HI/Prabhupada 0902 - कमी है कृष्ण भावनामृत की तो अगर तुम कृष्ण भावनाभावित बनते हो तब सब कुछ पर्याप्त है: Difference between revisions

 
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प्रभुपाद: तो यह भौतिक जीवन की शुरुआत है, श्री कृष्ण से जलना । श्री कृष्ण क्यों भोक्ता बनें ? "मैं भोक्ता बनूँगा । क्यों श्री कृष्ण गोपियों का आनंद लें ? मैं श्री कृष्ण बनूँगा अौर अानंद करूँगा, गोपियों का एक समाज बनाऊँगा और आनंद लूँगा ।" यह माया है । कोई भी भोक्ता नहीं बन सकता है । श्री कृष्ण इसलिए कहते हैं भोक्ताराम यज्ञ ( भ गी ५।२९) .... श्री कृष्ण एकमात्र भोक्ता हैं । अौर अगर हम उनके भोग के लिए सामग्री की आपूर्ति करते हैं, यह हमारे जीवन की पूर्णता है । और अगर हम श्री कृष्ण की नकल करना चाहते हैं कि "मैं एक भगवान हो बनूँगा । मैं एक नकलची भोक्ता बनूँगा," तो तुम माया में हो । केवल हमारा काम है....जैसे गोपियों का जीवन । श्री कृष्ण आनंद ले रहे हैं, और वे भोग के सामग्री की आपूर्ति कर रही हैं । हाँ । यह भक्ति है । हमारा काम है ... श्री कृष्ण आपूर्ति कर रहरे हैं ... दास और मालिक । नौकर को मालिक द्वारा सभी आवश्यकताओं की आपूर्ति की जा रही है, लेकिन नौकर का कर्तव्य है मालिक की सेवा । बस इतना ही । एको बहुनाम् यो विदधाति कामान नित्यो नित्यानाम् चेतनश चेतनानाम....( कथा उपनिषद २।२।१३) । ये वैदिक सूचना है ... श्री कृष्ण आपूर्ति कर रहे हैं विशाल मात्रा में, जीवन की सभी आवश्यकताएं को । कोई कमी नहीं है । कोई आर्थिक समस्या नहीं है । तुम केवल श्री कृष्ण की सेवा करने का प्रयास करो । तब सब कुछ पूरा है । क्योंकि वे ऋषीकेश हैं । और इतना ... अगर श्री कृष्ण की इच्छा रही, पर्याप्त आपूर्ति होगी । जैसे तुम्हारे देश में, पर्याप्त आपूर्ति है । अन्य देश में ... मैं स्विट्जरलैंड गया: सब कुछ आयात किया जाता है । कोई आपूर्ति नहीं । आपूर्ति केवल, केवल बर्फ है (हंसी) । तुम जिनता चाहे बर्फ ले लो । तुम समझ रहे हो ? इसी तरह सब कुछ श्री कृष्ण के नियंत्रण में है । अगर तुम भक्त बनते हो, तो बर्फ की आपूर्ति नहीं होती है- केवल भोजन की आपूर्ति होती है । अौर अगर तुम भक्त नहीं बनते हो, तो बर्फ से ढके रहो । (हंसी) । बस । बादल से ढके । सब कुछ श्री कृष्ण के नियंत्रण में है । तो वास्तव में कोई कमी नहीं है । कमी है कृष्ण भावनामृत है । तो अगर तुम कृष्ण भावनाभावित बनते हो तो सब कुछ पर्याप्त है । कोई कमी नहीं है । यह प्रक्रिया है । त्वया ऋषीकेश ... और यहाँ यह कहा गया है: त्वया ऋषी ... यथा ऋषीकेश खलेन देवकी ( श्री ब १।८।२३) । दुनिया खतरों से भरी है । लेकिन देवकी ... कुंतिदेवी कहती हैं, " लेकिन क्योंकि देवकी आपकी भक्त है, अापने उसे बचाया उसके जलते हुए भाई द्वारा दिए गए कष्टों से ।" जैसे ही भाई नें सुना कि " मेरी बहन का बेटा, आठवें पुत्र मेरी बहन का मुझे मार डालेगा," ओह, वह तुरंत तैयार हो गया देवकी को मारने के लिए । तो देवकी के पति नें उसे शांत किया । पति का कर्तव्य है संरक्षण देना । "तो मेरे प्यारे साले, क्यों तुम अपनी बहन से जलते हो ? तुम्हारी बहन तुम्हें मारने नहीं वाली है । उसका बेटा तुम्हें मारेगा । यही समस्या है । इसलिए मैं आपने सभी पुत्र तुम्हे दे दूँगा, फिर तुम जो करना चाहो उनके साथ करो । क्यों तुम इस मासूम लड़की को मारना चाहते हो, नवविवाहित? वह तुम्हारी छोटी बहन है, तुम्हारी बेटी की तरह । तुम्हे उसे संरक्षण देना चाहिए । क्या तुम यह कर रहे हो ? " तो कंस शांत हो गया । उसने वासुदेव के शब्दों पर विश्वास किया, कि वह सभी बेटों को दे देगा, "और अगर तुम चाहो, तुम मार सकते हो ।" उसने सोचा कि, " मुझे वर्तमान स्थिति को सम्भालने दो । बाद में, जब कंस को एक भतीजा मिलेगा, शायद वह अपनी ईर्ष्या भूल जाएगा । " लेकिन वह कभी, कभी नहीं भूला । हाँ । उसने सभी पुत्रों को मार डाला और उन्हें जेल में रखा । शुचार्पिता बध्य अतिचिरम ( श्री भ १।८।२३) । अतचिरम मतलब लंबे समय के लिए । तो वह बच गया । देवकी बच गई । इसी प्रकार यदि हम देवकी और कुंती का स्थान लेते हैं ... कुंती, जैसे उसके बेटों के साथ, पंच-पाण्डव, पांच पांडव... उसके विधवा होने के बाद, पूरी योजना थी, धृतराष्ट्र, "कैसे अपने छोटे भाई के इन बच्चों को मारें ? क्योंकि संयोग से, मैं अंधा था, इसलिए मुझे राज्य का सिंहासन नहीं मिल सका । मेरा छोटा भाई को मिल गया । अब वह मर चुका है । तो कम से कम मेरे बेटों को, उन्हें सिंहासन मिलना चाहिए । " यही उसकी नीति थी, धृतराष्ट्र की नीति : "मुझे नहीं मिल सका ।" यह भौतिक प्रवत्ति है । "मैं खुश रहूँगा । मेरे बेटे खुश हो जाऍगे । मेरा समुदाय खुश हो जाएगा । मेरा देश खुश हो जाएगा । " ये विस्तृत स्वार्थ है । कोई भी नहीं सोच रहा है श्री कृष्ण, कि श्री कृष्ण कैसे खुश होंगे । प्रत्येक व्यक्ति स्वयं के स्वार्थ का सोच रहा है: "मैं कैसे खुश हो सकता हूँ, कैसे मेरे बच्चे खुश हो सकते हैं, मेरा समुदाय खुश हो सकता है, मेरा समाज खुश हो सकता है, मेरा देश..।" यह अस्तित्व के लिए संघर्ष है । हर जगह तुम पाअोगे । यह भौतिक अस्तित्व है । कोई नहीं सोच रहा है कि श्री कृष्ण कैसे खुश होंगे । इसलिए यह कृष्ण भावनामृत बहुत उदात्त है । समझने की कोशिश करो भागवतम, श्रीमद् भगवद् गीता । और ऋषीकेण, ऋषीकेश सेवनम (चै च मद्य १९।१७०) और अपने इन्द्रियों को संलग्न करने की कोशिश करो इंद्रियों के मालिक की सेवा में । तो फिर तुम खुश रहोगे । बहुत बहुत धन्यवाद ।  
प्रभुपाद: तो यह भौतिक जीवन की शुरुआत है, श्री कृष्ण से जलना । "कृष्ण क्यों भोक्ता बनें ?" मैं भोक्ता बनूँगा । क्यों श्री कृष्ण गोपियों का आनंद लें ? मैं श्री कृष्ण बनूँगा अौर अानंद करूँगा, गोपियों का एक समाज बनाऊँगा और आनंद लूँगा ।" यह माया है । कोई भी भोक्ता नहीं बन सकता है । श्री कृष्ण इसलिए कहते हैं भोक्तारम यज्ञ ([[Vanisource: BG 5.29 (1972) |.गी. ५.२९]])... श्री कृष्ण एकमात्र भोक्ता हैं । अौर अगर हम उनके भोग के लिए सामग्री की आपूर्ति करते हैं, यह हमारे जीवन की पूर्णता है । और अगर हम श्री कृष्ण की नकल करना चाहते हैं कि "मैं भगवान बनूँगा । मैं एक नकली भोक्ता बनूँगा," तो तुम माया में हो । केवल हमारा काम है... जैसे गोपियों का जीवन । श्री कृष्ण आनंद ले रहे हैं, और वे भोग के सामग्री की आपूर्ति कर रही हैं । हाँ । यह भक्ति है ।  


भक्त: जय श्रील प्रभुपाद ।  
हमारा काम है... श्री कृष्ण आपूर्ति कर रहे हैं... सेवक और मालिक । सेवक को मालिक द्वारा सभी आवश्यकताओं की आपूर्ति की जा रही है, लेकिन सेवक का कर्तव्य है मालिक की सेवा । बस इतना ही । एको बहुनाम यो विदधाति कामान नित्यो नित्यानाम चेतनश चेतनानाम....(कठ उपनिषद २.२.१३) । ये वैदिक सूचना है... श्री कृष्ण आपूर्ति कर रहे हैं विशाल मात्रा में, जीवन की सभी आवश्यकता की । कोई कमी नहीं है । कोई आर्थिक समस्या नहीं है । तुम केवल श्री कृष्ण की सेवा करने का प्रयास करो । फिर सब कुछ पूर्ण है । क्योंकि वे ऋषीकेश हैं । और इतना ... अगर श्री कृष्ण की इच्छा रही, पर्याप्त आपूर्ति होगी । जैसे तुम्हारे देश में, पर्याप्त आपूर्ति है । अन्य देश में ... मैं स्विट्जरलैंड गया था: सब कुछ आयात किया जाता है । कोई आपूर्ति नहीं । आपूर्ति केवल, केवल बर्फ है (हंसी) । तुम जिनता चाहे बर्फ ले लो । तुम समझ रहे हो ?
 
इसी तरह सब कुछ श्री कृष्ण के नियंत्रण में है । अगर तुम भक्त बनते हो, तो बर्फ की आपूर्ति नहीं होती है - केवल भोजन की आपूर्ति होती है । अौर अगर तुम भक्त नहीं बनते हो, तो बर्फ से ढके रहो । (हंसी) । बस । बादल से ढके । सब कुछ श्री कृष्ण के नियंत्रण में है । तो वास्तव में कोई कमी नहीं है । कमी है कृष्ण भावनामृत । तो अगर तुम कृष्ण भावनाभावित बनते हो तो सब कुछ पर्याप्त है । कोई कमी नहीं है । यह प्रक्रिया है ।
 
त्वया ऋषीकेश... और यहाँ यह कहा गया है: त्वया ऋषी... यथा ऋषीकेश खलेन देवकी ([[Vanisource: SB 1.8.23 | श्रीमद भागवतम १.८.२३]]) । दुनिया खतरों से भरी है । लेकिन देवकी... कुंतिदेवी कहती हैं, "लेकिन क्योंकि देवकी आपकी भक्त है, अापने उसे बचाया उसके ईर्षालु भाई द्वारा दिए गए कष्टों से ।" जैसे ही भाई नें सुना कि "मेरी बहन का बेटा, मेरी बहन का आठवा पुत्र मुझे मार डालेगा," ओह, वह तुरंत तैयार हो गया देवकी को मारने के लिए । तो देवकी के पति नें उसे शांत किया । पति का कर्तव्य है संरक्षण देना । "तो मेरे प्यारे साले, क्यों तुम अपनी बहन से ईर्षालु हो ? तुम्हारी बहन तुम्हें मारने नहीं वाली है । उसका बेटा तुम्हें मारेगा । ये समस्या है । इसलिए मैं अपने सभी पुत्र तुम्हे दे दूँगा, फिर तुम जो करना चाहो उनके साथ करो । क्यों तुम इस मासूम, नवविवाहित, लड़की को मारना चाहते हो? वह तुम्हारी छोटी बहन है, तुम्हारी बेटी की तरह । तुम्हे उसे संरक्षण देना चाहिए । ये तुम क्या कर रहे हो ?" तो कंस शांत हो गया । उसने वासुदेव के शब्दों पर विश्वास किया, कि वह सभी बेटों को दे देगा, "और अगर तुम चाहो, तुम मार सकते हो ।" उन्होंने सोचा की, "मुझे वर्तमान स्थिति को सम्भालने दो । बाद में, जब कंस को एक भतीजा मिलेगा, शायद वह अपनी ईर्ष्या भूल जाएगा । " लेकिन वह कभी, कभी नहीं भूला । हाँ । उसने सभी पुत्रों को मार डाला और उन्हें जेल में रखा ।
 
शुचार्पिता बध्य अतिचिरम ([[Vanisource: SB 1.8.23 | श्रीमद भागवतम १.८.२३]]) । अतिचिरम मतलब लंबे समय के लिए । तो वे बच गए । देवकी बच गई । इसी प्रकार यदि हम देवकी और कुंती का स्थान लेते हैं... कुंती, जैसे उसके बेटों के साथ, पंच-पाण्डव, पांच पांडव... उसके विधवा होने के बाद, पूरी योजना थी, धृतराष्ट्र, "कैसे अपने छोटे भाई के इन बच्चों को मारें ? क्योंकि संयोग से, मैं अंधा था, इसलिए मुझे राज्य का सिंहासन नहीं मिल सका । मेरे छोटे भाई को मिल गया । अब वह मर चुका है । तो कम से कम मेरे बेटों को, उन्हें सिंहासन मिलना चाहिए । " यही उसकी नीति थी, धृतराष्ट्र की नीति: "मुझे नहीं मिल सका ।"
 
यह भौतिक प्रवत्ति है । "मैं खुश रहूँगा । मेरे बेटे खुश हो जाऍगे । मेरा समुदाय खुश हो जाएगा । मेरा  देश खुश हो जाएगा । " ये विस्तृत स्वार्थ है । कोई भी नहीं सोच रहा है कृष्ण, कृष्ण कैसे खुश होंगे । प्रत्येक व्यक्ति स्वयं के स्वार्थ का सोच रहा है: "मैं कैसे खुश हो सकता हूँ, कैसे मेरे बच्चे खुश हो सकते हैं, मेरा समुदाय खुश हो सकता है, मेरा समाज खुश हो सकता है, मेरा देश..." यह अस्तित्व के लिए संघर्ष है । हर जगह तुम पाअोगे । यह भौतिक अस्तित्व है ।
 
कोई नहीं सोच रहा है कि श्री कृष्ण कैसे खुश होंगे । इसलिए यह कृष्ण भावनामृत बहुत उदात्त है । भागवतम, भगवद गीता, से समझने की कोशिश करो । और ऋषीकेण ऋषीकेश सेवनम ([[Vanisource: CC Madhya 19.170|चैतन्य चरितामृत मध्य १९.१७०]]), और अपनी इन्द्रियों को संलग्न करने की कोशिश करो इंद्रियों के मालिक की सेवा में । तो फिर तुम खुश रहोगे । बहुत बहुत धन्यवाद । भक्त: जय श्रील प्रभुपाद ।
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Latest revision as of 17:43, 1 October 2020



730415 - Lecture SB 01.08.23 - Los Angeles

प्रभुपाद: तो यह भौतिक जीवन की शुरुआत है, श्री कृष्ण से जलना । "कृष्ण क्यों भोक्ता बनें ?" मैं भोक्ता बनूँगा । क्यों श्री कृष्ण गोपियों का आनंद लें ? मैं श्री कृष्ण बनूँगा अौर अानंद करूँगा, गोपियों का एक समाज बनाऊँगा और आनंद लूँगा ।" यह माया है । कोई भी भोक्ता नहीं बन सकता है । श्री कृष्ण इसलिए कहते हैं भोक्तारम यज्ञ (भ.गी. ५.२९)... श्री कृष्ण एकमात्र भोक्ता हैं । अौर अगर हम उनके भोग के लिए सामग्री की आपूर्ति करते हैं, यह हमारे जीवन की पूर्णता है । और अगर हम श्री कृष्ण की नकल करना चाहते हैं कि "मैं भगवान बनूँगा । मैं एक नकली भोक्ता बनूँगा," तो तुम माया में हो । केवल हमारा काम है... जैसे गोपियों का जीवन । श्री कृष्ण आनंद ले रहे हैं, और वे भोग के सामग्री की आपूर्ति कर रही हैं । हाँ । यह भक्ति है ।

हमारा काम है... श्री कृष्ण आपूर्ति कर रहे हैं... सेवक और मालिक । सेवक को मालिक द्वारा सभी आवश्यकताओं की आपूर्ति की जा रही है, लेकिन सेवक का कर्तव्य है मालिक की सेवा । बस इतना ही । एको बहुनाम यो विदधाति कामान नित्यो नित्यानाम चेतनश चेतनानाम....(कठ उपनिषद २.२.१३) । ये वैदिक सूचना है... श्री कृष्ण आपूर्ति कर रहे हैं विशाल मात्रा में, जीवन की सभी आवश्यकता की । कोई कमी नहीं है । कोई आर्थिक समस्या नहीं है । तुम केवल श्री कृष्ण की सेवा करने का प्रयास करो । फिर सब कुछ पूर्ण है । क्योंकि वे ऋषीकेश हैं । और इतना ... अगर श्री कृष्ण की इच्छा रही, पर्याप्त आपूर्ति होगी । जैसे तुम्हारे देश में, पर्याप्त आपूर्ति है । अन्य देश में ... मैं स्विट्जरलैंड गया था: सब कुछ आयात किया जाता है । कोई आपूर्ति नहीं । आपूर्ति केवल, केवल बर्फ है (हंसी) । तुम जिनता चाहे बर्फ ले लो । तुम समझ रहे हो ?

इसी तरह सब कुछ श्री कृष्ण के नियंत्रण में है । अगर तुम भक्त बनते हो, तो बर्फ की आपूर्ति नहीं होती है - केवल भोजन की आपूर्ति होती है । अौर अगर तुम भक्त नहीं बनते हो, तो बर्फ से ढके रहो । (हंसी) । बस । बादल से ढके । सब कुछ श्री कृष्ण के नियंत्रण में है । तो वास्तव में कोई कमी नहीं है । कमी है कृष्ण भावनामृत । तो अगर तुम कृष्ण भावनाभावित बनते हो तो सब कुछ पर्याप्त है । कोई कमी नहीं है । यह प्रक्रिया है ।

त्वया ऋषीकेश... और यहाँ यह कहा गया है: त्वया ऋषी... यथा ऋषीकेश खलेन देवकी ( श्रीमद भागवतम १.८.२३) । दुनिया खतरों से भरी है । लेकिन देवकी... कुंतिदेवी कहती हैं, "लेकिन क्योंकि देवकी आपकी भक्त है, अापने उसे बचाया उसके ईर्षालु भाई द्वारा दिए गए कष्टों से ।" जैसे ही भाई नें सुना कि "मेरी बहन का बेटा, मेरी बहन का आठवा पुत्र मुझे मार डालेगा," ओह, वह तुरंत तैयार हो गया देवकी को मारने के लिए । तो देवकी के पति नें उसे शांत किया । पति का कर्तव्य है संरक्षण देना । "तो मेरे प्यारे साले, क्यों तुम अपनी बहन से ईर्षालु हो ? तुम्हारी बहन तुम्हें मारने नहीं वाली है । उसका बेटा तुम्हें मारेगा । ये समस्या है । इसलिए मैं अपने सभी पुत्र तुम्हे दे दूँगा, फिर तुम जो करना चाहो उनके साथ करो । क्यों तुम इस मासूम, नवविवाहित, लड़की को मारना चाहते हो? वह तुम्हारी छोटी बहन है, तुम्हारी बेटी की तरह । तुम्हे उसे संरक्षण देना चाहिए । ये तुम क्या कर रहे हो ?" तो कंस शांत हो गया । उसने वासुदेव के शब्दों पर विश्वास किया, कि वह सभी बेटों को दे देगा, "और अगर तुम चाहो, तुम मार सकते हो ।" उन्होंने सोचा की, "मुझे वर्तमान स्थिति को सम्भालने दो । बाद में, जब कंस को एक भतीजा मिलेगा, शायद वह अपनी ईर्ष्या भूल जाएगा । " लेकिन वह कभी, कभी नहीं भूला । हाँ । उसने सभी पुत्रों को मार डाला और उन्हें जेल में रखा ।

शुचार्पिता बध्य अतिचिरम ( श्रीमद भागवतम १.८.२३) । अतिचिरम मतलब लंबे समय के लिए । तो वे बच गए । देवकी बच गई । इसी प्रकार यदि हम देवकी और कुंती का स्थान लेते हैं... कुंती, जैसे उसके बेटों के साथ, पंच-पाण्डव, पांच पांडव... उसके विधवा होने के बाद, पूरी योजना थी, धृतराष्ट्र, "कैसे अपने छोटे भाई के इन बच्चों को मारें ? क्योंकि संयोग से, मैं अंधा था, इसलिए मुझे राज्य का सिंहासन नहीं मिल सका । मेरे छोटे भाई को मिल गया । अब वह मर चुका है । तो कम से कम मेरे बेटों को, उन्हें सिंहासन मिलना चाहिए । " यही उसकी नीति थी, धृतराष्ट्र की नीति: "मुझे नहीं मिल सका ।"

यह भौतिक प्रवत्ति है । "मैं खुश रहूँगा । मेरे बेटे खुश हो जाऍगे । मेरा समुदाय खुश हो जाएगा । मेरा देश खुश हो जाएगा । " ये विस्तृत स्वार्थ है । कोई भी नहीं सोच रहा है कृष्ण, कृष्ण कैसे खुश होंगे । प्रत्येक व्यक्ति स्वयं के स्वार्थ का सोच रहा है: "मैं कैसे खुश हो सकता हूँ, कैसे मेरे बच्चे खुश हो सकते हैं, मेरा समुदाय खुश हो सकता है, मेरा समाज खुश हो सकता है, मेरा देश..." यह अस्तित्व के लिए संघर्ष है । हर जगह तुम पाअोगे । यह भौतिक अस्तित्व है ।

कोई नहीं सोच रहा है कि श्री कृष्ण कैसे खुश होंगे । इसलिए यह कृष्ण भावनामृत बहुत उदात्त है । भागवतम, भगवद गीता, से समझने की कोशिश करो । और ऋषीकेण ऋषीकेश सेवनम (चैतन्य चरितामृत मध्य १९.१७०), और अपनी इन्द्रियों को संलग्न करने की कोशिश करो इंद्रियों के मालिक की सेवा में । तो फिर तुम खुश रहोगे । बहुत बहुत धन्यवाद । भक्त: जय श्रील प्रभुपाद ।