NEW/Prabhupada 1057 - this one is too long, got to get the proper title

Revision as of 12:42, 24 June 2015 by Visnu Murti (talk | contribs) (Created page with "<!-- BEGIN CATEGORY LIST --> Category:1080 Newari Pages with Videos Category:Prabhupada 1057 - in all Languages Category:NEW-Quotes - 1966 Category:NEW-Quotes -...")
(diff) ← Older revision | Latest revision (diff) | Newer revision → (diff)


Invalid source, must be from amazon or causelessmery.com

660219-20 - Lecture BG Introduction - New York


Hindi

प्रभुपाद:

ऊँ अज्ञान तिमिरान्धस्य ज्ञानाज्जनशलाकया।
चक्षुरून्मीलितं येन तस्मै श्री गुरवे नमः।।

(मैं अपने आध्यात्मिक गुरु को सादर नमस्कार करता हूं, जिन्होंने ज्ञान रुपी प्रकाश से मेरी अॉखें खोल दीं, जो अंधी थीं घोर अज्ञान के अंधकार के कारण ।)

श्री चैतन्यमनोभीष्टं स्थापितं येन भूतले।
स्वयं रूपं कदा मह्यं ददाति स्वपदान्तिकम्।।

(कब श्रील रूप गोस्वामी प्रभुपाद, जिन्होंने इस भौतिक जगत में स्थापना की भगवान चैतन्य की इच्छा की पूर्ती के लिए प्रचार योजना (मिशन), मुझे अपने चरणकमलों में शरण प्रदान करेंगे ?)

वन्दे श्रीगुरोः श्रीयुतपदकमलं श्रीगुरून् वैष्णवांश्च।
श्रीरूपं साग्रजातं सहगणरघुनाथान्वितं तं सजीवम्।।
साद्वैतं सावधूतं परिजनसहितं कृष्णचैतन्यदेवं।
श्रीराधाकृष्णपादान् सहगणललिता श्रीविशाखान्वितांश्च।।

(मैं अपने आध्यात्मिक गुरु के चरणकमलों को तथा समस्त वैष्णवों के चरणकमलों को सादर नमस्कार करता हूं जो भक्ति के मार्ग में हैं । मैं सादर नमस्कार करता हूं समस्त वैष्णवों को अौर छह गोस्वामियों को, श्रील रूप गोस्वामी, श्रील सनातन गोस्वामी, रघुनाथ दास गोस्वामी, जीव गोस्वामी और उनके सहयोगियों के सहित । मैं सादर नमस्कार करता हूं श्री अद्वैत आचार्य प्रभु, श्री नित्यानन्द प्रभु, श्री चैतन्य महाप्रभु, और उनके सभी भक्तों को, श्रीवास ठाकुर की अध्यक्षता में । मैं फिर श्री कृष्ण के चरणकमलों में सादर नमस्कार करता हूं, श्रीमती राधारानी और सभी गोपियों के, ललिता और विशाखा की अध्यक्षता में ।)

हे कृष्ण करूणासिन्धो दीनबन्धो जगतपते।
गोपेश गोपिकाकान्त राधाकान्त नमोस्तु ते।।

(हे मेरे प्रिय कृष्ण, दया के सागर, अाप दुखियों के सखा तथा सृष्टि के उद्गम हैं । आप गोपों के स्वामी अौर गोपियों के प्रेमी हैं विशेष रुप से राधारानी के । मैं अापको सादर प्रणाम करता हूं ।)

तप्तकाच्चन गौरांगी राधे वृंदावनेश्वरी।
वृषभानुसुते देवी प्रणमामि हरिप्रिये।।

(मैं उन राधारानी को प्रणाम करता हूं जिनकी शारीरिक कान्ति पिघले सोने के सदृश है, अौर जो वृन्दावन की महारानी हैं । आप राजा वृषभानु की पुत्री हैं, और आप भगवान कृष्ण को अत्यन्त प्रिय हैं ।)

वांछा कल्पतरूभ्यश्च कृपासिन्धु एव च।
पतितानां पावनेभ्यो वैष्णवेभ्यो नमो नम:।।

(मैं भगवान के समस्त वैष्णव भक्तों को सादर नमस्कार करता हूं । वे कल्पवृक्ष के समान सबों की इच्छाऍ पूर्ण करने में समर्थ हैं, तथा पतीत जीवात्माअों के प्रति अत्यन्त दयालु हैं ।)

श्रीकृष्ण चैतन्य प्रभुनित्यानन्द।
श्री अद्वैत गदाधर श्रीवासादि गौरभक्तवृन्द।।

(मैं सादर नमस्कार करता हूं श्री कृष्ण चैतन्य, प्रभु नित्यानन्द, श्री अद्वैत, गदाधर, श्रीवास अादि भगवान चैतन्य के समस्त भक्तों को ।)

हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे।
हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे।।

(मेरे प्रिय प्रभु, और प्रभु की आध्यात्मिक शक्ति, कृपया आपकी सेवा में मुझे संलग्न करें । मैं इस भौतिक सेवा से अब शर्मिंदा हूँ । कृपया आपकी सेवा में मुझे संलग्न करें ।)

गीतोपनिषद की भूमिका, ए सी भक्तिवेदांत स्वामी द्वारा, लेखक श्रीमद-भागवतम के, अन्य ग्रहों की सुगम यात्रा, संपादक भगवद्दर्शन के, इत्यादि ।

भगवद्-गीता को गीतोपनिषद् भी कहा जाता है, वैदिक ज्ञान का सार, और वैदिक साहित्य की सर्वाधिक महत्वपूर्ण उपनिषद् । यह भगवद्- गीता, अंग्रेजी भाषा में अनेक भाष्य प्राप्त हैं और भगवद्- गीता की एक अौर अंग्रेजी भाष्य की क्या अावश्यक्ता है, यह समझाया जा सकता है इस तरीके से । एक ... एक अमरीकी महिला, श्रीमती शेर्लोट ली ब्लांक नें संस्तुति चाही मुझसे भगवद्- गीता के एक अंग्रेजी अनुवाद की जो वह पढ सके । निस्सन्देह, अमेरिका में भगवद गीता के अनेक अंग्रेजी संस्करण प्राप्त हैं, लेकिन जहॉ तक मैंने देखा है, केवल अमेरिका ही नहीं, अपितु भारत में भी, उनमें से कोई भी प्रमाणिक नहीं कहा जा सकता है, क्योंकि लगभग हर एक में भाष्यकार नें अपने मतों को व्यक्त किया है भगवद्- गीता की टीका के माध्यम से, भगवद्-गीता यथारूप के मर्म को स्पर्श किये बिना ।

भगवद्- गीता का मर्म भगवद्- गीता में ही व्यक्त है । यह एसा है । यदि हमें किसी अौषधि विशेष का सेवन करना है, तो हमें पालन करना होता है उस दवा पर लिखे निर्देशों का । हम मनमाने ढंग से या मित्र की सलाह से उस अौषधि को नहीं ले सकते हैं, लेकिन इस अौषधि का सेवन लिखे हुए निर्देशों के अनुसार या चिकित्सक के अादेशानुसार करना होता है । इसी प्रकार, भगवद्-गीता को ग्रहण या स्वीकार करना चाहिए इसके वक्ता द्वारा दिये गये निर्देशानुसार ।