HI/Prabhupada 1030 - मानव जीवन भगवान को समझने के लिए है । यही मानव जीवन का एमात्र उद्देश्य है: Difference between revisions

 
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यह वैदिक साहित्य में कहा गया है कि अत: श्री- कृष्ण-नामादि श्री कृष्ण भगवान का नाम है । तो यह कहा गया है कि श्री कृष्ण का नाम, श्री कृष्ण का रूप, श्री कृष्ण की विशेषताऍ, श्री कृष्ण की गतिविधियॉ ... अत: श्री- कृष्ण-नामादि शुरू होता है नाम से । तो अत: श्री- कृष्ण-नामादि न भवेद ग्रह्यं इंद्रियै: ([[Vanisource:CC Madhya 17.136|चै च मध्य १७।१३६]]) । इन्द्रिय का अर्थ है इन्द्रिय । हम समझ नहीं सकते हैं कि श्री कृष्ण क्या हैं, या भगवान - उनके नाम, उनके रूप, उनके गुण, उनकी लीलाऍ ... हम इन कुंद भौतिक इंद्रियों के द्वारा नहीं समझ सकते हैं । तो फिर यह कैसे समझा जा सकता है ? आखिरकार, यह मानव जीवन भगवान को समझने के लिए है । यही मानव जीवन का एकमात्र उद्देश्य है । प्रकृति, भौतिक प्रकृति, हमें मानव जीवन में यह अवसर देती है । मानव जीवन की यह सुविधा है, यह रूप, केवल भगवान को समझने के लिए । जीवन के अन्य रूप - बिल्लि और कुत्ते, पेड़ और कई अन्य चीजें; ८४००००० प्रजातियॉ हैं - तो अन्य प्रजातियों में भगवान क्या हैं, यह समझना संभव नहीं है । अगर हम तुम्हारे देश के सभी कुत्तों को बुलाऍ, "यहाँ आओ । हम भगवान के बारे में बात करेंगे ," समझ की कोई संभावना नहीं है । लेकिन मानव जीवन में संभावना है । कोई फर्क नहीं पडतस है कि यह भारत या अमेरिका या ऑस्ट्रेलिया में है । कोई भी इंसान, अगर वह कोशिश करता है और अगर वह शास्त्र पढ़ता है - कोई बात नहीं, बाइबिल, भगवद गीता, भागवतम - तो वह भगवान को समझेगा ।
यह वैदिक साहित्य में कहा गया है कि अत: श्री- कृष्ण-नामादि | कृष्ण भगवान का नाम है । तो यह कहा गया है कि कृष्ण का नाम, कृष्ण का रूप, कृष्ण की विशेषताऍ, कृष्ण के कार्य... अत: श्री- कृष्ण-नामादि शुरू होता है नाम से । तो अत: श्री- कृष्ण-नामादि न भवेद ग्राह्यम इंद्रियै: ([[Vanisource:CC Madhya 17.136|चैतन्य चरितामृत मध्य १७.१३६]]) । इन्द्रिय का अर्थ है इन्द्रिया । हम समझ नहीं सकते हैं कि श्री कृष्ण क्या हैं, या भगवान - उनके नाम, उनके रूप, उनके गुण, उनकी लीलाऍ... हम इन जड़ भौतिक इंद्रियों के द्वारा नहीं समझ सकते हैं ।  
 
तो फिर यह कैसे समझा जा सकता है ? आखिरकार, यह मानव जीवन भगवान को समझने के लिए है । यही मानव जीवन का एकमात्र उद्देश्य है । प्रकृति, भौतिक प्रकृति, हमें मानव जीवन में यह अवसर देती है । मानव जीवन की यह सुविधा है, यह मनुष्य जीवन का रूप, केवल भगवान को समझने के लिए है । जीवन के अन्य रूप - बिल्लि और कुत्ते, पेड़ और कई अन्य चीजें; ८४,००,००० प्रजातियॉ हैं - तो अन्य प्रजातियों में भगवान क्या हैं, यह समझना संभव नहीं है ।  
 
अगर हम तुम्हारे देश के सभी कुत्तों को बुलाऍ, "यहाँ आओ । हम भगवान के बारे में बात करेंगे," समझ की कोई संभावना नहीं है । लेकिन मानव जीवन में संभावना है । कोई फर्क नहीं पड़ता कि यह भारत या अमेरिका या ऑस्ट्रेलिया में है । कोई भी इंसान, अगर वह कोशिश करता है और अगर वह शास्त्र पढ़ता है - कोई बात नहीं, बाइबिल, भगवद गीता, भागवत - फिर वह भगवान को समझेगा ।  
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Latest revision as of 17:27, 30 October 2018



740628 - Lecture at St. Pascal's Franciscan Seminary - Melbourne

यह वैदिक साहित्य में कहा गया है कि अत: श्री- कृष्ण-नामादि | कृष्ण भगवान का नाम है । तो यह कहा गया है कि कृष्ण का नाम, कृष्ण का रूप, कृष्ण की विशेषताऍ, कृष्ण के कार्य... अत: श्री- कृष्ण-नामादि शुरू होता है नाम से । तो अत: श्री- कृष्ण-नामादि न भवेद ग्राह्यम इंद्रियै: (चैतन्य चरितामृत मध्य १७.१३६) । इन्द्रिय का अर्थ है इन्द्रिया । हम समझ नहीं सकते हैं कि श्री कृष्ण क्या हैं, या भगवान - उनके नाम, उनके रूप, उनके गुण, उनकी लीलाऍ... हम इन जड़ भौतिक इंद्रियों के द्वारा नहीं समझ सकते हैं ।

तो फिर यह कैसे समझा जा सकता है ? आखिरकार, यह मानव जीवन भगवान को समझने के लिए है । यही मानव जीवन का एकमात्र उद्देश्य है । प्रकृति, भौतिक प्रकृति, हमें मानव जीवन में यह अवसर देती है । मानव जीवन की यह सुविधा है, यह मनुष्य जीवन का रूप, केवल भगवान को समझने के लिए है । जीवन के अन्य रूप - बिल्लि और कुत्ते, पेड़ और कई अन्य चीजें; ८४,००,००० प्रजातियॉ हैं - तो अन्य प्रजातियों में भगवान क्या हैं, यह समझना संभव नहीं है ।

अगर हम तुम्हारे देश के सभी कुत्तों को बुलाऍ, "यहाँ आओ । हम भगवान के बारे में बात करेंगे," समझ की कोई संभावना नहीं है । लेकिन मानव जीवन में संभावना है । कोई फर्क नहीं पड़ता कि यह भारत या अमेरिका या ऑस्ट्रेलिया में है । कोई भी इंसान, अगर वह कोशिश करता है और अगर वह शास्त्र पढ़ता है - कोई बात नहीं, बाइबिल, भगवद गीता, भागवत - फिर वह भगवान को समझेगा ।