HI/Prabhupada 0961 - हमारी स्थिति है अाधीन रहना और भगवान शासक हैं

Revision as of 14:53, 15 June 2015 by Rishab (talk | contribs) (Created page with "<!-- BEGIN CATEGORY LIST --> Category:1080 Hindi Pages with Videos Category:Hindi Pages - 207 Live Videos Category:Prabhupada 0961 - in all Languages Category:HI...")
(diff) ← Older revision | Latest revision (diff) | Newer revision → (diff)


Invalid source, must be from amazon or causelessmery.com

740707 - Lecture Festival Ratha-yatra - San Francisco

यह आंदोलन ५०० साल पहले प्रभु चैतन्य महाप्रभु द्वारा शुरू किया गया था ... इससे पहले भगवान कृष्ण पांच हजार साल पहले । कुरुक्षेत्र युद्ध के मैदान में उन्होंने महान भगवद गीता को कहा । आप में से अधिकांश, तुमने नाम सुना है अौर (अस्पष्ट) हमने भी प्रकाशित किया है " भगवद गीता यथारूप " यह शकृष्ण भावनामृत आंदोलन का आधार है " भगवद गीत यथारूप " भगवद गीता ... भगवद गीता का प्रयोजन है तुम सब को याद दिलाने के लिए कि तुम सब ..... तुम मतलब सभी जीव, मनुष्य ही नहीं, लेकिन मनुष्य के अलावा भी । जानवर, पेड़, पक्षी, जल के जीव । जहॉ भी तुम अात्मा देखते हो, यह भगवान का अंशस्वरूप है । भगवान भी जीव हैं, लेकिन जैसा की वेदों में वर्णित है, मुख्य जीव । यह कथा उपनिषद में कहा गया है , नित्यो नित्यानाम् चेतनश चेतनानाम । भगवान जीवों में से एक हैं, हमारी तरह लेकिन फर्क यह है भगवान और हममें : एको यो बहूनाम् विदधाति कामान कि वे एक जीव अन्य सभी जीवों का पोषण कर रहे हैं । तो हमारी स्थिति है भगवान द्वारा पोषित होना अौर भगवान अनुरक्षक हैं । हमारी स्थिति है प्रभुत्व के अाधीन रहना और भगवान प्रभु हैं । तो, इस भौतिक दुनिया में, जीव, जो जीव भगवान जैसे बनना चाहते थे... (तोड़)

तो मानव जीवन अवसर है जन्म और मृत्यु, बीमारी और बुढ़ापे के चक्र से मुक्त होने के लिए । और यह कृष्ण भावनामृत आंदोलन है लोगों को शिक्षित करने के लिए इस महान विज्ञान के क्षेत्र में । इसलिए हमनें पहले से ही बीस किताबों को प्रकाशित किया है, चार सौ पृष्ठ प्रत्येक में, कृष्ण भावनामृत के इस विज्ञान को विस्तृत करने के लिए । तो वैज्ञानिक, दार्शनिक, वे भी हमारी किताबें को पढ़ने से समझ सकते हैं और अधिक किताबें होंगी ।