HI/Prabhupada 0952 - भगवद भावनामृत का लक्षण है कि वह सभी भौतिक क्रियाओ के विरुद्ध है: Difference between revisions

 
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{{youtube_right|aRFN7qvFkyY|भगवद भावनामृत का लक्षण है कि वह सभी भौतिक क्रियाओ के विरुद्ध है<br/> - Prabhupāda 0952}}
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अतिथि: मुझे नहीं लगता है कि हमें चिंता करने की ज़रूरत है अापके शिष्यों के बारे में कि वे आपराधिक अदालतों में होंगे ? हम उस बारे में चिंता करने की ज़रूरत नहीं है । आपके बहुत अच्छे अनुयायी हैं ।
अतिथि: मुझे नहीं लगता है कि हमें चिंता करने की ज़रूरत है अापके शिष्यों के बारे में जो आपराधिक अदालतों में थे ? हम उस बारे में चिंता करने की ज़रूरत नहीं है । आपके बहुत अच्छे अनुयायी हैं ।  


प्रभुपाद: हाँ ।
प्रभुपाद: हाँ ।  


अतिथि: यह समुदाय, उत्कृष्ट समुदाय ।
अतिथि: यह समुदाय, उत्कृष्ट समुदाय ।  


प्रभुपाद: हाँ ।
प्रभुपाद: हाँ ।  


अतिथि: अच्छे लोग । (तोड़)
अतिथि: अच्छे लोग । (तोड़)  


प्रभुपाद: एक मजिस्ट्रेट या एक वकील पहले से ही ग्रेजुएट है । तो अगर वह एक वकील है, यह समझ लेना चाहिए कि उसने अपनी ग्रेजुएट की परीक्षा उत्तीर्ण की है । इसी तरह, अगर कोई वैषणव है तो यह समझना चाहिए कि वे पहले से ही ब्राह्मण है । यह स्पष्ट है ? क्यों हम अापको जनेऊ देते हैं ? इसका मतलब है ब्राह्मणवादी मानक है । जब तक कोई एक ब्राह्मण नहीं है, वह वैषणव नहीं बन सकता । जैसे जब तक कोई ग्रेजुएट नहीं है, वह वकील नहीं बन सकता है । तो एक वकील मतलब वह पहले से ही विश्वविद्यालय का ग्रेजुएट है, इसी प्रकार एक वैषणव वह पहले से ही एक ब्राह्मण है ।
प्रभुपाद: एक मजिस्ट्रेट या एक वकील पहले से ही स्नातक है । तो अगर वह एक वकील है, यह समझ लेना चाहिए कि उसने अपनी स्नातक परीक्षा उत्तीर्ण की है । इसी तरह, अगर कोई वैष्णव है तो यह समझना चाहिए कि वे पहले से ही ब्राह्मण है । क्या यह स्पष्ट है ? हम अापको जनेऊ क्यों देते हैं ? इसका मतलब है ब्राह्मणवादी मानक है । जब तक कोई एक ब्राह्मण नहीं है, वह वैष्णव नहीं बन सकता । जैसे जब तक कोई स्नातक नहीं है, वह वकील नहीं बन सकता । तो एक वकील मतलब वह पहले से ही विश्वविद्यालय का स्नातक है, इसी प्रकार एक वैष्णव पहले से ही एक ब्राह्मण है ।  


भक्त: तो इसलिए सभी वैषणव, वे सभी, इसलिए, उनमे रजो गुण अौर तमो गुण का संदूषण नहीं होनी चाहिए । वे, उन्हे उस मंच पर होना चाहिए ...
भक्त: तो इसलिए सभी वैष्णव, वे सभी, इसलिए, उनमे रजो गुण अौर तमो गुण का संदूषण नहीं होना चाहिए । वे उस मंच पर होना चाहिए...  


प्रभुपाद: हाँ, वैष्णव मतलब, भक्ति मतलब, भक्ित: परेशानुभवो विरक्तिर अंयत्र स्यत ([[Vanisource:SB 11.2.42|श्री भ ११।२।४२]]) । भक्ति मतलब भगवान भावनामृत का बोध । और भगवान भावनामृत का लक्षण है कि वह सभी भौतिक गतिविधियों के विरुद्ध है । उसे कोई दिलचस्पी नहीं है । भक्त: तो फिर ब्राह्मण को कोई दिलचस्पी नहीं है, मुझे माफ कीजिए, वैष्णव को कोई दिलचस्पी नहीं है बनने में एक ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, या शूद्र, लेकिन वह कुछ विशिष्ट कार्य लेता है...
प्रभुपाद: हाँ, वैष्णव मतलब, भक्ति मतलब, भक्ति: परेशानुभवो विरक्तिर अन्यत्र स्यात ([[Vanisource:SB 11.2.42|श्रीमद भागवतम ११.२.४२]]) । भक्ति मतलब भगवद भावनामृत का साक्षात्कार । और भगवद भावनामृत का लक्षण है कि वह सभी भौतिक गतिविधियों के विरुद्ध है । उसे कोई दिलचस्पी नहीं है ।  


प्रभुपाद: यह, वह सर्वोच्च स्थिति पर है वास्तव में । उसे कोई दिलचस्पी नहीं है । लेकिन जब तक वह परिपूर्ण नहीं होता है, उसे रुचि है । तो यह रूचि ताल मेल खानी चाहिए, या क्या कहा जाता है, ब्राह्मणवादी के अनुसार समायोजित, क्षत्रिय ... (तोड़)
भक्त: तो फिर ब्राह्मण को कोई दिलचस्पी नहीं है, मुझे माफ कीजिए, वैष्णव को कोई दिलचस्पी नहीं है बनने में एक ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, या शूद्र, लेकिन वह कुछ विशिष्ट कार्य लेता है...  


... क्योंकि, उस समय, लोग इतने बेकार थे, कि वे समझ नहीं पाए कि भगवान क्या हैं । इसलिए उन्होंने तय किया कि, "सबसे पहले उन्हें निष्पाप होने दो । फिर एक दिन आएगा, वह भगवान क्या हैं यह समझेगा । प्रभु मसीह नें भी कहा, "तुम मारोगे नहीं " अब, उस समय लोग हत्यारे थे । अन्यथा क्यों वे कहते हैं: "तुम नहीं मारोगे ।" क्यों यह पहली आज्ञा ? क्योंकि हत्यारों से भरा । बहुत अच्छा समाज नहीं । अगर एक समाज में लगातार हत्या है, हिंसा, क्या यह बहुत अच्छा समाज है ? तो इसलिए सब से पहले उन्होंने हत्या न करने को कहा, सब से पहले उन्हें निष्पाप बनना है, फिर वे भगवान क्या हैं यह समझेंगे । यहाँ भगवद गीता की पुष्टि है : येषाम् त्व अंत गतम् पापम् ([[Vanisource:BG 7.28|भ गी ७।२८]]) । जो पूरी तरह से निष्पाप हो गया है । तो भगवान भावनामृत है उस व्यक्ति के लिए जो निष्पाप है । तुम भगवान भावनाभावित नहीं हो सकते पापी होते हुए । यह धोखा है । एक भगवानभावित व्यक्ति मतलब उसमें कोई पाप नहीं है । वह पापी गतिविधियों के क्षेत्राधिकार में नहीं हो सकता है । यही भगवान भावनामृत है । तुम भगवान भावनाभावित नहीं हो सकते हो पापी होते हुए । यह संभव नहीं है । तो हर कोई समझ सकता है कि क्या मैं वास्तव में भगवान भावनाभावित हूं या नहीं अपनी ही गतिविधियों को पहचानने से । बाहरी प्रमाण पत्र पूछने की कोई जरूरत नहीं है । क्या मैं इन सिद्धांतों पर तय हूँ : कोई अवैध सेक्स नहीं, कोई मांस नहीं खाना, कोई जुआ नहीं, कोई नशा नहीं ... अगर कोई ईमानदार है, वह खुद अांक सकता है कि क्या मैं वास्तव में उस मंच पर हूँ या नहीं । जैसे अगर तुम भूखे हो, अगर तुमने कुछ खाया है तो तुम संतोष, ताकत महसूस कर सकते हो । बाहरी प्रमाणपत्र की कोई जरूरत नहीं है । इसी तरह, भगवान भावनामृत मतलब क्या तुम सब पापी गतिविधियों से मुक्त हो या नहीं । तो फिर तुम बनोगे । एक भगवान भावनाभावित व्यक्ति किसी भी पापी गतिविधि करने के लिए इच्छुक नहीं होगा ।
प्रभुपाद: यह, वह सर्वोच्च स्थिति पर है वास्तव में । उसे कोई दिलचस्पी नहीं है । लेकिन जब तक वह परिपूर्ण नहीं होता है, उसे रुचि है । तो यह रूचि ताल मेल खानी चाहिए, या क्या कहा जाता है, ब्राह्मणवादी, क्षत्रिय, के अनुसार समायोजित... (तोड़) ... क्योंकि, उस समय, लोग इतने बेकार थे, कि वे समझ नहीं पाए कि भगवान क्या हैं । इसलिए उन्होंने तय किया कि, "सबसे पहले उन्हें निष्पाप होने दो । फिर एक दिन आएगा, वह भगवान क्या हैं यह समझेगा । प्रभु मसीह नें भी कहा, "तुम मारोगे नहीं |" अब, उस समय लोग हत्यारे थे । अन्यथा क्यों वे कहते हैं: "तुम नहीं मारोगे ।" क्यों यह पहली आज्ञा ? क्योंकि हत्यारों से भरा । बहुत अच्छा समाज नहीं ।  
 
अगर एक समाज में लगातार हत्या है, हिंसा, क्या यह बहुत अच्छा समाज है ? तो इसलिए सब से पहले उन्होंने हत्या न करने को कहा, सब से पहले उन्हें निष्पाप बनना है, फिर वे भगवान क्या हैं यह समझेंगे । यहाँ भगवद गीता की पुष्टि है: येषाम त्व अंत गतम पापम ([[HI/BG 7.28|भ.गी. ७.२८]) । जो पूरी तरह से निष्पाप हो गया है । तो भगवद भावनामृत है उस व्यक्ति के लिए जो निष्पाप है । तुम पापी होते हुए भगवद भावनाभावित नहीं हो सकते । यह धोखा है । एक भगवद भावनाभावित व्यक्ति मतलब उसमें कोई पाप नहीं है । वह पापी गतिविधियों के क्षेत्राधिकार में नहीं हो सकता है । यही भगवद भावनामृत है ।  
 
तुम पापी होते हुए भगवद भावनाभावित नहीं हो सकते । यह संभव नहीं है । तो हर कोई समझ सकता है कि क्या मैं वास्तव में भगवद भावनाभावित हूं या नहीं अपनी ही गतिविधियों को पहचानने से । बाहरी प्रमाण पत्र लेने की कोई जरूरत नहीं है । क्या मैं इन सिद्धांतों पर तय हूँ: कोई अवैध सेक्स नहीं, कोई मांस नहीं खाना, कोई जुआ नहीं, कोई नशा नहीं... अगर कोई ईमानदार है, वह खुद अांक सकता है कि क्या मैं वास्तव में उस मंच पर हूँ या नहीं । जैसे अगर तुम भूखे हो, अगर तुमने कुछ खाया है तो तुम संतोष, ताकत महसूस कर सकते हो । बाहरी प्रमाणपत्र की कोई जरूरत नहीं है । इसी तरह, भगवद भावनामृत मतलब क्या तुम सब पापी गतिविधियों से मुक्त हो या नहीं । तो फिर तुम बनोगे । एक भगवद भावनाभावित व्यक्ति किसी भी पापी गतिविधि करने के लिए इच्छुक नहीं होगा ।  
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Latest revision as of 19:29, 17 September 2020



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अतिथि: मुझे नहीं लगता है कि हमें चिंता करने की ज़रूरत है अापके शिष्यों के बारे में जो आपराधिक अदालतों में थे ? हम उस बारे में चिंता करने की ज़रूरत नहीं है । आपके बहुत अच्छे अनुयायी हैं ।

प्रभुपाद: हाँ ।

अतिथि: यह समुदाय, उत्कृष्ट समुदाय ।

प्रभुपाद: हाँ ।

अतिथि: अच्छे लोग । (तोड़)

प्रभुपाद: एक मजिस्ट्रेट या एक वकील पहले से ही स्नातक है । तो अगर वह एक वकील है, यह समझ लेना चाहिए कि उसने अपनी स्नातक परीक्षा उत्तीर्ण की है । इसी तरह, अगर कोई वैष्णव है तो यह समझना चाहिए कि वे पहले से ही ब्राह्मण है । क्या यह स्पष्ट है ? हम अापको जनेऊ क्यों देते हैं ? इसका मतलब है ब्राह्मणवादी मानक है । जब तक कोई एक ब्राह्मण नहीं है, वह वैष्णव नहीं बन सकता । जैसे जब तक कोई स्नातक नहीं है, वह वकील नहीं बन सकता । तो एक वकील मतलब वह पहले से ही विश्वविद्यालय का स्नातक है, इसी प्रकार एक वैष्णव पहले से ही एक ब्राह्मण है ।

भक्त: तो इसलिए सभी वैष्णव, वे सभी, इसलिए, उनमे रजो गुण अौर तमो गुण का संदूषण नहीं होना चाहिए । वे उस मंच पर होना चाहिए...

प्रभुपाद: हाँ, वैष्णव मतलब, भक्ति मतलब, भक्ति: परेशानुभवो विरक्तिर अन्यत्र स्यात (श्रीमद भागवतम ११.२.४२) । भक्ति मतलब भगवद भावनामृत का साक्षात्कार । और भगवद भावनामृत का लक्षण है कि वह सभी भौतिक गतिविधियों के विरुद्ध है । उसे कोई दिलचस्पी नहीं है ।

भक्त: तो फिर ब्राह्मण को कोई दिलचस्पी नहीं है, मुझे माफ कीजिए, वैष्णव को कोई दिलचस्पी नहीं है बनने में एक ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, या शूद्र, लेकिन वह कुछ विशिष्ट कार्य लेता है...

प्रभुपाद: यह, वह सर्वोच्च स्थिति पर है वास्तव में । उसे कोई दिलचस्पी नहीं है । लेकिन जब तक वह परिपूर्ण नहीं होता है, उसे रुचि है । तो यह रूचि ताल मेल खानी चाहिए, या क्या कहा जाता है, ब्राह्मणवादी, क्षत्रिय, के अनुसार समायोजित... (तोड़) ... क्योंकि, उस समय, लोग इतने बेकार थे, कि वे समझ नहीं पाए कि भगवान क्या हैं । इसलिए उन्होंने तय किया कि, "सबसे पहले उन्हें निष्पाप होने दो । फिर एक दिन आएगा, वह भगवान क्या हैं यह समझेगा । प्रभु मसीह नें भी कहा, "तुम मारोगे नहीं |" अब, उस समय लोग हत्यारे थे । अन्यथा क्यों वे कहते हैं: "तुम नहीं मारोगे ।" क्यों यह पहली आज्ञा ? क्योंकि हत्यारों से भरा । बहुत अच्छा समाज नहीं ।

अगर एक समाज में लगातार हत्या है, हिंसा, क्या यह बहुत अच्छा समाज है ? तो इसलिए सब से पहले उन्होंने हत्या न करने को कहा, सब से पहले उन्हें निष्पाप बनना है, फिर वे भगवान क्या हैं यह समझेंगे । यहाँ भगवद गीता की पुष्टि है: येषाम त्व अंत गतम पापम ([[HI/BG 7.28|भ.गी. ७.२८]) । जो पूरी तरह से निष्पाप हो गया है । तो भगवद भावनामृत है उस व्यक्ति के लिए जो निष्पाप है । तुम पापी होते हुए भगवद भावनाभावित नहीं हो सकते । यह धोखा है । एक भगवद भावनाभावित व्यक्ति मतलब उसमें कोई पाप नहीं है । वह पापी गतिविधियों के क्षेत्राधिकार में नहीं हो सकता है । यही भगवद भावनामृत है ।

तुम पापी होते हुए भगवद भावनाभावित नहीं हो सकते । यह संभव नहीं है । तो हर कोई समझ सकता है कि क्या मैं वास्तव में भगवद भावनाभावित हूं या नहीं अपनी ही गतिविधियों को पहचानने से । बाहरी प्रमाण पत्र लेने की कोई जरूरत नहीं है । क्या मैं इन सिद्धांतों पर तय हूँ: कोई अवैध सेक्स नहीं, कोई मांस नहीं खाना, कोई जुआ नहीं, कोई नशा नहीं... अगर कोई ईमानदार है, वह खुद अांक सकता है कि क्या मैं वास्तव में उस मंच पर हूँ या नहीं । जैसे अगर तुम भूखे हो, अगर तुमने कुछ खाया है तो तुम संतोष, ताकत महसूस कर सकते हो । बाहरी प्रमाणपत्र की कोई जरूरत नहीं है । इसी तरह, भगवद भावनामृत मतलब क्या तुम सब पापी गतिविधियों से मुक्त हो या नहीं । तो फिर तुम बनोगे । एक भगवद भावनाभावित व्यक्ति किसी भी पापी गतिविधि करने के लिए इच्छुक नहीं होगा ।