HI/Prabhupada 0927 - कैसे तुम कृष्ण का विश्लेषण करोगे ? वे असीमित हैं । यह असंभव है: Difference between revisions

 
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तो जो सब से पहले विश्लेषण करने का सोच रहे हैं कि श्री कृष्ण का, कि वे भगवान हैं या नहीं, वे प्रथम श्रेणी के भक्त नहीं हैं । जिनका सहज प्रेम है श्री कृष्ण के लिए, वे प्रथम श्रेणी के भक्त हैं । तुम कैसे श्री कृष्ण का विश्लेषण करोगे ? वे असीमित हैं । यह असंभव है । तो यह प्रयास ... हमें विश्लेषण करने की कोशिश नहीं करनी चाहिए, श्री कृष्ण को जानने के लिए, यह असंभव है । हमारी सीमित धारणा है, हमारी इंद्रियों को सीमित शक्ति मिली है । हम कैसे श्री कृष्ण का अध्ययन कर सकते हैं ? यह बिल्कुल संभव नहीं है । जितना श्री कृष्ण स्वयं का बोध कराते हैं, यह पर्याप्त है । कोशिश मत करो । यही नहीं है ...
तो जो सब से पहले कृष्ण का विश्लेषण करने का सोच रहे हैं, की वे भगवान हैं या नहीं, वे प्रथम श्रेणी के भक्त नहीं हैं । जिनका सहज प्रेम है श्री कृष्ण के लिए, वे प्रथम श्रेणी के भक्त हैं । तुम कैसे श्री कृष्ण का विश्लेषण करोगे ? वे असीमित हैं । यह असंभव है । तो यह प्रयास... हमें विश्लेषण करने की कोशिश नहीं करनी चाहिए, श्री कृष्ण को जानने के लिए, यह असंभव है । हमारी सीमित धारणा है, हमारी इंद्रियों को सीमित शक्ति मिली है । हम कैसे श्री कृष्ण का अध्ययन कर सकते हैं ? यह बिल्कुल संभव नहीं है । जितना श्री कृष्ण स्वयं का बोध कराते हैं, यह पर्याप्त है । कोशिश मत करो । यही नहीं है... नेति नेति ।


नेति नेति । जैसे मायावादी, वे भगवान को ढूँढने की कोशिश कर रहे हैं, कहॉ हैं भगवान, कौन है भगवान । नेति, यह नहीं । वे केवल "यह नहीं है।" उनका दर्शन "यह नहीं " पर आधारित है । और यह क्या है, वे नहीं जानते । तथाकथित वैज्ञानि, वे भी, वे परम कारण का पता लगाने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन उनकी प्रक्रिया है "यह नहीं है।" इतना ही । जितना वे आगे बढ़ रहे हैं, वे पता लगाते हैं "यह नहीं" और वह क्या है, वे कभी नहीं पाऍगे । वे कभी नहीं पाऍगे । वे कहते है, " यह नहीं," लेकिन यह क्या है, यह संभव नहीं है । यह संभव नहीं है ।
जैसे मायावादी, वे भगवान को ढूँढने की कोशिश कर रहे हैं, कहॉ हैं भगवान, कौन है भगवान । नेति, यह नहीं । वे केवल "यह नहीं है ।" उनका दर्शन "यह नहीं " पर आधारित है । और यह क्या है, वे नहीं जानते । तथाकथित वैज्ञानिक, वे भी, वे परम कारण का पता लगाने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन उनकी प्रक्रिया है "यह नहीं है ।" इतना ही । जितना वे आगे बढ़ रहे हैं, वे पता लगाते हैं "यह नहीं," और वह क्या है, वे कभी नहीं पाऍगे । वे कभी नहीं पाऍगे । वे कहते है, " यह नहीं," लेकिन यह क्या है, यह संभव नहीं है । यह संभव नहीं है ।  


:पंथास तु कोटि शत वत्सर संप्रगम्यो
:पंथास तु कोटि शत वत्सर संप्रगम्यो  
:वायोर अथापि मनसो मुनि पंगवानाम
:वायोर अथापि मनसो मुनि पुंगवानाम
:अो अप्यस्ति यत प्रपद सीम्नि अविचिन्त्य तत्वे
:सो अप्यस्ति यत प्रपद सीम्नि अविचिन्त्य तत्वे  
:गोविंदम अादि पुरुषम तम अहम भजामि
:गोविंदम अादि पुरुषम तम अहम भजामि  
:( ब्र स ५।३४)
:(ब्रह्मसंहिता ५.३४)


तो श्री कृष्ण की क्या बात करें, यह भौतिक वस्तु भी । वे चंद्रमा ग्रह पर जाने की कोशिश कर रहे हैं । असल में वे जानते नहीम है कि यह क्या है । तो फिर क्यों वे वापस आ रहे हैं ? अगर वे इसे अच्छी तरह से जानते, कि यह क्या है, तो वे अब तक वहाँ बस जाते । वे पिछले बीस वर्षों से कोशिश कर रहे हैं । केवल वे देख रहे हैं । "यह नहीं " । कोई जीव नहीं है । वहां हमारे रहने की कोई संभावना नहीं है । इतने सारे "नहीं" और "हाँ" क्या है? नहीं, वे नहीं जानते । और यह केवल एक ग्रह या एक सितारा है । चंद्रमा ग्रह सितारे के रूप में लिया जाता है । वैज्ञानिक, वे कहते हैं कि, सितारे सब सूर्य हैं लेकिन हमारी जानकारी के अनुसार भगवद गीता में : नक्षत्राणाम यथा शशी । शशि मतलब चाँद इतने सारे सितारों की तरह ही है । तो चंद्रमा की स्थिति क्या है ? चंद्रमा उज्ज्वल है सूर्य का प्रतिबिंब होने के कारण । तो हमारी गणना के अनुसार सूर्य एक है । लेकिन आधुनिक वैज्ञानिक कहते हैं कि इतने सारे सूर्य हैं, सितारे । हम इस बात से सहमत नहीं है । केवल एक ही ब्रह्मांड है । सूर्य अनेक हैं, असंख्य, लेकिन प्रत्येक सूर्य में, हर ब्रह्मांड में, एक सूर्य है, कई नहीं । तो यह ब्रह्मांड, जो हम अनुभव कर रहे हैं, अनुभव कर रहे हैं अपूर्ण दृष्टी से .... हम नहीं जानते । हम इसकी गिनती नहीं कर सकते हैं, कितने तारे हैं, कितने ग्रह हैं । यह असंभव है। तो हमारे सामने जो भौतिक बातें हैं, फिर भी हम गिनती करने में असमर्थ हैं, समझने में, और भगवान की क्या बात करें जिन्होंने इस ब्रह्मांड का सृजन किया ? यह संभव नहीं है
तो कृष्ण की क्या बात करें, यह भौतिक वस्तु भी । वे चंद्र ग्रह पर जाने की कोशिश कर रहे हैं । असल में वे जानते नहीं है कि यह क्या है । तो फिर क्यों वे वापस आ रहे हैं ? अगर वे इसे अच्छी तरह से जानते, कि यह क्या है, तो वे अब तक वहाँ बस जाते । वे पिछले बीस वर्षों से कोशिश कर रहे हैं । केवल वे देख रहे हैं । "यह नहीं " । कोई जीव नहीं है । वहां हमारे रहने की कोई संभावना नहीं है । इतने सारे "नहीं | " और "हाँ" क्या है? नहीं, वे नहीं जानते । और यह केवल एक ग्रह या एक सितारा है । चंद्र ग्रह सितारे के रूप में लिया जाता है । वैज्ञानिक, वे कहते हैं कि, सितारे सब सूर्य हैं, लेकिन हमारी जानकारी के अनुसार भगवद गीता में: नक्षत्राणाम यथा शशी । शशि मतलब चाँद इतने सारे सितारों की तरह ही है । तो चंद्र की स्थिति क्या है ? चंद्र उज्ज्वल है सूर्य का प्रतिबिंब होने के कारण ।  


इसलिए यह कहा जाता है ब्रह्म-संहिता में: पंथास तु कोटि शत वत्सर संप्रगम्य: ( ब्र स ५।३४) पंथास... कोटि-शत-वत्सर अंतरिक्ष असीमित है । अब तुम अपना हवाई जहाज या स्पुटनिक या कैप्सूल ले जाअो। ... उन्होंने कई बातों का आविष्कार किया है । तो तुम चलते चलो । अब तुम कितने घंटे या दिन या साल चलोगे ? नहीं । पंथास तु कोटि शत वत्सर । लाखों वर्षों के लिए, कोटि-शत- वत्सर, अपनी गति के साथ चलो । पंथास तु कोटि शत वत्सर संप्रगम्य: । और मैं कैसे जाऊँ ? अब हवा के वेग पर चल रहा है जो विमान उस पर । इस वेग से नहीं, इस गति से नहीं, ५०० मील या १००० मील प्रति घंटा । नहीं । हवा की गति क्या है ?
तो हमारी गणना के अनुसार सूर्य एक है । लेकिन आधुनिक वैज्ञानिक कहते हैं कि इतने सारे सूर्य हैं, सितारे । हम इस बात से सहमत नहीं है । केवल एक ही ब्रह्मांड है । सूर्य अनेक हैं, असंख्य, लेकिन प्रत्येक सूर्य में, हर ब्रह्मांड में, एक ही सूर्य है, ज़्यादा नहीं । तो यह ब्रह्मांड, जो हम अनुभव कर रहे हैं, अनुभव कर रहे हैं अपूर्ण दृष्टी से... हम नहीं जानते हम इसकी गिनती नहीं कर सकते हैं,  कितने तारे हैं, कितने ग्रह हैं यह असंभव है। तो हमारे सामने जो भौतिक बातें हैं, फिर भी हम गिनती करने में असमर्थ हैं, समझने में, और भगवान की क्या बात करें जिन्होंने इस ब्रह्मांड का सृजन किया ?


स्वरूप दामोदर : प्रति सेकंड १९६००० मील की दूरी ।
यह संभव नहीं है । इसलिए यह कहा जाता है ब्रह्म-संहिता में: पंथास तु कोटि शत वत्सर संप्रगम्य: (ब्रह्मसंहिता ५.३४) | पंथास... कोटि-शत-वत्सर । अंतरिक्ष असीमित है । अब तुम अपना हवाई जहाज या स्पुटनिक या कैप्सूल ले जाअो... उन्होंने कई चीज़ो का आविष्कार किया है । तो तुम चलते चलो । अब तुम कितने घंटे या दिन या साल चलोगे ? नहीं । पंथास तु कोटि शत वत्सर । लाखों वर्षों के लिए, कोटि-शत-वत्सर, अपनी गति के साथ चलो । पंथास तु कोटि शत वत्सर संप्रगम्य: । और मैं कैसे जाऊँ ? अब हवा के वेग पर चल रहा है जो विमान उस पर । इस वेग से नहीं, इस गति से नहीं, ५०० मील या १००० मील प्रति घंटा ।  नहीं । हवा की गति क्या है ?


प्रभुपाद: प्रति सेकंड ९६ मील । ये वैदिक साहित्य में वर्णित हैं, कि अगर तुम इस गति से, हवा की, ९६००० मील प्रति सेकंड ... तो जऱा सोचो कि हवा की गति क्या है । तो पंथास तु कोटि शत वत्सर संप्रगम्य: ( ब्र स ५।३४) । उस विमान पर जो हवा की गति पर चल रहा है । वह गति, और लाखों वर्षों के लिए । तो फिर सुझाव दिया गया है कि न केवल हवा की गति बल्कि मन की गति भी ।
स्वरूप दामोदर: प्रति सेकंड १,९६,००० मील ।
 
प्रभुपाद: प्रति सेकंड ९६ मील । ये वैदिक साहित्य में वर्णित हैं, की अगर तुम इस गति से, हवा की, ९६,००० मील प्रति सेकंड... तो जऱा सोचो कि हवा की गति क्या है । तो पंथास तु कोटि शत वत्सर संप्रगम्य: (ब्रह्मसंहिता ५.३४) । उस विमान पर जो हवा की गति पर चल रहा है । वह गति, और लाखों वर्षों के लिए । तो फिर सुझाव दिया गया है कि न केवल हवा की गति बल्कि मन की गति भी ।  
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Latest revision as of 17:43, 1 October 2020



730423 - Lecture SB 01.08.31 - Los Angeles

तो जो सब से पहले कृष्ण का विश्लेषण करने का सोच रहे हैं, की वे भगवान हैं या नहीं, वे प्रथम श्रेणी के भक्त नहीं हैं । जिनका सहज प्रेम है श्री कृष्ण के लिए, वे प्रथम श्रेणी के भक्त हैं । तुम कैसे श्री कृष्ण का विश्लेषण करोगे ? वे असीमित हैं । यह असंभव है । तो यह प्रयास... हमें विश्लेषण करने की कोशिश नहीं करनी चाहिए, श्री कृष्ण को जानने के लिए, यह असंभव है । हमारी सीमित धारणा है, हमारी इंद्रियों को सीमित शक्ति मिली है । हम कैसे श्री कृष्ण का अध्ययन कर सकते हैं ? यह बिल्कुल संभव नहीं है । जितना श्री कृष्ण स्वयं का बोध कराते हैं, यह पर्याप्त है । कोशिश मत करो । यही नहीं है... नेति नेति ।

जैसे मायावादी, वे भगवान को ढूँढने की कोशिश कर रहे हैं, कहॉ हैं भगवान, कौन है भगवान । नेति, यह नहीं । वे केवल "यह नहीं है ।" उनका दर्शन "यह नहीं " पर आधारित है । और यह क्या है, वे नहीं जानते । तथाकथित वैज्ञानिक, वे भी, वे परम कारण का पता लगाने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन उनकी प्रक्रिया है "यह नहीं है ।" इतना ही । जितना वे आगे बढ़ रहे हैं, वे पता लगाते हैं "यह नहीं," और वह क्या है, वे कभी नहीं पाऍगे । वे कभी नहीं पाऍगे । वे कहते है, " यह नहीं," लेकिन यह क्या है, यह संभव नहीं है । यह संभव नहीं है ।

पंथास तु कोटि शत वत्सर संप्रगम्यो
वायोर अथापि मनसो मुनि पुंगवानाम
सो अप्यस्ति यत प्रपद सीम्नि अविचिन्त्य तत्वे
गोविंदम अादि पुरुषम तम अहम भजामि
(ब्रह्मसंहिता ५.३४) ।

तो कृष्ण की क्या बात करें, यह भौतिक वस्तु भी । वे चंद्र ग्रह पर जाने की कोशिश कर रहे हैं । असल में वे जानते नहीं है कि यह क्या है । तो फिर क्यों वे वापस आ रहे हैं ? अगर वे इसे अच्छी तरह से जानते, कि यह क्या है, तो वे अब तक वहाँ बस जाते । वे पिछले बीस वर्षों से कोशिश कर रहे हैं । केवल वे देख रहे हैं । "यह नहीं " । कोई जीव नहीं है । वहां हमारे रहने की कोई संभावना नहीं है । इतने सारे "नहीं | " और "हाँ" क्या है? नहीं, वे नहीं जानते । और यह केवल एक ग्रह या एक सितारा है । चंद्र ग्रह सितारे के रूप में लिया जाता है । वैज्ञानिक, वे कहते हैं कि, सितारे सब सूर्य हैं, लेकिन हमारी जानकारी के अनुसार भगवद गीता में: नक्षत्राणाम यथा शशी । शशि मतलब चाँद इतने सारे सितारों की तरह ही है । तो चंद्र की स्थिति क्या है ? चंद्र उज्ज्वल है सूर्य का प्रतिबिंब होने के कारण ।

तो हमारी गणना के अनुसार सूर्य एक है । लेकिन आधुनिक वैज्ञानिक कहते हैं कि इतने सारे सूर्य हैं, सितारे । हम इस बात से सहमत नहीं है । केवल एक ही ब्रह्मांड है । सूर्य अनेक हैं, असंख्य, लेकिन प्रत्येक सूर्य में, हर ब्रह्मांड में, एक ही सूर्य है, ज़्यादा नहीं । तो यह ब्रह्मांड, जो हम अनुभव कर रहे हैं, अनुभव कर रहे हैं अपूर्ण दृष्टी से... हम नहीं जानते । हम इसकी गिनती नहीं कर सकते हैं, कितने तारे हैं, कितने ग्रह हैं । यह असंभव है। तो हमारे सामने जो भौतिक बातें हैं, फिर भी हम गिनती करने में असमर्थ हैं, समझने में, और भगवान की क्या बात करें जिन्होंने इस ब्रह्मांड का सृजन किया ?

यह संभव नहीं है । इसलिए यह कहा जाता है ब्रह्म-संहिता में: पंथास तु कोटि शत वत्सर संप्रगम्य: (ब्रह्मसंहिता ५.३४) | पंथास... कोटि-शत-वत्सर । अंतरिक्ष असीमित है । अब तुम अपना हवाई जहाज या स्पुटनिक या कैप्सूल ले जाअो... उन्होंने कई चीज़ो का आविष्कार किया है । तो तुम चलते चलो । अब तुम कितने घंटे या दिन या साल चलोगे ? नहीं । पंथास तु कोटि शत वत्सर । लाखों वर्षों के लिए, कोटि-शत-वत्सर, अपनी गति के साथ चलो । पंथास तु कोटि शत वत्सर संप्रगम्य: । और मैं कैसे जाऊँ ? अब हवा के वेग पर चल रहा है जो विमान उस पर । इस वेग से नहीं, इस गति से नहीं, ५०० मील या १००० मील प्रति घंटा । नहीं । हवा की गति क्या है ?

स्वरूप दामोदर: प्रति सेकंड १,९६,००० मील ।

प्रभुपाद: प्रति सेकंड ९६ मील । ये वैदिक साहित्य में वर्णित हैं, की अगर तुम इस गति से, हवा की, ९६,००० मील प्रति सेकंड... तो जऱा सोचो कि हवा की गति क्या है । तो पंथास तु कोटि शत वत्सर संप्रगम्य: (ब्रह्मसंहिता ५.३४) । उस विमान पर जो हवा की गति पर चल रहा है । वह गति, और लाखों वर्षों के लिए । तो फिर सुझाव दिया गया है कि न केवल हवा की गति बल्कि मन की गति भी ।