HI/Prabhupada 0939 - कोई भी उस पति से शादी नहीं करेगा जिसने चौंसठ बार शादी की हो: Difference between revisions

 
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भक्त: अनुवाद: "और कुछ दूसरे कहते हैं कि आप अवतरित हुए हैं पुनर जीवित करने के लिए भक्ति सेवा को श्रवण, स्मरण, पूजा इत्यादी, के द्वारा, ताकि बद्ध जीव जो भौतिक पीड़ा से पीड़ित हैं लाभ ले सकें और मुक्त हो जाऍ ।" ([[Vanisource:SB 1.8.35|श्री भ १।८।३५]])
भक्त: अनुवाद: "और कुछ दूसरे कहते हैं कि आप अवतरित हुए हैं पुनर जीवित करने के लिए भक्ति सेवा को - श्रवण, स्मरण, पूजा इत्यादी, के द्वारा, ताकि बद्ध जीव जो भौतिक पीड़ा से पीड़ित हैं लाभ ले सकें और मुक्त हो जाऍ ।" ([[Vanisource:SB 1.8.35|श्रीमद भागवतम १.८.३५]])  


प्रभुपाद: तो, अस्मिन भवे । अस्मिन मतलब "यह" । सृजन, भावे मतलब सृजन । भव, भव मतलब "तुम बनते हो" । "तुम बनते हो" मतलब तुम लुप्त होते हो । जैसे ही सवाल है तुम्हारे बनने का, तो तुम लुप्त भी हो जाअोगे । जो जन्म लेता है उसे मरना ही । यह प्रकृति का नियम है । तथाकथित वैज्ञानिक कोशिश कर रहे हैं, कि वे अपने वैज्ञानिक अनुसंधान कार्य से मौत को रोक देंगे, लेकिन वे जानते नहीं है कि जो जन्म लेता है उसे मरना होगा । जन्म-मृत्यु । यह सापेक्ष है । और जो जन्म नहीं लेता है, यह मरेगा नहीं । पदार्थ जन्म लेता है । जो कुछ भी भौतिक है, यह जन्म लेता है । लेकिन अात्मा का जन्म नहीं होता है । इसलिए भगवद गीता में यह कहा गया है, न जायते न मृयते वा कदाचिन ([[Vanisource:BG 2.20|भ गी २।२०]]) । आत्मा का जन्म कभी नहीं होता है, और इसलिए कभी मरण नहीं होता है ।
प्रभुपाद: तो, अस्मिन भवे । अस्मिन मतलब "यह" । सृजन, भवे मतलब सृजन । भव, भव मतलब "तुम बनते हो" । "तुम बनते हो" मतलब तुम लुप्त होते हो । जैसे ही सवाल है तुम्हारे बनने का, तो तुम लुप्त भी हो जाअोगे । जो जन्म लेता है उसे मरना तो है ही । यह प्रकृति का नियम है । तथाकथित वैज्ञानिक कोशिश कर रहे हैं, कि वे अपने वैज्ञानिक संशोधन कार्य से मौत को रोक देंगे, लेकिन वे जानते नहीं है कि जो जन्म लेता है उसे मरना होगा । जन्म-मृत्यु । यह सापेक्ष है । और जो जन्म नहीं लेता है, यह मरेगा नहीं । पदार्थ जन्म लेता है । जो कुछ भी भौतिक है, यह जन्म लेता है । लेकिन अात्मा का जन्म नहीं होता है । इसलिए भगवद गीता में यह कहा गया है, न जायते न म्रियते वा कदाचिन ([[HI/BG 2.20|भ.गी. २.२०]]) । आत्मा का जन्म कभी नहीं होता है, और इसलिए कभी मरण नहीं होता है ।  


अब, भवे अस्मिन । भव, यह भाव मतलब यह भौतिक दुनिया, लौकिक अभिव्यक्ति । भवे अस्मिन क्लश्यमानानाम । जो भी इस भौतिक दुनिया में है उसे कार्य करना होगा । यही भौतिक दुनिया है । जैसे जेल में, यह संभव नहीं है कि वह बैठेगा और वह दामाद की तरह सम्मानित किया जाएगा । नहीं । हमारे देश में दामाद को बहुत बहुत पूजा जाता है । पूजा मतलब ख़ुशामद करना । ताकी बेटी को तलाक न दे दे । इसलिए, कोई भी उम्मीद न रखे ... हम दामाद के बारे में मज़ाक करते हैं भारत में । पूर्व में ... यह व्यवस्था अभी भी है कि बेटी की शादी करनी चाहिए । यह पिता की जिम्मेदारी है । यह कन्या-दान कहा जाता है । एक पिता अपने बेटे की शादी शायद न करे । यह बहुत बड़ी जिम्मेदारी नहीं है । लेकिन अगर एक बेटी है, पिता को देखना है कि उसकी शादी हो जाए । पूर्व में यह दस साल, बारह साल, तेरह साल था । उससे ज्यादा नहीं । यही व्यवस्था है । यही वैदिक व्यवस्था थी । कन्या । कन्या मतलब यौवन प्राप्त करने से पहले । कन्या । इसलिए कन्या-दान । उसे किसी को दान में दिया जाना चाहिए । तो, पुलिन ब्राह्मण में, ब्राह्मण, बहुत सम्मानजनक समुदाय, तो एक उपयुक्त दामाद का पता लगाना बहुत मुश्किल था । इसलिए, पूर्व में एक सज्जन केवल शादी करके एक व्यापारी बन सकता है । मेरे बचपन में, जब मैं एक छात्र था, एक स्कूल का छात्र, तो मेरा एक दोस्त था, वह मुझे अपने घर ले गया । तो मैंने देखा कि एक सज्जन धूम्रपान कर रहे थे, और उसने मुझसे कहा, "क्या तुम इस सज्जन को जानते हो ?" तो मैंने कहा, "ओह, मैं कैसे जान सकता है?" यही "वह मेरे मामाजी है, और मेरी मामी इस सज्जन की ६४ पत्नी है ।" चौंसठ । तो, ये पुलिन ब्राह्मण, वे, उनका काम एसा था । कहीं पर शादी करो, थोड़े दिन वहॉ रहो, फिर दूसरी पत्नी के पास जाअो, फिर दूसरी पत्नी के पास, फिर दूसरी । केवल पत्नी के पास जाना, यही काम है । यह एक सामाजिक व्यवस्था हमने देखी है । अब ये बातें नहीं है । कोई भी उस पति से शादी नहीं करेगा जिसने चौंसठ बार शादी की हो । लेकिन यह था । तो, दामाद जी, उस मामले में, बहुत ज्यादा सम्मानित है । कई कहानियाँ हैं । हम एसे हमारे समय को बर्बाद नहीं करना चाहिए । (हंसी)
अब, भवे अस्मिन । भव, यह भव मतलब यह भौतिक दुनिया, लौकिक अभिव्यक्ति । भवे अस्मिन क्लीश्यमानानाम । जो भी इस भौतिक दुनिया में है उसे कार्य करना होगा । यही भौतिक दुनिया है । जैसे जेल में, यह संभव नहीं है कि वह बैठेगा और वह दामाद की तरह सम्मानित किया जाएगा । नहीं । हमारे देश में दामाद को बहुत बहुत पूजा जाता है । पूजा मतलब ख़ुशामद करना । ताकी बेटी को तलाक न दे दे । इसलिए, कोई भी उम्मीद न रखे... हम दामाद के बारे में मज़ाक कर सकते हैं भारत में । पहले... यह व्यवस्था अभी भी है कि बेटी की शादी करनी चाहिए । यह पिता की जिम्मेदारी है । यह कन्या-दान कहा जाता है । एक पिता अपने बेटे की शादी शायद न करे । यह बहुत बड़ी जिम्मेदारी नहीं है । लेकिन अगर एक बेटी है, पिता को देखना है कि उसकी शादी हो जाए । पूर्व में यह दस साल, बारह साल, तेरह साल था । उससे ज्यादा नहीं । यही व्यवस्था है । यही वैदिक व्यवस्था थी ।  
 
कन्या । कन्या मतलब यौवन प्राप्त करने से पहले । कन्या । इसलिए कन्या-दान । उसे किसी को दान में दिया जाना चाहिए । तो, पुलिन ब्राह्मण में, ब्राह्मण, बहुत सम्मानजनक समुदाय, तो एक उपयुक्त दामाद का पता लगाना बहुत मुश्किल था । इसलिए, पूर्व में एक सज्जन केवल शादी करके एक व्यापारी बन सकता है । मेरे बचपन में, जब मैं एक छात्र था, एक स्कूल का छात्र, तो मेरा एक दोस्त था, वह मुझे अपने घर ले गया । तो मैंने देखा कि एक सज्जन धूम्रपान कर रहे थे, और उसने मुझसे कहा, "क्या तुम इस सज्जन को जानते हो ?" तो मैंने कहा, "ओह, मैं कैसे जान सकता हूँ?" की "वह मेरे मामाजी है, और मेरी मामी इस सज्जन की ६४वी पत्नी है ।" चौंसठ । तो, ये पुलिन ब्राह्मण, वे, उनका काम एसा था । कहीं पर शादी करो, थोड़े दिन वहॉ रहो, फिर दूसरी पत्नी के पास जाअो, फिर दूसरी पत्नी के पास, फिर दूसरी । केवल पत्नी के पास जाना, यही काम है । यह एक सामाजिक व्यवस्था हमने देखी है । अब ये बातें नहीं है । कोई भी उस पति से शादी नहीं करेगा जिसने चौंसठ बार शादी की हो । (हंसी) लेकिन यह था । तो, दामाद जी, उस मामले में, बहुत ज्यादा सम्मानित है । कई कहानियाँ हैं । हमें एसे हमारे समय को बर्बाद नहीं करना चाहिए । (हंसी)  
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Latest revision as of 17:43, 1 October 2020



730427 - Lecture SB 01.08.35 - Los Angeles

भक्त: अनुवाद: "और कुछ दूसरे कहते हैं कि आप अवतरित हुए हैं पुनर जीवित करने के लिए भक्ति सेवा को - श्रवण, स्मरण, पूजा इत्यादी, के द्वारा, ताकि बद्ध जीव जो भौतिक पीड़ा से पीड़ित हैं लाभ ले सकें और मुक्त हो जाऍ ।" (श्रीमद भागवतम १.८.३५)

प्रभुपाद: तो, अस्मिन भवे । अस्मिन मतलब "यह" । सृजन, भवे मतलब सृजन । भव, भव मतलब "तुम बनते हो" । "तुम बनते हो" मतलब तुम लुप्त होते हो । जैसे ही सवाल है तुम्हारे बनने का, तो तुम लुप्त भी हो जाअोगे । जो जन्म लेता है उसे मरना तो है ही । यह प्रकृति का नियम है । तथाकथित वैज्ञानिक कोशिश कर रहे हैं, कि वे अपने वैज्ञानिक संशोधन कार्य से मौत को रोक देंगे, लेकिन वे जानते नहीं है कि जो जन्म लेता है उसे मरना होगा । जन्म-मृत्यु । यह सापेक्ष है । और जो जन्म नहीं लेता है, यह मरेगा नहीं । पदार्थ जन्म लेता है । जो कुछ भी भौतिक है, यह जन्म लेता है । लेकिन अात्मा का जन्म नहीं होता है । इसलिए भगवद गीता में यह कहा गया है, न जायते न म्रियते वा कदाचिन (भ.गी. २.२०) । आत्मा का जन्म कभी नहीं होता है, और इसलिए कभी मरण नहीं होता है ।

अब, भवे अस्मिन । भव, यह भव मतलब यह भौतिक दुनिया, लौकिक अभिव्यक्ति । भवे अस्मिन क्लीश्यमानानाम । जो भी इस भौतिक दुनिया में है उसे कार्य करना होगा । यही भौतिक दुनिया है । जैसे जेल में, यह संभव नहीं है कि वह बैठेगा और वह दामाद की तरह सम्मानित किया जाएगा । नहीं । हमारे देश में दामाद को बहुत बहुत पूजा जाता है । पूजा मतलब ख़ुशामद करना । ताकी बेटी को तलाक न दे दे । इसलिए, कोई भी उम्मीद न रखे... हम दामाद के बारे में मज़ाक कर सकते हैं भारत में । पहले... यह व्यवस्था अभी भी है कि बेटी की शादी करनी चाहिए । यह पिता की जिम्मेदारी है । यह कन्या-दान कहा जाता है । एक पिता अपने बेटे की शादी शायद न करे । यह बहुत बड़ी जिम्मेदारी नहीं है । लेकिन अगर एक बेटी है, पिता को देखना है कि उसकी शादी हो जाए । पूर्व में यह दस साल, बारह साल, तेरह साल था । उससे ज्यादा नहीं । यही व्यवस्था है । यही वैदिक व्यवस्था थी ।

कन्या । कन्या मतलब यौवन प्राप्त करने से पहले । कन्या । इसलिए कन्या-दान । उसे किसी को दान में दिया जाना चाहिए । तो, पुलिन ब्राह्मण में, ब्राह्मण, बहुत सम्मानजनक समुदाय, तो एक उपयुक्त दामाद का पता लगाना बहुत मुश्किल था । इसलिए, पूर्व में एक सज्जन केवल शादी करके एक व्यापारी बन सकता है । मेरे बचपन में, जब मैं एक छात्र था, एक स्कूल का छात्र, तो मेरा एक दोस्त था, वह मुझे अपने घर ले गया । तो मैंने देखा कि एक सज्जन धूम्रपान कर रहे थे, और उसने मुझसे कहा, "क्या तुम इस सज्जन को जानते हो ?" तो मैंने कहा, "ओह, मैं कैसे जान सकता हूँ?" की "वह मेरे मामाजी है, और मेरी मामी इस सज्जन की ६४वी पत्नी है ।" चौंसठ । तो, ये पुलिन ब्राह्मण, वे, उनका काम एसा था । कहीं पर शादी करो, थोड़े दिन वहॉ रहो, फिर दूसरी पत्नी के पास जाअो, फिर दूसरी पत्नी के पास, फिर दूसरी । केवल पत्नी के पास जाना, यही काम है । यह एक सामाजिक व्यवस्था हमने देखी है । अब ये बातें नहीं है । कोई भी उस पति से शादी नहीं करेगा जिसने चौंसठ बार शादी की हो । (हंसी) लेकिन यह था । तो, दामाद जी, उस मामले में, बहुत ज्यादा सम्मानित है । कई कहानियाँ हैं । हमें एसे हमारे समय को बर्बाद नहीं करना चाहिए । (हंसी)