HI/Prabhupada 0887 - वेद का मतलब है ज्ञान, और अन्त का मतलब अंतिम चरण, या अंत: Difference between revisions

 
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हम प्रकृति के नियम के तहत हैं। तुम नहीं कह सकते हो कि तुम स्वतंत्र हो । प्रकृति का कानून बहुत सख्त है । प्रकृते: क्रियमाणानि गुणै: कर्माणि सर्वश: (भ गी ३।२७) । प्रकृति का नियम ... जैसे आग की तरह । अगर तुम आग को स्पर्श करते हो, यह जला देगा। अौर बच्चा भी, जो मासूम है, अगर बच्चा आग को छूता है, वह जला देगा । कोई बहाना नहीं चलेगा । तुम नहीं कह सकते हो कि, " बच्चा मासूम है । उसे आग को छूने का प्रभाव नहीं मालूम है, तो उसे माफ किया जाना चाहिए। " नहीं । अज्ञान कोई बहाना नहीं है । विशेष रूप से ... यह राज्य के कानून । तुम यह नहीं कह सकते ... यदि तुमने कुछ आपराध किया है । आप तुम बिनती करते हो, "मेरे प्रभु, मुझे पता नहीं था कि ... यह कार्य करने के बाद, मुझे कारावास भुगतना पड़ेगा । तो आप मुझे माफ करो," नहीं, कोई माफी नहीं मिलेगी । तुम्हे मालूम हो या न हो कानून, अगर तुमने एसा कार्य किया है तो तुम्हे भुगतना होगा । यह चल रहा है । तो हम अगले जन्म में विश्वास नहीं करते हैं केवल इस परिणाम से बचने के लिए । लेकिन यह हमें माफ नहीं करेगा। हमें दूसरे शरीर को स्वीकार करना ही होगा। अन्यथा कैसे इतने भिन्न प्रकार के शरीर हैं ? विवरण क्या है ? क्यों अलग अलग रूप शरीर के हैं, शरीर के विभिन्न चरण, शरीर के विभिन्न मानक ? यही प्रकृति का नियम है । इसलिए यह मानव जीवन का ठीक से उपयोग किया जाना चाहिए, केवल बिल्लियों और कुत्तों की तरह इन्द्रिय संतुष्टि में नहीं लगना चाहिए । यह बहुत जिम्मेदार जीवन नहीं है । जिम्मेदार जीवन है कि, "मुझे बिल्लियों और कुत्तों से बेहतर जीवन मिला है और मुझे बिल्लियों और कुत्तों से अधिक बुद्धि मिली है। अगर मैं केवल जीवन के चार शारीरिक आवश्यकताओं के लिए इसका उपयोग करता हूँ ... " जीवन की चार शारीरिक जरूरतों का मतलब है हमें कुछ खाने की आवश्यकता होती है । बिल्लियों, कुत्तों, मनुष्य या उच्च न्यायालय के न्यायाधीश या कोई भी, उन्हें कुछ खाने की आवश्यकता होती है। उन्हें भी सोने की अावश्यक्ता है, घर । तो यह है.... बिल्लि और कुत्ते घर के बिना सो सकते हैं, लेकिन नींद की आवश्यकता तो है। यह तथ्य है। भोजन आवश्यक है, यह तथ्य है । और यौन जीवन, यह भी तथ्य है । और रक्षा, यह भी तथ्य है । लेकिन ये बातें बिल्लियों और कुत्तों और मनुष्य, इंसान के बीच समान है । तो इंसान की खास विशेषता क्या है? इंसान की विशेषता यह है कि, एक मनुष्य विचार कर सकता है, कि "मुझे यह अच्छा अमेरिकी या ऑस्ट्रेलियाई या भारतीय शरीर मिला है। तो मुझे अगला क्या मिलेगा ? किस तरह का शरीर ? " यही मानव बुद्धि है। एक बिल्ली और कुत्ता इस तरह है से नहीं सोच सकते हैं । इसलिए हमारा काम होना चाहिए " अब, प्रकृति के तहत, मैं विकासवादी प्रक्रिया के द्वारा जीवन के इस रूप में आया हूँ । अब मेरे पास अच्छी बुद्धि है । मैं इसका कैसे उपयोग करूँ ? " यह समुचित उपयोग का संकेत दिया गया है वेदांत दर्शन में । वेदांत दर्शन, शायद तुमने नाम सुना है। वेद का मतलब है ज्ञान, और अंत का मतलब है अंतिम चरण, या अंत । हर चीज़ का अंत है। तो तुम्हे शिक्षित किया जा रहा है। तुम शिक्षा ले रहे हो । यह समाप्त होगा कहां ? यही वेदांत कहा जाता है । अंतिम बिंदु जहॉ है । तो वेदांत दर्शन कहता है ... यही वेदांत दर्शन है, परम ज्ञान । परम ज्ञान, यह भगवद गीता में स्पष्ट किया गया है, क्या है यह परम ज्ञान । वेदैश च सर्वैर अहम एव वेद्यम ( भ गी १५।१५) तुम ज्ञान का अनुशीलन कर रहे हो । "ज्ञान का परम लक्ष्य ," श्री कृष्ण कहते हैं, "मुझे समझना है।" वेदैश च सर्वैर अहम एव वेद्यम । पूरा ज्ञान भगवान को समझने के लिए है । यही ज्ञान का अंत है । प्रगतिशील ज्ञान द्वारा तुम प्रगति कर सकते हो, लेकिन जब तक तुम भगवान क्या हैं यह नहीं समझते हो, तब तक तुम्हारा ज्ञान अपूर्ण है । यही वेदांत कहा जाता है । अथातो ब्रह्म जिज्ञासा । मनुष्य जीवन, अच्छी सुविधा, बुद्धि ... जैसे ऑस्ट्रेलिया अविकसित था। जब युरोपी यहां आए, यह बहुत विकसित हो गया है, संसाधनों के साथ, क्योंकि बुद्धि का उपयोग किया गया है । इसी तरह, अमेरिका, कई अन्य स्थान । तो यह बुद्धि का उपयोग किया जाना चाहिए । लेकिन अगर हम केवल एक ही उद्देश्य के लिए इस बुद्धि का उपयोग करते हैं जैसे कि बिल्लियॉ और कुत्ते लगे हुए हैं, तो यह उचित उपयोग नहीं है। समुचित उपयोग है वेदांत । अथातो ब्रह्म जिज्ञासा । "अब तुम्हे ब्रह्म के बारे में पूछताछ करनी चाहिए, निरपेक्ष ।" यही बुद्धिमत्ता है ।  
हम प्रकृति के नियम के तहत हैं । तुम नहीं कह सकते हो कि तुम स्वतंत्र हो । प्रकृति का कानून बहुत सख्त है । प्रकृते: क्रियमाणानि गुणै: कर्माणि सर्वश: ([[Vanisource: BG 3.27 (1972) |.गी. ३.२७]]) । प्रकृति का नियम... जैसे आग की तरह । अगर तुम आग को स्पर्श करते हो, यह जला देगा । अौर बच्चा भी, जो मासूम है, अगर बच्चा आग को छूता है, वह जला देगा । कोई बहाना नहीं चलेगा । तुम नहीं कह सकते हो कि, "बच्चा मासूम है । उसे आग को छूने का प्रभाव नहीं मालूम है, तो उसे माफ किया जाना चाहिए ।" नहीं । अज्ञान कोई बहाना नहीं है । विशेष रूप से... यह राज्य के कानून ।  
 
तुम यह नहीं कह सकते... यदि तुमने कुछ आपराध किया है । अगर तुम बिनती करते हो, "मेरे प्रभु, मुझे पता नहीं था कि... यह कार्य करने के बाद, मुझे कारावास भुगतना पड़ेगा । तो आप मुझे माफ करो," नहीं, कोई माफी नहीं मिलेगी । तुम्हे मालूम हो या न हो कानून, अगर तुमने एसा कार्य किया है तो तुम्हे भुगतना होगा । यह चल रहा है । तो हम अगले जन्म में विश्वास नहीं करते हैं केवल इस परिणाम से बचने के लिए । लेकिन यह हमें माफ नहीं करेगा । हमें दूसरे शरीर को स्वीकार करना ही होगा । अन्यथा कैसे इतने भिन्न प्रकार के शरीर हैं ? विवरण क्या है ? क्यों अलग अलग रूप शरीर के हैं, शरीर के विभिन्न चरण, शरीर के विभिन्न मानक ? यही प्रकृति का नियम है । इसलिए यह मानव जीवन का ठीक से उपयोग किया जाना चाहिए, केवल बिल्लियों और कुत्तों की तरह इन्द्रिय संतुष्टि में नहीं लगना चाहिए । यह बहुत जिम्मेदार जीवन नहीं है ।  
 
जिम्मेदार जीवन है कि, "मुझे बिल्लियों और कुत्तों से बेहतर जीवन मिला है, और मुझे बिल्लियों और कुत्तों से अधिक बुद्धि मिली है । अगर मैं केवल जीवन की चार शारीरिक आवश्यकताओं के लिए इसका उपयोग करता हूँ... " जीवन की चार शारीरिक जरूरतों का मतलब है हमें कुछ खाने की आवश्यकता होती है । बिल्लि, कुत्ते, मनुष्य या उच्च न्यायालय के न्यायाधीश या कोई भी, उन्हें कुछ खाने की आवश्यकता होती है । उन्हें भी सोने की अावश्यक्ता है, घर । तो यह है... बिल्लि और कुत्ते घर के बिना सो सकते हैं, लेकिन नींद की आवश्यकता तो है । यह तथ्य है । भोजन आवश्यक है, यह तथ्य है । और यौन जीवन, यह भी तथ्य है । और रक्षा, यह भी तथ्य है । लेकिन ये बातें बिल्लियों और कुत्तों और मनुष्य, इंसान के बीच समान है ।  
 
तो इंसान की खास विशेषता क्या है ? इंसान की विशेषता यह है कि, एक मनुष्य विचार कर सकता है, कि "मुझे यह अच्छा अमेरिकी या ऑस्ट्रेलियाई या भारतीय शरीर मिला है । तो मुझे अगला क्या मिलेगा ? किस तरह का शरीर ?" यही मानव बुद्धि है । एक बिल्ली और कुत्ता इस तरह है से नहीं सोच सकता । इसलिए हमारा काम होना चाहिए "अब, प्रकृति के तहत, मैं उत्क्रांति की प्रक्रिया के द्वारा जीवन के इस रूप में आया हूँ । अब मेरे पास अच्छी बुद्धि है । मैं इसका कैसे उपयोग करूँ ?" यह समुचित उपयोग का संकेत दिया गया है वेदांत तत्वज्ञान में । वेदांत तत्वज्ञान, शायद तुमने नाम सुना है ।
 
वेद का मतलब है ज्ञान, और अंत का मतलब है अंतिम चरण, या अंत । हर चीज़ का अंत है । तो तुम्हे शिक्षित किया जा रहा है । तुम शिक्षा ले रहे हो । यह समाप्त होगा कहां ? यही वेदांत कहा जाता है । अंतिम बिंदु जहॉ है । तो वेदांत तत्वज्ञान कहता है ... यही वेदांत तत्वज्ञान है, परम ज्ञान । परम ज्ञान, यह भगवद गीता में स्पष्ट किया गया है, क्या है यह परम ज्ञान । वेदैश च सर्वैर अहम एव वेद्यम ([[Vanisource: BG 15.15| .गी. १५.१५]]) | तुम ज्ञान का अनुशीलन कर रहे हो । "ज्ञान का परम लक्ष्य," कृष्ण कहते हैं, "मुझे समझना है ।" वेदैश च सर्वैर अहम एव वेद्यम । पूरा ज्ञान भगवान को समझने के लिए है । यही ज्ञान का अंत है । प्रगतिशील ज्ञान द्वारा तुम प्रगति कर सकते हो, लेकिन जब तक तुम भगवान क्या हैं यह नहीं समझते हो, तब तक तुम्हारा ज्ञान अपूर्ण है । यही वेदांत कहा जाता है ।  
 
अथातो ब्रह्म जिज्ञासा । मनुष्य जीवन, अच्छी सुविधा, बुद्धि... जैसे ऑस्ट्रेलिया अविकसित था । जब युरोपी यहां आए, यह बहुत विकसित हो गया है, संसाधनों के साथ, क्योंकि बुद्धि का उपयोग किया गया है । इसी तरह, अमेरिका, कई अन्य स्थान । तो यह बुद्धि का उपयोग किया जाना चाहिए । लेकिन अगर हम केवल एक ही उद्देश्य के लिए इस बुद्धि का उपयोग करते हैं जैसे कि बिल्लि और कुत्ते लगे हुए हैं, तो यह उचित उपयोग नहीं है । समुचित उपयोग है वेदांत । अथातो ब्रह्म जिज्ञासा । "अब तुम्हे ब्रह्म, निरपेक्ष, के बारे में पूछताछ करनी चाहिए ।" यही बुद्धिमत्ता है ।  
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Latest revision as of 17:43, 1 October 2020



750522 - Lecture SB 06.01.01-2 - Melbourne

हम प्रकृति के नियम के तहत हैं । तुम नहीं कह सकते हो कि तुम स्वतंत्र हो । प्रकृति का कानून बहुत सख्त है । प्रकृते: क्रियमाणानि गुणै: कर्माणि सर्वश: (भ.गी. ३.२७) । प्रकृति का नियम... जैसे आग की तरह । अगर तुम आग को स्पर्श करते हो, यह जला देगा । अौर बच्चा भी, जो मासूम है, अगर बच्चा आग को छूता है, वह जला देगा । कोई बहाना नहीं चलेगा । तुम नहीं कह सकते हो कि, "बच्चा मासूम है । उसे आग को छूने का प्रभाव नहीं मालूम है, तो उसे माफ किया जाना चाहिए ।" नहीं । अज्ञान कोई बहाना नहीं है । विशेष रूप से... यह राज्य के कानून ।

तुम यह नहीं कह सकते... यदि तुमने कुछ आपराध किया है । अगर तुम बिनती करते हो, "मेरे प्रभु, मुझे पता नहीं था कि... यह कार्य करने के बाद, मुझे कारावास भुगतना पड़ेगा । तो आप मुझे माफ करो," नहीं, कोई माफी नहीं मिलेगी । तुम्हे मालूम हो या न हो कानून, अगर तुमने एसा कार्य किया है तो तुम्हे भुगतना होगा । यह चल रहा है । तो हम अगले जन्म में विश्वास नहीं करते हैं केवल इस परिणाम से बचने के लिए । लेकिन यह हमें माफ नहीं करेगा । हमें दूसरे शरीर को स्वीकार करना ही होगा । अन्यथा कैसे इतने भिन्न प्रकार के शरीर हैं ? विवरण क्या है ? क्यों अलग अलग रूप शरीर के हैं, शरीर के विभिन्न चरण, शरीर के विभिन्न मानक ? यही प्रकृति का नियम है । इसलिए यह मानव जीवन का ठीक से उपयोग किया जाना चाहिए, केवल बिल्लियों और कुत्तों की तरह इन्द्रिय संतुष्टि में नहीं लगना चाहिए । यह बहुत जिम्मेदार जीवन नहीं है ।

जिम्मेदार जीवन है कि, "मुझे बिल्लियों और कुत्तों से बेहतर जीवन मिला है, और मुझे बिल्लियों और कुत्तों से अधिक बुद्धि मिली है । अगर मैं केवल जीवन की चार शारीरिक आवश्यकताओं के लिए इसका उपयोग करता हूँ... " जीवन की चार शारीरिक जरूरतों का मतलब है हमें कुछ खाने की आवश्यकता होती है । बिल्लि, कुत्ते, मनुष्य या उच्च न्यायालय के न्यायाधीश या कोई भी, उन्हें कुछ खाने की आवश्यकता होती है । उन्हें भी सोने की अावश्यक्ता है, घर । तो यह है... बिल्लि और कुत्ते घर के बिना सो सकते हैं, लेकिन नींद की आवश्यकता तो है । यह तथ्य है । भोजन आवश्यक है, यह तथ्य है । और यौन जीवन, यह भी तथ्य है । और रक्षा, यह भी तथ्य है । लेकिन ये बातें बिल्लियों और कुत्तों और मनुष्य, इंसान के बीच समान है ।

तो इंसान की खास विशेषता क्या है ? इंसान की विशेषता यह है कि, एक मनुष्य विचार कर सकता है, कि "मुझे यह अच्छा अमेरिकी या ऑस्ट्रेलियाई या भारतीय शरीर मिला है । तो मुझे अगला क्या मिलेगा ? किस तरह का शरीर ?" यही मानव बुद्धि है । एक बिल्ली और कुत्ता इस तरह है से नहीं सोच सकता । इसलिए हमारा काम होना चाहिए "अब, प्रकृति के तहत, मैं उत्क्रांति की प्रक्रिया के द्वारा जीवन के इस रूप में आया हूँ । अब मेरे पास अच्छी बुद्धि है । मैं इसका कैसे उपयोग करूँ ?" यह समुचित उपयोग का संकेत दिया गया है वेदांत तत्वज्ञान में । वेदांत तत्वज्ञान, शायद तुमने नाम सुना है ।

वेद का मतलब है ज्ञान, और अंत का मतलब है अंतिम चरण, या अंत । हर चीज़ का अंत है । तो तुम्हे शिक्षित किया जा रहा है । तुम शिक्षा ले रहे हो । यह समाप्त होगा कहां ? यही वेदांत कहा जाता है । अंतिम बिंदु जहॉ है । तो वेदांत तत्वज्ञान कहता है ... यही वेदांत तत्वज्ञान है, परम ज्ञान । परम ज्ञान, यह भगवद गीता में स्पष्ट किया गया है, क्या है यह परम ज्ञान । वेदैश च सर्वैर अहम एव वेद्यम ( भ.गी. १५.१५) | तुम ज्ञान का अनुशीलन कर रहे हो । "ज्ञान का परम लक्ष्य," कृष्ण कहते हैं, "मुझे समझना है ।" वेदैश च सर्वैर अहम एव वेद्यम । पूरा ज्ञान भगवान को समझने के लिए है । यही ज्ञान का अंत है । प्रगतिशील ज्ञान द्वारा तुम प्रगति कर सकते हो, लेकिन जब तक तुम भगवान क्या हैं यह नहीं समझते हो, तब तक तुम्हारा ज्ञान अपूर्ण है । यही वेदांत कहा जाता है ।

अथातो ब्रह्म जिज्ञासा । मनुष्य जीवन, अच्छी सुविधा, बुद्धि... जैसे ऑस्ट्रेलिया अविकसित था । जब युरोपी यहां आए, यह बहुत विकसित हो गया है, संसाधनों के साथ, क्योंकि बुद्धि का उपयोग किया गया है । इसी तरह, अमेरिका, कई अन्य स्थान । तो यह बुद्धि का उपयोग किया जाना चाहिए । लेकिन अगर हम केवल एक ही उद्देश्य के लिए इस बुद्धि का उपयोग करते हैं जैसे कि बिल्लि और कुत्ते लगे हुए हैं, तो यह उचित उपयोग नहीं है । समुचित उपयोग है वेदांत । अथातो ब्रह्म जिज्ञासा । "अब तुम्हे ब्रह्म, निरपेक्ष, के बारे में पूछताछ करनी चाहिए ।" यही बुद्धिमत्ता है ।