"मेरे पारिवारिक जीवन में, जब मैं अपनी पत्नी और बच्चों के बीच था, कभी कभी मैं अपने स्वप्न देखता मेरे गुरुदेव, कि वे मुझे आह्वान कर रहे हैं, और मैं उनके पीछे पीछे जा रहा था। जब मेरा स्वप्न समाप्त हुआ, मैं सोच रहा था-- मैं किंचित भयभीत था -- ओह, गुरु महाराज चाहते हैं मैं सन्यासी बन जाऊं। मैं सन्यास कैसे ले सकता हूँ? उस समय, मैं बहुत संतुष्ट नहीं अनुभव कर रहा था कि मुझे अपने परिवार को त्यागना होगा और भिक्षुक बबना होगा। उस समय वह एक डरावनी अनुभूति थी। कभी कभी मैं सोचता था, नहीं, "मैं सन्यास नहीं ले सकता"। किन्तु मैंने फिर वही स्वप्न देखा। तो इस प्रकार मैं सौभाग्यवान था। मेरे गुरु महाराज ने मुझे इस भौतिक जीवन से खींच कर बाहर निकाल दिया। मैंने कुछ नहीं खोया है। वे मुझ पर इतने कृपालु थे। मैंने कमाया है। मैंने तीन बच्चे त्यागे थे, अब मेरे पास तीन सौ बच्चे हैं। तो मैं घाटे में नहीं हूँ। यह भौतिक धारणा है। हम सोचते हैं कि कृष्ण को स्वीकारने से हम घाटे में रहेंगे। कोई भी घाटे में नहीं है।"
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