HI/Prabhupada 0897 - अगर तुम कृष्ण भावनाभावित रहते हो, यह तुम्हारा लाभ है

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730417 - Lecture SB 01.08.25 - Los Angeles

जैसे एक टोकन सजा । कभी कभी अदालत में एक बड़ा आदमी दोषी है । तो मान लो, अगर न्यायाधीश चाहते हैं १००००० डॉलर, वह तुरंत भुगतान कर सकता है । लेकिन वे उससे माँगते हैं : "तुम सिर्फ एक सेंट दो ।" क्योंकि यह भी सज़ा है । लेकिन कम से कम । इसी तरह हम हमारे पिछले कर्मों के कारण पीड़ित होना ही है । यह एक तथ्य है । तुम बच नहीं सकते हो । कर्माणि निर्दहति किंतु च भक्ति भाजाम (भ्र स ५।५।४) । लेकिन जो भक्ति सेवा में हैं, जो कृष्ण भावनामृत में हैं, उनके कष्ट कम से कम होते हैं, नाम के लिए । जैसे किसी को अगर मरना था । तो मरने के बजाय, उसके चाकू के साथ उसकी उंगली कट जाती है । इस तरह से, कर्माणि निर्दहति किंतु च ... जो भक्ति सेवा में हैं, वे हैं: अहम् त्वाम सर्व पापेभ्यो मोक्षयिष्यामि ( भ गी १८।६६) श्री कृष्ण भरोसा दिलाते हैं कि "मैं पापी जीवन की प्रतिक्रिया से तुम्हे सुरक्षा दूँगा ।" तो जब बहुत गंभीर आपराधिक कर्म हैं उसके अतीत में ... कभी कभी एसा होता है । उसे फांसी देने के बजाय, थोडी सी उंगली कट जाती है चाकू से । यह स्थिति है । तो क्यों हम खतरे से डरें ? हमें केवल श्री कृष्ण भावनामृत पर निर्भर होना चाहिए क्योंकि अगर हम कृष्ण भावनाभावित रहते हैं, किसी भी परिस्थिति में, फिर मेरा लाभ यह है कि मैं इस भोतिक जगत में फिर से नहीं आऊँगा । अपुनर भव दर्शनम (श्री १।८।२५) । फिर, बारम्बार, जैसे तुम श्री कृष्ण को ध्यान करते हो, जैसे जैसे तुम श्री कृष्ण को देखते हो जैसे जैसे तुम श्री कृष्ण के बारे में पढ़ते हो, जैसे जैसे तुम श्री कृष्ण के लिए काम करते हो, किसी न किसी तरह से, तुम श्री कृष्ण भावनामृत में रहते हो, तो यह तुम्हारा लाभ है । और वह लाभ तुम्हे बचाएगा भौतिक जगत में फिर से जन्म लेने से । यही असली लाभ है । और अगर मैं थोड़ा सहज हो जाता हूँ अपने तथाकथित कर्मों में, मैं श्री कृष्ण को भूल जाता हूँ, और मुझे फिर से जन्म लेना पड़े, तो इसमे मेरा क्या लाभ है ? हमें बहुत सावधान रहना चाहिए इस बारे में ।।