HI/Prabhupada 0961 - हमारी स्थिति है अाधीन रहना और भगवान शासक हैं
740707 - Lecture Festival Ratha-yatra - San Francisco
यह आंदोलन ५०० साल पहले प्रभु चैतन्य महाप्रभु द्वारा शुरू किया गया था ...इससे पहले भगवान कृष्ण पांच हजार साल पहले । कुरुक्षेत्र युद्ध के मैदान में उन्होंने महान भगवद गीता को कहा । आप में से अधिकांश, आपने नाम सुना है अौर (अस्पष्ट) हमने भी प्रकाशित किया है " भगवद गीता यथारूप |" यह कृष्ण भावनामृत आंदोलन का आधार है "भगवद गीता यथारूप | " भगवद गीता... भगवद गीता का प्रयोजन है आप सब को याद दिलाने के लिए कि आप सब... आप मतलब सभी जीव, मनुष्य ही नहीं, लेकिन मनुष्य के अलावा भी ।
जानवर, पेड़, पक्षी, जल के जीव । जहॉ भी तुम अात्मा देखते हो, यह भगवान का अंशस्वरूप है । भगवान भी जीव हैं, लेकिन जैसा की वेदों में वर्णित है, मुख्य जीव । यह कठ उपनिषद में कहा गया है, नित्यो नित्यानाम चेतनश चेतनानाम । भगवान जीवों में से एक हैं, हमारी तरह, लेकिन फर्क यह है भगवान में और हम में: एको यो बहूनाम विदधाति कामान | की वे एक जीव अन्य सभी जीवों का पोषण कर रहे हैं ।
तो हमारी स्थिति है भगवान द्वारा पोषित होना अौर भगवान पालक हैं । हमारी स्थिति है अाधीन रहना और भगवान शासक हैं । तो, इस भौतिक दुनिया में, जीव, जो जीव भगवान जैसे बनना चाहते थे... (तोड़) तो मानव जीवन अवसर है जन्म और मृत्यु, बीमारी और बुढ़ापे के चक्र से मुक्त होने के लिए । और यह कृष्ण भावनामृत आंदोलन लोगों को इस महान विज्ञान के क्षेत्र में शिक्षित करने के लिए है । इसलिए हमनें पहले से ही बीस किताबों को प्रकाशित किया है, चार सौ पृष्ठ प्रत्येक में, कृष्ण भावनामृत के इस विज्ञान को विस्तृत करने के लिए । तो वैज्ञानिक, तत्वज्ञानी, वे भी हमारी किताबें को पढ़ने से समझ सकते हैं और अधिक किताबें होंगी ।