HI/Prabhupada 0888 - हरे कृष्ण मंत्र का जप करो और भगवान का साक्षात्कार करो

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750522 - Lecture SB 06.01.01-2 - Melbourne

तो लोगों को परवाह नहीं है समझने की कि प्रकृति के कानून कैसे चल रहे हैं । प्रकृति के नियम का मतलब है भगवान के कानून । प्रकृति स्वतंत्र नहीं है । यह भगवद गीता में कहा गया है: मयाध्यक्षेण प्रकृति: सूयते स-चराचरम ( भ.ग. ९.१०) । प्रकृति एक यंत्र है । क्या तुम्हे लगता है कि एक यंत्र एक चालक के बिना काम करता है ? तुम्हे एसा लगता है ? कोई सबूत है ? अब, यह एक मशीन है, फोटोग्राफी, एक अद्भुत मशीन । यह तस्वीर ले रहा है, और यह हिलेगा । लेकिन एक चालक है । कहां है वह यंत्र जो चालके के बिना काम कर रहा है ?

तुम कोई भी उदाहरण दे सकते हो, "यहाँ एक यंत्र है जो चालक के बिना काम कर रहा है ? तो तुम कैसे सोचते हो कि प्रकृति का यंत्र परम चालक, भगवान की शिक्षा, के बिना काम कर रहा है ? तुम एसे कैसे सोचते हो ? यह बहुत उचित बात नहीं है । हमें अांकना होगा । अलग अलग सबूत हैं । एक सबूत है परिकल्पना । वह परिकल्पना यह है कि "क्योंकि हम देखते हैं कि कोई यंत्र चालक के बिना काम नहीं करता है, इसलिए हमें यह निष्कर्ष निकालना चाहिए, कि हालांकि हम नहीं जानते हैं कि भगवान क्या हैं, प्रकृति क्या है, हमें यह निष्कर्ष निकालना चाहिए कि यह प्रकृति किसी परम चालक के तहत काम कर रही है । यही भगवान हैं ।"

चालक को देखना आवश्यक नहीं है, लेकिन हम यह अनुमान लगा सकते हैं कि चालक होना चाहिए । इसलिए मानव जीवन का लक्ष्य है यह पता लगाना कि कौन है संचालन करने के लिए । यही मानव जीवन है । अन्यथा यह बिल्लियों और कुत्तों का जीवन है । वे खा रहे हैं, सो रहे हैं, संभोग और नृत्य कर रहे हैं । बस इतना ही । ये मानव जीवन नहीं है । तुम्हे पता लगाना चाहिए कि चालक कौन है । अथातो ब्रह्म जिज्ञासा ।

यह कहा जाता है, संस्कृत शब्द, "अब इस मानव जीवन का लक्ष्य है परम चालक के बारे में पृच्छा करना ।" अब वह परम चालक, कृष्ण, इतने दयालु हैं । वे सबूत दे रहे हैं भगवद गीता में, मयाध्यक्षेण प्रकृति: सूयते स चराचम ( भ.ग. ९.१०): "अब मैं यहाँ हूँ । मेरे निर्देश के तहत प्रकृति, भौतिक प्रकृति, काम कर रही है ।" तो तुम स्वीकार करो । तुम्हारा काम हो गया । और कृष्ण सबूत दे रहे हैं कि कैसे वे प्रकृति को नियंत्रित कर रहे हैं ।

जब कृष्ण सात साल के थे, उन्होंने अपनी उंगली पर एक बड़े पहाड़ को उठा लिया । इसका मतलब है की... हम... हमारी समझ है की गुरुत्वाकर्षण का नियम है । लेकिन गुरुत्वाकर्षण के कानून के अनुसार, इस तरह का एक बड़ा पहाड़, यह एक आदमी की उंगली पर टिक नहीं सकता है । यह हमारी गणना है । लेकिन उन्होंने ऐसा किया । इसका मतलब है कि उन्होंने गुरुत्वाकर्षण के नियम को प्रभावहीन किया । यही भगवान हैं । तो अगर तुम इस पर विश्वास करते हो, तो तुम तुरंत भगवान को जान जाते हो । कोई कठिनाई नहीं है । जैसे अगर बच्चे को चेतावनी दी जाए, "मेरे प्यारे बच्चे, आग को स्पर्श मत करो । यह तुम्हे जला देगा ।" तो अगर बच्चा स्वीकार करता है, तो उसे तुरंत सही ज्ञान मिल जाता है । अगर बच्चा स्वीकार नहीं करता है - वह प्रयोग करना चाहता है - वह अपनी उंगली जला लेगा ।

तो हमारी प्रक्रिया ज्ञान प्राप्त करने की - तुम सर्वोच्च प्राधिकारी से लो । फिर हम संशोधन कार्य से समय बचाते हैं । यही कृष्ण भावनामृत आंदोलन है । हम कृष्ण से परिपूर्ण ज्ञान लेते हैं । मैं अपूर्ण हो सकता हूँ । जैसे बच्चे अपूर्ण है, तो मैं अपूर्ण हो सकता हूँ, तुम अपूर्ण हो सकते हो । लेकिन अगर तुम परिपूर्ण ज्ञान लेते हो, परम परिपूर्ण से, तो तुम्हारा ज्ञान परिपूर्ण है । यही प्रक्रिया है । यह अवरोह पंथ कहा जाता है, ज्ञान आ रहा है, निगमनात्मक ज्ञान । तो सब कुछ है, और अगर तुम इस आंदोलन का लाभ लेना चाहते हो और अपने जीवन को आदर्श बनाना चाहते हो, भगवान के धाम जाने के लिए, तो फिर पूरी तरह से इस केंद्र का लाभ लो, हमारा मेलबोर्न केंद्र । यहाँ आओ, हमारी किताबें पढ़ो, और तर्क करो । अपना पूरे ज्ञान के साथ तुम समझने की कोशिश करो, आँख बंद करके स्वीकृति नहीं । तर्क है । वितर्क है । तत्वज्ञान है । विज्ञान है । सब कुछ है । अौर अगर तुम स्वीकार करते हो की "केवल जप करके, मुझे बोध होगा," इसकी भी अनुमति है । दोनों तरीकों से: अगर तुम इस सरल प्रक्रिया को स्वीकार करते हो, की "हरे कृष्ण जप करो और भगवान का बोध करो," यह भी तथ्य है । और अगर तुम सोचते हो कि "हरे कृष्ण का जप क्या बकवास है" तो तुम किताबें पढ़ो । दोनों तरीकों से हम तैयार हैं । आओ और इस आंदोलन का लाभ लो ।

बहुत बहुत धन्यवाद ।

भक्त: जय, जय !