HI/Prabhupada 0905 - असली चेतना में आओ कि सब कुछ भगवान का है: Difference between revisions

 
m (Text replacement - "(<!-- (BEGIN|END) NAVIGATION (.*?) -->\s*){2,15}" to "<!-- $2 NAVIGATION $3 -->")
 
Line 7: Line 7:
[[Category:HI-Quotes - in USA]]
[[Category:HI-Quotes - in USA]]
[[Category:HI-Quotes - in USA, Los Angeles]]
[[Category:HI-Quotes - in USA, Los Angeles]]
[[Category:Hindi Language]]
<!-- END CATEGORY LIST -->
<!-- END CATEGORY LIST -->
<!-- BEGIN NAVIGATION BAR -- DO NOT EDIT OR REMOVE -->
{{1080 videos navigation - All Languages|Hindi|HI/Prabhupada 0904 - तुमने भगवान की संपत्ति चुराई है|0904|HI/Prabhupada 0906 - तुम्हारे पास शून्य है । कृष्ण को रखो । तुम दस बन जाते हो|0906}}
<!-- END NAVIGATION BAR -->
<!-- BEGIN ORIGINAL VANIQUOTES PAGE LINK-->
<!-- BEGIN ORIGINAL VANIQUOTES PAGE LINK-->
<div class="center">
<div class="center">
Line 16: Line 20:


<!-- BEGIN VIDEO LINK -->
<!-- BEGIN VIDEO LINK -->
{{youtube_right|Uq0Af3DW_X0|असली चेतना में आओ कि सब कुछ भगवान का है । - Prabhupāda 0905}}
{{youtube_right|g1ptBxHGvjY|असली चेतना में आओ कि सब कुछ भगवान का है । - Prabhupāda 0905}}
<!-- END VIDEO LINK -->
<!-- END VIDEO LINK -->


<!-- BEGIN AUDIO LINK (from English page -->
<!-- BEGIN AUDIO LINK (from English page -->
<mp3player>File:730418SB-LOS_ANGELES_clip5.mp3</mp3player>
<mp3player>https://s3.amazonaws.com/vanipedia/clip/730418SB-LOS_ANGELES_clip5.mp3</mp3player>
<!-- END AUDIO LINK -->
<!-- END AUDIO LINK -->


Line 28: Line 32:


<!-- BEGIN TRANSLATED TEXT (from DotSub) -->
<!-- BEGIN TRANSLATED TEXT (from DotSub) -->
तो जो मदमत्त हैं, वे नहीं समझ सकते हैं । वे सोचते हैं : "यह मेरी संपत्ति है । मैनें चोरी की है, मैने रेड़ इन्ड़ियन से अमेरिका की इस भूमि को चुराया है । अब यह मेरी संपत्ति है । " लेकिन वह नहीं जानता है कि वह चोर है । वह एक चोर है । स्तेन एव स उच्यते ( भ गी ३।१२) । भगवत गीता में । जो भगवान की संपत्ति लेता है, और अपने होने का दावा करता है, वह एक चोर है । स्तेन एव स उच्यते । इसलिए हमारा साम्यवादी विचार है, भक्त, कृष्ण भावनाभावित व्यक्ति । हमारा कृष्ण भावनाभावित साम्यवादी कार्यक्रम है । वह क्या है ? कि सब कुछ भगवान का है । जैसे वे सोच रहे हैं कि सब कुछ सरकार का है । ये कम्युनिस्ट, यह मास्को, मास्को के लोग, या रूसी, या चीनी, वे सरकार के लिहाज से सोच रहे हैं । लेकिन हम सरकार के लिहाज़ नहीं सोच रहे हैं । हम भगवान के लिहाज से सोच रहे हैं । सब कुछ भगवान का है । वही दर्शन । तुम विस्तार करो । केवल तुम्हे थोड़ी बुद्धि की आवश्यकता है, थोड़ी बुद्धि । क्यों तुम सोचते हो कि यह राज्य कुछ लोगों का है ? अगर तुम सोचते हो कि जनसंख्या है, अमेरिकी जनसंख्या, यह अमेरिका इस आबादी का है । तुम्हे ऐसा क्यों लगता है ? तुम सोचो कि यह भगवान की संपत्ति है । तो हर जीव भगवान का एक बच्चा है । भगवान परम पिता है । श्री कृष्ण कहते हैं: अहम् बीज प्रद: पिता । "मैं सभी जीवों को बीज देने वाला पिता हूँ ।" सर्व-योनिषु कौन्तेय ( भ गी १४।४) "जिस भी रूप में वे रहते हैं, वे सब जीव हैं, वे मेरे बेटे हैं ।" असल में यह तथ्य है । हम सभी जीव, हम भगवान के बेटे हैं । लेकिन हम भूल गए हैं । इसलिए हम लड़ रहे हैं । जैसे एक अच्छे परिवार में, अगर कोई जानता है : "पिताजी भोजन का प्रबंध कर रहे हैं । तो हम भाइ, हम क्यों लड़ें ? " इसी प्रकार यदि हम भगवान भावनाभावित हैं, अगर हम कृष्ण भावनाभावित बनते हैं, तो यह लड़ाई खत्म हो जाएगी । "मैं अमेरिकी हूँ, मैं भारतीय हूँ, मैं रूसी हूँ, मैं चीनी हूँ ।" ये सब बकवास बातें खत्म हो जाएँगी । कृष्ण भावनामृत आंदोलन इतना अच्छा है । जैसे ही लोग कृष्ण भावनाभावित हो जाते हैं, यह लड़ाई, यह राजनीतिक लड़ाई, राष्ट्रीय लड़ाई, तुरंत खत्म हो जाएगी । क्योंकि वे असली चेतना में अाऍगे कि सब कुछ भगवान का है । और जैसे बच्चे, परिवार के एक बच्चे का अधिकार है पिता से लाभ लेना, इसी तरह अगर हर कोई भगवान का अंशस्वरूप है, अगर हर कोई भगवान का बच्चा है, तो हर किसी को पिता की संपत्ति का उपयोग करने का अधिकार है । तो यह अधिकार यह नहीं है, कि केवल यह अधिकार मनुष्य का है । भगवद गीता के अनुसार, यह अधिकार सभी जीवों का है । कोई बात नहीं कि वह जीव है या जानवर या पेड़, या पक्षी या जानवर या कीट । यही कृष्ण भावनामृत है । हम एसा नहीं सोचते हैं कि केवल मेरा भाई अच्छा है, मैं अच्छा हूँ । और बाकी सब बुरे हैं । इस तरह की कृपण, तंग चेतना से हम नफरत करते हैं, हम लात मारते हैं । हम सोचते हैं : पंड़ित: सम दर्शिन: ( भ गी ५।१८) । भगवद गीता में तुम पाअोगे । विद्या विनय सम्पन्ने ब्रह्मणे गवि हस्तिनि शुनि चैव श्व पाके च पंड़िता: सम दर्शिन: ( भ गी ५।१८) । जो एक पंडित है , जो एक पंड़ित है, वह हर जीव को समान देखता है । इसलिए एक वैश्वणव इतना दयालु है । लोकानाम् हित कारिणौ । वे वास्तव में इंसान के लिए परोपकारी काम कर सकते हैं । वे देख रहे हैं, वास्तव में इन सभी जीवों के लिए महसूस करते हैं, वे भगवान के अंशस्वरूप हैं । किसी न किसी तरह से, वे इस भौतिक दुनिया के संपर्क में अा गए हैं, और, अलग अलग कर्म के अनुसार, उन्होंने शरीर के विभिन्न प्रकार ग्रहण किए हैं । तो पंडित, जो पंड़ित हैं, उनमें कोई भेदभाव नहीं है कि: "यह जानवर है, उसे क़साईख़ाना भेजा जाना चाहिए है, और यह आदमी है, वह इसे खाएगा । " नहीं । एक वास्तव में कृष्ण भावनाभावित व्यक्ति, वह हर किसी पर दया करता है । क्यों जानवरों की बलि किया जाना चाहिए? इसलिए हमारा दर्शन है कोई मांसाहार नहीं । कोई मांस खाना नहीं । तुम नहीं कर सकते । तो वे हमें सुनेंगे नहीं । "ओह, यह क्या बकवास है ? यह हमारा भोजन है। मैं क्यों नहीं खाऊँ ?" क्योंकि एधमान मद: (श्री भ १।८।२६) । वह मदमत्त धूर्त है । वह वास्तविक तथ्य नहीं सुनेगा ।  
तो जो मदमत्त हैं, वे नहीं समझ सकते हैं । वे सोचते हैं : "यह मेरी संपत्ति है । मैनें चोरी की है, मैने रेड़ इन्ड़ियन से अमेरिका की इस भूमि को चुराया है । अब यह मेरी संपत्ति है । " लेकिन वह नहीं जानता है कि वह चोर है । वह एक चोर है । स्तेन एव स उच्यते ([[Vanisource: BG 3.12 (1972)| भ गी ३.१२]]) । भगवत गीता में । जो भगवान की संपत्ति लेता है, और अपने होने का दावा करता है, वह एक चोर है । स्तेन एव स उच्यते । इसलिए हमारा साम्यवादी विचार है, भक्त, कृष्ण भावनाभावित व्यक्ति । हमारा कृष्ण भावनाभावित साम्यवादी कार्यक्रम है । वह क्या है ? कि सब कुछ भगवान का है । जैसे वे सोच रहे हैं कि सब कुछ सरकार का है । ये कम्युनिस्ट, यह मास्को, मास्को के लोग, या रूसी, या चीनी, वे सरकार के लिहाज से सोच रहे हैं । लेकिन हम सरकार के लिहाज़ नहीं सोच रहे हैं । हम भगवान के लिहाज से सोच रहे हैं । सब कुछ भगवान का है । वही दर्शन । तुम विस्तार करो । केवल तुम्हे थोड़ी बुद्धि की आवश्यकता है, थोड़ी बुद्धि । क्यों तुम सोचते हो कि यह राज्य कुछ लोगों का है ?  
 
अगर तुम सोचते हो कि जनसंख्या है, अमेरिकी जनसंख्या, यह अमेरिका इस आबादी का है । तुम्हे ऐसा क्यों लगता है ? तुम सोचो कि यह भगवान की संपत्ति है । तो हर जीव भगवान का एक बच्चा है । भगवान परम पिता है । श्री कृष्ण कहते हैं: अहम् बीज प्रद: पिता । "मैं सभी जीवों को बीज देने वाला पिता हूँ ।" सर्व-योनिषु कौन्तेय ( [[Vanisource: BG 14.4 (1972) |भ गी १४.४]]) "जिस भी रूप में वे रहते हैं, वे सब जीव हैं, वे मेरे बेटे हैं ।" असल में यह तथ्य है । हम सभी जीव, हम भगवान के बेटे हैं । लेकिन हम भूल गए हैं । इसलिए हम लड़ रहे हैं । जैसे एक अच्छे परिवार में, अगर कोई जानता है : "पिताजी भोजन का प्रबंध कर रहे हैं । तो हम भाइ, हम क्यों लड़ें ? "  
 
इसी प्रकार यदि हम भगवान भावनाभावित हैं, अगर हम कृष्ण भावनाभावित बनते हैं, तो यह लड़ाई खत्म हो जाएगी । "मैं अमेरिकी हूँ, मैं भारतीय हूँ, मैं रूसी हूँ, मैं चीनी हूँ ।" ये सब बकवास बातें खत्म हो जाएँगी । कृष्ण भावनामृत आंदोलन इतना अच्छा है । जैसे ही लोग कृष्ण भावनाभावित हो जाते हैं, यह लड़ाई, यह राजनीतिक लड़ाई, राष्ट्रीय लड़ाई, तुरंत खत्म हो जाएगी । क्योंकि वे असली चेतना में अाऍगे कि सब कुछ भगवान का है । और जैसे बच्चे, परिवार के एक बच्चे का अधिकार है पिता से लाभ लेना, इसी तरह अगर हर कोई भगवान का अंशस्वरूप है, अगर हर कोई भगवान का बच्चा है, तो हर किसी को पिता की संपत्ति का उपयोग करने का अधिकार है ।  
 
तो यह अधिकार यह नहीं है, कि केवल यह अधिकार मनुष्य का है । भगवद गीता के अनुसार, यह अधिकार सभी जीवों का है । कोई बात नहीं कि वह जीव है या जानवर या पेड़, या पक्षी या जानवर या कीट । यही कृष्ण भावनामृत है । हम एसा नहीं सोचते हैं कि केवल मेरा भाई अच्छा है, मैं अच्छा हूँ । और बाकी सब बुरे हैं । इस तरह की कृपण, तंग चेतना से हम नफरत करते हैं, हम लात मारते हैं । हम सोचते हैं : पंड़ित: सम दर्शिन: ([[Vanisource: BG 5.18 (1972)|भ गी ५.१८]]) । भगवद गीता में तुम पाअोगे ।  
 
:विद्या विनय सम्पन्ने  
:ब्रह्मणे गवि हस्तिनि  
:शुनि चैव श्व पाके च  
:पंड़िता: सम दर्शिन:  
:([[Vanisource: BG 5.18 (1972)|भ गी ५.१८]]) ।  
 
जो एक पंडित है , जो एक पंड़ित है, वह हर जीव को समान देखता है । इसलिए एक वैश्वणव इतना दयालु है । लोकानाम् हित कारिणौ । वे वास्तव में इंसान के लिए परोपकारी काम कर सकते हैं । वे देख रहे हैं, वास्तव में इन सभी जीवों के लिए महसूस करते हैं, वे भगवान के अंशस्वरूप हैं । किसी न किसी तरह से, वे इस भौतिक दुनिया के संपर्क में अा गए हैं, और, अलग अलग कर्म के अनुसार, उन्होंने शरीर के विभिन्न प्रकार ग्रहण किए हैं । तो पंडित, जो पंड़ित हैं, उनमें कोई भेदभाव नहीं है कि: "यह जानवर है, उसे क़साईख़ाना भेजा जाना चाहिए है, और यह आदमी है, वह इसे खाएगा । " नहीं । एक वास्तव में कृष्ण भावनाभावित व्यक्ति, वह हर किसी पर दया करता है । क्यों जानवरों की बलि किया जाना चाहिए? इसलिए हमारा दर्शन है कोई मांसाहार नहीं । कोई मांस खाना नहीं । तुम नहीं कर सकते । तो वे हमें सुनेंगे नहीं । "ओह, यह क्या बकवास है ? यह हमारा भोजन है। मैं क्यों नहीं खाऊँ ?" क्योंकि एधमान मद: ([[Vanisource: SB 1.8.26|श्रीमद भागवतम १.८.२६]]) । वह मदमत्त धूर्त है । वह वास्तविक तथ्य नहीं सुनेगा ।  
<!-- END TRANSLATED TEXT -->
<!-- END TRANSLATED TEXT -->

Latest revision as of 17:43, 1 October 2020



730418 - Lecture SB 01.08.26 - Los Angeles

तो जो मदमत्त हैं, वे नहीं समझ सकते हैं । वे सोचते हैं : "यह मेरी संपत्ति है । मैनें चोरी की है, मैने रेड़ इन्ड़ियन से अमेरिका की इस भूमि को चुराया है । अब यह मेरी संपत्ति है । " लेकिन वह नहीं जानता है कि वह चोर है । वह एक चोर है । स्तेन एव स उच्यते ( भ गी ३.१२) । भगवत गीता में । जो भगवान की संपत्ति लेता है, और अपने होने का दावा करता है, वह एक चोर है । स्तेन एव स उच्यते । इसलिए हमारा साम्यवादी विचार है, भक्त, कृष्ण भावनाभावित व्यक्ति । हमारा कृष्ण भावनाभावित साम्यवादी कार्यक्रम है । वह क्या है ? कि सब कुछ भगवान का है । जैसे वे सोच रहे हैं कि सब कुछ सरकार का है । ये कम्युनिस्ट, यह मास्को, मास्को के लोग, या रूसी, या चीनी, वे सरकार के लिहाज से सोच रहे हैं । लेकिन हम सरकार के लिहाज़ नहीं सोच रहे हैं । हम भगवान के लिहाज से सोच रहे हैं । सब कुछ भगवान का है । वही दर्शन । तुम विस्तार करो । केवल तुम्हे थोड़ी बुद्धि की आवश्यकता है, थोड़ी बुद्धि । क्यों तुम सोचते हो कि यह राज्य कुछ लोगों का है ?

अगर तुम सोचते हो कि जनसंख्या है, अमेरिकी जनसंख्या, यह अमेरिका इस आबादी का है । तुम्हे ऐसा क्यों लगता है ? तुम सोचो कि यह भगवान की संपत्ति है । तो हर जीव भगवान का एक बच्चा है । भगवान परम पिता है । श्री कृष्ण कहते हैं: अहम् बीज प्रद: पिता । "मैं सभी जीवों को बीज देने वाला पिता हूँ ।" सर्व-योनिषु कौन्तेय ( भ गी १४.४) "जिस भी रूप में वे रहते हैं, वे सब जीव हैं, वे मेरे बेटे हैं ।" असल में यह तथ्य है । हम सभी जीव, हम भगवान के बेटे हैं । लेकिन हम भूल गए हैं । इसलिए हम लड़ रहे हैं । जैसे एक अच्छे परिवार में, अगर कोई जानता है : "पिताजी भोजन का प्रबंध कर रहे हैं । तो हम भाइ, हम क्यों लड़ें ? "

इसी प्रकार यदि हम भगवान भावनाभावित हैं, अगर हम कृष्ण भावनाभावित बनते हैं, तो यह लड़ाई खत्म हो जाएगी । "मैं अमेरिकी हूँ, मैं भारतीय हूँ, मैं रूसी हूँ, मैं चीनी हूँ ।" ये सब बकवास बातें खत्म हो जाएँगी । कृष्ण भावनामृत आंदोलन इतना अच्छा है । जैसे ही लोग कृष्ण भावनाभावित हो जाते हैं, यह लड़ाई, यह राजनीतिक लड़ाई, राष्ट्रीय लड़ाई, तुरंत खत्म हो जाएगी । क्योंकि वे असली चेतना में अाऍगे कि सब कुछ भगवान का है । और जैसे बच्चे, परिवार के एक बच्चे का अधिकार है पिता से लाभ लेना, इसी तरह अगर हर कोई भगवान का अंशस्वरूप है, अगर हर कोई भगवान का बच्चा है, तो हर किसी को पिता की संपत्ति का उपयोग करने का अधिकार है ।

तो यह अधिकार यह नहीं है, कि केवल यह अधिकार मनुष्य का है । भगवद गीता के अनुसार, यह अधिकार सभी जीवों का है । कोई बात नहीं कि वह जीव है या जानवर या पेड़, या पक्षी या जानवर या कीट । यही कृष्ण भावनामृत है । हम एसा नहीं सोचते हैं कि केवल मेरा भाई अच्छा है, मैं अच्छा हूँ । और बाकी सब बुरे हैं । इस तरह की कृपण, तंग चेतना से हम नफरत करते हैं, हम लात मारते हैं । हम सोचते हैं : पंड़ित: सम दर्शिन: (भ गी ५.१८) । भगवद गीता में तुम पाअोगे ।

विद्या विनय सम्पन्ने
ब्रह्मणे गवि हस्तिनि
शुनि चैव श्व पाके च
पंड़िता: सम दर्शिन:
(भ गी ५.१८) ।

जो एक पंडित है , जो एक पंड़ित है, वह हर जीव को समान देखता है । इसलिए एक वैश्वणव इतना दयालु है । लोकानाम् हित कारिणौ । वे वास्तव में इंसान के लिए परोपकारी काम कर सकते हैं । वे देख रहे हैं, वास्तव में इन सभी जीवों के लिए महसूस करते हैं, वे भगवान के अंशस्वरूप हैं । किसी न किसी तरह से, वे इस भौतिक दुनिया के संपर्क में अा गए हैं, और, अलग अलग कर्म के अनुसार, उन्होंने शरीर के विभिन्न प्रकार ग्रहण किए हैं । तो पंडित, जो पंड़ित हैं, उनमें कोई भेदभाव नहीं है कि: "यह जानवर है, उसे क़साईख़ाना भेजा जाना चाहिए है, और यह आदमी है, वह इसे खाएगा । " नहीं । एक वास्तव में कृष्ण भावनाभावित व्यक्ति, वह हर किसी पर दया करता है । क्यों जानवरों की बलि किया जाना चाहिए? इसलिए हमारा दर्शन है कोई मांसाहार नहीं । कोई मांस खाना नहीं । तुम नहीं कर सकते । तो वे हमें सुनेंगे नहीं । "ओह, यह क्या बकवास है ? यह हमारा भोजन है। मैं क्यों नहीं खाऊँ ?" क्योंकि एधमान मद: (श्रीमद भागवतम १.८.२६) । वह मदमत्त धूर्त है । वह वास्तविक तथ्य नहीं सुनेगा ।