HI/Prabhupada 0934 - आत्मा की आवश्यकता की परवाह न करना, यह मूर्ख सभ्यता है: Difference between revisions
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भक्त: अनुवाद: "दूसरे कहते है कि, क्योंकि वसुदेव और देवकी नें प्रार्थना की अापसे, आपने उनके बेटे के रूप में जन्म लिया है । | भक्त: अनुवाद: "दूसरे कहते है कि, क्योंकि वसुदेव और देवकी नें प्रार्थना की अापसे, आपने उनके बेटे के रूप में जन्म लिया है । निःसंदेह आप अजन्मे हैं, फिर भी आप उनके कल्याण के लिए जन्म लेते हैं, और जो देवताअों से ईर्षालु है उनका नाश करने के लिए जन्म लेते है ।" | ||
प्रभुपाद: तो अवतार लेने के दो उद्देश्य हैं । यह भगवद गीता में बताया गया है । | प्रभुपाद: तो अवतार लेने के दो उद्देश्य हैं । यह भगवद गीता में बताया गया है । | ||
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भगवान कहते हैं कि जहाॅ भी अनियमितताऍ होती हैं, धर्मस्य, धर्म की अनियमितताऍ... ग्लानि: । ग्लानि का अर्थ अनियमितताऍ । जैसे तुम कुछ सेवा कर रहे हो । अनियमितताऍ हो सकती हैं । तो फिर यह प्रदूषित हो जाता है । तो यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर भवति... धर्मस्य ग्लानिर भवति का अर्थ है अधर्म का विकास होना । मतलह अगर तुम्हारे धन में कमी होती है, तो तुम्हारी गरीबी बढती है, संतुलन । तुम अगर इस ओर बढ़ाते हो, तो दूसरे पक्ष में वृद्धि होगी, अौर अगर दूसरी तरफ बढाते हो, तो इस तरफ... लेकिन तुम्हे संतुलन रखना होगा । यह आवश्यक है । | |||
जैसे कि एक धूर्त... वह केवल कोट को धो | तो मानव समाज में, वे संतुलन रखने के लिए होती है । वह संतुलन क्या है? वे नहीं जानते हैं... यह तराज़ू की तरह है । एक तरफ अध्यात्म, दूसरी तरफ पदार्थ । अब हम वास्तव में आत्मा हैं । किसी न किसी तरह से हम इस शरीर में कैद हैं, भौतिक शरीर । इस कारण, जब तक हमारा यह शरीर है, हमारी शरीर की आवश्यकताऍ हैं, खाना, सोना, संभोग, रक्षण । ये शरीर की आवश्यकताएं हैं। आत्मा को इन सब बातों की आवश्यकता नहीं है। आत्मा को भोजन की अावश्यक्ता नहीं । यह हम नहीं जानते हैं । | ||
जो भी हम खा रहे हैं, यह है, शरीर के पालन के लिए । तो शारीरिक आवश्यकताऍ हैं, लेकिन अगर तुम केवल शारीरिक आवश्यकताओं का ख्याल रखोगे और आत्मा की आवश्यकताअों का नहीं, यो यह मूर्ख सभ्यता है। कोई संतुलन नहीं । वे नहीं जानते । जैसे कि एक धूर्त... वह केवल कोट को धो रहा हैं, लेकिन शरीर की देखभाल नहीं करता । या एक पक्षी पिंजरे में है और तुम पिंजरे का ख्याल रखो और पिंजरे के भीतर पक्षी की देखभाल न करो... पक्षी रो रहा है: "का का, मुझे खाना दो, मुझे खाना दो ।" लेकिन तुम पिंजरे का ख्याल रख रहे हो । यह मूर्खता है । | |||
तो क्यों हम नाखुश हैं ? क्यों, तुम्हारे देश में विशेष रूप से... तुम्हारा देश दुनिया में सबसे अमीर देश जाना जाता है । तुम्हारे देश में कोई कमी नहीं है । भोजन की कोई कमी नहीं, मोटर गाडी की कोई कमी नहीं, बैंक बैलेंस की कोई कमी नहीं, मैथुन की कोई कमी नहीं। सब कुछ है, पूरा, बहुतायत में । और फिर भी क्यों लोगों का एक वर्ग निराश है और हिप्पी की तरह भ्रमित है ? वे संतुष्ट नहीं हैं । क्यूँ ? यही दोष है । कोई संतुलन नहीं है। तुम जीवन की शारीरिक जरूरतों का ख्याल रख रहे हो, लेकिन तुम्हे आत्मा की कोई जानकारी नहीं है। और आत्मा की जरूरत भी होती है । आत्मा असली विषय-वस्तु है । शरीर केवल अावरण है। | |||
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Latest revision as of 17:43, 1 October 2020
Lecture on SB 1.8.33 -- Los Angeles, April 25, 1972
भक्त: अनुवाद: "दूसरे कहते है कि, क्योंकि वसुदेव और देवकी नें प्रार्थना की अापसे, आपने उनके बेटे के रूप में जन्म लिया है । निःसंदेह आप अजन्मे हैं, फिर भी आप उनके कल्याण के लिए जन्म लेते हैं, और जो देवताअों से ईर्षालु है उनका नाश करने के लिए जन्म लेते है ।"
प्रभुपाद: तो अवतार लेने के दो उद्देश्य हैं । यह भगवद गीता में बताया गया है ।
- यदा यदा हि धर्मस्य
- ग्लानिर भवति भारत
- अभ्युथानम अधर्मस्य
- तदात्मानम सृजाम्यहम
- (भ.गी. ४.७) ।
भगवान कहते हैं कि जहाॅ भी अनियमितताऍ होती हैं, धर्मस्य, धर्म की अनियमितताऍ... ग्लानि: । ग्लानि का अर्थ अनियमितताऍ । जैसे तुम कुछ सेवा कर रहे हो । अनियमितताऍ हो सकती हैं । तो फिर यह प्रदूषित हो जाता है । तो यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर भवति... धर्मस्य ग्लानिर भवति का अर्थ है अधर्म का विकास होना । मतलह अगर तुम्हारे धन में कमी होती है, तो तुम्हारी गरीबी बढती है, संतुलन । तुम अगर इस ओर बढ़ाते हो, तो दूसरे पक्ष में वृद्धि होगी, अौर अगर दूसरी तरफ बढाते हो, तो इस तरफ... लेकिन तुम्हे संतुलन रखना होगा । यह आवश्यक है ।
तो मानव समाज में, वे संतुलन रखने के लिए होती है । वह संतुलन क्या है? वे नहीं जानते हैं... यह तराज़ू की तरह है । एक तरफ अध्यात्म, दूसरी तरफ पदार्थ । अब हम वास्तव में आत्मा हैं । किसी न किसी तरह से हम इस शरीर में कैद हैं, भौतिक शरीर । इस कारण, जब तक हमारा यह शरीर है, हमारी शरीर की आवश्यकताऍ हैं, खाना, सोना, संभोग, रक्षण । ये शरीर की आवश्यकताएं हैं। आत्मा को इन सब बातों की आवश्यकता नहीं है। आत्मा को भोजन की अावश्यक्ता नहीं । यह हम नहीं जानते हैं ।
जो भी हम खा रहे हैं, यह है, शरीर के पालन के लिए । तो शारीरिक आवश्यकताऍ हैं, लेकिन अगर तुम केवल शारीरिक आवश्यकताओं का ख्याल रखोगे और आत्मा की आवश्यकताअों का नहीं, यो यह मूर्ख सभ्यता है। कोई संतुलन नहीं । वे नहीं जानते । जैसे कि एक धूर्त... वह केवल कोट को धो रहा हैं, लेकिन शरीर की देखभाल नहीं करता । या एक पक्षी पिंजरे में है और तुम पिंजरे का ख्याल रखो और पिंजरे के भीतर पक्षी की देखभाल न करो... पक्षी रो रहा है: "का का, मुझे खाना दो, मुझे खाना दो ।" लेकिन तुम पिंजरे का ख्याल रख रहे हो । यह मूर्खता है ।
तो क्यों हम नाखुश हैं ? क्यों, तुम्हारे देश में विशेष रूप से... तुम्हारा देश दुनिया में सबसे अमीर देश जाना जाता है । तुम्हारे देश में कोई कमी नहीं है । भोजन की कोई कमी नहीं, मोटर गाडी की कोई कमी नहीं, बैंक बैलेंस की कोई कमी नहीं, मैथुन की कोई कमी नहीं। सब कुछ है, पूरा, बहुतायत में । और फिर भी क्यों लोगों का एक वर्ग निराश है और हिप्पी की तरह भ्रमित है ? वे संतुष्ट नहीं हैं । क्यूँ ? यही दोष है । कोई संतुलन नहीं है। तुम जीवन की शारीरिक जरूरतों का ख्याल रख रहे हो, लेकिन तुम्हे आत्मा की कोई जानकारी नहीं है। और आत्मा की जरूरत भी होती है । आत्मा असली विषय-वस्तु है । शरीर केवल अावरण है।