तो शुनि चैव श्व पाके च पंड़िता: सम दर्शिन: (भ.गी. ५.१८) । जो पंडित है, विद्वान, वह सबको देखता है, उन्हें, एक ही स्तर पर । वह एक ही स्तर क्या है ? आत्मा । वह बाहरी शरीर को नहीं देखता है । यही कहा जाता है ब्रह्म-दर्शिन: । पंड़िता: सम दर्शिन: । अौर अगर कोई उस स्तर पर पहुँच जाता है,
- ब्रह्म भुत: प्रसन्नात्मा
- न शोचति न कांश्चति ।
- सम: सर्वेषु भूतेषु
- मद भक्तिम लभते पराम
- (भ.गी. १८.५४) ।
जब किसी को आत्म बोध होता है कि वह यह शरीर नहीं है, वह आत्मा है, ब्रह्म-भूत: तो लक्षण क्या हैं ? अब, प्रसन्नात्मा: वह तुरंत बहुत हंसमुख हो जाता है ।
जब तक हम भौतिक जीवन की शारीरिक अवधारणा में तल्लीन हैं, हमेशा चिंता होगी । यह परीक्षण है । जो चिंता में है, मतलब है कि वह भौतिकता में स्थित है । और आध्यात्मिक मंच में जो उन्नत है, वह प्रसन्नात्मा है । वह हंसमुख है । प्रसन्नात्मा का अर्थ क्या है ? न शोचति न कांश्चति: वह कुछ भी नहीं चाहता है, और यदि उसे कुछ मिलता है, अगर कुछ खो जाता है, तो वह उसके लिए नहीं रोता है । बस इतना ही । यहाँ भौतिक जगत में हम उत्कंठित हैं उसके लिए जो हमारे पास नहीं है । अौर अगर हमारे पास कुछ है, अगर वह खो जाता है, तो हम रोते हैं । दो काम हैं: शोचन अौर आकांक्षा । हर कोई बहुत बड़ा आदमी बनने की कोशिश कर रहा है । यही आकांक्षा है । अौर अगर वह अपनी चीज़ खो देता है, फिर वह रोता है । तो ये दो बातें खत्म हो जाएँगी अगर तुम स्थित हो जाते हो आध्यात्मिक मंच पर ।
- ब्रह्म-भूत: प्रसन्नात्मा
- न शोचति न कांश्चति
- सम: सर्वेषु भुतेषु...
- (भ.गी. १८.५४)
जब तक आत्मिक बोध नहीं होता, वह समान रूप से हर किसी को नहीं देख सकता । फिर, सम: सर्वेषु भूतेषु मद भक्तिम लभते पराम । फिर वह प्रभु का असली भक्त बन जाता है, ब्रह्म भूत: मंच को पार करने के बाद ।
तो यह भक्ति मार्ग इतना आसान नहीं है । लेकिन, चैतन्य महाप्रभु की दया से हमने आपके देश में अर्चाविग्रह स्थापित किए हैं । तुम बहुत भाग्यशाली हो कि चैतन्य महाप्रभु तुम्हारे देश में अाए है तुम्हे सिखाने के लिए कि कैसे तुम सभी चिंताओं से मुक्त हो सकते हो । यह चैतन्य महाप्रभु का मिशन है । हर कोई चिंता से भरा है, लेकिन हर कोई सभी चिंताओं से मुक्त हो सकता है, अगर वह श्री चैतन्य महाप्रभु द्वारा बनाए पथ का अनुसरण करता है । और श्री चैतन्य महाप्रभु का अनुदेश क्या है ? बहुत आसान है ।
- हरेर नाम हरेर नाम हरेर नाम एव केवलम
- कलौ नास्ति एव नास्ति एव नास्ति एव गतिर अन्यथा
- (चैतन्य चरितामृत अादि १७.२१) |
यह चैतन्य महाप्रभु का व्यक्तिगत संस्करण नहीं है । यह शास्त्र में है, वैदिक शास्त्र, बृहन-नारदीय- पुराण में है । यह निर्देश है । लोग इस युग में गिरे हुए हैं, तो विधि भी बहुत सरल बताई गई है । वे बहुत गंभीर तपस्या का पालन नहीं कर सकते हैं । यह संभव नहीं है । उन्हें कहा गया है भगवान के पवित्र नाम का जप करना । बस इतना ही । कोई भी कर सकता है । यह बिल्कुल भी मुश्किल नहीं है । फिर अगर तुम कहते हो कि, "तुम भारत से हो । तुम्हारा चैतन्य भारतीय है, और उन्होंने हरे कृष्ण की सिफ़ारिश की है । क्यों मैं मंत्र जपूँ ? मेरा अपना भगवान है ।" ठीक है, अगर तुम्हारा खुद का भगवान है, फिर तुम उनका नाम जपो ।
चैतन्य महाप्रभु नहीं कहते हैं कि तुम बस कृष्ण का नाम जपो । अगर तुम्हारा भगवान के साथ कोई रिश्ता है, अौर अगर तुम उनका नाम और पता जानते हो, (हँसी) तो तुम उनका नाम जप कर सकते हो । दुर्भाग्य से, तुम नहीं जानते कि भगवान कौन है; न तुम उनका पता जानते हो, न ही उनकी गतिविधियों को । तो यह कृष्ण को ले लो । यहाँ एक ठोस नाम है । और हम तुम्हें उनका पता देते हैं, उनके पिता का नाम, उनकी माँ का नाम, सब कुछ । तो अगर तुम्हारे पास खुद के भगवान का नाम है, चैतन्य महाप्रभु ने कहा है कि तुम जाप कर सकते हो । कोई नाम है किसी के पास, भगवान का ? कोई नहीं जानता ।
भक्त: जेहोवा ।
प्रभुपाद: जेहोवा । ठीक है, तुम जेहोवा मंत्र का जाप करो । तो यह चैतन्य महाप्रभु की सिफ़ारिश है, अगर तुम्हें लगता है कि यह भगवान का नाम है, तो तुम जपो । नामनाम अकारि बहुधा निज सर्व शक्ति: तत्रार्पिता नियमित: स्मरणे न काल: (चैतन्य चरितामृत अंत्य २०.१६, शिक्षाष्टकम २) । यह चैतन्य महाप्रभु का अनुदेश है, कि नाम, भगवान का पवित्र नाम भगवान के समान है ।