HI/Prabhupada 0934 - आत्मा की आवश्यकता की परवाह न करना, यह मूर्ख सभ्यता है: Difference between revisions

 
m (Text replacement - "(<!-- (BEGIN|END) NAVIGATION (.*?) -->\s*){2,15}" to "<!-- $2 NAVIGATION $3 -->")
 
Line 7: Line 7:
[[Category:HI-Quotes - in USA]]
[[Category:HI-Quotes - in USA]]
[[Category:HI-Quotes - in USA, Los Angeles]]
[[Category:HI-Quotes - in USA, Los Angeles]]
[[Category:Hindi Language]]
<!-- END CATEGORY LIST -->
<!-- END CATEGORY LIST -->
<!-- BEGIN NAVIGATION BAR -- DO NOT EDIT OR REMOVE -->
{{1080 videos navigation - All Languages|Hindi|HI/Prabhupada 0933 - कृष्ण भावनामृत आंदोलन लोगों को पशु जीवन में पतन होने से बचाने की कोशिश करता है|0933|HI/Prabhupada 0935 - जीवन की वास्तविक आवश्यकता आत्मा के आराम की आपूर्ति है|0935}}
<!-- END NAVIGATION BAR -->
<!-- BEGIN ORIGINAL VANIQUOTES PAGE LINK-->
<!-- BEGIN ORIGINAL VANIQUOTES PAGE LINK-->
<div class="center">
<div class="center">
Line 16: Line 20:


<!-- BEGIN VIDEO LINK -->
<!-- BEGIN VIDEO LINK -->
{{youtube_right|8PTkJwkVLpg|आत्मा की आवश्यकता की परवाह न करना, यह मूर्ख सभ्यता है <br/>- Prabhupāda 0934}}
{{youtube_right|TP67F0Druj4|आत्मा की आवश्यकता की परवाह न करना, यह मूर्ख सभ्यता है <br/>- Prabhupāda 0934}}
<!-- END VIDEO LINK -->
<!-- END VIDEO LINK -->


<!-- BEGIN AUDIO LINK (from English page -->
<!-- BEGIN AUDIO LINK (from English page -->
<mp3player>File:730425SB-LOS ANGELES_clip3.mp3</mp3player>
<mp3player>https://s3.amazonaws.com/vanipedia/clip/730425SB-LOS_ANGELES_clip3.mp3</mp3player>
<!-- END AUDIO LINK -->
<!-- END AUDIO LINK -->


Line 28: Line 32:


<!-- BEGIN TRANSLATED TEXT (from DotSub) -->
<!-- BEGIN TRANSLATED TEXT (from DotSub) -->
भक्त: अनुवाद: "दूसरे कहते है कि, क्योंकि वसुदेव और देवकी नें प्रार्थना की अापसे, आपने उनके बेटे के रूप में जन्म लिया है । निसन्नदेह आप अजन्मे हैं, फिर भी आप उनके कल्याण के लिए जन्म लेते हैं, और जो जलते हैं देवताअों से उनका नाश करने के लिए ।"
भक्त: अनुवाद: "दूसरे कहते है कि, क्योंकि वसुदेव और देवकी नें प्रार्थना की अापसे, आपने उनके बेटे के रूप में जन्म लिया है । निःसंदेह आप अजन्मे हैं, फिर भी आप उनके कल्याण के लिए जन्म लेते हैं, और जो देवताअों से ईर्षालु है उनका नाश करने के लिए जन्म लेते है ।"  


प्रभुपाद: तो अवतार लेने के दो उद्देश्य हैं । यह भगवद गीता में बताया गया है ।
प्रभुपाद: तो अवतार लेने के दो उद्देश्य हैं । यह भगवद गीता में बताया गया है ।  


:यदा यदा हि धर्मस्य
:यदा यदा हि धर्मस्य  
:ग्लानिर भवति भारत
:ग्लानिर भवति भारत  
:अभ्युथानम् अधर्मस्य
:अभ्युथानम अधर्मस्य  
:तदात्मानं सृजाम्यहं
:तदात्मानम सृजाम्यहम
:([[Vanisource:BG 4.7|भ गी ४।७]])
:([[Vanisource: BG 4.7 (1972) |भ.गी. ४.७]])


भगवान कहते हैं कि जहाॅ भी अनियमितताऍ होती हैं, धर्मस्य, धर्म की अनियमितताऍ ... ग्लानि: । ग्लानि का अर्थ अनियमितताऍ । जैसे तुम कुछ सेवा कर रहे हो । अनियमितताऍ हो सकती हैं । तो फिर यह प्रदूषित हो जाता है । तो यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर भवति.... धर्मस्य ग्लानिर भवति का अर्थ है अधर्म का पनपना । मतलह अगर तुम्हारे धन में कमी होती है, तो तुम्हारी गरीबी बढती है, संतुलन । तुम अगर इस ओर बढ़ाते हो, तो दूसरे पक्ष में वृद्धि होगी, अौर अगर दूसरी तरफ बढाते हो, तो इस तरफ ... लेकिन तुम्हे संतुलन रखना होगा । यह आवश्यक है । तो मानव समाज में, वे संतुलन रखने के लिए होती है । वह संतुलन क्या है? वे नहीं जानते हैं ... यह तराजू की तरह है । एक तरफ अध्यात्म, दूसरी तरफ पदार्थ । अब हम वास्तव में आत्मा हैं । किसी न किसी तरह से हम इस शरीर में कैद हैं, भौतिक शरीर । इस कारण, जब तक हमारा यह शरीर है, हमारी शरीर की आवश्यकताऍ हैं, बचाव, संभोग, खाना, सोना । ये शरीर की आवश्यकताएं हैं। आत्मा को इन सब बातों की आवश्यकता नहीं है। आत्मा को भोजन की अावश्यक्ता नहीं । यह हम नहीं जानते हैं । जो भी हम खा रहे हैं, यह है, शरीर के पालन के लिए । तो शारीरिक आवश्यकताऍ हैं, लेकिन अगर तुम केवल शारीरिक आवश्यकताओं का ख्याल रखोगे और आत्मा की आवश्यकताअों का नहीं, यो यह मूर्ख सभ्यता है। संतुलन नहीं रहता । वे नहीं जानते
भगवान कहते हैं कि जहाॅ भी अनियमितताऍ होती हैं, धर्मस्य, धर्म की अनियमितताऍ... ग्लानि: । ग्लानि का अर्थ अनियमितताऍ । जैसे तुम कुछ सेवा कर रहे हो । अनियमितताऍ हो सकती हैं । तो फिर यह प्रदूषित हो जाता है । तो यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर भवति... धर्मस्य ग्लानिर भवति का अर्थ है अधर्म का विकास होना । मतलह अगर तुम्हारे धन में कमी होती है, तो तुम्हारी गरीबी बढती है, संतुलन । तुम अगर इस ओर बढ़ाते हो, तो दूसरे पक्ष में वृद्धि होगी, अौर अगर दूसरी तरफ बढाते हो, तो इस तरफ... लेकिन तुम्हे संतुलन रखना होगा । यह आवश्यक है ।  


जैसे कि एक धूर्त... वह केवल कोट को धो रहे हैं, लेकिन शरीर की देखभाल नहीं करते हैं । या एक पक्षी पिंजरे में है और तुम पिंजरे का ख्याल रखो और पिंजरे के भीतर पक्षी की देखभाल न करो ... पक्षी रो रहा है: "का का, मुझे खाना दो, मुझे खाना दो ।" लेकिन तुम पिंजरे का ख्याल रख रहे हो । यह मूर्खता है । तो क्यों हम नाखुश हैं ? क्यों, तुम्हारे देश में विशेष रूप से ... तुम्हारा देश दुनिया में सबसे अमीर देश जाना जाता है । तुम्हारे देश में कोई कमी नहीं है । भोजन की कोई कमी नहीं, मोटर कार की कोई कमी नहीं, बैंक बैलेंस की कोई कमी नहीं, सेक्स की कोई कमी नहीं। सब कुछ है, पूरा, बहुतायत में । और फिर भी क्यों लोगों का एक वर्ग निराश है और हिप्पी की तरह भ्रमित है ? वे संतुष्ट नहीं हैं । क्यूँ ? यही दोष है । कोई संतुलन नहीं है। तुम जीवन की शारीरिक जरूरतों का ख्याल रख रहे हो, लेकिन तुम्हे आत्मा की कोई जानकारी नहीं है। और आत्मा की जरूरत भी होती है । आत्मा असली विषय-वस्तु है। शारीरिक केवल अावरण है।
तो मानव समाज में, वे संतुलन रखने के लिए होती है । वह संतुलन क्या है? वे नहीं जानते हैं... यह तराज़ू की तरह है । एक तरफ अध्यात्म, दूसरी तरफ पदार्थ । अब हम वास्तव में आत्मा हैं । किसी न किसी तरह से हम इस शरीर में कैद हैं, भौतिक शरीर । इस कारण, जब तक हमारा यह शरीर है, हमारी शरीर की आवश्यकताऍ हैं, खाना, सोना, संभोग, रक्षण । ये शरीर की आवश्यकताएं हैं। आत्मा को इन सब बातों की आवश्यकता नहीं है। आत्मा को भोजन की अावश्यक्ता नहीं । यह हम नहीं जानते हैं ।
 
जो भी हम खा रहे हैं, यह है, शरीर के पालन के लिए । तो शारीरिक आवश्यकताऍ हैं, लेकिन अगर तुम केवल शारीरिक आवश्यकताओं का ख्याल रखोगे और आत्मा की आवश्यकताअों का नहीं, यो यह मूर्ख सभ्यता है। कोई संतुलन नहीं । वे नहीं जानते । जैसे कि एक धूर्त... वह केवल कोट को धो रहा हैं, लेकिन शरीर की देखभाल नहीं करता । या एक पक्षी पिंजरे में है और तुम पिंजरे का ख्याल रखो और पिंजरे के भीतर पक्षी की देखभाल न करो... पक्षी रो रहा है: "का का, मुझे खाना दो, मुझे खाना दो ।" लेकिन तुम पिंजरे का ख्याल रख रहे हो । यह मूर्खता है ।  
 
तो क्यों हम नाखुश हैं ? क्यों, तुम्हारे देश में विशेष रूप से... तुम्हारा देश दुनिया में सबसे अमीर देश जाना जाता है । तुम्हारे देश में कोई कमी नहीं है । भोजन की कोई कमी नहीं, मोटर गाडी की कोई कमी नहीं, बैंक बैलेंस की कोई कमी नहीं, मैथुन की कोई कमी नहीं। सब कुछ है, पूरा, बहुतायत में । और फिर भी क्यों लोगों का एक वर्ग निराश है और हिप्पी की तरह भ्रमित है ? वे संतुष्ट नहीं हैं । क्यूँ ? यही दोष है । कोई संतुलन नहीं है। तुम जीवन की शारीरिक जरूरतों का ख्याल रख रहे हो, लेकिन तुम्हे आत्मा की कोई जानकारी नहीं है। और आत्मा की जरूरत भी होती है । आत्मा असली विषय-वस्तु है । शरीर केवल अावरण है।  
<!-- END TRANSLATED TEXT -->
<!-- END TRANSLATED TEXT -->

Latest revision as of 17:43, 1 October 2020



Lecture on SB 1.8.33 -- Los Angeles, April 25, 1972

भक्त: अनुवाद: "दूसरे कहते है कि, क्योंकि वसुदेव और देवकी नें प्रार्थना की अापसे, आपने उनके बेटे के रूप में जन्म लिया है । निःसंदेह आप अजन्मे हैं, फिर भी आप उनके कल्याण के लिए जन्म लेते हैं, और जो देवताअों से ईर्षालु है उनका नाश करने के लिए जन्म लेते है ।"

प्रभुपाद: तो अवतार लेने के दो उद्देश्य हैं । यह भगवद गीता में बताया गया है ।

यदा यदा हि धर्मस्य
ग्लानिर भवति भारत
अभ्युथानम अधर्मस्य
तदात्मानम सृजाम्यहम
(भ.गी. ४.७) ।

भगवान कहते हैं कि जहाॅ भी अनियमितताऍ होती हैं, धर्मस्य, धर्म की अनियमितताऍ... ग्लानि: । ग्लानि का अर्थ अनियमितताऍ । जैसे तुम कुछ सेवा कर रहे हो । अनियमितताऍ हो सकती हैं । तो फिर यह प्रदूषित हो जाता है । तो यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर भवति... धर्मस्य ग्लानिर भवति का अर्थ है अधर्म का विकास होना । मतलह अगर तुम्हारे धन में कमी होती है, तो तुम्हारी गरीबी बढती है, संतुलन । तुम अगर इस ओर बढ़ाते हो, तो दूसरे पक्ष में वृद्धि होगी, अौर अगर दूसरी तरफ बढाते हो, तो इस तरफ... लेकिन तुम्हे संतुलन रखना होगा । यह आवश्यक है ।

तो मानव समाज में, वे संतुलन रखने के लिए होती है । वह संतुलन क्या है? वे नहीं जानते हैं... यह तराज़ू की तरह है । एक तरफ अध्यात्म, दूसरी तरफ पदार्थ । अब हम वास्तव में आत्मा हैं । किसी न किसी तरह से हम इस शरीर में कैद हैं, भौतिक शरीर । इस कारण, जब तक हमारा यह शरीर है, हमारी शरीर की आवश्यकताऍ हैं, खाना, सोना, संभोग, रक्षण । ये शरीर की आवश्यकताएं हैं। आत्मा को इन सब बातों की आवश्यकता नहीं है। आत्मा को भोजन की अावश्यक्ता नहीं । यह हम नहीं जानते हैं ।

जो भी हम खा रहे हैं, यह है, शरीर के पालन के लिए । तो शारीरिक आवश्यकताऍ हैं, लेकिन अगर तुम केवल शारीरिक आवश्यकताओं का ख्याल रखोगे और आत्मा की आवश्यकताअों का नहीं, यो यह मूर्ख सभ्यता है। कोई संतुलन नहीं । वे नहीं जानते । जैसे कि एक धूर्त... वह केवल कोट को धो रहा हैं, लेकिन शरीर की देखभाल नहीं करता । या एक पक्षी पिंजरे में है और तुम पिंजरे का ख्याल रखो और पिंजरे के भीतर पक्षी की देखभाल न करो... पक्षी रो रहा है: "का का, मुझे खाना दो, मुझे खाना दो ।" लेकिन तुम पिंजरे का ख्याल रख रहे हो । यह मूर्खता है ।

तो क्यों हम नाखुश हैं ? क्यों, तुम्हारे देश में विशेष रूप से... तुम्हारा देश दुनिया में सबसे अमीर देश जाना जाता है । तुम्हारे देश में कोई कमी नहीं है । भोजन की कोई कमी नहीं, मोटर गाडी की कोई कमी नहीं, बैंक बैलेंस की कोई कमी नहीं, मैथुन की कोई कमी नहीं। सब कुछ है, पूरा, बहुतायत में । और फिर भी क्यों लोगों का एक वर्ग निराश है और हिप्पी की तरह भ्रमित है ? वे संतुष्ट नहीं हैं । क्यूँ ? यही दोष है । कोई संतुलन नहीं है। तुम जीवन की शारीरिक जरूरतों का ख्याल रख रहे हो, लेकिन तुम्हे आत्मा की कोई जानकारी नहीं है। और आत्मा की जरूरत भी होती है । आत्मा असली विषय-वस्तु है । शरीर केवल अावरण है।