HI/Prabhupada 0992 - अवसरवादियों के लिए कोई कृष्ण भावनामृत नहीं है

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740724 - Lecture SB 01.02.20 - New York

सब कुछ है भक्ति सेवा में, भक्तिरसामृत सिंधु, प्रभु चैतन्य की शिक्षाऍ, श्रीमद-भागवतम, भगवद गीता में जो हम प्रकाशित कर रहे हैं । अगर तुम्हे समझ में नहीं आता है, अगर तुम सोचते हो कि " ये पुस्तकें बिक्री के लिए हैं " और हम सब विद्वान हैं । हमने सब कुछ सीखा लिया है । समाप्त । हमारा काम समाप्त हो गया है" तब हालत में सुधार नहीं होगा ।

प्रसन्न मनसो भगवद भक्ति योग भगवत तत्व विज्ञानम्

(श्री भ १।२।२०)

यह एक विज्ञान है । जैसे कि तुम विज्ञान सीखते हो.. जैसे हमारा स्वरूप दामोदर, डॉक्टर - तो वह अब डॉक्टर है । हमारे पास एक और डॉक्टर है न्यू वृन्दावन में : वह भी वैज्ञानिक है । तो अगर तुम डॉक्टरेट शीर्षक पाना चाहते हो, तो यह भी आत्मसमर्पण है । समितियॉ हआं, तीन, चार-पुरुषों की समिति । जब वे प्रमाणित करते हैं, "हाँ । यह सब ठीक है । फलां व्यक्ति द्वारा प्रस्तुत यह थीसिस को मंजूरी दी जाती है, तो तुम पाते हो । तो हर जगह है तद विज्ञानार्थम् स गुरुम एव अभिगच्छेत (मु उ १।२।१२) तो अगर हम गंभीर नहीं हैं कृष्ण भावनामृत के विज्ञान को समझने के बारे में अगर तुम अवसर लेते हो यह बनने के लिए, या वह बनने के लिए, अौर कुछ पैसे बनाने के लिए, और यह और वह, तो पूरी बात समाप्त हो जाती है । अवसरवादियों के लिए कोई कृष्ण भावनामृत नहीं है । वास्तविक आत्मसमर्पण जिस आत्मा नें की है : मद अाश्रय: ।

तो भगवत-तत्त्व-विज्ञानम् । जहॉ भी हम हैं, कम से कम यहॉ, अपने अाप को भगवत-तत्त्व-विज्ञानम् में संलग्न करो । यह प्रक्रिया है । मद अाश्रय: श्री कृष्ण कहते हैं । मद अाश्रय: मतलब योगम यंजन मद अाश्रय: । श्री कृष्ण के अाधीन रहना या ... ऐसा संभव नहीं है क्योंकि बिना श्री कृष्ण के सेवक की शरण लिए... गोपी भरतु: पद कमलयोर दास दासानुदास: (CC Madhya 13.80, पद्यावली ७४)... हम कृष्ण के दास के दास के दास का दास बनना है । आकांक्षा नहीं करनी है, "मैं कृष्ण का सीधा दास बनूंगा ।" यही मायावाद है । हमारी प्रक्रिया है दास ... चैतन्य महाप्रभु सिखाते हैं, दास का दास ... जितना अधिक हम दास बनते हैं सौवां पीढ़ी नीचे, वह पूर्ण है ।

तो समझने की कोशिश करो ।

भगवत-तत्त्व-विज्ञानम्मु
क्त संगस्य जायते
(श्री भ १।२।२०)

भगवत-तत्त्व विज्ञानम् । यह विज्ञान, कौन समझ सकता है ? मुक्ता-संगस्य । मुक्त मतलब "मुक्त" और संग का अर्थ है "संग ।" तो संग मतलब हम हमेशा ... हम भौतिक प्रकृति से दूषित हैं । कभी कभी हम अच्छा होते हैं; कभी कभी हम भावुक होते हैं; कभी कभी हम धूर्त होते हैं । तीन गुण होते हैं । उनमें से कुछ बहुत अच्छे हैं, और उनमें से कुछ भावुक होते हैं और उनमें से कुछ धूर्त होते हैं । तो हमें तथाकथित अच्छाई के स्तर से भी पार होना है । यही मुक्त-संग कहा जाता है । क्योंकि भौतिक जीवन में, हम हमेशा इन गुणों के साथ जुड़ रहे हैं, तीन गुण, गुण मयी, माया । दैवि हि एषा गुण मयी । गुण मयी । गुण, ये तीन गुण । तो यह बहुत मुश्किल है । कभी कभी हम सत्व के मंच पर होते हैं, कभी हम गिर जाते हैं रजस में, कभी हम गिर जाते हैं तमस में । या तमस से मैं फिर से सत्व पर उठ जाता हूं अौर फिर से गिर जाता हूं । यह चल रहा है । लेकिन इसलिए तुम्हे मुक्त संग होना होगा, इन सभी गुणों से ऊपर । इन सबसे ऊपर । "मैं बहुत अच्छा आदमी हूँ। मैं अच्छा प्रबंधक हूँ। मैं यह हूँ ..." तुम्हे उससे पार होना होगा । यही मुक्त संगस्य कहा जाता है ।

लेकिन यह मुक्त संगस्य संभव है, जब हम ईमानदारी से भक्ति सेवा में लगत हैं । जैसे अर्च विग्रह की पूजा । अर्च विग्रह की पूजा मतलब धीरे-धीरे मुक्त संग बनना । इसलिए अर्च विग्रह की पूजा आवश्यक है । प्रक्रिया है: तुम सब को सुबह जल्दी उठना चाहिए; तुम्हे नहाना चाहिए; तुम्हे मंगल-आरती करनी चाहिए । फिर उसके बाद, उसके बाद, वस्त्र पहनाना अर्च विग्रह को, कुछ फूल अर्पित करना । इस तरह से, अगर तुम हमेशा रहते हो, फिर धीरे-धीरे तुम मुक्त-संग बन जाअोगे ।