HI/Prabhupada 0893 - यह हर किसी का असली इरादा है । कोई भी काम नहीं करना चाहता: Difference between revisions
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भक्त: अनुवाद: "मेरी इच्छा है कि ये | भक्त: अनुवाद: "मेरी इच्छा है कि ये विपदाए बार बार आती रहें ताकि हम अापको बार बार देख सकें, क्योंकि अापको देखने का मतलब है कि हमें अब बार बार जन्म अौर मृत्यु को नहीं देखना पड़ेगा ।" | ||
प्रभुपाद: तो यह बहुत ही रोचक श्लोक है, कि विपदा, आपदाऍ, खतरा, यह बहुत अच्छा है अगर एसे खतरे अौर अापदायें हमें श्री कृष्ण की याद | प्रभुपाद: तो यह बहुत ही रोचक श्लोक है, कि विपदा, आपदाऍ, खतरा, यह बहुत अच्छा है अगर एसे खतरे अौर अापदायें हमें श्री कृष्ण की याद दिलाते हैं । यह बहुत अच्छा है । तत ते अनुकंपाम सु समीक्षमाणो भुन्जान एवात्म कृतम विपाकम ([[Vanisource : SB 10.14.8 | श्रीमद भागवतम १०.१४.८]]) । एक भक्त, वह कैसे इतनी खतरनाक स्थिति में अाता है ? खतरे को तो होना ही है । खतरा... क्योंकि यह जगह, यह भौितक जगत खतरों से भरा है । ये मूर्ख व्यक्ति, वे जानते नहीं हैं । वे खतरों से बचने की कोशिश कर रहे हैं । यही अस्तित्व के लिए संघर्ष है । हर कोई खुश होने की और खतरों से बचने की कोशिश कर रहा है । यही भौतिक कार्य है । अात्यंतिक सुखम । | ||
अात्यंतिक सुखम । परम सुख । एक आदमी काम कर रहा है और सोचता है: "मुझे बहुत मेहनत से अब काम करने दो, और कुछ बैंक बैलेंस जमा करने दो ताकि जब मैं बूढ़ा हो जाऊँगा, मैं जीवन का आनंद उठाऊँगा बिना काम किए । " यही हर किसी का असली इरादा है । कोई भी काम करना नहीं चाहता । जैसे ही उसे कुछ पैसे मिलते हैं वह काम से निवृत्त होना चाहता है, और सुखी होना चाहता है । लेकिन यह संभव नहीं है । तुम उस तरह से खुश नहीं हो सकते हो । यहाँ यह कहा गया है: अापुनर भव दर्शनम ([[Vanisource: SB 1.8.25 |श्रीमद भागवतम १.८.२५]]) । | |||
असली खतरा है... वे अापुनह की बात कर रही हैं । अापुनह का मतलब है ... अ का मतलब है नहीं, और पुनर भव का मतलब है जन्म और मृत्यु की पुनरावृत्ति । असली खतरा है जन्म और मृत्यु की पुनरावृत्ति । उसे बंद करना होगा । और यह तथाकथित खतरा नहीं । यह सब है... यह भौतिक जगत खतरों से भरा है । पदम पदम यद विपदाम ([[Vanisource: SB 10.14.58 | श्रीमद भागवतम १०.१४.५८]]) | | |||
जैसे अगर तुम समुद्र में हो । अगर तुम समुद्र में हो, तुम बहुत मजबूत जहाज में हो सकते हो, बहुत ही सुरक्षित जहाज, लेकिन वह सुरक्षा नहीं है । क्योंकि तुम समुद्र में हो, किसी भी समय खतरा हो सकता है । शायद तुम्हे याद है तुम्हारे देश से, था, क्या है वह, टाइटैनिक ? | |||
भक्त: टाइटैनिक । | भक्त: टाइटैनिक । | ||
प्रभुपाद: सब कुछ सुरक्षित था, लेकिन | प्रभुपाद: सब कुछ सुरक्षित था, लेकिन पहली यात्रा में वो डूब गया, और तुम्हारे देश के सभी महत्वपूर्ण पुरुष, उन्होंने अपने जीवन को खो दिया । तो खतरा तो होगा ही क्योंकि तुम खतरनाक स्थिति में हो । यह भौतिक दुनिया स्वयं खतरनाक स्थिति है । इसलिए हमारा काम है... कि खतरा तो होगा ही । अब हमारा काम है कि कैसे इस समुद्र को पार किया जाय जल्दी से जल्दी । तो जब तक समुद्र में हो, तुम खतरनाक स्थिति में हो, कितना भी मजबूत जहाज क्यों न हो । यह एक तथ्य है । | ||
तो तुम्हे समुद्र की लहरों से परेशान नहीं होना चाहिए । केवल समुद्र को पार करने की कोशिश करो । दूसरे छोर पर जाओ। यही तुम्हारा काम है । इसी तरह, जब तक हम इस भौतिक जगत में हैं, खतरनाक आपदाऍ तो होंगी ही क्योंकि यह जगह ही अापदा की है । इसलिए हमारा काम है, इन आपदाओं, खतरों, के रहते हुए भी, कैसे हम अपने कृष्ण भावनामृत को विकसित करें और इस शरीर को त्याग देने के बाद, हम भगवद धाम वापस जाऍ, वापस श्री कृष्ण के पास । यही हमारा काम होना चाहिए । हमें तथाकथित आपदाओं से परेशान नहीं होना चाहिए । वे तथाकथित नहीं हैं; वे सत्य हैं । | |||
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Latest revision as of 17:44, 1 October 2020
730417 - Lecture SB 01.08.25 - Los Angeles
भक्त: अनुवाद: "मेरी इच्छा है कि ये विपदाए बार बार आती रहें ताकि हम अापको बार बार देख सकें, क्योंकि अापको देखने का मतलब है कि हमें अब बार बार जन्म अौर मृत्यु को नहीं देखना पड़ेगा ।"
प्रभुपाद: तो यह बहुत ही रोचक श्लोक है, कि विपदा, आपदाऍ, खतरा, यह बहुत अच्छा है अगर एसे खतरे अौर अापदायें हमें श्री कृष्ण की याद दिलाते हैं । यह बहुत अच्छा है । तत ते अनुकंपाम सु समीक्षमाणो भुन्जान एवात्म कृतम विपाकम ( श्रीमद भागवतम १०.१४.८) । एक भक्त, वह कैसे इतनी खतरनाक स्थिति में अाता है ? खतरे को तो होना ही है । खतरा... क्योंकि यह जगह, यह भौितक जगत खतरों से भरा है । ये मूर्ख व्यक्ति, वे जानते नहीं हैं । वे खतरों से बचने की कोशिश कर रहे हैं । यही अस्तित्व के लिए संघर्ष है । हर कोई खुश होने की और खतरों से बचने की कोशिश कर रहा है । यही भौतिक कार्य है । अात्यंतिक सुखम ।
अात्यंतिक सुखम । परम सुख । एक आदमी काम कर रहा है और सोचता है: "मुझे बहुत मेहनत से अब काम करने दो, और कुछ बैंक बैलेंस जमा करने दो ताकि जब मैं बूढ़ा हो जाऊँगा, मैं जीवन का आनंद उठाऊँगा बिना काम किए । " यही हर किसी का असली इरादा है । कोई भी काम करना नहीं चाहता । जैसे ही उसे कुछ पैसे मिलते हैं वह काम से निवृत्त होना चाहता है, और सुखी होना चाहता है । लेकिन यह संभव नहीं है । तुम उस तरह से खुश नहीं हो सकते हो । यहाँ यह कहा गया है: अापुनर भव दर्शनम (श्रीमद भागवतम १.८.२५) ।
असली खतरा है... वे अापुनह की बात कर रही हैं । अापुनह का मतलब है ... अ का मतलब है नहीं, और पुनर भव का मतलब है जन्म और मृत्यु की पुनरावृत्ति । असली खतरा है जन्म और मृत्यु की पुनरावृत्ति । उसे बंद करना होगा । और यह तथाकथित खतरा नहीं । यह सब है... यह भौतिक जगत खतरों से भरा है । पदम पदम यद विपदाम ( श्रीमद भागवतम १०.१४.५८) |
जैसे अगर तुम समुद्र में हो । अगर तुम समुद्र में हो, तुम बहुत मजबूत जहाज में हो सकते हो, बहुत ही सुरक्षित जहाज, लेकिन वह सुरक्षा नहीं है । क्योंकि तुम समुद्र में हो, किसी भी समय खतरा हो सकता है । शायद तुम्हे याद है तुम्हारे देश से, था, क्या है वह, टाइटैनिक ?
भक्त: टाइटैनिक ।
प्रभुपाद: सब कुछ सुरक्षित था, लेकिन पहली यात्रा में वो डूब गया, और तुम्हारे देश के सभी महत्वपूर्ण पुरुष, उन्होंने अपने जीवन को खो दिया । तो खतरा तो होगा ही क्योंकि तुम खतरनाक स्थिति में हो । यह भौतिक दुनिया स्वयं खतरनाक स्थिति है । इसलिए हमारा काम है... कि खतरा तो होगा ही । अब हमारा काम है कि कैसे इस समुद्र को पार किया जाय जल्दी से जल्दी । तो जब तक समुद्र में हो, तुम खतरनाक स्थिति में हो, कितना भी मजबूत जहाज क्यों न हो । यह एक तथ्य है ।
तो तुम्हे समुद्र की लहरों से परेशान नहीं होना चाहिए । केवल समुद्र को पार करने की कोशिश करो । दूसरे छोर पर जाओ। यही तुम्हारा काम है । इसी तरह, जब तक हम इस भौतिक जगत में हैं, खतरनाक आपदाऍ तो होंगी ही क्योंकि यह जगह ही अापदा की है । इसलिए हमारा काम है, इन आपदाओं, खतरों, के रहते हुए भी, कैसे हम अपने कृष्ण भावनामृत को विकसित करें और इस शरीर को त्याग देने के बाद, हम भगवद धाम वापस जाऍ, वापस श्री कृष्ण के पास । यही हमारा काम होना चाहिए । हमें तथाकथित आपदाओं से परेशान नहीं होना चाहिए । वे तथाकथित नहीं हैं; वे सत्य हैं ।