NEW/Prabhupada 1058 - भगवद् गीता नवा मध्ये भगवान दय श्रीकृष्ण ख: Difference between revisions

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भगवदगीता के वक्ता भगवान श्रीकृष्ण हैं भगवदगीता के वक्ता भगवान श्रीकृष्ण हैं । भगवदगीता के प्रत्येक पृष्ठ पर उनका उल्लेख हुअा है, भगवान के रूप में । निस्सन्देह "भगवान" शब्द कभी-कभी किसी भी अत्यन्त शक्तिशाली व्यक्ति या किसी शक्तिशाली देवता के लिए प्रयुक्त होता है, लेकिन यहां पर भगवान शब्द निश्चित रूप से भगवान श्रीकृष्ण को एक महान पुरुष के रूप में सूचित करता है, लेकिन साथ ही हमें यह जानना होगा कि भगवान श्रीकृष्ण, जैसा कि अन्य विद्वान अाचार्यों ने पुष्टि की है... मेरे कहने का मतलब है, यहॉ तक कि शंकराचार्य, रामानुजाचार्य, मध्वाचार्य, निम्बार्क स्वामी और श्री चैतन्य महाप्रभु और कई अन्य । भारत में कई प्रमाणिक विद्वान और अाचार्य थे, मेरा मतलब है, वैदिक ज्ञान के विद्वान अाचार्य । उन सभी नें, शंकराचार्य सहित, स्वीकार किया है श्रीकृष्ण को पूर्ण पुरुषोत्तम भगवान के रूप में । भगवान ने भी स्वयं कहा है अपने अाप को परम पुरुषोत्तम भगवान कहा है भगवद्- गीता में । वे इसी रूप में स्वीकार किये गये हैं ब्रह्म-संहिता और सभी पुराणों में, विषेशतया भागवतपुराण में : कृष्णस्तु भगवान् स्वयम् ([[Vanisource:SB 1.3.28|श्री भ १।३।२८]]) । अतएव भगवद्- गीता हमें भगवान ने जैसे बताई है, वैसे ही स्वीकार करनी चाहिए ।


तो भगवद्- गीता के चतुर्थ अध्याय में भगवान कहते हैं:  
भगवद् गीता नवा मध्ये भगवान दय श्रीकृष्ण ख । भगववद् गीता (भगवान) दय श्रीकृष्ण सकसे । च्योचोमा दय ख । भगवान् ध्येमा  दक्से शक्तिशाली ख । भगवद् गीता दक्से शक्तिशाली द धोमा दय श्रीकृष्ण ख । थो ख आचार्य पि शंकराचार्य  रामानुजाचार्य, माधवचार्य, निम्वार्कस्वामी व श्री चैतन्य महाप्रभु अले मपि आचार्य पिन्सन पुष्टी आगु ख । भारत वे वैद या ज्ञान दुपि ज्ञानी आचार्य यको दु । यिमस न श्रीकृष्ण मान्यायद खु । थो ख (भगवान) दय श्रीकृष्ण श्रीमद्भागवद् गिता य थम्स सित पुष्टी या धुन्गेल । दय श्रीकृष्ण यात ब्रह्मसंहिता व दको पुराण उखोन भागवद् पुराण कृष्णस्तु भगवान् स्वयम्([[Vanisource:SB 1.3.28|श्री भ १।३।२८]])न माने यागुद । उके भागवत गिता यैत दय श्रीकृष्ण या निदोशिका रुप क्यामा ।


:इमं विवस्वते योगं  
:इमं विवस्वते योगं  
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:विवस्वान मनवे प्राह  
:विवस्वान मनवे प्राह  
:मनुर इक्ष्वाकवे अब्रवीत्  
:मनुर इक्ष्वाकवे अब्रवीत्  
:([[Vanisource:BG 4.1|भ गी ४।१]])
:([[Vanisource:BG 4.1 (1972)|भ गी ४।१]])


:एवं परम्परा प्राप्तम  
:एवं परम्परा प्राप्तम  
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:स कालेनेह महता  
:स कालेनेह महता  
:योगो नष्ट: परन्तप  
:योगो नष्ट: परन्तप  
:([[Vanisource:BG 4.2|भ गी ४।२]])
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:स एवायं मया ते अद्य  
:स एवायं मया ते अद्य  
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:भक्तो असि मे सखा चेति  
:भक्तो असि मे सखा चेति  
:रहस्यं हि एतद् उत्तमम्  
:रहस्यं हि एतद् उत्तमम्  
:([[Vanisource:BG 4.3|भ गी ४।३]])
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विचार यह है...भगवान अर्जुन को सूचित करते हैं कि "यह योग, यह योगपद्धति, भगवद्- गीता, उनके द्वारा सर्वप्रथम सुर्यदेव को बताई गयी और सूर्यदेव ने इसे मनु को बताया । मनु नें इसे इक्षवाकु को बताया, और इस प्रकार गुरु परम्परा द्वारा यह योगपद्धति एक वक्ता से दूसरे वक्ता तक पहुंचती है, लेकिन कालान्तर में यह खो गई है और फलस्वरूप, मैं वही योगपद्धति बता रहा हूँ, वही पुरानी योगपद्धति भगवद्- गीता, या गीतोपनिषद् क्योंकि तुम मेरे भक्त तथा मित्र हो, इसलिए तुम ही इसे समझने में सक्षम हो "
दय श्रीकृष्ण अर्जुन यात धागु दु । योग प्रणाली दकुस न्ङमा जी सूर्य दय त । धोगु ख । अले सूर्य दय न मनु टेट थागु ख । अले मनु टेस इक्षवाकु टेट आले । अले थथे यानी योग प्रणली बिस्तार जुला आलथो प्रणाली गिता अले गितोपनिषध यु योग प्रणाली बारे थाटेन । छया थासा छ ज्यूऊ भक्त व पासा ख । अले बालाक थो बुझे जुई ।
 
भागवद् गिता चाइ तगु मुख्य उद्धेश्य भक्तजन यु लागि ख । सोगु प्रकार यु अध्यात्मवादि दु । उके ज्ञानी, योगी व भक्त । अथवा निर्विशेषवादी योगी वा भक्त धया बालक धैतगु दु । दय श्रीकृष्ण अर्जुन ता थागु दु, जी छेन्ता परम्परा यै मा    मनु देक गुदु । छया थासा पुलाऊ परम्परा यौ  विचार सूर्य दय पाखे मे पिन्ते ब्रह्मा धैगु जिगु इच्छा दु । उके छ थो विचार कया मेपि दयै पिन्ता न फुले यान बिऊ । भगवद् गीता यौ योग प्रणाली छउँ मार्फत फैले जी छय भगवद् गीता या मुख्य मनु जुई ।” थठे थाना भगवद् गीता अर्जुन यात, दय श्रीकृष्ण या भक्त, शिष्य जक मखु एकदम धाल य जुनी भगवद् गीता ठमा मनु दय श्रीकृष्ण या गुण दुम ख थोये जुनी अर्जुन न दय श्रीकृष्ण य नाप सिध्यै सम्बन्ध दुम भक्त


इसका तात्पर्य यह है कि भगवद्- गीता एसा ग्रन्थ है जो विशेष रुप से भगवद्भक्त के लिए ही है, भगवद्भक्त के निमित्त है । अध्यात्मवादियों की तीन श्रेणियॉ हैं, ज्ञानी, योगी तथा भक्त । या निर्विशेषवादी, या ध्यानी, या भक्त । तो यहाँ यह स्पष्ट रूप से उल्लेख किया गया है । भगवान अर्जुन से कहते हैं कि "मैं बता रहा हूं या मैं इस नवीन परम्परा (गुरु परम्परा) का प्रथम पात्र तुम्हे बना रहा हूं । क्योंकि प्राचीन परम्परा या गुरु परम्परा खण्डित हो गई है, अतएव मेरी इच्छा है कि फिर से दूसरी परम्परा स्थापित की जाय उसी विचारधारा की दिशा में जो सर्यदेव से चली अा रही है अन्य तक । तो तुम, तुम इसे स्वीकार करो और तुम इसका वितरण करो । या यह पद्धति, भगवद्- गीता की योगपद्धति अब तुम्हारे माध्यम से वितरित की जाय । तुम भगवद्- गीता के प्रामाणिक विद्वान बनो ।" अब यहाँ एक निर्देश है कि भगवद्- गीता विशेष रूप से अर्जुन को दिया गया, भगवान का भक्त, श्री कृष्ण का प्रत्यक्ष शिष्य । और इतना ही नहीं, वे श्री कृष्ण के साथ संपर्क में हैं घनिष्ठ मित्र के रूप में । अतएव भगवद गीता उस व्यक्ति द्वारा समझा जाता है जिसमे कृष्ण (अर्जुन) जैसे गुण पाए जाते हैं । इसका मतलब है कि उसे एक भक्त होना चाहिए, उसे भगवान के साथ प्रत्यक्ष रूप से सम्बन्धित होना चाहिए ।
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Latest revision as of 13:26, 10 June 2018



660219-20 - Lecture BG Introduction - New York


भगवद् गीता नवा मध्ये भगवान दय श्रीकृष्ण ख । भगववद् गीता (भगवान) दय श्रीकृष्ण सकसे । च्योचोमा दय ख । भगवान् ध्येमा दक्से शक्तिशाली ख । भगवद् गीता दक्से शक्तिशाली द धोमा दय श्रीकृष्ण ख । थो ख आचार्य पि शंकराचार्य रामानुजाचार्य, माधवचार्य, निम्वार्कस्वामी व श्री चैतन्य महाप्रभु अले मपि आचार्य पिन्सन पुष्टी आगु ख । भारत वे वैद या ज्ञान दुपि ज्ञानी आचार्य यको दु । यिमस न श्रीकृष्ण मान्यायद खु । थो ख (भगवान) दय श्रीकृष्ण श्रीमद्भागवद् गिता य थम्स सित पुष्टी या धुन्गेल । दय श्रीकृष्ण यात ब्रह्मसंहिता व दको पुराण उखोन भागवद् पुराण कृष्णस्तु भगवान् स्वयम्(श्री भ १।३।२८)न माने यागुद । उके भागवत गिता यैत दय श्रीकृष्ण या निदोशिका रुप क्यामा ।

इमं विवस्वते योगं
प्रोक्तवान अहम अव्ययम
विवस्वान मनवे प्राह
मनुर इक्ष्वाकवे अब्रवीत्
(भ गी ४।१)
एवं परम्परा प्राप्तम
इमं राजर्षयो विदु:
स कालेनेह महता
योगो नष्ट: परन्तप
(भ गी ४।२)
स एवायं मया ते अद्य
योग: प्रोक्त: पुरातन:
भक्तो असि मे सखा चेति
रहस्यं हि एतद् उत्तमम्
(भ गी ४।३)

दय श्रीकृष्ण अर्जुन यात धागु दु । योग प्रणाली दकुस न्ङमा जी सूर्य दय त । धोगु ख । अले सूर्य दय न मनु टेट थागु ख । अले मनु टेस इक्षवाकु टेट आले । अले थथे यानी योग प्रणली बिस्तार जुला आलथो प्रणाली गिता अले गितोपनिषध यु योग प्रणाली बारे थाटेन । छया थासा छ ज्यूऊ भक्त व पासा ख । अले बालाक थो बुझे जुई ।

भागवद् गिता चाइ तगु मुख्य उद्धेश्य भक्तजन यु लागि ख । सोगु प्रकार यु अध्यात्मवादि दु । उके ज्ञानी, योगी व भक्त । अथवा निर्विशेषवादी योगी वा भक्त धया बालक धैतगु दु । दय श्रीकृष्ण अर्जुन ता थागु दु, जी छेन्ता परम्परा यै मा मनु देक गुदु । छया थासा पुलाऊ परम्परा यौ विचार सूर्य दय पाखे मे पिन्ते ब्रह्मा धैगु जिगु इच्छा दु । उके छ थो विचार कया मेपि दयै पिन्ता न फुले यान बिऊ । भगवद् गीता यौ योग प्रणाली छउँ मार्फत फैले जी । छय भगवद् गीता या मुख्य मनु जुई ।” थठे थाना भगवद् गीता अर्जुन यात, दय श्रीकृष्ण या भक्त, शिष्य जक मखु एकदम धाल । य जुनी भगवद् गीता ठमा मनु दय श्रीकृष्ण या गुण दुम ख । थोये जुनी अर्जुन न दय श्रीकृष्ण य नाप सिध्यै सम्बन्ध दुम भक्त ख ।