HI/Prabhupada 0956 - कुत्ते का पिता अपने बेटे को कभी नहीं कहेगा : ' स्कूल जाअो ' नहीं । वे कुत्ते हैं: Difference between revisions
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डॉ | डॉ मिज़: कैसे मन को पता चलता है कि आत्मा है ? | ||
प्रभुपाद: स्पष्ट दिमाग वसले प्रोफेसरों से | प्रभुपाद: स्पष्ट दिमाग वसले प्रोफेसरों से शिक्षा लेकर । क्यों छात्र आप के पास आ रहे हैं ? क्योंकि उनका मन स्पष्ट नहीं है । तुम्हे उसके दिमाग को साफ करना होगा, मनोविज्ञान सिखाकर, अनुभूति... सोचना, अनुभव करना, इच्छा करना । इसलिए उसे एक विद्वान व्यक्ति के पास अाना होगा जो जानता है कि मन को कैसे समझना है, कैसे मन की गतिविधियों को समझना है, कैसे उनसे निपटना है । इसके लिए शिक्षा की आवश्यकता है । एक कुत्ता यह शिक्षा नहीं ले सकता, लेकिन एक मनुष्य ले सकता है । इसलिए यह मनुष्य का कर्तव्य है कि कैसे मन को नियंत्रित करें, न की बिल्लियों और कुत्तों की तरह कार्य करे । | ||
यही मनुष्य है । उसे जिज्ञासु होना चाहिए, "यह क्यों हो रहा है? यह क्यों हो रहा है ?" और उसे शिक्षा लेनी चाहिए । यही मानव जीवन है । अौर अगर वह पूछताछ नहीं करता है, अगर वह शिक्षा नहीं लेता है, तो उसमे और कुत्ते में अंतर क्या है ? वह एक कुत्ता ही रहता है । उसे मानव जीवन का यह अवसर मिला है । उसे लाभ लेना चाहिए समझने के लिए क्या चीज़ क्या है, खुद को कुत्ते की स्थिति में न रखे, केवल सोना, यौन जीवन, खाना और बचाव । यही कुत्ते और मनुष्य के बीच अंतर है । अगर वह जिज्ञासु नहीं होता है कि कैसे मन को नियंत्रित करना है, वह एक इंसान भी नहीं है । | |||
एक कुत्ता कभी पूछताछ नहीं करेगा । एक कुत्ते को पता है कि "जब मैं भौंकता हूं, लोग परेशान हो जाते हैं ।" वह कभी नहीं पूछेगा, "मैं इस भौंकने की आदत को नियंत्रित कैसे करूं ? (हंसी) क्योंकि वह कुत्ता है, वह ऐसा नहीं कर सकता है । एक मनुष्य समझ सकता है कि "लोग मुझसे नफरत करते हैं । मैं कुछ गलत कर रहा हूँ । कैसे अपने मन को नियंत्रित करूं ? " यही मनुष्य है । यही मनुष्य और कुत्ते के बीच अंतर है । इसलिए वैदिक आज्ञा है, "जाओ और जिज्ञासा करो । तुम्हे मनुष्य जीवन मिला है।" अथातो ब्रह्म जिज्ञासा । "अब, यही समय है आत्मा के बारे में जिज्ञासा करने का ।" | |||
तद विज्ञानार्थम स गुरुम एव अभिगच्छेत (मुंडक उपनिषद १.२.१२) । अगर तुम इस विज्ञान को समझना चाहते हो, तो तुम उचित गुरु के पास जाअो और उनसे सीखो । वही बात जो हम अपने बच्चों को कहते हैं: "अगर तुम जीवन की उच्च स्थिति में पहुंचने के लिए शिक्षित बनना चाहते हो, स्कूल जाअो, कॉलेज जाअो, सीखो ।" यही मानव समाज है । कुत्ते का पिता अपने बेटे को कभी नहीं कहेगा, "स्कूल जाओ ।" नहीं । वे कुत्ते हैं । | |||
प्रभुपाद: मैं कह तो रहा हूं, तुम्हें शिक्षित होना होगा । कैसे ये लोग आत्मा के बारे में आश्वस्त हैं ? उन्हें शिक्षित किया गया है । अभ्यास से और ज्ञान के द्वारा । सब कुछ शिक्षित होकर सीखा जा सकता है । और इसलिए वैदिक | जयतीर्थ: विश्वविद्यालयों आजकल आत्मा की प्रकृति के बारे में कोई पाठ्यक्रम पढ़ाया नहीं जाता । | ||
प्रभुपाद: इसलिए वह कहता है, "मैं अगर एक कुत्ता बना तो उसमे गलत क्या है ?" क्योंकि कोई शिक्षा नहीं है । वह कुत्ते और मनुष्य के बीच फर्क नहीं जानता है । इसलिए वह कहता है कि "अगर मैं कुत्ता बना तो क्या गलत है ? मुझे यौन सम्बन्ध के लिए अधिक सुविधा मिलेगी बिना किसी भी आपराधिक आरोप के । यह शिक्षा की उन्नति है । | |||
डॉ मिज़: कैसे मन, फिर, समझ पाता है कि आत्मा है ? | |||
प्रभुपाद: मैं कह तो रहा हूं, तुम्हें शिक्षित होना होगा । कैसे ये लोग आत्मा के बारे में आश्वस्त हैं ? उन्हें शिक्षित किया गया है । अभ्यास से और ज्ञान के द्वारा । सब कुछ शिक्षित होकर सीखा जा सकता है । और इसलिए वैदिक आज्ञा है तद विज्ञानार्थम "उस विज्ञान को जानने के लिए," गुरुम एव अभिगच्छेत "तुम्हे गुरु, शिक्षक, के पास जाना होगा ।" तो जवाब यह है कि आपको शिक्षक के पास जाना होगा जो अापको सिखा सकता है कि कैसे आत्मा है । | |||
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Latest revision as of 14:37, 28 October 2018
750623 - Conversation - Los Angeles
डॉ मिज़: कैसे मन को पता चलता है कि आत्मा है ?
प्रभुपाद: स्पष्ट दिमाग वसले प्रोफेसरों से शिक्षा लेकर । क्यों छात्र आप के पास आ रहे हैं ? क्योंकि उनका मन स्पष्ट नहीं है । तुम्हे उसके दिमाग को साफ करना होगा, मनोविज्ञान सिखाकर, अनुभूति... सोचना, अनुभव करना, इच्छा करना । इसलिए उसे एक विद्वान व्यक्ति के पास अाना होगा जो जानता है कि मन को कैसे समझना है, कैसे मन की गतिविधियों को समझना है, कैसे उनसे निपटना है । इसके लिए शिक्षा की आवश्यकता है । एक कुत्ता यह शिक्षा नहीं ले सकता, लेकिन एक मनुष्य ले सकता है । इसलिए यह मनुष्य का कर्तव्य है कि कैसे मन को नियंत्रित करें, न की बिल्लियों और कुत्तों की तरह कार्य करे ।
यही मनुष्य है । उसे जिज्ञासु होना चाहिए, "यह क्यों हो रहा है? यह क्यों हो रहा है ?" और उसे शिक्षा लेनी चाहिए । यही मानव जीवन है । अौर अगर वह पूछताछ नहीं करता है, अगर वह शिक्षा नहीं लेता है, तो उसमे और कुत्ते में अंतर क्या है ? वह एक कुत्ता ही रहता है । उसे मानव जीवन का यह अवसर मिला है । उसे लाभ लेना चाहिए समझने के लिए क्या चीज़ क्या है, खुद को कुत्ते की स्थिति में न रखे, केवल सोना, यौन जीवन, खाना और बचाव । यही कुत्ते और मनुष्य के बीच अंतर है । अगर वह जिज्ञासु नहीं होता है कि कैसे मन को नियंत्रित करना है, वह एक इंसान भी नहीं है ।
एक कुत्ता कभी पूछताछ नहीं करेगा । एक कुत्ते को पता है कि "जब मैं भौंकता हूं, लोग परेशान हो जाते हैं ।" वह कभी नहीं पूछेगा, "मैं इस भौंकने की आदत को नियंत्रित कैसे करूं ? (हंसी) क्योंकि वह कुत्ता है, वह ऐसा नहीं कर सकता है । एक मनुष्य समझ सकता है कि "लोग मुझसे नफरत करते हैं । मैं कुछ गलत कर रहा हूँ । कैसे अपने मन को नियंत्रित करूं ? " यही मनुष्य है । यही मनुष्य और कुत्ते के बीच अंतर है । इसलिए वैदिक आज्ञा है, "जाओ और जिज्ञासा करो । तुम्हे मनुष्य जीवन मिला है।" अथातो ब्रह्म जिज्ञासा । "अब, यही समय है आत्मा के बारे में जिज्ञासा करने का ।"
तद विज्ञानार्थम स गुरुम एव अभिगच्छेत (मुंडक उपनिषद १.२.१२) । अगर तुम इस विज्ञान को समझना चाहते हो, तो तुम उचित गुरु के पास जाअो और उनसे सीखो । वही बात जो हम अपने बच्चों को कहते हैं: "अगर तुम जीवन की उच्च स्थिति में पहुंचने के लिए शिक्षित बनना चाहते हो, स्कूल जाअो, कॉलेज जाअो, सीखो ।" यही मानव समाज है । कुत्ते का पिता अपने बेटे को कभी नहीं कहेगा, "स्कूल जाओ ।" नहीं । वे कुत्ते हैं ।
जयतीर्थ: विश्वविद्यालयों आजकल आत्मा की प्रकृति के बारे में कोई पाठ्यक्रम पढ़ाया नहीं जाता ।
प्रभुपाद: इसलिए वह कहता है, "मैं अगर एक कुत्ता बना तो उसमे गलत क्या है ?" क्योंकि कोई शिक्षा नहीं है । वह कुत्ते और मनुष्य के बीच फर्क नहीं जानता है । इसलिए वह कहता है कि "अगर मैं कुत्ता बना तो क्या गलत है ? मुझे यौन सम्बन्ध के लिए अधिक सुविधा मिलेगी बिना किसी भी आपराधिक आरोप के । यह शिक्षा की उन्नति है ।
डॉ मिज़: कैसे मन, फिर, समझ पाता है कि आत्मा है ?
प्रभुपाद: मैं कह तो रहा हूं, तुम्हें शिक्षित होना होगा । कैसे ये लोग आत्मा के बारे में आश्वस्त हैं ? उन्हें शिक्षित किया गया है । अभ्यास से और ज्ञान के द्वारा । सब कुछ शिक्षित होकर सीखा जा सकता है । और इसलिए वैदिक आज्ञा है तद विज्ञानार्थम "उस विज्ञान को जानने के लिए," गुरुम एव अभिगच्छेत "तुम्हे गुरु, शिक्षक, के पास जाना होगा ।" तो जवाब यह है कि आपको शिक्षक के पास जाना होगा जो अापको सिखा सकता है कि कैसे आत्मा है ।