MRD/Prabhupada 1064 - Magar page title part 8: Difference between revisions

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'''Hindi'''
भगवान प्रत्येक जीवो मिगिनाङ मुलेको, होस्ईटेम होस्कोई जीवो हरेक मानसिक गतिविधिकठा परिचित लेको । ईस कुरा कान्कोई सेन्च मेहाक्के माछान्ने ।
परम चेतना, यह भगवद्- गीता में उल्लेख किया जाएगा उस अध्याय में, जहॉ जीव और ईश्वर क बीच का अंतर समझाया गया है क्षेत्र -क्षेत्र-ज्ञ यह क्षेत्र-ज्ञ समझाया गया है, कि भगवान भी क्षेत्र-ज्ञ या चेतन हैं, और जीव, वे भी चेतन हैं । लेकिन अंतर यह है कि जीव अपने सीमित शरीर के प्रति सचेत रहता है, लेकिन भगवान समस्त शरीरों के प्रति सचेत रहते हैं । ईश्वर: सर्व भूतानाम् ह्द देशे अर्जुन तिष्‌थटि ([[Vanisource:BG 18.61|भ गी १८।६१]]) ।  
परमेश्वर कुङ बारेयाङ भगवद्गीताङ वर्र्णन जाट्मले, ईस जीव हटै ईश्वर कुङ माझझाङो अन्तरबारे वर्णन जाट्च पाठाङ जाट्मले क्षेत्रज्ञ–क्षेत्रज्ञ ईस क्षेत्रज्ञ हि टेमले टेध्याङ ईश्वर क्षेत्रज्ञ हटै चेतन लेको, ईस जीव घलिङ चेतन ले तर होस् मेनो शरीरप्रति मात्र सचेत ले, तर भगवान जम्मैकुङ शरीरप्रति सचेत लेमलेकोे । ईश्वर: सर्व भूतानाम् ह्द देशे अर्जुन तिष्ठति ([[Vanisource:BG 18.61 (1972)|भ गी १८।६१]]) ।


भगवान प्रत्येक जीव के ह्दय में वास करने वाले हैं, अतएव वे जीवविशेष की मानसिक गतिशीलता से परिचित रहते हैं हमें यह नहीं भूलना चाहिए यह भी बताया गया है कि परमात्मा, या भगवान ईश्वर के रूप में प्रत्येक ह्रदय में वास कर रहे हैं, नियन्ता के रूप में वे निर्देशित करते रहते हैं वे निर्देशित कर रहे हैं । सर्वस्य चाहं ह्द संन्निविष्ठ: ([[Vanisource:BG 15.15|भ गी १५।१५]]) हर किसी के ह्दय में वे वास करते हैं, और वे निर्देशित करते रहते हैं जैसा जीव चाहता है जीव भूल जाता है कि उसे क्या करना है पहले तो वह किसी एक विधि से कर्म करने का संकल्प करता है, लेकिन फिर वह अपने ही कर्म के पाप-पुण्य में फॅस जाता है लेकिन जब वह एक शरीर को त्याग कर दूसरा शरीर ग्रहण करता है...जिस प्रकार हम वस्त्र उतारते तथा पहनते रहते हैं इसी प्रकार, यह उल्लेख किया गया है भगवद्- गीता में कि वासाम्सि जीर्णानि यथा विहाय ([[Vanisource:BG 2.22|भ गी २।२२]]) । जैसे हम वस्त्र बदलते रहते हैं, इसी प्रकार जीव, वे भी शरीर बदलते रहते हैं, आत्मा का देहान्तरण, उसके विगत (पूर्वकृत) कर्मों का फल भोगना पडता है । ये कार्यकलाप तभी बदल सकते हैं जब जीव सतोगुण में स्थित हो, स्थिर बुद्धि, और वह समझे कि उसे कौन से कर्म करने चाहिए, अौर अगर वह ऐसा करता है, तो उसके विगत (पूर्वकृत) कर्मों के सारे फल बदले जा सकते हैं फलस्वरूप कर्म शाश्वत नहीं है ।  
भगवान प्रत्येक जीवो मिगिनाङ मुलेको, होस्ईटेम होस्ककोई जीवो रहेर मानसिक गतिविधिकठा पिरिचित लेको ईस कुरा कान्कोई सेन्द मेहाक्के माछान्ने ईस् कुरा घलिङ परमात्मा व्याख्या जात्मलेको परमात्मा अथवा जम्मै टेनाङ कर्हाङच भगवानकोई जम्मै जीवकुङ मिगिनाङ बास मुमलेको हटै नियन्त्रण जाट्मलेको होस्कोई निर्देशन घलिङ याह्मलेको । सर्वस्य चाहं ह्द संन्निविष्ठ: ([[Vanisource:BG 15.15 (1972)|भ गी १५।१५]])
। जम्मैकुङ मिगिनाङ मुमलेको हटै मेकुङ इच्छा अनुसार जम्मैके निर्देशन याह्मलेको जीवाकोई हि जाट्क्याले टेच कुरा थाहा माछान्ने होस् जम्मै टेनाङ पहिला कर्म पहिला कर्म जाट्के विचार जाट्ले हटै नुहुनिङ होस् मेह्ल्लौ कर्म हटै कर्मवो फलो वन्धनाङ परिस्ले होचे बदिन फेदिनाङ लख काट प्रकाराङो शरीर दास्निसिङ आस्काट शरीराङ बास आले......इटज काने बदिन फेर्दिििलिङ हटै आस्काट बिल्लिङ ईस लख भगवद्गीता  व्याख्या जाट्मले वासाम्सि जीर्णानि यथा विहाय ([[Vanisource:BG 2.22 (1972)|भ गी २।२२]]) । काट हटै आस्काट बदिन फेर्दिनाङ लख जीवकोइ घलिङ शरीर फेर्दिले, आत्मई मेक्काई पुर्वजन्माङ जाट्च कर्मकुङ फल भोग जाट्ले । ईस जम्मै कर्म फलको फेर्दिके आध्याङ कान्कोइ सत्वगुणाङ टाक्के परिस्ले, हटै होचे कुर्हिन्च कर्म जाट्के परिस्ले टेम वार्ले, यदि होस् सत्वगुणाङ टाका टेध्याङ होच्यौ कर्म हटै कर्मवो फलको जम्मै फेर्दिस्ले । कर्म शाश्वत वस्तु माले ।
 
ईश्वर, जीव, प्रकृति, काल हटै कर्म ईस पाँच विषयमध्ये चारवटा शाश्वत आले तर कर्म शाश्वत माले । ईश्वर चेतन, परमचेतन ईश्वर हटै परमचेतन ईश्वर कठा  जीवकुङ समानता लेच दाङछिस्ले । चेतना, भगवान हटै जीव निहिस्मानो चेतना दिव्य ले । ईस चेतना पदार्थकुङ संयोगिङ चेतनौ विकास छान्ने टेच सिद्धान्तके स्वीकार माजाट्ले । जसरी रगीन काँचीङ फेर्दिस्च प्रकाश काँचोज रंगलख दाङ्लो, होटज ईस् चेतना घलिङ भौतिक परिस्थितियो आवरणे जाट्नाङ विकृत रुपाङ प्रतिबिम्बित छान्च लख दाङछिस्ले । भगवान श्रीकृष्ण टेलेको मयाध्यक्षेण प्रकृति: ([[Vanisource:BG 9.10 (1972)|भ गी ९।१०]]) । जब भगवाने ईस् भौतिक जगताङ अवतार लालेको, होस्कुङ चेतनाङ हिद भौतिक प्रभाव माछान्ने । यदि होस्को इर्हिन्च प्रभाव परिस्च टेध्याङ अलौकिक विषयाङ होस्को ङाक्के माहेकोलेकाङ जसरी होस्कोई भगवद्गीताङ ङाक्मलेको । भौतिक कल्पषटिङ ग्रस्त चेतनई मुक्त माछान्नाङ सम्म कुसे द दिव्य जगताङो विषयाङ हिद ङाक्के माहेक्ले । हटै भगवान भौतिक रुपे कलुषित मालेकाङ । तर कानुङ चेतना वर्तमान परिवेशङ भौतिक रुपे दुषित छान्मले । होस्ई टेम भगवद्गीतै ईर्हिन्च कलुषित चेतनईङ मुक्त छान्च शिक्षा याह्मले । चेतना शुद्ध छना टेध्याङ कानुङ जम्मै कर्मको परमेश्वकुङ इच्छाअनुसार केस्ले हटै कान सुखी छान्निङ । काने कर्म दास्के माले बरु सुस्त–सुस्त पवित्र खाास्के । हटै इस् पवित्र कर्मकोके भक्ति टेले । भक्तियाङ मुनिसिङ जाट्च कर्मको सामान्य कर्मलख दाङ्ले तर होस भौतिक कल्मषिङ कलुषित माले । होस पवित्र कर्म आले । कात ज्ञान मालेच भर्मिय कुसैद भक्तय जाट्च कर्म दाङनाङ सामान्य भर्मिय जाट्च कर्मलख दाङ्ले हिटेम टेध्याङ भक्त अथवा भगवानकुङ कर्मको अशुद्ध चेतना हटै पदार्थईङ सेन्द कलुषित माछान्ने टेच कुरा होस्के थाहा माछान्ने, भगवान् त्रिगुणातीत हुनुहुन्छ । कान्कोइ कानो चेतना कलुषित ले टेच कुरा वार्के परिस्ले ।  


चार में से पांच तत्व - ईश्वर, जीव, प्रकृति, काल, और कर्म - ये चार शाश्वत हैं, लकिन कर्म, कर्म शाश्वत नहीं है । अब परम चेतन ईश्वर, अंतर परम चेतन ईश्वर अौर और जीव के, इस मामले में, इस तरह से है । चेतना, भगवान और जीव की, दोनों की चेतनाऍ दिव्य है । एसा नहीं है कि यह चेतना पदार्थ के संयोग से उत्पन्न नहीं होती है । एसा सोचना भ्रान्तिमूलक है । यह सिद्धांत कि चेतना भौतिक संयोग की किन्हीं परिस्थितियों से उत्पन्न होती है भगवद्- गीता स्वीकार नहीं करता है । वे एसा नहीं कर सकते । यह चेतना भौतिक परिस्थितयों के अावरण के कारण विकृत रूप से प्रतिबिम्बित हो सकती है, जैसे रंगीन कॉच से परावर्तित प्रकाश उसी रंग का प्रतीत होता है । इसी तरह, भगवान की चेतना, भौतिक्ता से प्रभावित नहीं होती है । भगवान श्री कृष्ण कहते हैं, मयाध्यक्षेण प्रकृति: ([[Vanisource:BG 9.10|भ गी ९।१०]]) । जब वे इस भौतिक विश्व में अवतरित होते हैं तो उनकी चेतना पर भौतिक प्रभाव नहीं पडता । अगर उनकी चेतना भौतिक्ता से प्रभावित होती, तो वे दिव्य विषयों के सम्बन्ध में बोलने के अधिकारी न होते भगवद्-गीता में । कोई दिव्य जगत के विषय में कुछ नहीं कह सकता भौतिक कलमष ग्रस्त चेतना से मुक्त हुए बिना । तो भगवान भौतिक दृष्टि से कलुषित नहीं हैं । लेकिन हमारी चेतना, अभी, भौतिक कलमष ग्रस्त है । तो, भगवद्- गीता शिक्षा देती है, हमें इस कलुषित चेतना को शुद्ध करना है, और उस शुद्ध चेतना में, कर्म किए जाने चाहिए । तभी हम सुखी हो सकेंगे । हम बन्द नहीं कर सकते हैं । हम अपने कार्यों को बन्द नहीं कर सकते हैं । कार्यों को शुद्ध करना है । और यह शुद्ध कर्म भक्ति कहलाते हैं । भक्ति में कर्म, सामान्य कर्म प्रतीत होते हैं, किन्तु वे कलुषित नहीं होते हैं । वे शुद्ध कर्म हैं । तो एक अज्ञानी व्यक्ति भक्त को सामान्य व्यक्ति की भॉति कर्म करते देखता है, लेकिन एसा मुर्ख, वह नहीं जानता है कि भक्त या भगवान के कर्म, वे अशुद्ध चेतना या पदार्थ से कलुषित नहीं होते, तीन गुणों की अशुद्धता, प्रकृति के गुण, लेकिन दिव्य चेतना । तो हमारी चेतना भौतिक कल्मष ग्रस्त है, यह हमें पता होना चाहिए।
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Latest revision as of 12:09, 10 June 2018



660219-20 - Lecture BG Introduction - New York


भगवान प्रत्येक जीवो मिगिनाङ मुलेको, होस्ईटेम होस्कोई जीवो हरेक मानसिक गतिविधिकठा परिचित लेको । ईस कुरा कान्कोई सेन्च मेहाक्के माछान्ने । परमेश्वर कुङ बारेयाङ भगवद्गीताङ वर्र्णन जाट्मले, ईस जीव हटै ईश्वर कुङ माझझाङो अन्तरबारे वर्णन जाट्च पाठाङ जाट्मले । क्षेत्रज्ञ–क्षेत्रज्ञ । ईस क्षेत्रज्ञ हि टेमले टेध्याङ ईश्वर क्षेत्रज्ञ हटै चेतन लेको, ईस जीव घलिङ चेतन ले तर होस् मेनो शरीरप्रति मात्र सचेत ले, तर भगवान जम्मैकुङ शरीरप्रति सचेत लेमलेकोे । ईश्वर: सर्व भूतानाम् ह्द देशे अर्जुन तिष्ठति (भ गी १८।६१) ।

भगवान प्रत्येक जीवो मिगिनाङ मुलेको, होस्ईटेम होस्ककोई जीवो रहेर मानसिक गतिविधिकठा पिरिचित लेको । ईस कुरा कान्कोई सेन्द मेहाक्के माछान्ने । ईस् कुरा घलिङ परमात्मा व्याख्या जात्मलेको परमात्मा अथवा जम्मै टेनाङ कर्हाङच भगवानकोई जम्मै जीवकुङ मिगिनाङ बास मुमलेको हटै नियन्त्रण जाट्मलेको । होस्कोई निर्देशन घलिङ याह्मलेको । सर्वस्य चाहं ह्द संन्निविष्ठ: (भ गी १५।१५) । जम्मैकुङ मिगिनाङ मुमलेको हटै मेकुङ इच्छा अनुसार जम्मैके निर्देशन याह्मलेको । जीवाकोई हि जाट्क्याले टेच कुरा थाहा माछान्ने । होस् जम्मै टेनाङ पहिला कर्म पहिला कर्म जाट्के विचार जाट्ले हटै नुहुनिङ होस् मेह्ल्लौ कर्म हटै कर्मवो फलो वन्धनाङ परिस्ले । होचे बदिन फेदिनाङ लख काट प्रकाराङो शरीर दास्निसिङ आस्काट शरीराङ बास आले......इटज काने बदिन फेर्दिििलिङ हटै आस्काट बिल्लिङ ईस लख भगवद्गीता व्याख्या जाट्मले वासाम्सि जीर्णानि यथा विहाय (भ गी २।२२) । काट हटै आस्काट बदिन फेर्दिनाङ लख जीवकोइ घलिङ शरीर फेर्दिले, आत्मई मेक्काई पुर्वजन्माङ जाट्च कर्मकुङ फल भोग जाट्ले । ईस जम्मै कर्म फलको फेर्दिके आध्याङ कान्कोइ सत्वगुणाङ टाक्के परिस्ले, हटै होचे कुर्हिन्च कर्म जाट्के परिस्ले टेम वार्ले, यदि होस् सत्वगुणाङ टाका टेध्याङ होच्यौ कर्म हटै कर्मवो फलको जम्मै फेर्दिस्ले । कर्म शाश्वत वस्तु माले ।

ईश्वर, जीव, प्रकृति, काल हटै कर्म ईस पाँच विषयमध्ये चारवटा शाश्वत आले तर कर्म शाश्वत माले । ईश्वर चेतन, परमचेतन ईश्वर हटै परमचेतन ईश्वर कठा जीवकुङ समानता लेच दाङछिस्ले । चेतना, भगवान हटै जीव निहिस्मानो चेतना दिव्य ले । ईस चेतना पदार्थकुङ संयोगिङ चेतनौ विकास छान्ने टेच सिद्धान्तके स्वीकार माजाट्ले । जसरी रगीन काँचीङ फेर्दिस्च प्रकाश काँचोज रंगलख दाङ्लो, होटज ईस् चेतना घलिङ भौतिक परिस्थितियो आवरणे जाट्नाङ विकृत रुपाङ प्रतिबिम्बित छान्च लख दाङछिस्ले । भगवान श्रीकृष्ण टेलेको मयाध्यक्षेण प्रकृति: (भ गी ९।१०) । जब भगवाने ईस् भौतिक जगताङ अवतार लालेको, होस्कुङ चेतनाङ हिद भौतिक प्रभाव माछान्ने । यदि होस्को इर्हिन्च प्रभाव परिस्च टेध्याङ अलौकिक विषयाङ होस्को ङाक्के माहेकोलेकाङ जसरी होस्कोई भगवद्गीताङ ङाक्मलेको । भौतिक कल्पषटिङ ग्रस्त चेतनई मुक्त माछान्नाङ सम्म कुसे द दिव्य जगताङो विषयाङ हिद ङाक्के माहेक्ले । हटै भगवान भौतिक रुपे कलुषित मालेकाङ । तर कानुङ चेतना वर्तमान परिवेशङ भौतिक रुपे दुषित छान्मले । होस्ई टेम भगवद्गीतै ईर्हिन्च कलुषित चेतनईङ मुक्त छान्च शिक्षा याह्मले । चेतना शुद्ध छना टेध्याङ कानुङ जम्मै कर्मको परमेश्वकुङ इच्छाअनुसार केस्ले हटै कान सुखी छान्निङ । काने कर्म दास्के माले बरु सुस्त–सुस्त पवित्र खाास्के । हटै इस् पवित्र कर्मकोके भक्ति टेले । भक्तियाङ मुनिसिङ जाट्च कर्मको सामान्य कर्मलख दाङ्ले तर होस भौतिक कल्मषिङ कलुषित माले । होस पवित्र कर्म आले । कात ज्ञान मालेच भर्मिय कुसैद भक्तय जाट्च कर्म दाङनाङ सामान्य भर्मिय जाट्च कर्मलख दाङ्ले हिटेम टेध्याङ भक्त अथवा भगवानकुङ कर्मको अशुद्ध चेतना हटै पदार्थईङ सेन्द कलुषित माछान्ने टेच कुरा होस्के थाहा माछान्ने, भगवान् त्रिगुणातीत हुनुहुन्छ । कान्कोइ कानो चेतना कलुषित ले टेच कुरा वार्के परिस्ले ।