HI/Prabhupada 0942 - हमने कृष्ण को भूलकर अनावश्यक समस्याओं को पैदा किया है: Difference between revisions
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तो, अविद्या-काम- | तो, अविद्या-काम-कर्मभि: । काम । काम मतलब इच्छा । जैसे कई वैज्ञानिक नए भोजन के लिए शोध कर रहे हैं, जैसे हमारा वैज्ञानिक दोस्त सुबह बात कर रहा था । तो फिर यह नया भोजन क्या है ? भोजन पहले से ही है, श्री कृष्ण द्वारा दिया गया, कि "तुम यह जानवर हो, तुम्हारा भोजन यह है । तुम यह जानवर हो, तुम्हारा भोजन यह है । " तो, जहॉ तक मनुष्य का संबंध है, उनका भोजन भी निमित्त है, कि तुम प्रसादम लो । | ||
तो हमनें श्री कृष्ण को भूल कर केवल अनावश्यक समस्याओं को पैदा किया है । यह भौतिक प्रकृति है । भवे अस्मिन क्लिश्यमानााम । इसलिए तुम्हे इतनी मेहनत से काम करना पड़ता है । क्लिश्यन्ति । फिर भगवद गीता में एक और श्लोक है, मन: षष्ठानी प्रकृति स्थानि कर्षति । कर्षति, तुम बहुत कठिन संघर्ष करोगे, लेकिन अंततः इन्द्रिय संतुष्टि । अंततः । इस भौतिक दुनिया में मतलब इन्द्रिय संतुष्टि, क्योंकि काम, काम मतलब इन्द्रिय संतुष्टि । काम, एकदम विपरीत शब्द है प्रेम । काम और ... काम मलतब वासना, और प्रेम मतलब श्री कृष्ण से प्रेम । तो यह अावश्यक है । लेकिन यहाँ इस भौतिक दुनिया में वे बहुत, बहुत कठिन काम में लगे हैं । उन्होंने कई कारखानों का आविष्कार किया है, लोहे के कारखाने, भारी मशीनरी, और यह उग्र कर्म, अासुरिक कर्म कहा जाता है । ज्यादा से ज्यादा, तुम्हे कुछ रोटी खानी है और कुछ फल या कुछ फूल । क्यों तुमने इतने बड़े, बड़े कारखानों का आविष्कार किया है ? यही अविद्या, | पत्रम पुष्पम फलम तोयम यो मे भक्त्या प्रयच्छति ([[HI/BG 9.26|भ.गी. ९.२६]]) । प्रसादम को स्वीकार करना मानव का कर्तव्य है । प्रसादम मतलब भोजन जो पहले श्री कृष्ण को अर्पित किया गया है । यह सभ्यता है । यदि तुम कहते हो, "मैं क्यों अर्पित करूँ ?" यह असभ्य है । यह कृतज्ञता है । अगर तुम श्री कृष्ण को अर्पित करते हो, तो तुम सचेत हो कि यह खाद्य पदार्थ, यह अनाज, यह फल, यह फूल, यह दूध, यह श्री कृष्ण द्वारा दिया गया है। मैं इनका उत्पादन नहीं कर सकता । अपने कारखाने में मैं इन सभी चीजों का उत्पादन नहीं कर सकता । कुछ भी जिसका हम उपयोग करते हैं, कोई इसकी उत्पत्ति नहीं कर सकता है, यह श्री कृष्ण द्वारा दिया गया है । एको बहुनाम यो विदधाती कामान । यह कामान । | ||
हम इच्छुक हैं और श्री कृष्ण आपूर्ति कर रहे हैं । उनकी आपूर्ति के बिना तुम इसे प्राप्त नहीं कर सकते हो । जैसे हमारे भारत में, आजादी के बाद, नेताओं ने सोचा: "अब हमें स्वतंत्रता मिल गई है, हम ट्रैक्टरों में वृद्धि करेंगे और अन्य कृषि उपकरणों में और हमें पर्याप्त भोजन मिलेगा ।" अब वर्तमान क्षण में, दो साल से पानी की कमी है । कोई वर्षा नहीं है । इसलिए ये ट्रैक्टर रो रहे हैं । तुम समझ रहे हो ? यह बेकार है । केवल तथाकथित ट्रैक्टरों से, औजारों से, तुम उत्पादन नहीं कर सकते हो, जब तक वहाँ श्री कृष्ण की कृपा न हो । उन्हे पानी की आपूर्ति करनी होगी, जिसके अभाव से... हाल ही में खबर यह है कि लोग इतने परेशान हैं कि वे सचिव के पास गए, उन्होंने भोजन की मांग की, और परिणाम यह था कि उन्हे गोली मार दी गई । हाँ, इतने सारे लोगों की मृत्यु हो गई । | |||
तो वास्तव में, हालांकि हमारी यह व्यवस्था है, कि हमें काम करना है, लेकिन काम सरल है । अगर तुम कृष्ण भावनाभावित रहते हो... कि आख़िरकार, श्री कृष्ण खाद्य पदार्थों की आपूर्ति कर रहे हैं । यह एक तथ्य है । हर धर्म यह स्वीकार करता है । जैसे बाइबल में यह कहा जाता है "भगवान हमें हमारी दैनिक रोटी दो ।" यह एक तथ्य है । भगवान दे रहे हैं । यह तुम... तुम रोटी का निर्माण नहीं कर सकते । | |||
तुम, तुम बेकरी घर में रोटी का निर्माण कर सकते हो लेकिन... कौन तुम्हे गेहूं की आपूर्ति करेगा ? श्री कृष्ण द्वारा आपूर्ति होती है । एको बहुनाम यो विदधाति कामान । तो हमनें श्री कृष्ण को भूल कर केवल अनावश्यक समस्याओं को पैदा किया है । यह भौतिक प्रकृति है । भवे अस्मिन क्लिश्यमानााम । इसलिए तुम्हे इतनी मेहनत से काम करना पड़ता है । क्लिश्यन्ति । फिर भगवद गीता में एक और श्लोक है, मन: षष्ठानी प्रकृति स्थानि कर्षति । कर्षति, तुम बहुत कठिन संघर्ष करोगे, लेकिन अंततः इन्द्रिय संतुष्टि । अंततः । इस भौतिक दुनिया में मतलब इन्द्रिय संतुष्टि, क्योंकि काम, काम मतलब इन्द्रिय संतुष्टि । काम, एकदम विपरीत शब्द है प्रेम । काम और... काम मलतब वासना, और प्रेम मतलब श्री कृष्ण से प्रेम । | |||
तो यह अावश्यक है । लेकिन यहाँ इस भौतिक दुनिया में वे बहुत, बहुत कठिन काम में लगे हैं । उन्होंने कई कारखानों का आविष्कार किया है, लोहे के कारखाने, भारी मशीनरी, और यह उग्र कर्म, अासुरिक कर्म कहा जाता है । ज्यादा से ज्यादा, तुम्हे कुछ रोटी खानी है और कुछ फल या कुछ फूल । क्यों तुमने इतने बड़े, बड़े कारखानों का आविष्कार किया है ? यही अविद्या, अज्ञान, अविद्या है । मान लो सौ साल पहले कोई कारखाना नहीं थी । तो दुनिया के सभी लोग भूख से मर रहे थे क्या ? हे ? कोई भी भूख से मर नहीं रहा था । हमारे वैदिक साहित्य में हम देखते हैं कि कहीं भी कारखाने के बारे में कोई उल्लेख नहीं है । नहीं । कोई जिक्र नहीं है । और वे कितने भव्य थे । यहां तक कि वृन्दावन में भी । | |||
वृन्दावन में, जैसे ही कंस नें नंदा महाराज को आमंत्रित किया, तुरंत वितरित करने के लिए वे दूध के पदार्थों की तैयारी करने लगे । और तुम पाअोगे शास्त्र में कि वे सभी अच्छी तरह से कपड़े पहनते थे, अच्छी तरह से खाते थे । उनके पास पर्याप्त भोजन, पर्याप्त दूध, काफी गायें थी । लेकिन वे गांव, गांव के आदमी हैं। वृन्दावन एक गांव है । कोई कमी नहीं है । कोई रुखापन नहीं, हमेशा हंसमुख, नृत्य करते हुए, जपते हुए और खाते हुए । तो हमने इन समस्याओं को बनाया है । केवल तुमने बनाया है । अब, तुमने इतने सारे बिना घोड़े की गाड़ी बनाई है, अब समस्या यह है कि पेट्रोल कहां से अाएगा । तुम्हारे देश में यह एक समस्या बन गया है । ब्रह्मानंद कल मुझ से बात कर रहा था । तो कई समस्याएं हैं । केवल अनावश्यक रूप से हमने इतनी सारी कृत्रिम अावश्यक्ताऍ बनाई हैं । काम-कर्मभि: । यह काम कहा जाता है । | |||
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Latest revision as of 17:44, 1 October 2020
730427 - Lecture SB 01.08.35 - Los Angeles
तो, अविद्या-काम-कर्मभि: । काम । काम मतलब इच्छा । जैसे कई वैज्ञानिक नए भोजन के लिए शोध कर रहे हैं, जैसे हमारा वैज्ञानिक दोस्त सुबह बात कर रहा था । तो फिर यह नया भोजन क्या है ? भोजन पहले से ही है, श्री कृष्ण द्वारा दिया गया, कि "तुम यह जानवर हो, तुम्हारा भोजन यह है । तुम यह जानवर हो, तुम्हारा भोजन यह है । " तो, जहॉ तक मनुष्य का संबंध है, उनका भोजन भी निमित्त है, कि तुम प्रसादम लो ।
पत्रम पुष्पम फलम तोयम यो मे भक्त्या प्रयच्छति (भ.गी. ९.२६) । प्रसादम को स्वीकार करना मानव का कर्तव्य है । प्रसादम मतलब भोजन जो पहले श्री कृष्ण को अर्पित किया गया है । यह सभ्यता है । यदि तुम कहते हो, "मैं क्यों अर्पित करूँ ?" यह असभ्य है । यह कृतज्ञता है । अगर तुम श्री कृष्ण को अर्पित करते हो, तो तुम सचेत हो कि यह खाद्य पदार्थ, यह अनाज, यह फल, यह फूल, यह दूध, यह श्री कृष्ण द्वारा दिया गया है। मैं इनका उत्पादन नहीं कर सकता । अपने कारखाने में मैं इन सभी चीजों का उत्पादन नहीं कर सकता । कुछ भी जिसका हम उपयोग करते हैं, कोई इसकी उत्पत्ति नहीं कर सकता है, यह श्री कृष्ण द्वारा दिया गया है । एको बहुनाम यो विदधाती कामान । यह कामान ।
हम इच्छुक हैं और श्री कृष्ण आपूर्ति कर रहे हैं । उनकी आपूर्ति के बिना तुम इसे प्राप्त नहीं कर सकते हो । जैसे हमारे भारत में, आजादी के बाद, नेताओं ने सोचा: "अब हमें स्वतंत्रता मिल गई है, हम ट्रैक्टरों में वृद्धि करेंगे और अन्य कृषि उपकरणों में और हमें पर्याप्त भोजन मिलेगा ।" अब वर्तमान क्षण में, दो साल से पानी की कमी है । कोई वर्षा नहीं है । इसलिए ये ट्रैक्टर रो रहे हैं । तुम समझ रहे हो ? यह बेकार है । केवल तथाकथित ट्रैक्टरों से, औजारों से, तुम उत्पादन नहीं कर सकते हो, जब तक वहाँ श्री कृष्ण की कृपा न हो । उन्हे पानी की आपूर्ति करनी होगी, जिसके अभाव से... हाल ही में खबर यह है कि लोग इतने परेशान हैं कि वे सचिव के पास गए, उन्होंने भोजन की मांग की, और परिणाम यह था कि उन्हे गोली मार दी गई । हाँ, इतने सारे लोगों की मृत्यु हो गई ।
तो वास्तव में, हालांकि हमारी यह व्यवस्था है, कि हमें काम करना है, लेकिन काम सरल है । अगर तुम कृष्ण भावनाभावित रहते हो... कि आख़िरकार, श्री कृष्ण खाद्य पदार्थों की आपूर्ति कर रहे हैं । यह एक तथ्य है । हर धर्म यह स्वीकार करता है । जैसे बाइबल में यह कहा जाता है "भगवान हमें हमारी दैनिक रोटी दो ।" यह एक तथ्य है । भगवान दे रहे हैं । यह तुम... तुम रोटी का निर्माण नहीं कर सकते ।
तुम, तुम बेकरी घर में रोटी का निर्माण कर सकते हो लेकिन... कौन तुम्हे गेहूं की आपूर्ति करेगा ? श्री कृष्ण द्वारा आपूर्ति होती है । एको बहुनाम यो विदधाति कामान । तो हमनें श्री कृष्ण को भूल कर केवल अनावश्यक समस्याओं को पैदा किया है । यह भौतिक प्रकृति है । भवे अस्मिन क्लिश्यमानााम । इसलिए तुम्हे इतनी मेहनत से काम करना पड़ता है । क्लिश्यन्ति । फिर भगवद गीता में एक और श्लोक है, मन: षष्ठानी प्रकृति स्थानि कर्षति । कर्षति, तुम बहुत कठिन संघर्ष करोगे, लेकिन अंततः इन्द्रिय संतुष्टि । अंततः । इस भौतिक दुनिया में मतलब इन्द्रिय संतुष्टि, क्योंकि काम, काम मतलब इन्द्रिय संतुष्टि । काम, एकदम विपरीत शब्द है प्रेम । काम और... काम मलतब वासना, और प्रेम मतलब श्री कृष्ण से प्रेम ।
तो यह अावश्यक है । लेकिन यहाँ इस भौतिक दुनिया में वे बहुत, बहुत कठिन काम में लगे हैं । उन्होंने कई कारखानों का आविष्कार किया है, लोहे के कारखाने, भारी मशीनरी, और यह उग्र कर्म, अासुरिक कर्म कहा जाता है । ज्यादा से ज्यादा, तुम्हे कुछ रोटी खानी है और कुछ फल या कुछ फूल । क्यों तुमने इतने बड़े, बड़े कारखानों का आविष्कार किया है ? यही अविद्या, अज्ञान, अविद्या है । मान लो सौ साल पहले कोई कारखाना नहीं थी । तो दुनिया के सभी लोग भूख से मर रहे थे क्या ? हे ? कोई भी भूख से मर नहीं रहा था । हमारे वैदिक साहित्य में हम देखते हैं कि कहीं भी कारखाने के बारे में कोई उल्लेख नहीं है । नहीं । कोई जिक्र नहीं है । और वे कितने भव्य थे । यहां तक कि वृन्दावन में भी ।
वृन्दावन में, जैसे ही कंस नें नंदा महाराज को आमंत्रित किया, तुरंत वितरित करने के लिए वे दूध के पदार्थों की तैयारी करने लगे । और तुम पाअोगे शास्त्र में कि वे सभी अच्छी तरह से कपड़े पहनते थे, अच्छी तरह से खाते थे । उनके पास पर्याप्त भोजन, पर्याप्त दूध, काफी गायें थी । लेकिन वे गांव, गांव के आदमी हैं। वृन्दावन एक गांव है । कोई कमी नहीं है । कोई रुखापन नहीं, हमेशा हंसमुख, नृत्य करते हुए, जपते हुए और खाते हुए । तो हमने इन समस्याओं को बनाया है । केवल तुमने बनाया है । अब, तुमने इतने सारे बिना घोड़े की गाड़ी बनाई है, अब समस्या यह है कि पेट्रोल कहां से अाएगा । तुम्हारे देश में यह एक समस्या बन गया है । ब्रह्मानंद कल मुझ से बात कर रहा था । तो कई समस्याएं हैं । केवल अनावश्यक रूप से हमने इतनी सारी कृत्रिम अावश्यक्ताऍ बनाई हैं । काम-कर्मभि: । यह काम कहा जाता है ।