"कोई भी भूमि आपकी नहीं है। प्रत्येक वस्तु भगवान् की है। ईशावास्यम इदम सर्वम (ईशोपनिषद १)। वह सब के स्वामी है। भोक्तारम यज्ञतपसाम सर्वलोक महेश्वरम् (भ.गी. ५.२९)। यह हमारा मिथ्याबोध (ग़लतफ़हमी) है और हम अपना कपटपूर्वक अधिकार जमा कर, स्वयं इसके स्वामी होने का अनुरोध करते हैं। इसी कारण यहाँ शान्ति नहीं है। हम शान्ति को ढूँढने का प्रयास कर रहे हैं। यहाँ शान्ति कैसे हो सकती है? आप किसी और की वस्तु पर कपटपूर्वक अपना अधिकार जमा रहे हो जो आपकी है ही नहीं। इसलिए यहाँ पर कहा गया है, सर्वेश्वर्य-पूर्ण। समस्त भूमि भगवान् की है, और विशेष कर गोलोक वृंदावन तो उनका परम धाम है। आपने वह चित्र देखा होगा, जो कमल के समान है। सभी ग्रह गोल है, किन्तु वह परमधाम कमल के समान है। इसलिए वह गोलोक वृंदावन अध्यात्मिक आकाश में स्थित है।"
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