HI/Prabhupada 0936 - केवल वादा; 'भविष्य में ।' 'लेकिन अभी अाप क्या दे रहे हैं, श्रीमान ?': Difference between revisions

 
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हमारा ... वर्तमान समय में, हम रोगग्रस्त हालत में हैं । वे जानते नहीं है कि रोगग्रस्त हालत क्या होती है, स्वस्थ हालत क्या होती है, ये धूर्त । वे कुछ भी नहीं जानते हैं, फिर भी वे महान वैज्ञानिक,दार्शनिकों के रूप में जाने जाते हैं.. वे जिज्ञासा नहीं करते हैं कि " मैं मरना नहीं चाहता । क्यों मौत मुझ पर थोपी जाती है?" ऐसी कोई जिज्ञासा नहीं है । न तो कोई समाधान है । और फिर भी वे वैज्ञानिक हैं । किस तरह के वैज्ञानिक ? अगर तुम...
हमारा... वर्तमान समय में, हम रोगग्रस्त हालत में हैं । वे जानते नहीं है कि रोगग्रस्त हालत क्या होती है, स्वस्थ हालत क्या होती है, ये धूर्त । वे कुछ भी नहीं जानते हैं, फिर भी वे महान वैज्ञानिक, दार्शनिकों के रूप में जाने जाते हैं... वे जिज्ञासा नहीं करते हैं कि " मैं मरना नहीं चाहता । क्यों मौत मुझ पर थोपी जाती है?" ऐसी कोई जिज्ञासा नहीं है । न तो कोई समाधान है । और फिर भी वे वैज्ञानिक हैं । किस तरह के वैज्ञानिक ? अगर तुम... विज्ञान मतलब की तुम ज्ञान में अग्रिम होते हो ताकि तुम्हारे जीवन की दयनीय हालत में कमी हो । यही विज्ञान है । अन्यथा, यह विज्ञान क्या है ? वे केवल वादा कर रहे हैं; "भविष्य में।" "लेकिन अभी अाप क्या दे रहे हैं, श्रीमान ?"


विज्ञान मतलब कि ज्ञान में अग्रिम होते हो ताकि तुम्हारे जीवन की दयनीय हालत में कमी हो । यही विज्ञान है । अन्यथा, यह विज्ञान क्या है ? वे केवल वादा कर रहे हैं; "भविष्य में।" "लेकिन अभी अाप क्या दे रहे हैं, श्रीमान ?" " अब आप पीड़ित रहो - जैसे अाप पीड़ित हो, पीड़ा सहते रहो । भविष्य में हम कुछ रसायनों का अाविष्कार करेंगे ।" " नहीं। दरअसल अात्यंतिक दुक्ख निवृत्ति । अात्यंतिक, परम । अात्यंतिक मतलब परम । दुक्ख मतलब कष्ट । यही मानव जीवन का उद्देश्य होना चाहिए । तो वे जानते नहीं है कि अात्यंतिक दुक्ख दुक्ख मतलब पीड़ा । तो अात्यंतिक भगवद गीता में बताया गया है । "यहाँ है अात्यंतिक दुक्ख, श्रीमान ।" वह क्या है ? जन्म मृत्यु जरा व्याधि ([[Vanisource:BG 13.9|भ गी १३।९]]) जन्म, मृत्यु, वृद्धावस्था और बीमारी ।
"अब आप पीड़ित रहो - जैसे अाप पीड़ित हो, पीड़ा सहते रहो । भविष्य में हम कुछ रसायनों का अाविष्कार करेंगे ।" " नहीं । दरअसल अात्यंतिक दुःख निवृत्ति । अात्यंतिक, अंतिम । अात्यंतिक मतलब अंतिम । दुक्ख मतलब कष्ट । यही मानव जीवन का उद्देश्य होना चाहिए । तो वे जानते नहीं है कि अात्यंतिक दुःख दुःख मतलब पीड़ा । तो अात्यंतिक भगवद गीता में बताया गया है । "यहाँ है अात्यंतिक दुःख, श्रीमान ।" वह क्या है ? जन्म मृत्यु जरा व्याधि ([[HI/BG 13.8-12|भ गी १३.९]]) | जन्म, मृत्यु, वृद्धावस्था और बीमारी । तो तुमने इन कष्टों को गायब करने के लिए या दुःख को शून्य करने के लिए क्या किया है? तो भौतिक दुनिया में ऐसी कोई बात नहीं है । अात्यंतिक दुःख निवृत्ति । सभी प्रकार के दुःख से निवृत्ति का मार्ग भगवद गीता में कहा गया है । वो क्या है ?


तो तुमने इन कष्टों को गायब करने के लिए या दुक्ख को शून्य करने के लिए क्या किया है? तो भौतिक दुनिया में ऐसी कोई बात नहीं है अात्यंतिक दुक्ख निवृत्ति । सभी प्रकार के दुख से निवृत्ति का मार्ग भगवद गीता में कहा गया है । वो क्या है ?
:माम उपेत्य कौन्तेय
:दुःखालम अशाश्वतम
:नाप्नुवंति महात्मान:
:संसिद्धिम परमाम गता:
:([[HI/BG 8.15|भ गी ८.१५]]) ।  


:माम उपेत्य कौन्तेय
तो तुम्हे यह सब पढ़ना चाहिए । तुम्हारे पास भागवत है, हर स्पष्टीकरण । यही अात्यंतिक दुःख निवृत्ति है - सभी कष्टों से निवृत्ति । वो क्या हे ? माम उपेत्य । "जो मेरी शरण में अाता है या जो मेरे पास अाता है, वापस घर, भगवत धाम ।" तो उन्हे कोई ज्ञान नहीं है ईश्वर क्या हैं और क्या कोई वापस घर जा सकता है, भगवत धाम । यह एक व्यावहारिक बात है या नहीं है । कोई ज्ञान नहीं । केवल जानवरों की तरह । बस । कोई ज्ञान नहीं । वे प्रार्थना करते हैं: "हे भगवान, हमें हमारी दैनिक रोटी दो ।" अब उससे पूछो: "भगवान क्या हैं ?" क्या वह समझा सकता है ? नहीं । तो फिर हम किससे माँग रहे हैं ? हवा में ? अगर मैं माँगता हूँ, अगर मैं कोई याचिका प्रस्तुत करता हूँ, तो कोई व्यक्ति होना चाहिए । तो मैं नहीं जानता हूँ कि कौन है वह व्यक्ति, कहाँ याचिका प्रस्तुत करनी है । केवल... वे कहते है कि वे आकाश में हैं । आकाश में, कई पक्षी भी हैं, (हंसी) लेकिन वे भगवान नहीं हैं । तुम समझ रहे हो ? उन्हे कोई ज्ञान नहीं है, ज्ञान नहीं है । अपूर्ण ज्ञान, सब । और वे वैज्ञानिक, दार्शनिक, महान विचारक, लेखक के नाम से जाने जाते हैं... सब बकवास है, सब बकवास है । केवल एकमात्र शास्त्र है श्रीमद-भागवतम, भगवद गीता । सब बकवास । भागवतम में यह कहा गया है:  
:दुक्खालम अशाश्वतम
:नाप्नुवंति महात्मान:
:सम्सिद्धिम परमाम् गता:
:([[Vanisource:BG 8.15|भ गी ८।१५]])


तो तुम्हे यह सब पढ़ना चाहिए । तुम्हारे पास भागवत है, हर स्पष्टीकरण । यही अात्यंतिक दुक्ख निवृत्ति है - सभी कष्टों से निवृत्ति । वो क्या हे ? माम उपेत्य । "जो मेरी शरण में अाता है या जो मेरे पास अाता है, वापस घर, भगवत धाम ।" तो उन्हे कोई ज्ञान नहीं है ईश्वर क्या हैं और क्या कोई वापस घर जा सकता है, भगवत धाम । यह एक व्यावहारिक बात है या नहीं है । कोई ज्ञान नहीं । केवल जानवरों की तरह । बस । कोई ज्ञान नहीं । वे प्रार्थना करते हैं: "हे भगवान, हमें हमारी दैनिक रोटी दो ।" अब उससे पूछो: "भगवान क्या हैं ?" क्या वह व्याख्या कर सकता है ? नहीं । तो फिर हम किससे माँग रहे हैं ? हवा में ? अगर मैं माँगता हूँ, अगर मैं कोई याचिका प्रस्तुत करता हूँ, तो कोई व्यक्ति होना चाहिए । तो मैं नहीं जानता हूँ कि कौन है वह व्यक्ति, कहाँ याचिका प्रस्तुत करनी है । केवल ... वे कहते है कि वे आकाश में हैं । आकाश में, कई पक्षी भी हैं, (हंसी) लेकिन वे भगवान नहीं हैं । तुम समझ रहे हो ? उन्हे कोई ज्ञान नहीं है, ज्ञान नहीं है । अपूर्ण ज्ञान, सब । और वे वैज्ञानिक, दार्शनिक, महान विचारक, लेखक के नाम से जाने जाते हैं...... सब बकवास है, सब बकवास है । केवल एकमात्र शास्त्र है श्रीमद-भागवतम, श्रीमद् भगवद् गीता । सब बकवास । भागवतम में यह कहा गया है:
:तद वाग विसर्गो जनताघ विप्लवो
:यस्मिन प्रति श्लोकम अबद्धवति अपि
:नामानि अनन्तस्य यशो अंकितानि यत
:शृण्वन्ति गायंति गृणन्ति साधव:
:([[Vanisource:SB 1.5.11|श्रीमद भागवतम १..११]]) |


:तद वाग विसर्गो जनताघ विप्लवो
और दूसरी तरफ: न यद वचश चित्र पदम हरेर यशो (जगत पवित्रम) प्रगृणीत कर्हिचित तद वायसम तिर्थम... ([[Vanisource:SB 1.5.10|श्रीमद भागवतम १.५.१०]])) । तद वायसम तीर्थम । कोई भी शास्र जिसका भगवान के साथ कोई संबंध नहीं है, तद, तद वायसम तीर्थम, वह एसी जगह की तरह है जहाँ कौवे आनंद लेते हैं । कौवे कहां आनंद लेते हैं ? गंदी जगह में । और हंस, सफेद हंस, वे आनंद लेते हैं एक अच्छे साफ पानी में जहाँ उद्यान हैं, पक्षी हैं ।  
:यस्मिन प्रति श्लोकम अबद्धवति अपि
:नामानि अन्तस्तय यशो अंकितानि यत
:श्रृणवंति गायंति गृणन्ति साधव:
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और दूसरी तरफ: न यद वचश चित्र पदम् हरेर यशो (जगत पवित्रम्) प्रगृणीत कर्हिचित तद वायसम् तिर्थम.... ([[Vanisource:SB 1.5.10|श्री भ १।५।१०]]) । तद वायसम् तीर्थम । कोई भी शास्र जिसका भगवान के साथ कोई संबंध नहीं है, तद, तद वायसम् तीर्थम, वह एसी जगह की तरह है जहाँ कौवे आनंद लेते हैं । कौवे कहां आनंद लेते हैं ? गंदी जगह में । और हंस, सफेद हंस, वे आनंद लेते हैं एक अच्छे साफ पानी में जहाँ उद्यान हैं, पक्षि हैं ।
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Latest revision as of 19:27, 17 September 2020



730425 - Lecture SB 01.08.33 - Los Angeles

हमारा... वर्तमान समय में, हम रोगग्रस्त हालत में हैं । वे जानते नहीं है कि रोगग्रस्त हालत क्या होती है, स्वस्थ हालत क्या होती है, ये धूर्त । वे कुछ भी नहीं जानते हैं, फिर भी वे महान वैज्ञानिक, दार्शनिकों के रूप में जाने जाते हैं... वे जिज्ञासा नहीं करते हैं कि " मैं मरना नहीं चाहता । क्यों मौत मुझ पर थोपी जाती है?" ऐसी कोई जिज्ञासा नहीं है । न तो कोई समाधान है । और फिर भी वे वैज्ञानिक हैं । किस तरह के वैज्ञानिक ? अगर तुम... विज्ञान मतलब की तुम ज्ञान में अग्रिम होते हो ताकि तुम्हारे जीवन की दयनीय हालत में कमी हो । यही विज्ञान है । अन्यथा, यह विज्ञान क्या है ? वे केवल वादा कर रहे हैं; "भविष्य में।" "लेकिन अभी अाप क्या दे रहे हैं, श्रीमान ?"

"अब आप पीड़ित रहो - जैसे अाप पीड़ित हो, पीड़ा सहते रहो । भविष्य में हम कुछ रसायनों का अाविष्कार करेंगे ।" " नहीं । दरअसल अात्यंतिक दुःख निवृत्ति । अात्यंतिक, अंतिम । अात्यंतिक मतलब अंतिम । दुक्ख मतलब कष्ट । यही मानव जीवन का उद्देश्य होना चाहिए । तो वे जानते नहीं है कि अात्यंतिक दुःख । दुःख मतलब पीड़ा । तो अात्यंतिक भगवद गीता में बताया गया है । "यहाँ है अात्यंतिक दुःख, श्रीमान ।" वह क्या है ? जन्म मृत्यु जरा व्याधि (भ गी १३.९) | जन्म, मृत्यु, वृद्धावस्था और बीमारी । तो तुमने इन कष्टों को गायब करने के लिए या दुःख को शून्य करने के लिए क्या किया है? तो भौतिक दुनिया में ऐसी कोई बात नहीं है । अात्यंतिक दुःख निवृत्ति । सभी प्रकार के दुःख से निवृत्ति का मार्ग भगवद गीता में कहा गया है । वो क्या है ?

माम उपेत्य कौन्तेय
दुःखालम अशाश्वतम
नाप्नुवंति महात्मान:
संसिद्धिम परमाम गता:
(भ गी ८.१५) ।

तो तुम्हे यह सब पढ़ना चाहिए । तुम्हारे पास भागवत है, हर स्पष्टीकरण । यही अात्यंतिक दुःख निवृत्ति है - सभी कष्टों से निवृत्ति । वो क्या हे ? माम उपेत्य । "जो मेरी शरण में अाता है या जो मेरे पास अाता है, वापस घर, भगवत धाम ।" तो उन्हे कोई ज्ञान नहीं है ईश्वर क्या हैं और क्या कोई वापस घर जा सकता है, भगवत धाम । यह एक व्यावहारिक बात है या नहीं है । कोई ज्ञान नहीं । केवल जानवरों की तरह । बस । कोई ज्ञान नहीं । वे प्रार्थना करते हैं: "हे भगवान, हमें हमारी दैनिक रोटी दो ।" अब उससे पूछो: "भगवान क्या हैं ?" क्या वह समझा सकता है ? नहीं । तो फिर हम किससे माँग रहे हैं ? हवा में ? अगर मैं माँगता हूँ, अगर मैं कोई याचिका प्रस्तुत करता हूँ, तो कोई व्यक्ति होना चाहिए । तो मैं नहीं जानता हूँ कि कौन है वह व्यक्ति, कहाँ याचिका प्रस्तुत करनी है । केवल... वे कहते है कि वे आकाश में हैं । आकाश में, कई पक्षी भी हैं, (हंसी) लेकिन वे भगवान नहीं हैं । तुम समझ रहे हो ? उन्हे कोई ज्ञान नहीं है, ज्ञान नहीं है । अपूर्ण ज्ञान, सब । और वे वैज्ञानिक, दार्शनिक, महान विचारक, लेखक के नाम से जाने जाते हैं... सब बकवास है, सब बकवास है । केवल एकमात्र शास्त्र है श्रीमद-भागवतम, भगवद गीता । सब बकवास । भागवतम में यह कहा गया है:

तद वाग विसर्गो जनताघ विप्लवो
यस्मिन प्रति श्लोकम अबद्धवति अपि
नामानि अनन्तस्य यशो अंकितानि यत
शृण्वन्ति गायंति गृणन्ति साधव:
(श्रीमद भागवतम १.५.११) |

और दूसरी तरफ: न यद वचश चित्र पदम हरेर यशो (जगत पवित्रम) प्रगृणीत कर्हिचित तद वायसम तिर्थम... (श्रीमद भागवतम १.५.१०)) । तद वायसम तीर्थम । कोई भी शास्र जिसका भगवान के साथ कोई संबंध नहीं है, तद, तद वायसम तीर्थम, वह एसी जगह की तरह है जहाँ कौवे आनंद लेते हैं । कौवे कहां आनंद लेते हैं ? गंदी जगह में । और हंस, सफेद हंस, वे आनंद लेते हैं एक अच्छे साफ पानी में जहाँ उद्यान हैं, पक्षी हैं ।