Category:HI-Quotes - in USA, New York
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- HI/Prabhupada 0004 - आधिकारिक स्रोत की शरण लो
- HI/Prabhupada 0013 - आध्यात्मिक कार्य चौबीस घंटे
- HI/Prabhupada 0015 - मैं ये शरीर नहीं हूँ
- HI/Prabhupada 0049 - हम प्रकृति के नियमों से बंधे हैं
- HI/Prabhupada 0051 - यह आंदोलन सबसे बुद्धिमान वर्ग के लिए है
- HI/Prabhupada 0070 - अच्छी तरह से संचालन करो
- HI/Prabhupada 0072 - सेवक का कर्तव्य है शरणागत होना
- HI/Prabhupada 0073 - वैकुण्ठ का अर्थ है चिंता के बिना
- HI/Prabhupada 0080 - कृष्ण अपने सखाओं के साथ क्रीडा करने के बहुत शौकीन है
- HI/Prabhupada 0081 - सूर्य लोक में शरीर अग्नि से बने हैं
- HI/Prabhupada 0100 - हम सदा कृष्ण के साथ जुड़े हुए हैं
- HI/Prabhupada 0131 - पिता को समर्पण करना बहुत स्वाभाविक है
- HI/Prabhupada 0153 - साहित्यिक योगदान से, बुद्धिमत्ता की परीक्षा होती है
- HI/Prabhupada 0165 - शुद्ध कार्यों को भक्ति कहते हैं
- HI/Prabhupada 0166 - तुम बर्फ को गिरने से नहीं रोक सकते
- HI/Prabhupada 0167 - भगवान द्वारा निर्मित नियम दोषरहित हैं
- HI/Prabhupada 0196 - आध्यात्मिक चीजों की लालसा
- HI/Prabhupada 0215 - आपको पढ़ना होगा । तो आप समझ पाअोगे
- HI/Prabhupada 0345 - कृष्ण हर किसी के ह्रदय में बैठे हैं
- HI/Prabhupada 0349 - मैंने तो बस विश्वास किया जो भी मेरे गुरु महाराज नें कहा
- HI/Prabhupada 0390 - जय राधा माधव तात्पर्य
- HI/Prabhupada 0424 - इस वैदिक संस्कृति का पूरा फायदा उठाना
- HI/Prabhupada 0547 - मैंने यह सोचा था कि "मैं सबसे पहले बहुत अमीर आदमी बनूँगा, फिर मैं प्रचार करूँगा
- HI/Prabhupada 0548 - अगर तुम हरि के लिए सब कुछ त्यागने के स्तर पर अाते हो
- HI/Prabhupada 0796 - मत सोचो कि मैं बोल रहा हूँ । मैं बस साधन हूँ । असली वक्ता भगवान हैं
- HI/Prabhupada 0836 - हमें मानव जीवन की पूर्णता के लिए कुछ भी बलिदान करने के लिए तैयार रहना चाहिए
- HI/Prabhupada 0851 - चबाए हुए को चबाना । यह भौतिक जीवन है
- HI/Prabhupada 0852 - आपके हृदय की गहराईओं में, भगवान हैं
- HI/Prabhupada 0853 - एसा नहीं है कि हम इस ग्रह में आए हैं । हम कई अन्य ग्रहों में जा चुकें है
- HI/Prabhupada 0854 - महानतम से अधिक महान, और सबसे छोटे से छोटा । ये भगवान हैं
- HI/Prabhupada 0855 - अगर मैं अपने भौतिक आनंद को रोक दूँ, तो मेरे जीवन का आनंद समाप्त हो जाएगा । नहीं
- HI/Prabhupada 0878 - भारत में वैदिक सभ्यता का पतन
- HI/Prabhupada 0879 - विनम्रता भक्ति सेवा में बहुत अच्छी है
- HI/Prabhupada 0880 - कृष्ण भावनामृत को कृष्ण को परेशान करने के लिए अपनाया है, या तुम वास्तव में गंभीर हो
- HI/Prabhupada 0881 - यद्यपि भगवान अदृश्य हैं, अब वे दिखाई देने के लिए अवतरित हुए हैं, कृष्ण
- HI/Prabhupada 0882 - कृष्ण बहुत उत्सुक हैं हमें परम धाम ले जाने के लिए, पर हम ज़िद्दी हैं
- HI/Prabhupada 0883 - अपनी आर्थिक समस्याओं को हल करने के लिए अपना समय बर्बाद मत करो
- HI/Prabhupada 0884 - हम बैठे हैं और कृष्ण के बारे में पृच्छा कर रहे हैं । यही जीवन है
- HI/Prabhupada 0885 - आध्यात्मिक आनंद समाप्त नहीं होता । यह बढ़ता है
- HI/Prabhupada 0886 - व्यक्ति भागवत या पुस्तक भागवत, तुम सेवा करो । फिर तुम स्थिर रहोगे
- HI/Prabhupada 0968 - पश्चिमी तत्वज्ञान सुखवाद का है, खाअो, पियो, ऐश करो
- HI/Prabhupada 0969 - अगर तुम अपनी जीभ को भगवान की सेवा में लगाते हो, वे खुद को तुम्हे प्रकट करेंगे
- HI/Prabhupada 0970 - जीभ को हमेशा भगवान की महिमा करने के लिए उपयोग किया जाना चाहिए
- HI/Prabhupada 0971 - तो जब तक तुम जीवन की शारीरिक अवधारणा में हो, तुम जानवर से बेहतर नहीं हो
- HI/Prabhupada 0972 - समझने की कोशिश करो 'किस तरह का शरीर मुझे अगला मिलेगा?
- HI/Prabhupada 0973 - अगर वह सिद्धांतों का पालन करता है, तो वह निश्चित रूप से भगवद धाम वापस जाता है
- HI/Prabhupada 0974 - हमारी महानता बहुत, बहुत छोटी है, अत्यल्प । भगवान बहुत महान हैं
- HI/Prabhupada 0975 - हम छोटे भगवान हैं । सूक्ष्म, नमूने के भगवान
- HI/Prabhupada 0976 - जनसंख्या के अधिक होने का कोई सवाल नहीं है । यह एक गलत सिद्धांत है
- HI/Prabhupada 0977 - यह भौतिक शारीर हमारे आध्यात्मिक शरीर के अनुसार काटा जाता है
- HI/Prabhupada 0978 - अगर तुम्हे ब्राह्मण की आवश्यकता नहीं है, तो तुम भुगतोगे
- HI/Prabhupada 0979 - भारत की हालत बहुत ही अराजक है
- HI/Prabhupada 0988 - श्रीमद-भागवतम में तथाकथित भावुक धर्मनिष्ठा नहीं है
- HI/Prabhupada 0989 - गुरु की कृपा से व्यक्ति को कृष्ण मिलते हैं । यही है भगवद भक्ति-योग
- HI/Prabhupada 0990 - प्रेम का मतलब यह नहीं 'मैं खुद को प्यार करता हूँ' और प्रेम पर ध्यान करता हूं । नहीं
- HI/Prabhupada 0991 - जुगल प्रीति : राधा और कृष्ण के बीच का प्रेम
- HI/Prabhupada 0992 - अवसरवादियों के लिए कोई कृष्ण भावनामृत नहीं है
- HI/Prabhupada 0993 - यह व्यवस्था करो कि वह भूखा नहीं रहा है । यह आध्यात्मिक साम्यवाद है
- HI/Prabhupada 0994 - भगवान और हमारे बीच क्या अंतर है?
- HI/Prabhupada 0995 - कृष्ण भावनामृत अंदोलन क्षत्रिय कर्म या वैश्य कर्म के लिए नहीं है
- HI/Prabhupada 0996 - मैंने तुम अमेरिकी लड़के अौर लड़कियों को रिश्वत नहीं दी थी मेरा अनुसरण करने के लिए
- HI/Prabhupada 0997 - कृष्ण का कार्य हर किसी के लिए है । इसलिए हम हर किसी का स्वागत करते हैं
- HI/Prabhupada 0998 - एक साधु का कार्य है सभी जीवों का कल्याण
- HI/Prabhupada 0999 - अात्मवित मतलब वो व्यक्ति जो आत्मा को जानता है
- HI/Prabhupada 1000 - माया हमेशा मौके की तलाश में है, छिद्र, कैसे तुम पर फिर से कब्जा करें
- HI/Prabhupada 1018 - शुरुआत में हमें लक्ष्मी नारायण के स्तर में राधा-कृष्ण की पूजा करनी चाहिए
- HI/Prabhupada 1019 - अगर तुम कृष्ण के लिए कुछ सेवा करते हो, तो कृष्ण तुम्हे सौ गुना पुरस्कृत करेंगे
- HI/Prabhupada 1020 - हृदय प्रेम के लिए ही है, परन्तु आप क्यों इतने कठोर हृदय के हो ?
- HI/Prabhupada 1021 - अगर बद्ध जीव से कोई सहानुभूति करता है, तो वह एक वैष्णव है
- HI/Prabhupada 1022 - पहली बात हमें यह सीखना है कि प्रेम कैसे करना है । यही प्रथम श्रेणी का धर्म है
- HI/Prabhupada 1023 - अगर भगवान सर्व शक्तिशाली हैं, तुम क्यों उनकी शक्ति को घटाते हो, कि वे अवतरित नहीं हो सकते ?
- HI/Prabhupada 1024 - अगर तुम इन दो सिद्धांतों का पालन करते हो, कृष्ण तुम्हारी पकड़ में होंगे
- HI/Prabhupada 1025 - कृष्ण केवल प्रतीक्षा कर रहे हैं 'कब यह धूर्त मेरी तरफ अपना चेहरा मोडेगा ?'
- HI/Prabhupada 1026 - अगर हम समझ जाते हैं कि कृष्ण भोक्ता हैं, हम नहीं - यही आध्यात्मिक दुनिया है
- HI/Prabhupada 1027 - मेरी पत्नी, मेरे बच्चे और समाज मेरे सैनिक हैं । अगर मैं मुसीबत मे हूँ, वे मेरी मदद करेंगे
- HI/Prabhupada 1028 - ये सभी नेता, वे स्थिति को बिगाड़ रहे हैं
- HI/Prabhupada 1057 - भगवद्-गीता को गीतोपनिषद् भी कहा जाता है, वैदिक ज्ञान का सार
- HI/Prabhupada 1058 - भगवद गीता के वक्ता भगवान श्री कृष्ण हैं
- HI/Prabhupada 1059 - प्रत्येक व्यक्ति का भगवान के साथ विशिष्ट संबंध है
- HI/Prabhupada 1060 - जब तक कोई भगवद गीता का पाठ विनम्र भाव से नहीं करता है...
- HI/Prabhupada 1061 - इस भगवद गीता की विषयवस्तु में पाँच मूल सत्यों का ज्ञान निहित है
- HI/Prabhupada 1062 - हमारी वृत्ति भौतिक प्रकृति को नियंत्रित करने की है
- HI/Prabhupada 1063 - हमें सभी प्रकार के कर्मफल से मुक्ति दो
- HI/Prabhupada 1064 - भगवान हरेक जीव के हृदय में वास करते हैं
- HI/Prabhupada 1065 - व्यक्ति को सर्वप्रथम यह जान लेना चाहिए कि वो यह शरीर नहीं है
- HI/Prabhupada 1066 - अल्पज्ञानी लोग परम सत्य को निराकार मानते हैं
- HI/Prabhupada 1067 - हमें भगवद गीता को किसी भी प्रकार की टीका टिप्पणी के बग़ैर, बिना घटाए स्वीकार करना है
- HI/Prabhupada 1068 - विभिन्न प्रकार के गुणों के अनुसार तीन प्रकार के कर्म हैं
- HI/Prabhupada 1069 - रिलीजन से विश्वास का भाव सूचित होता है । विश्वास परिवर्तित हो सकता है - सनातन धर्म नहीं
- HI/Prabhupada 1070 - सेवा करना जीव का शाश्वत धर्म है
- HI/Prabhupada 1071 - अगर हम भगवान का संग करते हैं, उनका सहयोग करते हैं, तो हम सुखी बन जाते हैं
- HI/Prabhupada 1072 - भौतिक जगत को छोड़ना और नित्य धाम में अनन्दमय जीवन पाना
- HI/Prabhupada 1073 - जब तक हम भौतिक प्रकृति पर प्रभुत्व जताने की प्रवृत्ति को नहीं त्यागते
- HI/Prabhupada 1074 - इस संसार में जितने भी दुख का हम अनुभव करते हैं - ये सब शरीर से उत्पन्न है
- HI/Prabhupada 1075 - इस जीवन के कर्मो से हम अगले जीवन की तैयारी कर रहे हैं
- HI/Prabhupada 1076 - मृत्यु के समय हम या तो इस संसार में रह सकते हैं या आध्यात्मिक जगत जा सकते हैं
- HI/Prabhupada 1077 - भगवान पूर्ण हैं, उनके नाम और उनमे कोई अंतर नहीं है
- HI/Prabhupada 1078 - मन तथा बुद्धि को चौबीस घंटे भगवान के विचार में लीन करना
- HI/Prabhupada 1079 - भगवद गीता एक दिव्य साहित्य है जिसको हमें ध्यानपूर्वक पढ़ना चाहिए
- HI/Prabhupada 1080 - भगवद गीता में संक्षेप रुप से बताया है - एक ईश्वर कृष्ण हैं, वे सांप्रदायिक ईश्वर नहीं हैं