HI/Prabhupada 0910 - हमें हमेशा कोशिश करनी चाहिए की हम कृष्ण द्वारा शाषित रहे । यही सफल जीवन है: Difference between revisions

 
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प्रभुपाद: क्योंकि श्री कृष्ण के शरीर और आत्मा के बीच कोई अंतर नहीं है । वे केवल स्वयं हैं, आत्मा । तो अब हमें यह शरीर और आत्म मिली है मैं अात्मा हूँ, लेकिन मेरा यह शरीर है । तो जब हम वास्तव में श्री कृष्ण पर निर्भर होते हैं जैसे श्री कृष्ण अात्माराम हैं, उसी प्रकार हम भी अात्माराम हो सकते हैं श्री कृष्ण के साथ । कैवल्य, कैवल्य-पतये नमः (श्री भ १।८।२७) मायावदी दार्शनिक, वे, अद्वैतवादी, वे भवनान के साथ एक बनना चाहते हैं । जैसे भगवान अात्माराम हैं, वे भी अात्माराम बनना चाहते हैं उनमें लीन होकर । हमारा दर्शन भी वही है, कैवल्य । लेकिन हम श्री कृष्ण पर निर्भर करते हैं । हम एक नहीं होना चाहते हैं, श्री कृष्ण के साथ एक । यही भी एक होना ही है । अगर हम केवल श्री कृष्ण के आदेश का पालन करने के लिए सहमत होते हैं, कोई असहमति नहीं है, यह भी एकता है । ये मायावादी दार्शनिक, वे सोचते हैं कि: "मैं क्यों अलग व्यक्तिगत रखूँ, अलग अस्तित्व ? मैं लीन हो जाऊँगा..... " मैं यह संभव नहीं है । क्योंकि हमारा सृजन हुअा है.... सृजन नहीं, शुरूअात से ही हम विच्छिन्न अंशस्वरूप हैं । हम विच्छिन्न अंशस्वरूप हैं । इसलिए श्री कृष्ण भगवद गीता में कहते हैं: "मेरे प्यारे अर्जुन, तुम, मैं, और ये सभी व्यक्ति जो इस युद्ध के मैदान में एकत्रित हुए हैं, हम अतीत में व्यक्ति थे । हम वर्तमान में हैं, व्यक्ति, और भविष्य में, हम व्यक्तिय ही रहेंगे । हम सभी व्यष्टि हैं । " नित्यो नित्यानाम चेतनश चेतनानाम (कथा उपनिषद २।२।१३) वे परम नित्य हैं, परम अात्मा कईयों में, असंख्य जीव । हम जीव हैं, असंख्य, अनंत । कोई गिनती नहीं है कितने है हम । स अनंताय कल्पते । तो यह अनंत, असंख्य जीव, और श्री कृष्ण भी जीव हैं, लेकिन वे प्रमुख हैं । यही अंतर है । नित्यो नित्याना...... जैसे नेता होता है । नेता एक है, और अनुयाय, कई हैं । इसी प्रकार श्री कृष्ण परम जीव हैं, और हम अधीनस्थ, निर्भर जीव । यही अंतर है । निर्भर, हम समझ सकते हैं कि अगर श्री कृष्ण भोजन की आपूर्ति नहीं करते हैं, तो हम भूखे रहते हैं । यह एक तथ्य है । हम कुछ भी पैदा नहीं कर सकते हैं । एको यो बहुनाम विदधाति कामान । तो श्री कृष्ण पोषण कर रहे हैं अौर पोषित हैं । इसलिए श्री कृष्ण प्रबल हैं, हम उनके अाधीन रहेंगे । यही हमारी स्वाभाविक स्थिति है । इसलिए यदि हम झूठे तरीके से प्रबल होना चाहते हैं इस भोतिक दुनिया में, तो यह भ्रम है । हमें यह छोड़ देना चाहिए । हमें यह छोड़ देना चाहिए । हम हमेशा कोशिश करें कि हम पर कृष्ण प्रबल रहें । यही सफल जीवन है । बहुत बहुत धन्यवाद। ।
प्रभुपाद: क्योंकि श्री कृष्ण के शरीर और आत्मा के बीच कोई अंतर नहीं है । वे केवल स्वयं हैं, आत्मा । तो अब हमारे पास ये शरीर है और स्वयं हम है | मैं अात्मा हूँ, लेकिन मेरा यह शरीर है । तो जब हम वास्तव में श्री कृष्ण पर निर्भर होते हैं, जैसे श्री कृष्ण अात्माराम हैं, उसी प्रकार हम भी अात्माराम हो सकते हैं श्री कृष्ण के साथ । कैवल्य, कैवल्य-पतये नमः ([[Vanisource: SB 1.8.27 |श्रीमद भागवतम १..२७]]) |


भक्त : हरिबोल ! प्रभुपाद की जय !  
मायावादी दार्शनिक, वे, अद्वैतवादी, वे भगवान के साथ एक बनना चाहते हैं । जैसे भगवान अात्माराम हैं, वे भी अात्माराम बनना चाहते हैं उनमें लीन होकर । हमारा दर्शन भी वही है, कैवल्य । लेकिन हम श्री कृष्ण पर निर्भर करते हैं । हम एक नहीं होना चाहते हैं, श्री कृष्ण के साथ एक । यही भी एक होना ही है । अगर हम केवल श्री कृष्ण के आदेश का पालन करने के लिए सहमत होते हैं, कोई असहमति नहीं है, यह भी एकता है ।
 
ये मायावादी दार्शनिक, वे सोचते हैं की: "मैं क्यों अलग व्यक्तिगतता रखूँ, अलग अस्तित्व ? मैं लीन हो जाऊँगा..." ये संभव नहीं है । क्योंकि  हमारा सृजन हुअा है.... सृजन नहीं,  शुरूअात से ही हम विच्छिन्न अंशस्वरूप हैं । हम विच्छिन्न अंशस्वरूप हैं । इसलिए श्री कृष्ण भगवद गीता में कहते हैं: "मेरे प्यारे अर्जुन, तुम, मैं, और ये सभी व्यक्ति जो इस युद्ध के मैदान में एकत्रित हुए हैं, हम अतीत में व्यक्ति थे । हम वर्तमान में हैं, व्यक्ति, और भविष्य में, हम व्यक्ति ही रहेंगे । हम सभी व्यष्टि हैं । " नित्यो नित्यानाम चेतनश चेतनानाम (कठ उपनिषद २.२.१३) | वे परम नित्य हैं, परम अात्मा कईयों में, असंख्य जीवो में ।
 
हम जीव हैं, असंख्य, अनंत । कोई गिनती नहीं है कितने है हम । स अनंत्याय कल्पते । तो यह अनंत, असंख्य जीव, और श्री कृष्ण भी जीव हैं, लेकिन वे प्रमुख हैं । यही अंतर है । नित्यो नित्याना... जैसे नेता होता है । नेता एक है, और अनुयायी, कई हैं । इसी प्रकार श्री कृष्ण परम जीव हैं, और हम अधीनस्थ, निर्भर जीव । यही अंतर है । निर्भर, हम समझ सकते हैं कि अगर श्री कृष्ण भोजन की आपूर्ति नहीं करते हैं, तो हम भूखे रहते हैं । यह एक तथ्य है ।
 
हम कुछ भी पैदा नहीं कर सकते हैं । एको यो बहुनाम विदधाति कामान । तो श्री कृष्ण पोषण कर रहे हैं अौर हम पोषित हैं । इसलिए श्री कृष्ण प्रबल हैं, हम उनके अाधीन रहेंगे । यही हमारी स्वाभाविक  स्थिति है । इसलिए यदि हम झूठे तरीके से प्रबल होना चाहते हैं इस भोतिक दुनिया में, तो यह भ्रम है । हमें यह छोड़ देना चाहिए । हमें यह  छोड़ देना चाहिए । हमें हमेशा कोशिश करनी चाहिए की हम पर कृष्ण प्रबल रहें । यही सफल जीवन है । बहुत बहुत धन्यवाद। ।
 
भक्त: हरिबोल, प्रभुपाद की जय !  
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Latest revision as of 17:51, 1 October 2020



730419 - Lecture SB 01.08.27 - Los Angeles

प्रभुपाद: क्योंकि श्री कृष्ण के शरीर और आत्मा के बीच कोई अंतर नहीं है । वे केवल स्वयं हैं, आत्मा । तो अब हमारे पास ये शरीर है और स्वयं हम है | मैं अात्मा हूँ, लेकिन मेरा यह शरीर है । तो जब हम वास्तव में श्री कृष्ण पर निर्भर होते हैं, जैसे श्री कृष्ण अात्माराम हैं, उसी प्रकार हम भी अात्माराम हो सकते हैं श्री कृष्ण के साथ । कैवल्य, कैवल्य-पतये नमः (श्रीमद भागवतम १.८.२७) |

मायावादी दार्शनिक, वे, अद्वैतवादी, वे भगवान के साथ एक बनना चाहते हैं । जैसे भगवान अात्माराम हैं, वे भी अात्माराम बनना चाहते हैं उनमें लीन होकर । हमारा दर्शन भी वही है, कैवल्य । लेकिन हम श्री कृष्ण पर निर्भर करते हैं । हम एक नहीं होना चाहते हैं, श्री कृष्ण के साथ एक । यही भी एक होना ही है । अगर हम केवल श्री कृष्ण के आदेश का पालन करने के लिए सहमत होते हैं, कोई असहमति नहीं है, यह भी एकता है ।

ये मायावादी दार्शनिक, वे सोचते हैं की: "मैं क्यों अलग व्यक्तिगतता रखूँ, अलग अस्तित्व ? मैं लीन हो जाऊँगा..." ये संभव नहीं है । क्योंकि हमारा सृजन हुअा है.... सृजन नहीं, शुरूअात से ही हम विच्छिन्न अंशस्वरूप हैं । हम विच्छिन्न अंशस्वरूप हैं । इसलिए श्री कृष्ण भगवद गीता में कहते हैं: "मेरे प्यारे अर्जुन, तुम, मैं, और ये सभी व्यक्ति जो इस युद्ध के मैदान में एकत्रित हुए हैं, हम अतीत में व्यक्ति थे । हम वर्तमान में हैं, व्यक्ति, और भविष्य में, हम व्यक्ति ही रहेंगे । हम सभी व्यष्टि हैं । " नित्यो नित्यानाम चेतनश चेतनानाम (कठ उपनिषद २.२.१३) | वे परम नित्य हैं, परम अात्मा कईयों में, असंख्य जीवो में ।

हम जीव हैं, असंख्य, अनंत । कोई गिनती नहीं है कितने है हम । स अनंत्याय कल्पते । तो यह अनंत, असंख्य जीव, और श्री कृष्ण भी जीव हैं, लेकिन वे प्रमुख हैं । यही अंतर है । नित्यो नित्याना... जैसे नेता होता है । नेता एक है, और अनुयायी, कई हैं । इसी प्रकार श्री कृष्ण परम जीव हैं, और हम अधीनस्थ, निर्भर जीव । यही अंतर है । निर्भर, हम समझ सकते हैं कि अगर श्री कृष्ण भोजन की आपूर्ति नहीं करते हैं, तो हम भूखे रहते हैं । यह एक तथ्य है ।

हम कुछ भी पैदा नहीं कर सकते हैं । एको यो बहुनाम विदधाति कामान । तो श्री कृष्ण पोषण कर रहे हैं अौर हम पोषित हैं । इसलिए श्री कृष्ण प्रबल हैं, हम उनके अाधीन रहेंगे । यही हमारी स्वाभाविक स्थिति है । इसलिए यदि हम झूठे तरीके से प्रबल होना चाहते हैं इस भोतिक दुनिया में, तो यह भ्रम है । हमें यह छोड़ देना चाहिए । हमें यह छोड़ देना चाहिए । हमें हमेशा कोशिश करनी चाहिए की हम पर कृष्ण प्रबल रहें । यही सफल जीवन है । बहुत बहुत धन्यवाद। ।

भक्त: हरिबोल, प्रभुपाद की जय !