कृष्ण कहते हैं स्वकर्मणा तम अभ्यर्च्य । तुम सिर्फ अपने कार्यक्षेत्र के परिणाम से परम भगवान् की पूजा करने की कोशिश करो । क्योंकि कृष्ण सभी कुछ स्वीकार करते है । इसलिए यदि आप कुम्हार हैं, तो आप बर्तन प्रदान करें । यदि आप फूल वाले हैं, तो आप फूल प्रदान करें । यदि आप सुतार है, तोह आप मंदिर के लिए काम करें । यदि आप धोबी हैं, तो मंदिर के कपड़े धोए । मंदिर केंद्र है, कृष्ण केंद्र है । और सभी को अपनी सेवा देने का मौका मिलता है । इसलिए मंदिर की पूजा बहुत अच्छी है । इसलिए इस मंदिर में इस तरह से आयोजन किया जाना चाहिए कि हमें किसी भी धन की आवश्यकता न हो । आप अपनी सेवा देते रहे । बस इतना ही । आप अपनी सेवा में लगे रहें । अपनी सेवा को न बदलें । आपके व्यावसायिक कर्तव्य से, आप मंदिर की सेवा करने का प्रयास करते रहे, जिसका अर्थ है परम भगवान् की सेवा ।
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