HI/Prabhupada 0913 - कृष्ण का कोई अतीत, वर्तमान, और भविष्य नहीं है । इसलिए वे शाश्वत हैं: Difference between revisions

 
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तो यह मुक्ति हर किसी के लिए उपलब्ध है। समम् चरन्तम । श्री कृष्ण नहीं कहते हैं कि : "तुम मेरे पास आअो । तुम मुक्त हो जाअो ।" नहीं, वे हर किसी के लिए उपलब्ध हैं । वे कहते हैं: सर्व-धर्मन परित्यज्य माम एकम् शरणम व्रज ( भ गी १८।६६) वे हर किसी से बात करते हैं । ऐसा नहीं है कि केवल अर्जुन से बोलते हैं । वे हर किसी से बात करते हैं । भगवद गीता केवल अर्जुन के लिए नहीं बोली गया है । अर्जुन हैं, केवल लक्ष्य की तरह । लेकिन यह हर किसी के लिए बोला गया है, सब मनुष्य के लिए । तो हमें लाभ लेना चाहिए । समम् चरन्तम । वे पक्षपाती नहीं हैं कि "तुम बनो......." जैसे धूप की तरह । धूप पक्षपाती नहीं है, कि: " यहाँ एक गरीब आदमी है, यहाँ एक कम-वर्ग का आदमी है, यहाँ एक सूअर है । मैं वहाँ अपनी चमक वितरित नहीं करूँगा ।" नहीं । सूर्य समान है । हमें इसका लाभ लेना चाहिए । धूप उपलब्ध है, लेकिन अगर तुम अपना दरवाजा बंद करते हो, अगर तुम अपने अाप को वायुरोधी अंधेरे में रखते हो, तो यह तुम्हारा नसीब है । इसी प्रकार श्री कृष्ण हर जगह हैं । श्री कृष्ण हर किसी के लिए हैं । श्री कृष्ण तुम्हे स्वीकार करने के लिए तैयार हैं जैसे ही तुम आत्मसमर्पण करते हो । समम् चरन्तम । कोई प्रतिबंध नहीं है । श्री कृष्ण कहते हैं: माम् हि पार्थ व्यपाश्रित्य ये अपि स्यु: पाप योनय: ( भ गी ९।३२) । वे भेद भाव करते हैं कि यह निम्न वर्ग का है, यहउच्च वर्ग का है । तो श्री कृष्ण कहते हैं, " निम्न वर्ग, तथाकथित निम्न वर्ग, कोई फर्क नहीं पड़ता है, अगर वह मेरी शरण में अाता है, तो वह भि योग्य है, वापस घर जाने के लिए, भगवान के धाम ।" समम् चरन्तम । और वे अनन्त समय हैं । सब कुछ समय के भीतर चल रहा है । समय ... हमारा समय की गणना है अतीत, वर्तमान और भविष्य । यह सापेक्ष है । हम चर्चा कर रहे थे उस दिन । यह अतीत, वर्तमान, भविष्य सापेक्ष शब्द है । एक छोटे से कीट के लिए अतीत, वर्तमान और भविष्य अलग है मेरा अतीत, वर्तमान और भविष्य से । सापेक्ष शब्द । इसी प्रकार ब्रह्मा का अतीत, वर्तमान और भविष्य, मेरे अतीत, वर्तमान और भविष्य से अलग है । लेकिन श्री कृष्ण का कोई अतीत, वर्तमान और भविष्य नहीं है । इसलिए वे शाश्वत हैं । हमारा अतीत, वर्तमान और भविष्य है क्योंकि हम इस शरीर को बदलते हैं । अब हमें यह शरीर मिला है ... इसका तारीख है । फलां तारीख को मैं अपने पिता और माँ से पैदा हुआ था । अब यह शरीर कुछ समय रहेगा । यह बड़ा होगा । यह कुछ उत्पादन करेगा । फिर यह बूढा हो जाएगा । फिर सूख जाएगा । फिर, खत्म गायब हो जाएगा । अब शरीर नहीं रहा । तुम एक और शरीर स्वीकार करते हो । यह शरीर समाप्त हो गया है । इस शरीर के अतीत, वर्तमान और भविष्य का इतिहास, समाप्त हो गया । तुम एक और शरीर स्वीकार करते हो । फिर से तुम्हारा अतीत, वर्तमान और भविष्य शुरू होता है । लेकिन श्री कृष्ण का कोई अतीत, वर्तमान नहीं है क्योंकि वे अपने शरीर को बदलते नहीं हैं । यही अंतर है हममे और श्री कृष्ण के बीच । जैसे श्री कृष्ण नें अर्जुन से बात की: "अतीत में, मैंने यह तत्वज्ञान, श्रीमद् भगवद् गीता सूर्य भगवान से कही ।" तो अर्जुन विश्वास नहीं कर सका । अर्जुन सब कुछ जानता था, लेकिन हमारे, हमारी शिक्षा के लिए, उसने यह प्रश्न रखा है कि: "श्री कृष्ण, हम समकालीन हैं, हम लगभग एक ही समय पैदा हुए हैं । मैं कैसे विश्वास करूँ कि अापने यह तत्वज्ञान सूर्य भगवान से कहा ? और उत्तर था कि : "मेरे प्यारे अर्जुन, तुम भी वहाँ मौजूद थे, लेकिन तुम भूल गए हो । मैं भूला नहीं । यही फर्क है । " अतीत, वर्तमान, भविष्य, जो भूल जाते हैं उनके लिए । लेकिन जो नहीं भूलते हैं, जो शाश्वत हैं, कोई अतीत, वर्तमान, भविष्य नहीं है । इसलिए, कुंती श्री कृष्ण को संबोधित करती हैं अनन्त के रूप में । मन्ये त्वाम कालम । और क्योंकि वे शाश्वत हैं , ईशानाम, वे पूर्ण नियंत्रक हैं । कुंती कहती हैं: मन्ये, "मुझे लगता है ..." श्री कृष्ण के व्यवहार से, वे समझ सकती हैं कि श्री कृष्ण शाश्वत हैं, श्री कृष्ण परम नियंत्रक हैं । अनादि- निधनम । अनादि-निधन ... कोई शुरुआत नहीं, कोई अंत नहीं है । इसलिए विभुम ।  
तो यह मुक्ति हर किसी के लिए उपलब्ध है। समम चरन्तम । श्री कृष्ण नहीं कहते हैं की: "तुम मेरे पास आअो । तुम मुक्त हो जाअो ।" नहीं, वे हर किसी के लिए उपलब्ध हैं । वे कहते हैं: सर्व-धर्मान परित्यज्य माम एकम शरणम व्रज ([[Vanisource: BG 18.66 (1972) |.गी. १८.६६]]) | वे हर किसी से बात करते हैं । ऐसा नहीं है कि केवल अर्जुन से बोलते हैं । वे हर किसी से बात करते हैं । भगवद गीता केवल अर्जुन के लिए नहीं बोली गई है । अर्जुन हैं, केवल लक्ष्य की तरह । लेकिन यह हर किसी के लिए बोला गया है, सभी मनुष्य के लिए । तो हमें लाभ लेना चाहिए ।  
 
समम चरन्तम । वे पक्षपाती नहीं हैं कि "तुम बनो..." जैसे धूप की तरह । धूप पक्षपाती नहीं है, की: " यहाँ एक गरीब आदमी है, यहाँ एक कम-वर्ग का आदमी है, यहाँ एक सूअर है । मैं वहाँ अपनी चमक वितरित नहीं करूँगा ।" नहीं । सूर्य समान है । हमें इसका लाभ लेना चाहिए । धूप उपलब्ध है, लेकिन अगर तुम अपना दरवाजा बंद करते हो, अगर तुम अपने अाप को वायुरोधी अंधेरे में रखते हो, तो यह तुम्हारा नसीब है ।  
 
इसी प्रकार श्री कृष्ण हर जगह हैं । श्री कृष्ण हर किसी के लिए हैं । श्री कृष्ण तुम्हे स्वीकार करने के लिए तैयार हैं जैसे ही तुम आत्मसमर्पण करते हो । समम चरन्तम । कोई प्रतिबंध नहीं है । श्री कृष्ण कहते हैं: माम हि पार्थ व्यपाश्रित्य ये अपि स्यु: पाप योनय: ([[Vanisource: BG 9.32 (1972) |.गी. ९.३२]]) । वे भेद भाव करते हैं कि यह निम्न वर्ग का है, यह उच्च वर्ग का है । तो कृष्ण कहते हैं, " निम्न वर्ग, तथाकथित निम्न वर्ग, कोई फर्क नहीं पड़ता है, अगर वह मेरी शरण में अाता है, तो वह भी योग्य है, वापस घर जाने के लिए, भगवद धाम ।" समम चरन्तम । और वे अनन्त समय हैं । सब कुछ समय के भीतर चल रहा है ।  
 
समय... हमारी समय की गणना है अतीत, वर्तमान और भविष्य । यह सापेक्ष है । हम चर्चा कर रहे थे उस दिन । यह अतीत, वर्तमान, भविष्य सापेक्ष शब्द है । एक छोटे से कीट के लिए अतीत, वर्तमान और भविष्य अलग है मेरे अतीत, वर्तमान और भविष्य से । सापेक्ष शब्द । इसी प्रकार ब्रह्मा का अतीत, वर्तमान और भविष्य, मेरे अतीत, वर्तमान और भविष्य से अलग है । लेकिन श्री कृष्ण का कोई अतीत, वर्तमान और भविष्य नहीं है । इसलिए वे शाश्वत हैं । हमारा अतीत, वर्तमान और भविष्य है क्योंकि हम इस शरीर को बदलते हैं । अब हमें यह शरीर मिला है... इसकी तारीख है । फलाना तारीख को मैं अपने पिता और माता से पैदा हुआ था । अब यह शरीर कुछ समय रहेगा । यह बड़ा होगा । यह कुछ उत्पादन करेगा । फिर यह बूढा हो जाएगा । फिर सूख जाएगा । फिर, खत्म, समाप्त हो जाएगा । अब शरीर नहीं रहा । तुम एक और शरीर स्वीकार करते हो । यह शरीर समाप्त हो गया है ।  
 
इस शरीर के अतीत, वर्तमान और भविष्य का इतिहास, समाप्त हो गया । तुम एक और शरीर स्वीकार करते हो । फिर से तुम्हारा अतीत, वर्तमान और भविष्य शुरू होता है । लेकिन श्री कृष्ण का कोई अतीत, वर्तमान नहीं है क्योंकि वे अपने शरीर को बदलते नहीं हैं । यही अंतर है हममे और श्री कृष्ण के बीच । जैसे श्री कृष्ण नें अर्जुन से बात की: "अतीत में, मैंने यह तत्वज्ञान, भगवद गीता, सूर्यदेव से कही ।" तो अर्जुन विश्वास नहीं कर सका । अर्जुन सब कुछ जानता था, लेकिन हमारी, हमारी शिक्षा के लिए, उसने यह प्रश्न रखा है की: "कृष्ण, हम समकालीन हैं, हम लगभग एक ही समय पैदा हुए हैं । मैं कैसे विश्वास करूँ कि अापने यह तत्वज्ञान सूर्यदेव से कहा ? और उत्तर था की: "मेरे प्यारे अर्जुन, तुम भी वहाँ मौजूद थे, लेकिन तुम भूल गए हो । मैं भूला नहीं । यही फर्क है । "  
 
अतीत, वर्तमान, भविष्य, जो भूल जाते हैं उनके लिए है । लेकिन जो नहीं भूलते हैं, जो शाश्वत हैं, कोई अतीत, वर्तमान, भविष्य नहीं है । इसलिए, कुंती श्री कृष्ण को संबोधित करती हैं अनन्त के रूप में । मन्ये त्वाम कालम । और क्योंकि वे शाश्वत, ईशानाम, है, वे पूर्ण नियंत्रक हैं । कुंती कहती हैं: मन्ये, "मुझे लगता है..." श्री कृष्ण के व्यवहार से, वे समझ सकती हैं कि श्री कृष्ण शाश्वत हैं, श्री कृष्ण परम नियंत्रक हैं । अनादि- निधनम । अनादि-निधन... कोई शुरुआत नहीं, कोई अंत नहीं है । इसलिए विभुम ।  
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Latest revision as of 15:04, 26 October 2018



730420 - Lecture SB 01.08.28 - Los Angeles

तो यह मुक्ति हर किसी के लिए उपलब्ध है। समम चरन्तम । श्री कृष्ण नहीं कहते हैं की: "तुम मेरे पास आअो । तुम मुक्त हो जाअो ।" नहीं, वे हर किसी के लिए उपलब्ध हैं । वे कहते हैं: सर्व-धर्मान परित्यज्य माम एकम शरणम व्रज (भ.गी. १८.६६) | वे हर किसी से बात करते हैं । ऐसा नहीं है कि केवल अर्जुन से बोलते हैं । वे हर किसी से बात करते हैं । भगवद गीता केवल अर्जुन के लिए नहीं बोली गई है । अर्जुन हैं, केवल लक्ष्य की तरह । लेकिन यह हर किसी के लिए बोला गया है, सभी मनुष्य के लिए । तो हमें लाभ लेना चाहिए ।

समम चरन्तम । वे पक्षपाती नहीं हैं कि "तुम बनो..." जैसे धूप की तरह । धूप पक्षपाती नहीं है, की: " यहाँ एक गरीब आदमी है, यहाँ एक कम-वर्ग का आदमी है, यहाँ एक सूअर है । मैं वहाँ अपनी चमक वितरित नहीं करूँगा ।" नहीं । सूर्य समान है । हमें इसका लाभ लेना चाहिए । धूप उपलब्ध है, लेकिन अगर तुम अपना दरवाजा बंद करते हो, अगर तुम अपने अाप को वायुरोधी अंधेरे में रखते हो, तो यह तुम्हारा नसीब है ।

इसी प्रकार श्री कृष्ण हर जगह हैं । श्री कृष्ण हर किसी के लिए हैं । श्री कृष्ण तुम्हे स्वीकार करने के लिए तैयार हैं जैसे ही तुम आत्मसमर्पण करते हो । समम चरन्तम । कोई प्रतिबंध नहीं है । श्री कृष्ण कहते हैं: माम हि पार्थ व्यपाश्रित्य ये अपि स्यु: पाप योनय: (भ.गी. ९.३२) । वे भेद भाव करते हैं कि यह निम्न वर्ग का है, यह उच्च वर्ग का है । तो कृष्ण कहते हैं, " निम्न वर्ग, तथाकथित निम्न वर्ग, कोई फर्क नहीं पड़ता है, अगर वह मेरी शरण में अाता है, तो वह भी योग्य है, वापस घर जाने के लिए, भगवद धाम ।" समम चरन्तम । और वे अनन्त समय हैं । सब कुछ समय के भीतर चल रहा है ।

समय... हमारी समय की गणना है अतीत, वर्तमान और भविष्य । यह सापेक्ष है । हम चर्चा कर रहे थे उस दिन । यह अतीत, वर्तमान, भविष्य सापेक्ष शब्द है । एक छोटे से कीट के लिए अतीत, वर्तमान और भविष्य अलग है मेरे अतीत, वर्तमान और भविष्य से । सापेक्ष शब्द । इसी प्रकार ब्रह्मा का अतीत, वर्तमान और भविष्य, मेरे अतीत, वर्तमान और भविष्य से अलग है । लेकिन श्री कृष्ण का कोई अतीत, वर्तमान और भविष्य नहीं है । इसलिए वे शाश्वत हैं । हमारा अतीत, वर्तमान और भविष्य है क्योंकि हम इस शरीर को बदलते हैं । अब हमें यह शरीर मिला है... इसकी तारीख है । फलाना तारीख को मैं अपने पिता और माता से पैदा हुआ था । अब यह शरीर कुछ समय रहेगा । यह बड़ा होगा । यह कुछ उत्पादन करेगा । फिर यह बूढा हो जाएगा । फिर सूख जाएगा । फिर, खत्म, समाप्त हो जाएगा । अब शरीर नहीं रहा । तुम एक और शरीर स्वीकार करते हो । यह शरीर समाप्त हो गया है ।

इस शरीर के अतीत, वर्तमान और भविष्य का इतिहास, समाप्त हो गया । तुम एक और शरीर स्वीकार करते हो । फिर से तुम्हारा अतीत, वर्तमान और भविष्य शुरू होता है । लेकिन श्री कृष्ण का कोई अतीत, वर्तमान नहीं है क्योंकि वे अपने शरीर को बदलते नहीं हैं । यही अंतर है हममे और श्री कृष्ण के बीच । जैसे श्री कृष्ण नें अर्जुन से बात की: "अतीत में, मैंने यह तत्वज्ञान, भगवद गीता, सूर्यदेव से कही ।" तो अर्जुन विश्वास नहीं कर सका । अर्जुन सब कुछ जानता था, लेकिन हमारी, हमारी शिक्षा के लिए, उसने यह प्रश्न रखा है की: "कृष्ण, हम समकालीन हैं, हम लगभग एक ही समय पैदा हुए हैं । मैं कैसे विश्वास करूँ कि अापने यह तत्वज्ञान सूर्यदेव से कहा ? और उत्तर था की: "मेरे प्यारे अर्जुन, तुम भी वहाँ मौजूद थे, लेकिन तुम भूल गए हो । मैं भूला नहीं । यही फर्क है । "

अतीत, वर्तमान, भविष्य, जो भूल जाते हैं उनके लिए है । लेकिन जो नहीं भूलते हैं, जो शाश्वत हैं, कोई अतीत, वर्तमान, भविष्य नहीं है । इसलिए, कुंती श्री कृष्ण को संबोधित करती हैं अनन्त के रूप में । मन्ये त्वाम कालम । और क्योंकि वे शाश्वत, ईशानाम, है, वे पूर्ण नियंत्रक हैं । कुंती कहती हैं: मन्ये, "मुझे लगता है..." श्री कृष्ण के व्यवहार से, वे समझ सकती हैं कि श्री कृष्ण शाश्वत हैं, श्री कृष्ण परम नियंत्रक हैं । अनादि- निधनम । अनादि-निधन... कोई शुरुआत नहीं, कोई अंत नहीं है । इसलिए विभुम ।