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{{youtube_right|eJLcGOdfRXY|भगवद्-गीता को गीतोपनिषद् भी कहा जाता है, वैदिक ज्ञान का सार - Prabhupāda 1057}}
{{youtube_right|eJLcGOdfRXY|भगवद् गीता यैत गितोपनिषद न धैई व ज्ञानया मूल मन्त्र अले विभिन्न वेद लखया छगु अमुल्य उपनिषद् ख - Prabhupāda 1057}}
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Hindi
प्रभुपाद:  
प्रभुपाद:  
:ऊँ अज्ञान तिमिरान्धस्य ज्ञानाज्जनशलाकया।
:ऊँ अज्ञान तिमिरान्धस्य ज्ञानाज्जनशलाकया।
:चक्षुरून्मीलितं येन तस्मै श्री गुरवे नमः।।
:चक्षुरून्मीलितं येन तस्मै श्री गुरवे नमः।।


(मैं अपने आध्यात्मिक गुरु को सादर नमस्कार करता हूं, जिन्होंने ज्ञान रुपी प्रकाश से मेरी अॉखें खोल दीं, जो अंधी थीं घोर अज्ञान के अंधकार के कारण ।)  
( जि जिमी हने बहः म गुरु यात नुगु लिसे ज्व: जलपा याना च्वना । उकि या ज्ञानका मत्न जिगु अन्धा जुयाँ च्वँगु मिखा यात खका बिल ।)  


:श्री चैतन्यमनोभीष्टं स्थापितं येन भूतले।
:श्री चैतन्यमनोभीष्टं स्थापितं येन भूतले।
:स्वयं रूपं कदा मह्यं ददाति स्वपदान्तिकम्।।
:स्वयं रूपं कदा मह्यं ददाति स्वपदान्तिकम्।।


(कब श्रील रूप गोस्वामी प्रभुपाद, जिन्होंने इस भौतिक जगत में स्थापना की भगवान चैतन्य की इच्छा की पूर्ती के लिए प्रचार योजना (मिशन), मुझे अपने चरणकमलों में शरण प्रदान करेंगे ?)
(गुबले जक जित शुकला रुप गोस्वामी प्रभुपाद न पलेस्वाँ या लपुँ यँ जित ओट विई वँ जिमी संसार दय चैतन्य या लक्ष्य पुसयागुँ इच्छा वात स्थापना याना नँगुदु ?)


:वन्दे श्रीगुरोः श्रीयुतपदकमलं श्रीगुरून् वैष्णवांश्च।
:वन्दे श्रीगुरोः श्रीयुतपदकमलं श्रीगुरून् वैष्णवांश्च।
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:श्रीराधाकृष्णपादान् सहगणललिता श्रीविशाखान्वितांश्च।।
:श्रीराधाकृष्णपादान् सहगणललिता श्रीविशाखान्वितांश्च।।


(मैं अपने आध्यात्मिक गुरु के चरणकमलों को तथा समस्त वैष्णवों के चरणकमलों को सादर नमस्कार करता हूं जो भक्ति के मार्ग में हैं मैं सादर नमस्कार करता हूं समस्त वैष्णवों को अौर छह गोस्वामियों को, श्रील रूप गोस्वामी, श्रील सनातन गोस्वामी, रघुनाथ दास गोस्वामी, जीव गोस्वामी और उनके सहयोगियों के सहित मैं सादर नमस्कार करता हूं श्री अद्वैत आचार्य प्रभु, श्री नित्यानन्द प्रभु, श्री चैतन्य महाप्रभु, और उनके सभी भक्तों को, श्रीवास ठाकुर की अध्यक्षता में मैं फिर श्री कृष्ण के चरणकमलों में सादर नमस्कार करता हूं, श्रीमती राधारानी और सभी गोपियों के, ललिता और विशाखा की अध्यक्षता में ।)
(जि लिगु हने बहम्ह गुरु त व भक्तिपूर्वक सेवा या लपु य बना च्वम्ह उपादेशक त इनुँग लिस नमस्कार या जि जिगु विनम्र नमस्कार दको वशनभवज व दको खुगु गोजमामिज समागस्त शिलरुप गोस्वामी, शिल सनातन गोश्वामी, रघुनाथ दास गोस्वामी, जिव गोस्वामी व सन्ततिसकसित याय जि जिगु विनम्र नमस्कार श्री अद्धैत आचार्य, प्रभु श्री नित्यानन्द प्रभु, श्री चैतन्य महाप्रभु व वया दको भक्ति उकित श्रीवास ठाकुर व नेतृत्व कयां तगु दु वया लिपा जि जिंगु विनम्र नमस्कार दय कृष्णया पलेस्वा लपु श्रीमति राधारानी व द दंको गोपीस त याय हाही ललिता, विशाखा व नेतृत्व याना च्वँगु दु ।)


:हे कृष्ण करूणासिन्धो दीनबन्धो जगतपते।
:हे कृष्ण करूणासिन्धो दीनबन्धो जगतपते।
:गोपेश गोपिकाकान्त राधाकान्त नमोस्तु ते।।
:गोपेश गोपिकाकान्त राधाकान्त नमोस्तु ते।।


(हे मेरे प्रिय कृष्ण, दया के सागर, अाप दुखियों के सखा तथा सृष्टि के उद्गम हैं आप गोपों के स्वामी अौर गोपियों के प्रेमी हैं विशेष रुप से राधारानी के । मैं अापको सादर प्रणाम करता हूं ।)  
(व जिगुं योम्ह कृष्ण, दयाया सागर छ जिगु दुखया पासा व श्रृजनाया श्रोत ख तिभी काहेवर्ड मनुया गुरु व गोपीस पिनिगु पे्रमी खँ खासयाना राधारानी त जिंगु विनम्र अनुरोध छित  या ।)  


:तप्तकाच्चन गौरांगी राधे वृंदावनेश्वरी।
:तप्तकाच्चन गौरांगी राधे वृंदावनेश्वरी।
:वृषभानुसुते देवी प्रणमामि हरिप्रिये।।
:वृषभानुसुते देवी प्रणमामि हरिप्रिये।।


(मैं उन राधारानी को प्रणाम करता हूं जिनकी शारीरिक कान्ति पिघले सोने के सदृश है, अौर जो वृन्दावन की महारानी हैं आप राजा वृषभानु की पुत्री हैं, और आप भगवान कृष्ण को अत्यन्त प्रिय हैं ।)  
(जि जिगु बिनम्र नमस्कार राधारानी या त याँ वँहा शारीरिक आकार पग्लेजुु लु व गु वृन्दावन या रानी ख जिगँ वृषाम्भु या म्हयामचां ख व छंगु दय कृष्ण या अति योम्ह ख ।)  


:वांछा कल्पतरूभ्यश्च कृपासिन्धु एव च।
:वांछा कल्पतरूभ्यश्च कृपासिन्धु एव च।
:पतितानां पावनेभ्यो वैष्णवेभ्यो नमो नम:।।
:पतितानां पावनेभ्यो वैष्णवेभ्यो नमो नम:।।


(मैं भगवान के समस्त वैष्णव भक्तों को सादर नमस्कार करता हूं वे कल्पवृक्ष के समान सबों की इच्छाऍ पूर्ण करने में समर्थ हैं, तथा पतीत जीवात्माअों के प्रति अत्यन्त दयालु हैं ।)  
(जि जिगुं विनम्र नमस्कार दको दय या वैष्णव भक्ति तयत या उकि पिनिँगु दको सिया इच्छा पुरा याना वि ।)  


:श्रीकृष्ण चैतन्य प्रभुनित्यानन्द।
:श्रीकृष्ण चैतन्य प्रभुनित्यानन्द।
:श्री अद्वैत गदाधर श्रीवासादि गौरभक्तवृन्द।।
:श्री अद्वैत गदाधर श्रीवासादि गौरभक्तवृन्द।।


(मैं सादर नमस्कार करता हूं श्री कृष्ण चैतन्य, प्रभु नित्यानन्द, श्री अद्वैत, गदाधर, श्रीवास अादि भगवान चैतन्य के समस्त भक्तों को ।)  
(जि जिंगु विनम्र नमस्कार श्रीकृष्ण चैतन्य प्रभु नित्यानन्द, श्री अद्धैत गदाधर श्रीवासादी दको भक्त तयत या नाच्वना ।)  


:हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे।
:हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे।
:हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे।।
:हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे।।


(मेरे प्रिय प्रभु, और प्रभु की आध्यात्मिक शक्ति, कृपया आपकी सेवा में मुझे संलग्न करें मैं इस भौतिक सेवा से अब शर्मिंदा हूँ कृपया आपकी सेवा में मुझे संलग्न करें ।)
(जिंगु यहम दय व दयया धार्मिक शक्ति व जित छिंगुया सेवायँ संलग्न याना दिल जिं आ थ्य भौतिक सेवा नां लज्जित जुई धुन कृपा याना जित छपिनी सेवायँ कया दिंस ।)


गीतोपनिषद की भूमिका, ए सी भक्तिवेदांत स्वामी द्वारा, लेखक श्रीमद-भागवतम के, अन्य ग्रहों की सुगम यात्रा, संपादक भगवद्दर्शन के, इत्यादि ।  
गितोपनीसदया परिचय .सी भक्तिवेदान्त स्वामी व यिबा दिल सुं श्रीमद् भागवतम्, जोर्नी टु अदर प्लानेट, ब्याक टु गड हेड याँ लेखक ।  


भगवद्-गीता को गीतोपनिषद् भी कहा जाता है, वैदिक ज्ञान का सार, और वैदिक साहित्य की सर्वाधिक महत्वपूर्ण उपनिषद् । यह भगवद्- गीता, अंग्रेजी भाषा में अनेक भाष्य प्राप्त हैं और भगवद्- गीता की एक अौर अंग्रेजी भाष्य की क्या अावश्यक्ता है, यह समझाया जा सकता है इस तरीके से एक ... एक अमरीकी महिला, श्रीमती शेर्लोट ली ब्लांक नें संस्तुति चाही मुझसे भगवद्- गीता के एक अंग्रेजी अनुवाद की जो वह पढ सके निस्सन्देह, अमेरिका में भगवद गीता के अनेक अंग्रेजी संस्करण प्राप्त हैं, लेकिन जहॉ तक मैंने देखा है, केवल अमेरिका ही नहीं, अपितु भारत में भी, उनमें से कोई भी प्रमाणिक नहीं कहा जा सकता है, क्योंकि लगभग हर एक में भाष्यकार नें अपने मतों को व्यक्त किया है भगवद्- गीता की टीका के माध्यम से, भगवद्-गीता यथारूप के मर्म को स्पर्श किये बिना ।  
वैदिक ज्ञानया सुगन्ध व बैदिक साहित्य या ठिमन्त्र भिन्न उपनिषद् छँगु महत्वपुर्ण भगवद् गीता यात गीतोपनिसद् न धायन थुगु भगवद् गीता यं अन आपागुँ अग्रेजीयँ आलोचना यागु दु व भागवद् गीता या मेगु अंग्रजी आलोचना या छु महत्व दुथ्व निम्न तरिका व व्याख्या या फई छम्ह अमेरिकन भिसा चारलोट ले ब्ल्यान्क वँ जित भागवद् गीता या अंग्रजी सम्पादन या बारेय न्यनादि गुं उमसिन बोना दि सइ अवश्य अमेरिका यन भगवद् गीता अंग्रजी एको लिकान्तगोड तर जी खन्क अमेरिका ए जकक मखु भारते बेन प्याओगु मुल भगवद् गीता यै सार मथीसे विभिन्न बिचार आलेचना पोखेया गुदु ।  


भगवद्- गीता का मर्म भगवद्- गीता में ही व्यक्त है यह एसा है यदि हमें किसी अौषधि विशेष का सेवन करना है, तो हमें पालन करना होता है उस दवा पर लिखे निर्देशों का । हम मनमाने ढंग से या मित्र की सलाह से उस अौषधि को नहीं ले सकते हैं, लेकिन इस अौषधि का सेवन लिखे हुए निर्देशों के अनुसार या चिकित्सक के अादेशानुसार करना होता है इसी प्रकार, भगवद्-गीता को ग्रहण या स्वीकार करना चाहिए इसके वक्ता द्वारा दिये गये निर्देशानुसार
भगवद् गीता यु सार भगवद् गीता ये धैतगु दु व गेधासा झिसे छु वास क्यामाल धाँसा जिस वास ले चोइतगु बोना चलेय जिस छु वास थयाथे पासा पिन्छस धाथे काईमखु तर झिस वास यै शिशि चाइतथे व डाक्टर व धाथे चले याई अथे भगवद् गीता न झिस उके धैतमेस्या धाधे स्वीकारेयामा
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Latest revision as of 19:56, 16 October 2017



660219-20 - Lecture BG Introduction - New York

प्रभुपाद:

ऊँ अज्ञान तिमिरान्धस्य ज्ञानाज्जनशलाकया।
चक्षुरून्मीलितं येन तस्मै श्री गुरवे नमः।।

( जि जिमी हने बहः म गुरु यात नुगु लिसे ज्व: जलपा याना च्वना । उकि या ज्ञानका मत्न जिगु अन्धा जुयाँ च्वँगु मिखा यात खका बिल ।)

श्री चैतन्यमनोभीष्टं स्थापितं येन भूतले।
स्वयं रूपं कदा मह्यं ददाति स्वपदान्तिकम्।।

(गुबले जक जित शुकला रुप गोस्वामी प्रभुपाद न पलेस्वाँ या लपुँ यँ जित ओट विई वँ जिमी संसार दय चैतन्य या लक्ष्य पुसयागुँ इच्छा वात स्थापना याना नँगुदु ?)

वन्दे श्रीगुरोः श्रीयुतपदकमलं श्रीगुरून् वैष्णवांश्च।
श्रीरूपं साग्रजातं सहगणरघुनाथान्वितं तं सजीवम्।।
साद्वैतं सावधूतं परिजनसहितं कृष्णचैतन्यदेवं।
श्रीराधाकृष्णपादान् सहगणललिता श्रीविशाखान्वितांश्च।।

(जि लिगु हने बहम्ह गुरु त व भक्तिपूर्वक सेवा या लपु य बना च्वम्ह उपादेशक त इनुँग लिस नमस्कार या । जि जिगु विनम्र नमस्कार दको वशनभवज व दको खुगु गोजमामिज समागस्त शिलरुप गोस्वामी, शिल सनातन गोश्वामी, रघुनाथ दास गोस्वामी, जिव गोस्वामी व सन्ततिसकसित याय । जि जिगु विनम्र नमस्कार श्री अद्धैत आचार्य, प्रभु श्री नित्यानन्द प्रभु, श्री चैतन्य महाप्रभु व वया दको भक्ति उकित श्रीवास ठाकुर व नेतृत्व कयां तगु दु । वया लिपा जि जिंगु विनम्र नमस्कार दय कृष्णया पलेस्वा लपु श्रीमति राधारानी व द दंको गोपीस त याय हाही ललिता, विशाखा व नेतृत्व याना च्वँगु दु ।)

हे कृष्ण करूणासिन्धो दीनबन्धो जगतपते।
गोपेश गोपिकाकान्त राधाकान्त नमोस्तु ते।।

(व जिगुं योम्ह कृष्ण, दयाया सागर छ जिगु दुखया पासा व श्रृजनाया श्रोत ख तिभी काहेवर्ड मनुया गुरु व गोपीस पिनिगु पे्रमी खँ । खासयाना राधारानी त जिंगु विनम्र अनुरोध छित या ।)

तप्तकाच्चन गौरांगी राधे वृंदावनेश्वरी।
वृषभानुसुते देवी प्रणमामि हरिप्रिये।।

(जि जिगु बिनम्र नमस्कार राधारानी या त याँ वँहा शारीरिक आकार पग्लेजुु लु व गु वृन्दावन या रानी ख । जिगँ वृषाम्भु या म्हयामचां ख व छंगु दय कृष्ण या अति योम्ह ख ।)

वांछा कल्पतरूभ्यश्च कृपासिन्धु एव च।
पतितानां पावनेभ्यो वैष्णवेभ्यो नमो नम:।।

(जि जिगुं विनम्र नमस्कार दको दय या वैष्णव भक्ति तयत या । उकि पिनिँगु दको सिया इच्छा पुरा याना वि ।)

श्रीकृष्ण चैतन्य प्रभुनित्यानन्द।
श्री अद्वैत गदाधर श्रीवासादि गौरभक्तवृन्द।।

(जि जिंगु विनम्र नमस्कार श्रीकृष्ण चैतन्य प्रभु नित्यानन्द, श्री अद्धैत गदाधर श्रीवासादी दको भक्त तयत या नाच्वना ।)

हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे।
हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे।।

(जिंगु यहम दय व दयया धार्मिक शक्ति व जित छिंगुया सेवायँ संलग्न याना दिल । जिं आ थ्य भौतिक सेवा नां लज्जित जुई धुन । कृपा याना जित छपिनी सेवायँ कया दिंस ।)

गितोपनीसदया परिचय ए.सी भक्तिवेदान्त स्वामी व यिबा दिल सुं श्रीमद् भागवतम्, जोर्नी टु अदर प्लानेट, ब्याक टु गड हेड याँ लेखक ख ।

वैदिक ज्ञानया सुगन्ध व बैदिक साहित्य या ठिमन्त्र भिन्न उपनिषद् छँगु महत्वपुर्ण भगवद् गीता यात गीतोपनिसद् न धायन । थुगु भगवद् गीता यं अन आपागुँ अग्रेजीयँ आलोचना यागु दु व भागवद् गीता या मेगु अंग्रजी आलोचना या छु महत्व दुथ्व निम्न तरिका व व्याख्या या फई । छम्ह अमेरिकन भिसा चारलोट ले ब्ल्यान्क वँ जित भागवद् गीता या अंग्रजी सम्पादन या बारेय न्यनादि गुं उमसिन बोना दि सइ । अवश्य अमेरिका यन भगवद् गीता अंग्रजी एको लिकान्तगोड तर जी खन्क अमेरिका ए जकक मखु भारते बेन प्याओगु मुल भगवद् गीता यै सार मथीसे विभिन्न बिचार आलेचना पोखेया गुदु ।

भगवद् गीता यु सार भगवद् गीता ये धैतगु दु । व गेधासा झिसे छु वास क्यामाल धाँसा जिस वास ले चोइतगु बोना चलेय । जिस छु वास थयाथे पासा पिन्छस धाथे काईमखु तर झिस वास यै शिशि चाइतथे व डाक्टर व धाथे चले याई । अथे भगवद् गीता न झिस उके धैतमेस्या धाधे स्वीकारेयामा ।