HI/Prabhupada 0922 - हम हर किसी से अनुरोध कर रहे हैं : कृपया मंत्र जपो, जपो, जपो: Difference between revisions

 
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एक कार्टून चित्र था, किसी अखबार में । शायद तुमको याद है । मॉन्ट्रियल में या यहाँ, मुझे याद नहीं है । एक बूढ़ी औरत और उसका पति, बैठे हैं, अामने सामने । महिला पति अनुरोध कर रही है: "मंत्र जपो, जपो, जपो ।" और पति का जवाब दे रहा है: "नहीं नहीं नहीं ।" (हंसी) तो यह चल रहा है । हम हर किसी से अनुरोध कर रहे हैं : " कृपया मंत्र जपो, जपो, जपो ।" और वे जवाब देते हैं: "नहीं नहीं नहीं ।" (हंसी) यह उनका दुर्भाग्य है । यह उनका दुर्भाग्य है ।
एक कार्टून चित्र था, किसी अखबार में । शायद तुमको याद है । मॉन्ट्रियल में या यहाँ, मुझे याद नहीं है । एक बूढ़ी औरत और उसका पति, बैठे हैं, अामने सामने । महिला पति अनुरोध कर रही है: "मंत्र जपो, जपो, जपो ।" और पति जवाब दे रहा है: "नहीं, नहीं, नहीं ।" (हंसी) तो यह चल रहा है । हम हर किसी से अनुरोध कर रहे हैं : "कृपया मंत्र जपो, जपो, जपो ।" और वे जवाब देते हैं: "नहीं, नहीं, नहीं ।" (हंसी) यह उनका दुर्भाग्य है । यह उनका दुर्भाग्य है ।  


तो फिर भी यह हमारा कर्तव्य है इस सभी अभागे जीवों को भाग्यशाली बनना । यही हमारा मिशन है । इसलिए हम सड़क पर जाते हैं और मंत्र जपते हैं । हालांकि वे कहते हैं कि : "नहीं कर सकते हैं ।" हम जप करते रहते हैं । हमारा काम है । और, किसी न किसी तरह से, हम उनके हाथ में कुछ साहित्य धरते हैं । वह भाग्यशाली होता जा रहा है । वह अपनी मेहनत की कमाई को गंवा देता इतने सारे बुरे, पापी कर्मों में, अौर अगर वह एक किताब खरीदता है, कोई बात नहीं कीमत क्या है, उसका पैसा ठीक से उपयोग किया जाता है । श्री कृष्ण भावनामृत की शुरुआत होती है वहॉ । क्योंकि वह कुछ पैसे दे रहा है, मेहनत की कमाई, इस कृष्ण भावनामृत आंदोलन के लिए, उसे कुछ आध्यात्मिक लाभ हो रहा है । वह हार नहीं रहा है । उसे कुछ आध्यात्मिक लाभ हो रहा है । इसलिए हमारा काम है, किसी न किसी तरह से, हर किसी को इस कृष्ण भावनामृत आंदोलन में लाना है । उसे फायदा होगा ।
तो फिर भी यह हमारा कर्तव्य है इस सभी अभागे जीवों को भाग्यशाली बनाना । यही हमारा मिशन है । इसलिए हम सड़क पर जाते हैं और कीर्तन करते हैं । हालांकि वे कहते हैं कि: "नहीं कर सकते हैं ।" हम कीर्तन करते रहते हैं । ये हमारा काम है । और, किसी न किसी तरह से, हम उनके हाथ में कुछ साहित्य धरते हैं । वह भाग्यशाली होता जा रहा है । वह अपनी मेहनत की कमाई को गंवा देता इतने सारे बुरे, पापी कर्मों में, अौर अगर वह एक किताब खरीदता है, कोई बात नहीं कीमत क्या है, उसका पैसा ठीक से उपयोग किया जाता है । कृष्ण भावनामृत की शुरुआत होती है वहॉ । क्योंकि वह कुछ पैसे दे रहा है, मेहनत की कमाई, इस कृष्ण भावनामृत आंदोलन के लिए, उसे कुछ आध्यात्मिक लाभ हो रहा है । वह हार नहीं रहा है । उसे कुछ आध्यात्मिक लाभ हो रहा है । इसलिए हमारा काम है, किसी न किसी तरह से, हर किसी को इस कृष्ण भावनामृत आंदोलन में लाना । उसे फायदा होगा ।  


तो यह प्रचार केवल मानव समाज में ही नहीं चल रहा है । श्री कृष्ण की योजना है इतनी महान है ... श्री कृष्ण मनुष्य के रूप में प्रकट हुए या, भगवान कृष्ण के रूप में, हर किसी को पता नहीं था कि वे भगवान हैं । वे साधारण मनुष्य की तरह व्यवहार कर रहे थे । साधारण नहीं । जब जरूरत था, उन्हें स्वयं को भगवान साबित किया । लेकिन आम तौर पर वे साधारण मनुष्य के रूप में जाने जाते थे ।
तो यह प्रचार केवल मानव समाज में ही नहीं चल रहा है । श्री कृष्ण की योजना है इतनी महान है... कृष्ण मनुष्य के रूप में प्रकट हुए या, भगवान कृष्ण के रूप में, हर किसी को पता नहीं था कि वे भगवान हैं । वे साधारण मनुष्य की तरह व्यवहार कर रहे थे । साधारण नहीं । जब जरूरत थी, उन्हें स्वयं को भगवान साबित किया । लेकिन आम तौर पर वे साधारण मनुष्य के रूप में जाने जाते थे । इसलिए शुकदेव गोस्वामी श्री कृष्ण का वर्णन कर रहे हैं एक वर्णन में जब वे गोप लड़कों के साथ खेल रहे थे । श्री कृष्ण । तो शुकदेव गोस्वामी यह दिखा रहै हैं कि कौन हैं वे गोप लडक़े ? उन्होंने कहा: इत्थम सताम...सुखानुभूत्या ([[Vanisource:SB 10.12.7-11|श्रीमद भागवतम १०.१२.११]]) । सताम ।  


इसलिए शुकदेव गोस्वामी श्री कृष्ण का वर्णन कर रहे हैं एक वर्णन में जब वे गोप लड़कों के साथ खेल रहे थे । श्री कृष्ण । तो शुकदेव गोस्वामी यह दिखा रहै हैं कि कौन हैं वे गोप लडक़े ? उन्होंने कहा: इत्थम सताम...सुखानुभूत्या ([[Vanisource:SB 10.12.7-11|श्री भ १०।१२।११]]) । सताम । मायावादी, वे अवैयक्तिक ब्रह्मण पर ध्यान कर रहे हैं और कुछ दिव्य आनंद महसूस कर रहे हैं । और शुकदेव गोस्वामी कहते हैं कि उस दिव्य आनंद का स्रोत है, श्री कृष्ण । अहम् सर्वस्य प्रभव: ([[Vanisource:BG 10.8|भ गी १०।८]]) । श्री कृष्ण सब कुछ का स्रोत हैं । इसलिए मायावादी जिस दिव्य आनंद का अनुभव करने का कोशिश कर रहे हैं अवैयक्तिक ब्रह्मण पर ध्यान करके, शुकदेव गोस्वामी कहते हैं: इत्थम सताम् ब्रह्म सुखानुभूत्या ([[Vanisource:SB 10.12.7-11|श्री भ १०।१२।११]]) ब्रह्म-सुखम, ब्रह्मण की प्राप्ति का दिव्य आनंद । दास्यम गतानाम् पर दैवतेन । यहाँ एक व्यक्ति है जो ब्रह्म-सुख का स्रोत है और दास्यम् गतानाम् पर दैवतेन । दास्यम गतानाम मतलब भक्त । एक भक्त हमेशा भगवान को सेवा प्रदान करने के लिए तैयार रहता है । दास्यम गतानाम् पर दैवतेन । भगवान । यहाँ ब्रह्म सुख का स्रोत है, यहाँ भगवान हैं । और ... और मायाश्रितानाम् नर दारकेण । और जो उनकी माया शक्ति के अाधीन हैं, उनके लिए वे साधारण लड़के हैं । तो वे हैं, धारणा के अनुसार, ये यथा माम् प्रपद्यन्ते ([[Vanisource:BG 4.11|भ गी ४।११]]).
मायावादी, वे अवैयक्तिक ब्रह्म पर ध्यान कर रहे हैं, और कुछ दिव्य आनंद महसूस कर रहे हैं । और शुकदेव गोस्वामी कहते हैं कि उस दिव्य आनंद का स्रोत है, श्री कृष्ण । अहम सर्वस्य प्रभव: ([[HI/BG 10.8|भ गी १०.८]]) । श्री कृष्ण हर किसी के स्रोत हैं । इसलिए मायावादी जिस दिव्य आनंद का अनुभव करने की कोशिश कर रहे हैं अवैयक्तिक ब्रह्म पर ध्यान करके, शुकदेव गोस्वामी कहते हैं: इत्थम सताम ब्रह्म सुखानुभूत्या ([[Vanisource:SB 10.12.7-11|श्रीमद भागवतम १०.१२.११]]) | ब्रह्म-सुखम, ब्रह्म की प्राप्ति का दिव्य आनंद । दास्यम गतानाम पर दैवतेन । यहाँ एक व्यक्ति है जो ब्रह्म-सुख का स्रोत है और दास्यम गतानाम पर दैवतेन । दास्यम गतानाम मतलब भक्त ।  
 
एक भक्त हमेशा भगवान को सेवा प्रदान करने के लिए तैयार रहता है । दास्यम गतानाम पर दैवतेन । भगवान । यहाँ ब्रह्म सुख का स्रोत है, यहाँ भगवान हैं । और ... और मायाश्रितानाम नर दारकेण । और जो उनकी माया शक्ति के अाधीन हैं, उनके लिए वे साधारण लड़के हैं । तो वे हैं, धारणा के अनुसार, ये यथा माम प्रपद्यन्ते ([[HI/BG 4.11|भ गी ४.११]]) |
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Latest revision as of 17:43, 1 October 2020



730422 - Lecture SB 01.08.30 - Los Angeles

एक कार्टून चित्र था, किसी अखबार में । शायद तुमको याद है । मॉन्ट्रियल में या यहाँ, मुझे याद नहीं है । एक बूढ़ी औरत और उसका पति, बैठे हैं, अामने सामने । महिला पति अनुरोध कर रही है: "मंत्र जपो, जपो, जपो ।" और पति जवाब दे रहा है: "नहीं, नहीं, नहीं ।" (हंसी) तो यह चल रहा है । हम हर किसी से अनुरोध कर रहे हैं : "कृपया मंत्र जपो, जपो, जपो ।" और वे जवाब देते हैं: "नहीं, नहीं, नहीं ।" (हंसी) यह उनका दुर्भाग्य है । यह उनका दुर्भाग्य है ।

तो फिर भी यह हमारा कर्तव्य है इस सभी अभागे जीवों को भाग्यशाली बनाना । यही हमारा मिशन है । इसलिए हम सड़क पर जाते हैं और कीर्तन करते हैं । हालांकि वे कहते हैं कि: "नहीं कर सकते हैं ।" हम कीर्तन करते रहते हैं । ये हमारा काम है । और, किसी न किसी तरह से, हम उनके हाथ में कुछ साहित्य धरते हैं । वह भाग्यशाली होता जा रहा है । वह अपनी मेहनत की कमाई को गंवा देता इतने सारे बुरे, पापी कर्मों में, अौर अगर वह एक किताब खरीदता है, कोई बात नहीं कीमत क्या है, उसका पैसा ठीक से उपयोग किया जाता है । कृष्ण भावनामृत की शुरुआत होती है वहॉ । क्योंकि वह कुछ पैसे दे रहा है, मेहनत की कमाई, इस कृष्ण भावनामृत आंदोलन के लिए, उसे कुछ आध्यात्मिक लाभ हो रहा है । वह हार नहीं रहा है । उसे कुछ आध्यात्मिक लाभ हो रहा है । इसलिए हमारा काम है, किसी न किसी तरह से, हर किसी को इस कृष्ण भावनामृत आंदोलन में लाना । उसे फायदा होगा ।

तो यह प्रचार केवल मानव समाज में ही नहीं चल रहा है । श्री कृष्ण की योजना है इतनी महान है... कृष्ण मनुष्य के रूप में प्रकट हुए या, भगवान कृष्ण के रूप में, हर किसी को पता नहीं था कि वे भगवान हैं । वे साधारण मनुष्य की तरह व्यवहार कर रहे थे । साधारण नहीं । जब जरूरत थी, उन्हें स्वयं को भगवान साबित किया । लेकिन आम तौर पर वे साधारण मनुष्य के रूप में जाने जाते थे । इसलिए शुकदेव गोस्वामी श्री कृष्ण का वर्णन कर रहे हैं एक वर्णन में जब वे गोप लड़कों के साथ खेल रहे थे । श्री कृष्ण । तो शुकदेव गोस्वामी यह दिखा रहै हैं कि कौन हैं वे गोप लडक़े ? उन्होंने कहा: इत्थम सताम...सुखानुभूत्या (श्रीमद भागवतम १०.१२.११) । सताम ।

मायावादी, वे अवैयक्तिक ब्रह्म पर ध्यान कर रहे हैं, और कुछ दिव्य आनंद महसूस कर रहे हैं । और शुकदेव गोस्वामी कहते हैं कि उस दिव्य आनंद का स्रोत है, श्री कृष्ण । अहम सर्वस्य प्रभव: (भ गी १०.८) । श्री कृष्ण हर किसी के स्रोत हैं । इसलिए मायावादी जिस दिव्य आनंद का अनुभव करने की कोशिश कर रहे हैं अवैयक्तिक ब्रह्म पर ध्यान करके, शुकदेव गोस्वामी कहते हैं: इत्थम सताम ब्रह्म सुखानुभूत्या (श्रीमद भागवतम १०.१२.११) | ब्रह्म-सुखम, ब्रह्म की प्राप्ति का दिव्य आनंद । दास्यम गतानाम पर दैवतेन । यहाँ एक व्यक्ति है जो ब्रह्म-सुख का स्रोत है और दास्यम गतानाम पर दैवतेन । दास्यम गतानाम मतलब भक्त ।

एक भक्त हमेशा भगवान को सेवा प्रदान करने के लिए तैयार रहता है । दास्यम गतानाम पर दैवतेन । भगवान । यहाँ ब्रह्म सुख का स्रोत है, यहाँ भगवान हैं । और ... और मायाश्रितानाम नर दारकेण । और जो उनकी माया शक्ति के अाधीन हैं, उनके लिए वे साधारण लड़के हैं । तो वे हैं, धारणा के अनुसार, ये यथा माम प्रपद्यन्ते (भ गी ४.११) |