HI/Prabhupada 0892 - अगर तुम शिक्षा से गिर जाते हो, तो कैसे तुम शाश्वत सेवक रह सकते हो ?: Difference between revisions
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भक्त: | भक्त: क्योंकि अाप (अस्पष्ट) और सभी भक्त यहॉ अापके शिष्य हैं, श्रील प्रभुपाद, अनन्त शिष्य, अनन्त सेवक । लेकिन क्या होगा अगर हमें अगले जीवन में भौतिक संसार में जन्म लेना पड़े ? कैसे हम अापको प्रत्यक्ष सेवा प्रदान करने में सक्षम होंगे ? | ||
प्रभुपाद: हाँ । अगर तुम रह भी जाअो भौतिक... | प्रभुपाद: हाँ । अगर तुम रह भी जाअो भौतिक... अगर तुमने अपना आध्यात्मिक जीवन पूरा नहीं किया हो, फिर भी, तुम्हे अच्छा जन्म मिलेगा । शुचीनाम श्रीमताम गेहे योग भ्रष्ठो: सन्जायते ([[Vanisource: BG 6.41 (1972) | भ.गी. ६.४१]]): "जो कृष्ण भावनामृत को पूरा करने में नाकाम रहा, तो उसे एक अौर मौका दिया जाता है एक बहुत ही कुलीन परिवार या बहुत अच्छे, शुद्ध ब्राह्मण परिवार में, तोकि वह फिर से अपने कृष्ण भावनामृत को जागृत कर सके, एक अौर मौका । " | ||
भक्त: क्या इसका मतलब होगा किसी और गुरु से दीक्षा लेना, या वह अापका शाश्वत | भक्त: क्या इसका मतलब होगा किसी और गुरु से दीक्षा लेना, या वह अापका शाश्वत सेवक रहेगा ? | ||
मधूद्वीष: उसका सवाल था जब हम अाप से दीक्षा लेते हैं, हम मानते हैं कि हम अापके सनातन सेवक बन जाते हैं। | |||
प्रभुपाद: | प्रभुपाद: हाँ । | ||
भक्त: हरे कृष्ण, | मधुद्वीष: लेकिन अगर हमें एक और जन्म लेना पड़े... | ||
प्रभुपाद: लेकिन अगर तुम सदा शिक्षा में रहो... अौर अगर तुम शिक्षण से गिर जाते हो, तो कैसे तुम अनन्त रह सकते हो ? तुम्हे मंच पर रहना होगा । तो फिर सदा तुम सुरक्षित हो । अगर तुम मंच से नीचे गिर जाते हो, तो यह तुम्हारी गलती है । जैसे हम सब वैकुण्ठ ग्रह में हैं। अब, हम इस भौतिक दुनिया का आनंद लेना चाहते थे । हम जय-विजय की तरह नीचे गिर गए हैं । अब हम फिर से वापस जाने की कोशिश कर रहे हैं । इसलिए हम कहते हैं, "वापस भगवद धाम ।" तो सब कुछ है... प्रक्रिया है । अगर तुम प्रक्रिया का पालन करते हो, तो तुम वापस जाओगे । अगर तुम नीचे गिर जाते हो, यह हमारी गलती है । इसलिए जीवन है तपस्या के लिए, यही ऋषभदेव का निर्देश है, कि हमारा जीवन कुत्तों और सूअरों की तरह बर्बाद नहीं किया जाना चाहिए । इसका तपस्या के लिए उपयोग किया जाना चाहिए, हमारी स्थिति को समझने के लिए । | |||
तपो पुत्रका येन शूद्धयेद सत्त्व ([[Vanisource: SB 5.5.1 | श्रीमद भागवतम ५.५.१]]) । यह जीवन का उद्देश्य है । हमें अपने अस्तित्व को शुद्ध करना होगा । वर्तमान समय में हमारा अस्तित्व अशुद्ध है । इसलिए हम जन्म, मृत्यु, वृद्धावस्था और बीमारी के अधीन हैं । और जैसे ही हम खुद को शुद्ध करते हैं, तो हम इन चार भौतिक कानूनों के अधीन नहीं रहते हैं । | |||
बहुत बहुत धन्यवाद । हरे कृष्ण । | |||
भक्त: हरे कृष्ण, जय ! | |||
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Latest revision as of 17:52, 1 October 2020
750522 - Lecture SB 06.01.01-2 - Melbourne
प्रभुपाद: हम्म।
भक्त: क्योंकि अाप (अस्पष्ट) और सभी भक्त यहॉ अापके शिष्य हैं, श्रील प्रभुपाद, अनन्त शिष्य, अनन्त सेवक । लेकिन क्या होगा अगर हमें अगले जीवन में भौतिक संसार में जन्म लेना पड़े ? कैसे हम अापको प्रत्यक्ष सेवा प्रदान करने में सक्षम होंगे ?
प्रभुपाद: हाँ । अगर तुम रह भी जाअो भौतिक... अगर तुमने अपना आध्यात्मिक जीवन पूरा नहीं किया हो, फिर भी, तुम्हे अच्छा जन्म मिलेगा । शुचीनाम श्रीमताम गेहे योग भ्रष्ठो: सन्जायते ( भ.गी. ६.४१): "जो कृष्ण भावनामृत को पूरा करने में नाकाम रहा, तो उसे एक अौर मौका दिया जाता है एक बहुत ही कुलीन परिवार या बहुत अच्छे, शुद्ध ब्राह्मण परिवार में, तोकि वह फिर से अपने कृष्ण भावनामृत को जागृत कर सके, एक अौर मौका । "
भक्त: क्या इसका मतलब होगा किसी और गुरु से दीक्षा लेना, या वह अापका शाश्वत सेवक रहेगा ?
मधूद्वीष: उसका सवाल था जब हम अाप से दीक्षा लेते हैं, हम मानते हैं कि हम अापके सनातन सेवक बन जाते हैं।
प्रभुपाद: हाँ ।
मधुद्वीष: लेकिन अगर हमें एक और जन्म लेना पड़े...
प्रभुपाद: लेकिन अगर तुम सदा शिक्षा में रहो... अौर अगर तुम शिक्षण से गिर जाते हो, तो कैसे तुम अनन्त रह सकते हो ? तुम्हे मंच पर रहना होगा । तो फिर सदा तुम सुरक्षित हो । अगर तुम मंच से नीचे गिर जाते हो, तो यह तुम्हारी गलती है । जैसे हम सब वैकुण्ठ ग्रह में हैं। अब, हम इस भौतिक दुनिया का आनंद लेना चाहते थे । हम जय-विजय की तरह नीचे गिर गए हैं । अब हम फिर से वापस जाने की कोशिश कर रहे हैं । इसलिए हम कहते हैं, "वापस भगवद धाम ।" तो सब कुछ है... प्रक्रिया है । अगर तुम प्रक्रिया का पालन करते हो, तो तुम वापस जाओगे । अगर तुम नीचे गिर जाते हो, यह हमारी गलती है । इसलिए जीवन है तपस्या के लिए, यही ऋषभदेव का निर्देश है, कि हमारा जीवन कुत्तों और सूअरों की तरह बर्बाद नहीं किया जाना चाहिए । इसका तपस्या के लिए उपयोग किया जाना चाहिए, हमारी स्थिति को समझने के लिए ।
तपो पुत्रका येन शूद्धयेद सत्त्व ( श्रीमद भागवतम ५.५.१) । यह जीवन का उद्देश्य है । हमें अपने अस्तित्व को शुद्ध करना होगा । वर्तमान समय में हमारा अस्तित्व अशुद्ध है । इसलिए हम जन्म, मृत्यु, वृद्धावस्था और बीमारी के अधीन हैं । और जैसे ही हम खुद को शुद्ध करते हैं, तो हम इन चार भौतिक कानूनों के अधीन नहीं रहते हैं ।
बहुत बहुत धन्यवाद । हरे कृष्ण ।
भक्त: हरे कृष्ण, जय !