HI/Prabhupada 1043 - हम कोका कोला नहीं पीते हैं । हम पेप्सी कोला नहीं पीते हैं । हम धूम्रपान नहीं करते हैं: Difference between revisions
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अगर कोई जीवन की इस भौतिक धारणा का आदी है, वह समझ नहीं सकता है, या उसे समझाया जा नहीं सकता, कृष्ण भावनामृत के बारे में । भगवद गीता में, यह कहा गया है कि, | |||
:भोगैश्वर्य | :भोगैश्वर्य प्रसक्तानाम | ||
:तयापहृत | :तयापहृत चेतसाम | ||
:व्यवसायत्मिका बुद्धि: | :व्यवसायत्मिका बुद्धि: | ||
:समाधौ न विधीयते | :समाधौ न विधीयते | ||
:([[HI/BG 2.44|भ.गी. २.४४]]) । | |||
जो बहुत ज्यादा भौतिकवादी जीवन के प्रति अाकर्षित हैं - मतलब इन्द्रिय संतुष्टि... भौतिकवादी जीवन का अर्थ है इन्द्रिय संतुष्टि । आध्यात्मिक जीवन और भौतिक जीवन के बीच क्या अंतर है ? ये लड़के, यूरोप और अमेरिका से ये लड़के, उन्होंने इस आध्यात्मिक जीवन को अपनाया है जिसका अर्थ यह है कि उन्होंने इन्द्रिय संतुष्टि की प्रक्रिया को छोड दिया है | कोई अवैध यौन सम्बन्ध नहीं, कोई मांसाहार नहीं, कोई जुआ नहीं, कोई नशा नहीं । यह भौतिकवादी जीवन का तरीका है । अन्यथा, इस जीवन और उस जीवन के बीच क्या अंतर है ? तो अगर हम भौतिकवादी जीवन को अपनाते हैं, तो फिर इस कृष्ण भावनामृत आंदोलन को समझना बहुत, बहुत मुश्किल हो जाएगा । मतिर न कृष्णे परत: स्वतो वा मिथो अभिपद्यते गृह व्रतानाम । क्यूँ ? अब, अदांत गोभि: | अदांत का अर्थ है अनियंत्रित । अनियंत्रित। | |||
हमारी इंद्रियॉ अनियंत्रित हैं । अाज सुबह, जब मैं समुद्र तट पर चल रहा था, हमें इतनी सारी चीजें मिलीं - कोका-कोला का ढक्कन, सिगरेट और कई अन्य चीजें । तो यह कोका-कोला की आवश्यकता क्या है ? तुम हमारे समाज में इन सब बातों को नहीं पाअोगे । हम कोका कोला नहीं पीते हैं । हम पेप्सी कोला नहीं पीते हैं । हम धूम्रपान नहीं करते हैं । कई चीज़ें जो वे बेच रहे हैं बाज़ार में विज्ञापन द्वारा, गरीब ग्राहक को ठग कर... लेकिन वे अनावश्यक चीजें कहलाती हैं । ऐसी चीज़ो की कोई जरूरत नहीं है । लेकिन अदांत गोभि:, क्योंकि इन्द्रियॉ अनियंत्रित हैं, वे कमा रहे हैं । वे कमा रहे हैं, अनावश्यक चीज़ों से । इसलिए हमें इंद्रियों को नियंत्रित करना चाहिए । अगर हम वास्तव में आध्यात्मिक जीवन चाहते हैं, अगर हम वास्तव में इन भौतिक चंगुल से मुक्त होना चाहते हैं, तो फिर हमें इंद्रियों को नियंत्रित करना सीखना होगा । यह अावश्यक है । यही मानव जीवन का उद्देश्य है । यही मानव जीवन का उद्देश्य है । मानव जीवन बिल्लियों और कुत्तों और सुअरों के जीवन की नकल करने के लिए नहीं है। यह मानव जीवन नहीं है । | |||
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Latest revision as of 17:44, 1 October 2020
751002 - Lecture SB 07.05.30 - Mauritius
अगर कोई जीवन की इस भौतिक धारणा का आदी है, वह समझ नहीं सकता है, या उसे समझाया जा नहीं सकता, कृष्ण भावनामृत के बारे में । भगवद गीता में, यह कहा गया है कि,
- भोगैश्वर्य प्रसक्तानाम
- तयापहृत चेतसाम
- व्यवसायत्मिका बुद्धि:
- समाधौ न विधीयते
- (भ.गी. २.४४) ।
जो बहुत ज्यादा भौतिकवादी जीवन के प्रति अाकर्षित हैं - मतलब इन्द्रिय संतुष्टि... भौतिकवादी जीवन का अर्थ है इन्द्रिय संतुष्टि । आध्यात्मिक जीवन और भौतिक जीवन के बीच क्या अंतर है ? ये लड़के, यूरोप और अमेरिका से ये लड़के, उन्होंने इस आध्यात्मिक जीवन को अपनाया है जिसका अर्थ यह है कि उन्होंने इन्द्रिय संतुष्टि की प्रक्रिया को छोड दिया है | कोई अवैध यौन सम्बन्ध नहीं, कोई मांसाहार नहीं, कोई जुआ नहीं, कोई नशा नहीं । यह भौतिकवादी जीवन का तरीका है । अन्यथा, इस जीवन और उस जीवन के बीच क्या अंतर है ? तो अगर हम भौतिकवादी जीवन को अपनाते हैं, तो फिर इस कृष्ण भावनामृत आंदोलन को समझना बहुत, बहुत मुश्किल हो जाएगा । मतिर न कृष्णे परत: स्वतो वा मिथो अभिपद्यते गृह व्रतानाम । क्यूँ ? अब, अदांत गोभि: | अदांत का अर्थ है अनियंत्रित । अनियंत्रित।
हमारी इंद्रियॉ अनियंत्रित हैं । अाज सुबह, जब मैं समुद्र तट पर चल रहा था, हमें इतनी सारी चीजें मिलीं - कोका-कोला का ढक्कन, सिगरेट और कई अन्य चीजें । तो यह कोका-कोला की आवश्यकता क्या है ? तुम हमारे समाज में इन सब बातों को नहीं पाअोगे । हम कोका कोला नहीं पीते हैं । हम पेप्सी कोला नहीं पीते हैं । हम धूम्रपान नहीं करते हैं । कई चीज़ें जो वे बेच रहे हैं बाज़ार में विज्ञापन द्वारा, गरीब ग्राहक को ठग कर... लेकिन वे अनावश्यक चीजें कहलाती हैं । ऐसी चीज़ो की कोई जरूरत नहीं है । लेकिन अदांत गोभि:, क्योंकि इन्द्रियॉ अनियंत्रित हैं, वे कमा रहे हैं । वे कमा रहे हैं, अनावश्यक चीज़ों से । इसलिए हमें इंद्रियों को नियंत्रित करना चाहिए । अगर हम वास्तव में आध्यात्मिक जीवन चाहते हैं, अगर हम वास्तव में इन भौतिक चंगुल से मुक्त होना चाहते हैं, तो फिर हमें इंद्रियों को नियंत्रित करना सीखना होगा । यह अावश्यक है । यही मानव जीवन का उद्देश्य है । यही मानव जीवन का उद्देश्य है । मानव जीवन बिल्लियों और कुत्तों और सुअरों के जीवन की नकल करने के लिए नहीं है। यह मानव जीवन नहीं है ।