HI/Prabhupada 1046 - तय करो कि क्या एेसा शरीर पाना है जो कृष्ण के साथ नृत्य करने में, बात करने में सक्षम है
750712 - Lecture SB 06.01.26-27 - Philadelphia
निताई: अजामिल इस प्रकार अपने बेटे से अासक्त होकर जीवन बिताने लगा, उसके मृत्यु की घडी अा गई । उस समय वह किसी भी अन्य विचार को छौडकर अपने बेटे के बारे में सोचने लगा । "
प्रभुपाद:
- स एवं वर्तमानो अज्ञो
- मृत्यु काल उपास्थिते
- मतिं चकार तनये
- बाले नारायणाह्वये
- (श्री भ ६।१।२७)
तो वर्तमान । हर कोई किसी हालत के तहत स्थित है । यही भौतिक जीवन है । मैं किसी चेतना में स्थित हूं, तुम किसी चेतना में स्थित हो - हर कोई । प्रकृति के गुणों के अनुसार, हमारी अलग अलग जीवन की अवधारणा और विभिन्न चेतना है । यही भौतिक जीवन कहलाता है । हम सब, हम यहाँ बैठे हैं, हम में से हर एक की एक अलग चेतना है । आम तौर पर, यह इन्द्रिय संतुष्टि के लिए है । भौतिक जीवन का अर्थ है हर कोई योजना बना रहा है, "मैं इस तरह से रहूंगा । मैं इस तरह से पैसे कमाऊंगा । मैं इस तरह से मौज करूंगा । " हर किसी की एक योजना है ।
तो अजामिल की भी एक योजना थी । क्या थी उसकी योजना ? उसकी योजना थी, क्योंकि वह अपने छोटे बच्चे से बहुत अासक्त था, और पूरा ध्यान वहॉ था, कैसे बच्चा चल रहा है, कैसे बच्चा खा रहा है, कैसे बच्चा बात कर रहा है, और कभी-कभी वह बुला रहा था, खिला रहा था, तो उसका पूरा ध्यान बच्चे की गतिविधियों पर था । पिछले श्लोक में हमने पहले से ही चर्चा की है:
भुंजान: प्रपिबन खादन बालकं स्नेह यंत्रित: भोजयन् पाययन मूढो न वेदागतम अंतकं
न केवल अजामिल, हर कोई, वे किसी प्रकार की चेतना में अवशोषित हैं। और यह किस वजह से है ? यह चेतना कैसे विकसित होती है ? यह कहा जाता है, स्नेह यंत्रित: । स्नेह का अर्थ है लगाव । "उस मशीन से प्रभावित होना जिसे स्नेह कहा जाता है ।" तो हर कोई इस मशीन से प्रभावित है । यह मशीन ... यह शरीर एक मशीन है । और यह प्रकृति द्वारा चलाया जा रहा है । और दिशा परमेश्वर भगवान से आ रही है । हम एक खास तरह से आनंद लेना चाहते थे, और श्री कृष्ण नें हमें एक निश्चित प्रकार का शरीर दिया है, , यंत्र । जैसे अलग अलग मोटर कार हैं । तुम्हे चाहिए......किसी को "मैं ब्यूक कार चाहिए" । कोई कहता है, "मुझे शेवरलेट चाहिए", कोई "फोर्ड।" वे तैयार हैं । इसी तरह, हमारा शरीर भी ऐसा ही है । कोई फोर्ड है, कोई ब्यूक है, कोई शेवरलेट है, और श्री कृष्ण नें हमें मौका दिया है, "तुम्हे यह कार चाहिए थी, या शरीर । तुम लो और मजा करो ।" यह हमारी भौतिक स्थिति है ।
ईष्वर: सर्व भूतानां ह्द देशे अर्जुन तिष्ठति (भ गी १८।६१) । हम भूल जाते हैं । इस शरीर को बदलने के बाद, हम भूल जाते हैं कि मैंने क्या इच्छा की अौर क्यों मुझे इस प्रकार का शरीर मिला । लेकिन श्री कृष्ण, वे तुम्हारे ह्रदय में स्थित हैं । वे भूलते नहीं हैं । वे देते हैं । ये यथा मां प्रपद्यंते (भ गी ४।११) तुम्हे इस तरह का शरीर चाहिए था : तुम्हे मिलता है । श्री कृष्ण इतने दयालु हैं । अगर किसी को एसा शरीर चाहिए था कि वह सब कुछ खा सके, तो श्री कृष्ण उसे एक सुअर का शरीर देते हैं, ताकि वह मल भी खा सके । अौर अगर कोई एसा एक शरीर चाहता है कि ""मैं श्री कृष्ण के साथ नृत्य करूंगा," तो उसे वह शरीर मिलता है । अब, यह तुम पर निर्भर करता है कि तुम एसा शरीर पाते हो जो श्री कृष्ण के साथ खेल सके, श्री कृष्ण के साथ बात कर सके, श्री कृष्ण के साथ नृत्य कर सके । तुम पा सकते हो । अौर अगर तुम एसा शरीर चाहते हो जो मल, मूत्र मल खाना जानता हो, तुम्हे मिलेगा ।